रविवार, 11 नवंबर 2018

डूंगजी जवारजी

डूंगजी जवारजी

गाँव में ढोल की आवाज सुण कर सब लोग सावधान हो गये। बाहर झाँक कर देखा तो फिरंगियो की फोज की टोपीयाँ चमक रही थी। घोड़ो की टापो से आकाश गुँज गया।
बठोठ (सीकर) के छोटे से गढ़ में डूंगजी के साथ कुछ साथी बैठे थे।
डूंगजी कहने लगे “आज ये फिरंगी हमारे ही राज में हमारे ही घर में दखलन्दाजी कर रहे है। फौज लेकर आ गये। कल ये हमारे उपर हुकम चलायेंगे और परसो हमें नौकर बनाकर रखेंगे। हम लोग इनकी बात क्यो माने ? हमारा राज है हम मिल बैठकर आपस की लड़ायी खुद निपटेंगे। हमारे धणी तो सीकर राजा जी या फिर जयपुर राजा जी है। ये कौन होते है फौज लेकर गाँव में आने वाले।”
“डूंगजी” एक बूढे सरदार ने डूंगजी को बीच में टोकते हुए, “आप बाते तो अच्छी कर लेते है, परन्तु आप कर क्या लोगे। आपके पास क्या ताकत है ? जयपुर जोधपुर के राजाओ ने इस कम्पनी से दोस्ती करली है। जानते हो क्या ?”
करणीया मीणा अपनी ढाढी पर हाथ फेरते हुए बोला, “राजाओ ने तो ओढनीयां ओढ ली है। उनके पीछे हमसे तो नही ओढनी आवे सा।” “सही बात है राजाओ को तो राज का मोह है। फिरंगी उनकी छाती पर पैर देकर आ रहे है। वो राजा है हम तलवार बन्ध राजपूत है ?” डूंगजी ने कहा।
जवारजी ने हूंकारा भरा “वो बणीये बन कर आये थे धीरे धीरे राजा बन गये। हालात यही रहे तो तलवार से राज करते तो देखा है पर ये तराजू से राज करके हमारा खून पी जायेगे।”
“लाख टके की बात है। यह हमारे ही घर में हमें कोहने में बैठायेंगे देखना। ठाकराँ, तलवारा खैंचो तलवारा।” जवारजी ने बात कही।
डूंगरजी ने हाँ भरी, “क्यो नही ? बीकानेर राज में पेमा बावरी ने अंग्रेजो के छक्के छुटा रखे है। चार हजार आदमीयो की टीम उसके साथ है। जात का बावरी होकर पूरी ठूकराई कर रहा है। हमने तो राजपूताणी का दूध पीया है। हम तो धरती के मालिक कहलाते है। आज इस समय देश के काम नही आयेंगे तो फिर कब आयेंगे। हमारी माताओ ने फालतू ही हमारा बोझ पेट में उठाया है।”
यह सुनते ही लोटिया जाट और करणीया मीणा ने जमीन पर थाप मारी, “उठाओ तलवारे अंग्रेजो को लूट मार कर देश से बाहर भगाओ, फिरंगीयो की फौज गाँव में आ गयी है। गढ को घेर लेगी मुकाबले में हम कितनी देर टिकेंगे। गढ छोड़कर बाहर निकलो अंग्रेजो को लूटो और भगावो।”
डूंगजी, जवारजी, लोटियो जाट और करणिया मीणा ने आपस में मसवरा किया। गाँव छोड़ धाड़ायती बन कर निकल गये।
धाड़ायती तो बन गये अब चाहिये घोड़े।
करणिया ने उपाय सोचा “शेखावाटी की सीमा पर जो अंग्रेजो की पलटन पड़ी है उनके घोड़े लूट लो।”
डूंगरजी ने हुंकार भरते हुए गर्दन हिलाई “बिल्कुल ठीक है।”
