शनिवार, 1 सितंबर 2018

कच्छावा वंश की कुलदेवी जमवाय माता जमवा रामगढ़ जयपुर पर दोहे, सोरठे व मुक्तक

क्षत्रिय साहित्यिक व्हाट्सएप समुह "साहित अर शमशीर" के कवियों द्वारा "कच्छावा वंश की कुलदेवी जमवाय माता जमवा रामगढ़ जयपुर " पर दोहे, सोरठे व मुक्तक लिखे गए।
जयश्री कंवर भामोलाव कृत
(1)
शीश झुका अरजी करा,सबकी करो सहाय
आया थाकी हाजरी जय माता जमवाय
(2)
मिंदर जमुआ रामगढ़ शोभा बरनी न जाय,
हिरदा में हरदम बसो,जय माता जमवाय
(3)
गऊ मात रा रूप म,परगट करी सहाय
दूल्हेराय जिंदा करि, जय माता जमवाय.
(4)
कुलदेवी किरपा करे, बिगड़ृया काम बणाय,
सुमिरण करस्या आपने, जय माता जमवाय
(5)
जगमग जोत जले सदा, मां रे मंदिर मांय।
मनभावन मां की छबी, जय माता जमवाय।।
(6)
लाल चूनड़ी ओढ़ के, मंद मंद मुसकाय
भगती दीजै भगवती, जय माता जमवाय.
(7)
कुंकू मेंदी चूड़लो, मायड़ मन में भाय
लोग लुगाई पूजता, जय माता जमवाय.
(8)
दीयो बाती आरती , इत्तर गंध सुहाय
ढोल नगाड़ा बाजता, जय माता जमवाय.
(9)
बरफी लपसी गुलगुला छप्पन भोग लगाय
थाल परोसाँ प्रेम सूँ, जय माता जमवाय.
(10)
टाबर नीका राखजै, सत की राह दिखाय
अला बला ने टालजै, जय माता जमवाय.
संतोष कंवर राठौड़ बाबरा कॄत
(1)
सिंह सवारी मात की ,हाथ लिए तलवार।
लांगुर बाबा साथ में ,भैरु चले पिछवार।।
(2)
जोत जले जमवाय की, भेंट चढे नारेळ।
आई शरणे आपकी ,दर्शन दो ना शैल।।
(3)
चंदन चौकी बैठ मां ,दूध पखारू पाय।
अरज करूं जमवाय को ,बैठौ आसन आय।।
(4)
हाथाँ सोवै चूड़लो ,गळ में नौसर हार।
लाल कसूमल ओढ़णी,बैठी मां दरबार।।
श्रवण सिंह राजावत जोधपुर कृत
(1)
हरसिद्धि को रूप माँ ढूंढाड़ धरा री माय
दुल्हराय हित प्रगटी जय हो मां जमवाय
(2)
जम को फन्द कटावती भगता रे हित आय
जमुवागढ़ री धणी जय माता जमवाय
कल्याण सिंह शेखावत राजनोता कृत
(1)
जंगल में मंगल कर्या, जै जै जमवा मात।
नित्य हरख सेवा करें,कछवाहा दिन रात
(2)
जात जड़ूला थान पे, गठजोड़ा की जात।
चढै चूनड़ी देवरै, भोग लापसी मात।।
(3)
कछवाहा के साथ में, पूजै सातूं जात।
भेदभाव बिन मावड़ी,सबको जीमै भात
(4)
मायड़ थारा थान पे, जोत जगै दिन रात,
राज सवाई भेंट दे, मणां तेल घृत बात।।
(5)
छट बारूं म्हैनां भरे, मेल़ो जमवा मात।
चोर उचक्का ऐबला, करें नहीं आघात।।
*मानसिंह शेखावत "मऊ" कृत
(1)
तूँ माँ शक्तिदायीनी, तूँ जीवन आधार।
माता आ रक्षा करो,संकट में परिवार।।
(2)
सिंह सवारी मात की,हाथ लिये तलवार।
अरि का माँ संहार कर,हम बालक लाचार।।
(3)
वन-जंगल में वास है, खड्ग लिये माँ हाथ।
अमन-चैन चहुँ ओर माँ,यह गौरव की बात।।
(4)
श्रद्धालू आते सभी,दूर दूर से मात।
कुलदीपक परिवार सँग, कुल ललनाएं साथ।।
(5)
जय जय माँ जगदंबिका,जय माता जमुवाय।