रात के चार पहर बीतने पर अंग्रेजो की पलटण पर टूट पड़े। घोड़े लूट कर सबने आपस में बांट लिये। सूचना मिलते ही मेजर फोेरेस्टर ने पीछा किया। रोज आमने सामने भिड़न्त होती और मौका देख कर फिर वारदात कर देते। अंग्रेजो के दिल में इनका गहरा डर बैठ गया। नाकाबन्दी ओर पक्की कर दी गयी।
डूंगजी जवारजी की धाक दिन प्रतिदिन बढती जा रही थी। अंग्रेजो को देश से बाहर निकालने का संकल्प। लड़ने को तैयार, मन में उत्साह। रगो में गर्म खून दौड़ रहा। परन्तु अपने आदमियो के लिए रोटी एवं उँटो व घोड़ो के लिए चारा और दाना पानी का कोई उपाय नही। जो कुछ था सब समाप्त। डूंगजी चिंतित थे। सोच विचार करके रामगढ़ के सेठो को कहलवाया “सेठजी हमने फिरंगियो को देश से बाहर निकालने का प्रण लिया है। इनके पैर यहां जम गये तो हम कही के नही रहेंगे। हमारा राज आपका व्यापार सब इन्ही के हाथो में चला जायेगा। इस समय आप लोग हमारी मदद करे। घोड़े व उँटो के लिए दाणा घास का प्रबन्ध करे। वैसे हम आपको वापस कर देंगे।
सेठों ने मन में सोचा यह तो रांघड़ है कूद फांद कर रह जायेंगे। कम्पनी की तोपो के सामने ये मुठी भर बागी क्या कर लेंगे। इनके पीछे हम और खराब होंगे। कम्पनी तो उगता सूरज है। सेठों ने साफ मना कर दिया “आप जाणो सा हम व्यापारी लोग। फिरंगियो को पता चलते ही हमारा कचरधाण निकाल देंगे। है है ठाकरां उस समय आप काम नही आओगे।”
डूंगजी ने लोटिया कि तरफ देख कर कहा “लोटिया रामगढ़ के सेठों ने तो अपना पोत दिखा दिया। मोठ समाप्त हो गये, बाजरी समाप्त हो गयी, घोड़ो के लिए दाना भी नही है, क्या उपाय करे।”
लोटिया बोला “ठाकरां सीधी अंगुली से घी नही निकलता है। थोड़ी तसल्ली रखो, मैं जाता हूँ। आवँू तब तक जैसे तैसे काम चलावो।”
करणिया व लोटिया दोनो वहां से तीर की तरह निकले। एक ने ली ढोलकी एक ने हाथ में लिया बाँस। रामगढ का नामी सेठां। रामगढ़ में जाकर मदारी का खेल तमाशा करने लग गये। रामगढ़ से माल की कतार अजमेर जाने वाली है। पता लगाया क्या माल है, कौन से दिन और कौन से रास्ते जाने वाला है।
रामगढ़ से आकर डूंगजी को सूचना दी “डूंगजी कसो घोड़ा देरी मत करो। सेठ की कतार अजमेर गयी है पुष्कर की घाटियो में लूटना है।”
डूंगजी, जवारजी, करणिया और लोटिया जाट ने पुष्कर घाटी में जाकर कतार लूट ली।
जरुरी सामान तो करणिया और लोटिया को दे दिया “ले जाओ रोटी और दाणा का प्रबन्ध करो।”
सात ऊँट रुपयो से भरकर पुष्कर के घाट पर गरीबो को बाँट दिया। डूंगजी की जयकार से पुष्कर के घाट गूंज उठे।
रामगढ के सेठ अंग्रेजो के पास जाकर रोने लगे। “आप के राज में हम लुट गये डूंगजी ने हमें लूट लिया।”
अंग्रेजो ने डूंगजी, जवारजी को ईनामी डाकू घोषित कर दिया। एजेन्ट साहब ने सीकर राजा जी से जाकर बोला “हमकू डूंगजी को पकड़वाओ।”
सीकर राजाजी ने साफ मना कर दिया “डूंगजी मेरी जेब में नही जो में आप को दे दूँ। आप जाकर पकड़ले।”