मान 'मऊ' की याचना,बुद्धी करो सवाय।।

अजय सिंह राठौड़ सिकरोडी कृत
(1)
कच्छप कुळ पर छाँवड़ी, राखै मां दिन रात।
भगत रा भंडार भरै,बिगड़ी बणाय बात।।
(2)
साची सरदा सिवरतां,आवै जमवा माय।
पल मांही परमेसरी, सेवग करणै साय।।
(3)
शेखा कुळ री सारदा, मोटी कहिजे मात।
जय जय जमवा जोगणी,सगती दीजै साथ।।
(4)
जमवा मां री जातरी, करै घणी जयकार।
सिवरण सरदा भाव सूं,पल में बेड़ो पार।।
(5)
अवनी सिंवरु आपनै,मोटी जमवा मात।
अजय करै आराधना, बिगड़ बणादे बात।।
केशर सिंह शेखावत केहरपुरा कलां कृत
(1)
चोटी नीचे बास है,जयपुर से नजदीक।
भगतजन हैं पहुँचते मां से मिलना ठीक।
(2)
कच्छावा कुल पूजता, अपनी मां जमवाय।
झंडा ऊँचा फहरता, मां के शरणे आय।
(3)
नवरात्र में धमकती, सब करते हैं प्यार।
जमवा झोली पूरती, भव्य सजा दरबार।
(4)
पोशाकें व मान संग, चढे पुनित प्रसाद।
सजता अब दरबार है, भगत बढे तादाद।
(5)
अभ्यारण्य औ झील हैं, आते पर्यटक खूब।
मंदिर तलहट में खड़ा, अनुपम रूप अजूब।
(6)
घर से निकले, पहुँचते, कुल वंशी जमवाय।
राजकुँवर राजा बने, मां की चौकी आय।
(7)
मीणाओं को मात दी, राजा दूल्हेराय।
संगत देवी सोहती, अपनी मां जमवाय।
(8)
बेहोशी रण में हुई, गहन अँधेरा छाय।
दूल्हे को पुचकारती कुलदेवी जमवाय।
(9)
बुढवा के आदेश से, नाम पड़ा, जमवाय।
मंदिर में पूजन शुरु, महिमा कुल पूजवाय।
(10)
मंदिर बीचों शक्तिरूप, मूरत मां जमवाय।
दाहिने धेनू बाछड़ा, बाएं मां बूढवाय।
(11)
बाल बाल मुंडन हुवे, कच्छावा संस्कार।
राज्यारोहण परम्परा, बुढवा के दरबार।
(12)
माताजी के नाम पर बसा एक था गाँव।
आपश्री आशीष से बढा गाँव का भाव।
(13)
कांकील जी के साथ भी, मां का आशीर्वाद।
दुग्धरूप वर्षा करें, वंश हुआ आबाद।
(14)
दमन ढेर दुश्मन हुआ, गढ बासा आमेर।
जमुवा महिमा गूँजती, कुल में जन्मे शेर।
(15)
जमुवा की आशीष से, राज हुआ विस्तार।
शेखा, राजा नरूका, नाथावत सिरदार।
(16)
सभी रश्म पूरी तभी, जब पहुँचो दरबार।
पगड़ी शादी जन्मदिन, जमुवा का सत्कार।
(17)
अंतस श्रृद्धा राखीए, मात बड़ी जमवाय।
कारज पूरे भगत के, अपनी रीत निभाय।
(18)
बूढवा वंश विस्तार दे, फहर ध्वज आकाश।
फैले कच्छवाह कीर्ति, जगह जगह हो बास।
(19)
कच्छवाहा कुल कीर्ति, करे कष्ट की काट।
जमुवा जग में जय करे, करे ठाठ पर ठाठ।
(20)
दूल्हे राय राजा बने, संग खड़ी जमवाय।
राजकाज बढता रहा, आशीषों को पाय।
(21)
कच्छवाह कुल फैलता, शेखावाटी माय।
अलवर आभा चमकती, ढूँढाड़ै जमवाय।
(22)
द्वारे आकर झुक गए, राजा रंक फकीर।
मन्नत की बौछार हो, बनती है तकदीर।
(23)
सच्चे मन से पूजीए, कुलदेवी जमवाय।
संकट सारे काटती, सुख सारे ही पाय।
(24)
दुखों में जमवाय खड़ी, सब अपनो के साथ।
भगत बँटे प्रसाद अब, ऊपर देवी हाथ।
(25)