एजेन्ट साहब को सूचना मिली डूंगजी अपने ससुराल गाँव झड़वासा में है। मौका अच्छा है। रातो रात गाँव को फौज ने घेर लिया। सुराग लगाया। भैरुसिंह को बहकाने के लिए सेंसू भेजा और बहकाने लगा।
“भैरुसिंह घर में डूंगजी है। पता है राज किसका है। घर में घुग्घू बोलेंगे घुग्घू। अंग्रेजो की फौज आगयी तो कचरघाण निकाल देगी कचरघाण, कैंद में तड़फोगे तब बहनोई छुड़वाने नही आयेगा।”
भैरुसिंह मन में डर कर मूंछ पर ताव देकर बोला “कांदा का छिलका नही हूँ जो हवा के साथ उड़जावू। राजपूताणी का दूध पिया है। कमर में तलवार रखता हूँ।”
“रहने दो रहने दो राजपूती मत जताओ। ये मुँछे नीची हो जायेगी, यह तलवार लटकती ही रह जायेगी। बहुत देखे है राजपूताणी के दूध पीये हुये। अंग्रेजो के आगे बड़े राजा महाराजा नतमस्तक हो गये है। समय को परखो समय को। एक तोप आ गयी तो तुम्हारी झुंपड़ी के कंकर भी नही मिलेंगे कंकर।”
भैरुसिंह चिन्ता में डूब गया।
“हम तो आपका भला चाहने वाले है भला, कम्पनी का साथ दोगे तो सुखी रहोगे।”
भला चाहने वालो ने भैरुसिंह के हाथ में एक हजार रुपयो की भरी थैली पकड़ाई। थैली झेलते ही भैरुसिंह के हाथ धूजने लगे। दबी जबान से बोला “बहनोई को पकड़वाकर कहाँ मुँह दिखावू।”
“कौन कहेगा की आपने पकड़वाया। अचानक फौज आकर सोते हुए को पकड़ लेगी।”
भैरुसिंह के घर में दारु की भट्टी निकल रही थी। बाँस की नली से दूबारा बोतल में टपक रहा। पास में ही जलाने के लिए सूखी लकड़ी के ठूंठ पड़े थे। एक ठूंठ को भट्टी के नजदीक खिसकाकर भैरुसिंह ने नौकर को आवाज दी “दारु की धार कमजोर पड़ गयी, ताता पाणी न परो निकाल।”
नौकर ने गर्म पानी को निकाल कर ठण्डा पानी डाल दिया। दारु की धार तेज हो गयी। डूंगजी आ गये और बोले “चाहे कुछ भी हो दारु तो हमारे शेखावाटी के मैणसर की होड़ नही।”
“इस भट्टी का दूबारा आप देखना। आप ने अरज करु। जबान पर लगते ही कलेजे तक धार फूटेगी। लो चखावो ये तीसरी बार उलट रहा हँू।”
नाल में से गर्म दारु का एक प्याला भरकर डूंगजी की तरफ बढ़ाया। दो चार सरदार और आ गये। ठूंठ खैच क भट्टी के आस पास बैठ गये। मनवार होने लगी। भैरुसिंह ने छोटे भाई को आवाज दी “देखता क्या है, ला खाजरु, लेट हो रहे है।”
बकरा लाकर खड़ा कर दिया गया। बकरा बड़ा था, बकरे को देख सरदारांे के मुंह में पानी आ गया। उठा के तलवार एक ने झटका दिया। दो मिनट में बकरा ठन्डा। दो सरदार लगे हाथो हाथ खाल उतार दी। दो जणे मांस छूंदने लग गये, दो जणो ने भट्टी में से अंगारे निकाल सूळा सेकने लग गये।
दमामण ढ़फड़ा लेकर आयी गाने लगी
“दारु दे तो मांस दे, गो रस सूदो भात।
तीरीया दे हँस बोलणी, पांच भाया रो साथ।।
कलालण भर ल्याये प्यालो...................”