केशर कुल का पूत है, पूजे अपनी माय।
पीढी की महिमा बढे, जयकारा जमवाय।
(26)
गहन तिमिर है छा रहा, कर दो नेक उपाय।
उम्मीदों के दीप जल, मां ऊँची जमवाय।
(27)
जुल्म जोर अब बढ रहा, बढता पापाचार।
शक्ति परम जमवाय है, सभी हटाये भार।
(28)
भारत मां की बेटियां, करती करुण पुकार।
जीवन कोमल भी बचे, जमुवा कर उपचार।
(29)
धर्म ध्वजा झुकने लगी, अब रिश्तों पर मार।
बुद्धि सबको दीजिए, करें धर्म को प्यार।
(30)
वंदन क्षत्रीय कर रहे, साहित अर शमशीर।
जमुवा कृपा कीजीए, दोनो बने नजीर
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*मदन सिंह शेखावत ढोढसर कृत*
(1)
गढ जीत्यो आमेर को,थाप्यो मंदिर आय।
मंदिर  लागे सोवणो,बिराजती जमवाय।।
(2)
सहाय करती मावङी,हारे को जीताय।
युद्ध जीत दुलेराय,आमेर गढ बनाय।।
(3)
जमवाय मात देवरो,सोहे धणो सुहाय
दौङ्यो आवे जातरी,मन वांछित फल पाय ।।
(4)
कच्छावा कुल तारणी,भगत बचावण माय।
मंदिर सोहे जोरको,ऊचे भाकर माय ।।
(5)
जमवाराम बिराजती,मेरी मोटी मात।
भक्ता का कारज करे,सिवरे जो दिन रात।।
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*प्रेम सिंह राठौड़ उदावत मंडोवरी कृत*
(1)
प्रथम नमन गणराज न सुमरू शारद मात।
जग जननी जगदम्ब तूं जमवां मात अर तात।।
(2)
गणनायक शुभ लाभ संग,सुमरू शारद माय,
कुल देवी आमेर की जमुवां कीजे सहाय।।
(3)
जगजननी जगदम्ब का जग मे रूप अनेक।
राठोड़ा कुल नागणेच है आमेरा जमुवा भेक।।
(4)
आपही दुर्गा आप ही चंडी, आप ही मां जमवाय।
दुल्हे राय न दर्शन दीना, आमेर मे आय।।
(5)
नमो सदा सुत शैलजा, अम्बे मा जमुवाय।
राम  कृपा जहां हुवे लक्ष्मी  घर मे आय।।
(6)
दौषा क्षेत्र चोहाण कुल, दूल्हा को ससुराल।
जमुवाय की कृपा हुई भक्त होयग्यो निहाल।।
(7)
झाड़ी जंगल जोरका,शैल घणा चहुओर।
मां जमुवाय कृपा करी, मीणा तजदी ठौर।
(8)
दुल्हे राय घायल हुया घिरग्या चारो ओर।
मां अम्बे दर्शन दिया, मंदिर जमुवा ठौर।।
(9)
कुल कच्छावां गादी मिली, सुघड़ किलो आमेर।
कूरम धजा फरकन लगी जमुवा भक्ति जोर।।
(10)
इष्ट राम के नाम को नगर बसायो एक।
नाम राखियो राम गढ , जमुवा राखी टेक।।
(11)
ऊंचा पर्वत द्रुमदल घणा, मंदिर नींव लगाय।
जमुवा अम्बे मात को जसड़ो दुनिया गाय।।
(12)
बड़ गूजर चोहाण मे हुवे रोजका राड़।
ससरिया चोहांण संग दुल्हो आयो दहाड़।।
(13)
रज्य को विस्तार कियो मीणा मांडी राड़।
मां जमुवां की कृपा हुई ,भाग्या चूल्हा पाड़।।
(14)
आमेर को राज मिल्यो कूरम पदवी पाय।
मां जमुवां कृपा करी,आमेरा कुल माय।।
(15)
सुमरिन कर श्री राम को, पूजन मां जमुवाय।
मन चित मां को घ्यान घर्या करसी अम्बे सहाय।।
(16)
सुखदाता जमुवाय मां कच्छावां कुल करतार।
भक्ति मां जगदम्ब की,शक्ति को आधार।।
(17)
दुर्गा अम्बे काली कहो,चाहे कहो नागणेच।
आवड़ मां हिंगलाज का   प्यारा मंदिर पैच।।
अम
(18)
अम्बे मां बहू रूप धरे बगत बगत की बात।
आवड़ करणी हीगलाज सब मे मात समात।।
(19)
आप ही ब्रहमा आप ही विष्णु आप ही शिव को रूप।
आपके कारण चले चराचर जमुवां रूप अनूप।।
(20)
नमन मात जमुवाय न,मां सब की शिर मौर।
आमेरा कुल मात न.ध्यावे  प्रेम राठौड़।।
(21)
जबरी मां जमुवाय भाकर बिच मे शोहणी।
मंदिर जबर बैजोड़, मूरत है मन मोहनी।।
(22)
घिरियो दुल्हेराय, घायल कर मीणा फिरे।
सहाय करी जमुवाय माथा ऊपर हाथ धरे।।
(23)
ऊचो गढ आमेर कच्छावां कुल की धरा।
दर्शन दे जमुवाय दूल्हे जी ऊठो परा।।
(24)
उठ्यो कड़कड़ी भींच मीणा मे भगदड़ पड़ी।
भाग्या पिंड छुड़ाय दुल्हे कन मां जमुवा खड़ी।।
(25)
दुल्हेराय दल बल चढ्यो आगी मीणा मौत।
छौड़ो गढ आमेर न जमुवा जागी जोत।।
जमुवा जागी जोत अम्बे मां संग लड़े है।
कच्छावां कुल शमसीर मीणा सू आय भिड़ै है।।
कहे प्रेम पुकार पाड़ कर भागो चुल्हा।
मध्य प्रदेश सू आगयो जवाई राजा दुल्हा।।
*भवानी सिंह राठौड़ टापरवाडा़ भावुक कृत*
(1)
जमवागढ़ में जोरकी,जगजननी जमवाय!.
काछबकुळरी कीरती,राखे मोटी मांय।।
(2)
जगदम्बे जमवाय ने,जाझा करूं जुहार!
पूरो मन री कामना,भावुक करे पुकार!!
(3)
मानो मुजरो मावड़ी,बगसो बिस्वाबीस!
जमवागढ़ में जायके,नमन करूं निज सीस!!
(4)
जगमग जोतां जागरी,जमवागढ़ रे मांय!
दे आशीसां डोकरी,जगदम्बा जमवाय!!
(5)
नितका बगसे नैमतां,दरशण देवे दौड़!
काछबकुळरे काज में,रण राचै रणछौड़!!
रतन सिंह राठौड़ चापाँवत जोधपुर कृत
(1)
अवनी वंश उबारणी कूरम कुल कल्याण
शरण तिहारे रख सदा जमवा करजै जांण
(2)
आप बसो आमेर में शिला भवानी शैल
कछवा पूजै कोड कर लीला ले नारेळ
रिछपाल सिंह राठौड़ कांगसिया कृत
(1)
जाजम बीछै जोरकी, मैया मंदिर माय।
भगती भजन भाव सूं, जै जै माँ जमवाय।।
(2)
रामगढ रमे रामजी, जमवाय तणो वास।
आमेर नगर पास मे, मंदिर बणियो खास।।
(3)
दूलैसिंह पर कर दया, दर्शन दीन्हा आय।
कर किलकारी काटकी, रण मे जीत दिलाय।।
(4)
ऊंचो भवन ऊजलो, सब क्षत्रियो की शान।
खांडो खल खपावणो,जगत बचावण जान।।
(5)
जगदंब जगदीशवरी, जग जननी जमवाय।
म्हारी मोटी मावडी, सरन गये सुख पाय।।
(6)
जम से झगडो जीतसी, जय माता जमवाय।
निर्भय होवै निर्मला, इनके शरणे आय।।
(7)
अडिग अखाड़े आयसी,खडग खपर लै हाथ।
बावन भैरू जोगणी, चोसट राखै साथ।।
(8)
जोती ज्वाला जालपा, करणी काली काल।
आप जमवाय आवडा, रंग रचे रिछपाल।।
(9)
आज आंगण आयसी, साहित अरु शमसीर।
सोरा राखै शंकरी, चूनड चमकै चीर।।
(10)
माता के दरबार में, कमी रहे ना कोय।
चित चरन धरो चाहना, जमवाय जल्दी जोय।।
शिवराज सिँह चौहान'नान्धा' कृत
(1)
जमुआ रामगढ़ बांध पै,सबकी सदा सहाय !
किरपा हरदम राखिये,जय माता जमवाय !!
(2)
ढोल नगाड़ा बाजता,धजा रही फहराय !
जातर ढोकां मारता,जय माता जमवाय !!
(3)
तन मन से अरदास कर,मंदिर अन्दर जाय !
जंगल मैं मंगल करै,जय माता जमवाय !!
(4)
जोत जगै अर भोग लगै,जब मंदिर के मांय !
कटज्यां सारे कष्ट खुद,जय माता जमवाय !!
(5)
अरावली की गोद मैं,बरगद पीपल छांय !
तनमन को शीतल करै,जय माता जमवाय !!
महेन्द्र सिंह शेखावत केहरपुरा कलां कृत
(1)
कुलदेवी मां आपकी, कृपा रहे हमेश
करता सिमरन आपका, पूरा भारत देश
(2)
कुल की कीरत आपसे, कुल की हो पहचान
यशो पताका फैलती , करते मंगल गान
(3)
जग की जननी आप हो, सब की पालनहार
सच्चे मन से याद कर, करती मां उद्धार
(4)
दर्शन दे जमवाय मां, कब तक आऊं मात
तेरे खातिर ही सदा,सेवा दूं दिन रात
मूल सिंह शेखावत पीथलपुर कृत
(1)
माता के दरबार में, हर दम  जय जय कार।
मैया तेरे सामने, हाजिर बारम्बार।।
(2)
कुलदेवी को राम गढ़ ,लाये दूल्हे राय।
माता की आशीष से, विजय हुई भरपाय।।
(3)
जमे रामगढ स्थित है,मन्दिर मां जमवाय ।
इच्छा फल सबको मिले, कृपा दृष्टि सब पाय।।
(4)
पर्वत माला ओट में, बसती माँ जमवाय ।
धरा मन को मोह रही , बाग बाग हो जाय।।
(5)
माता तेरी आरती,गाऊँ सुबहा शाम।
काज तो सिद्ध  हो गये, दिया बहुत आराम ।।
महेन्द्र सिंह राठौड़ जाखली कृत
(1)
जग उजियारा कर दिया, कीरत बढी़ भरपूर
दुल्हे राय व मात तो, हीरा कोही नूर
(2)
राठौड़ी सरदार भी,करे आपको मान
नमन करूं जमवाय को,रखना मेरा ध्यान
(3)
जीतो गढ़ आमेर को,राजा दुल्हे राय
राजधानी बना यहां, कहती हूँ मैं माय
(4)
परचम लहरा राम का,करती हूँ आबाद
मैं देती हूं आज तो,तुझको आर्शीवाद
(5)
दुल्हे राजा बन गया,माता जी का दूत
नरवर शासक सोढ के,ऐसा हुआ सपूत
(6)
विपती में भी साथ है,माता ये जमवाय
ऐसी मैया ना मिले,हरदम करे सहाय
(7)
सिंह सवारी आपकी,मैया तेरी आज
लाल धजा लहरा रही,करे धरा पर राज
(8)
सारे जग में दे रही परचे हाथों हाथ
राज काज सब देखती,रण में रहती साथ
(9)
दानव दल को मारती,करती बूरा हाल
हाथों में हथियार ले,संघारती बेहाल
(10)
भागी आती जोर से, याद करो तो मात
भगत की तो खास है,दिन देखे ना रात
(11)
राम वंश पर मात ने, किया बहुत उपकार
सभी समर में साथ थी,लेती सारे भार
कुँवर विराज शेखावत भडुन्दा कृत
(1)
कीरत कुळ कछवाह री, ऊंची करे सदाय।
शेखावत सिमरे सदा, जय माड़ी जमवाय।।
(2)
कूरम कूल रो आप कियो, नोकुंटा में नाम।
जमवागढ़ जगदंब सूं, पहचाणीजे धाम।।
(3)
सतजुग सु अब तक सगती,नित आ करी सहाय।
बुढ़वाय कदे भगवती, कदे बणी जमवाय।।
(4)
आदिपुरुष शेखा कुळ रो,जद सिमरी जमवाय।
पवन वेग परमेशरी,  ऊभी आडी आय ।।
(5)
मुर्छित जद राजा भयो, रण में दूलेराय।
मीणा मारण मावड़ी,झटपट दियो जिवाय।।
(6)
आगे आगे अम्बिका, लारे बावन लार।
मार काट हुई मोकळी,कूरम वीर अपार।।
(7)
ढूंढ नदी रा देश में,कछवाहा थिरपाय।
इक आमेर सु जेपर तक, बस जे जे जमवाय।।
(8)
कुळदेवी करुणामयी, होण न देती हाण।
इक तू आडी आवती, दूजी वा धणियाण।।
(9)
भोडकी में भगवती, थिरपिज्यो तुझ थान।
मन्दिर थारे मावड़ी, धजा उड़े असमान।।
(10)
सदा रहिज्यो साथ मे, जंग बीच जमवाय।
ऊँचो करजे अम्बिका, सबसूं नाम सवाय।।
(11)
तू करणी तर तारणी, जगदम्बा जगराय।
विपद "विराजे" री सदा, हर लीज्यो जमवाय।।
हनुमान सिंह राठौड़ सवाई गढ़ कृत
(1)
जयो मात जमुवाय, माँ लज्जा  मम राखजौ |
सगती कीजौ स्हाय, चरणां कर स्यूं चाकरी ||
(2)
अवरां सूं नीं आस, इक थारो ही आसरौ |
वित आतम विश्वास, सदा सौंपजै सांभरी ||
नरेंद्र प्रताप सिंह भाटी सत्याया जैसलमेर कृत
(1)
शेखों कुळ ने तारणी,खंगारोत री खान
राजावत नाथा नरू,राखे थारो मान
(2)
मैया तू मातेश्वरी , काछब कुळ री राय।
एक अर्ज सुण डोकरी ,हे मायड़ जमवाय।
(3)
काटे दुखड़ो मावड़ी , बोले दुल्हे राय।
हेले हाजर जोगणी,जग में माँ जमवाय।
(4)
अधर आकास ऊतरी,जमवा गढ़ री माय ।
मीणा मारण मुलक में , जग में माँ जमवाय।
(5)
मध प्रदेश रो मोनवी, अब आयो  रजथोण।
दुल्हे संग'म डोकरी,बैठो माया मोण
(6)
सिहं सवारी जोगणी ,मढङै आळी माय।
भुरै भाखर आव ज्यो, जोगण थूं जमवाय।
(7)
धजा फरूखै डोकरी, ऊंचा मढ़ री माय।
राजा'न राज देवणी, माता थूं  जमवाय।
(8)
नाथावत नख राखणी,भगवती महेमाय।
नरू नाम मां राख'यो ,जग की माँ जमवाय।
(9)
देवी माँ थूं डोकरी,सबरी करजै साय।
रामगढा़ री लाज तो ,राखी थूं जमवाय।
(10)
मैळो भरलो जोरको , रामगढा़ रे मांय।
थारो नरसी दास है ,चरण पखारू माय।।
(11)
जै मात जवालामुखी,जै जै माँ जमवाय।
दाळद दुखने मेटणी,मोटी थूं  महमाय।
संकलन कर्ता:--ज्ञान सिंह इन्दा जोलियाली एडमीन "साहित अर शमशीर"