चार प्याले पीते ही आँखो में रंगत आ गयी। भैरुसिंह ने डूंगजी को मनवार का प्याला दिया। पाँच रुपया दमामण को निछरावल किया। दमामण ने खम्मा घणी कहा।
दूसरे सरदार पीछे कहाँ रहने वाले थे, सब डूंगजी को प्याले देने लगे। म्हारी सोगन्ध एक मनवार कर कितने ही प्याले पिला दिये। डूंगजी के पैर लड़खड़ाये।
डूंगजी को खयाल आया। बस रहने दो दुश्मन छाती पर घूम रहा है।
भैरुसिंह ने कहा “मेरे होते हुए कोई बाल बांका नही कर सकता।” बोतल का ढक्कन खोला, मनवार फिर होने लगी। जांगड़ डूंगजी की तरफ देख, उचे सुर में दोहा बोलने लगा। डूंगजी की आँखो में लाल डोरे तैरने लगे। भर मुठी रुपयो की जांगड़ के सामने फेंकी। “हाँ पाछो बोल” सब सरदारो ने एक एक प्याला और दे दिया।
डगमगाते पैरो से डूंगजी पोढ़ने के लिए मेड़ी में चढ़ गये। पोढ़ते ही ठोरने लगे। तलवार और बन्दूक को उठाकर भैरुसिंह ने अलग रख दी। चार अंग्रेज बन्दूक लेकर छाती पर आ धमके। आठ अंग्रेजो ने मिलकर हाथो में हथकड़ियाँ और पैरो में बेड़ियाँ डाल दी। डूंगजी ने झट से आँखे खोली चारो तरफ सिपाहियो से घिरे हुए। मचक कर बैठ गये, गले में तोख भी जड़ दी खट। डूंगजी ने दाँत कटकटाये हाथांे पर बटके भरने लगे परन्तु करे क्या।
अंग्रेजो को ललकारा “धिक्कार है आप पर, मुझे धोखे से पकड़ा है। आठ आठ ने मिलकर नींद में सोते हुए को पकड़ा है, मर्द हो तो हथकड़ियाँ खोल कर सब एक साथ आ जावो। सामी छाती आकर पकड़ते तो मैं भी जानता, धोखे से पकड़ा है।” डूंगजी को पकड़ कर पींजस में बैठा दिया, गाँव वाले कहने लगे “जँवाई को अच्छी जवाँरी दी, बाप दादो का नाम धूल में मिला दिया। गाँव की इज्जत गमाई।” भैरुसिंह की माँ को दुख हुआ ऐसे पूत से तो मैं बाँझड़ी रह जाती। चारो ओर थू थू होने लगी।
कम्पनी साहब ने सोचा रजवाड़ो में रखने से तो ओर हंगामा होगा। इनको तो दूर आगरे के किले में बन्द करो। कठ पींजरे में डाल कर आगरा ले जा रहे थे। उनका ललाट चमक रहा था। आँखो से आग के शोले निकल रहे थे। राह चलती औरते एक दूसरे से कह रही थी “देखो इनकी आँखो में मशाले जल रही है। सवा हाथ लम्बी गर्दन है।”
दूसरी ने कहा “बहुत ताकतवर है, ऐसे दो चार शूरवीर और होते तो फिरंगियो को मार मार कर कलकत्ते से बाहर कर देते।”
आगरा के किले में डूंगजी को मजबूत पैहरे में नजरबन्द कर दिया। साहब ने खुद आकर पुख्ता पैहरे का इन्तजाम कर दिया।

होली के दिन दिनभर फाग खेलकर सिरदार बठोठ गढ़ में जाजम जमाई। दारु की बोतलें खुली, आपस में मनवार चल रही थी।
डूंगजी की ठुकराणी महल में उदास बैठी थी। न आँखो में काजल न माथे पर बिन्दी। ठुकराणी बैचेन थी। दिल में आग लग रही थी, डूंगजी कैद में बन्द किसके लिए श्रंगार करे। बदन के कपड़े तो बैरी हो गये थे। कैरी की फाँक जैसी आँखो में पानी आ गया । बैचेन ठुकराणी उठी बाहर झरोखे से चौक में झाँकी।
दारु के प्याले हाथ में लिए सरदार हीं हीं कर रहे थे, ठुकराणी ऐड़ी से चोटी तक गुस्से से भर गयी। घूंघट को लम्बा करके बोली, “ये सरदार है ? डूंगजी के भाईबन्ध है ? डूंगजी को फिरंगियो ने किले मे कैद करके रखा है। ये मतवाल कर रहे। आपकी नाक कहाँ है ? नाक तो फिरंगियो ने काट कर जेब में डाल रखी है। आप राजपूत कहलावो हो ? जीवते ही मरे समान हो ? शक्ल दिखाते शर्म नही आती। यहाँ गढ़ में बैठकर मतवाल कर रहे हो ?”
हाथो के प्याले हाथो में रह गये। जवारजी का शर्म से सर झुक गया। रंग में भंग पड़ते देख किसी को गुस्सा आया तो किसी को ठुकराणी के बोल कलेजे में खटक गये। एक सरदार गुस्सा कर दबी जबान से बोला “क्यो मोसा मार रही हो ठुकराणी जी। आप के शब्दो के घाव लग रहे है हमारे। ये नाक तो कट गयी पर करे क्या। जयपुर फिरंगियो से मिल गयी, जोधपुर मिल गयी, बीकानेर मिल गयी। भाई कन्नी काट कर सब पिछे खिसक गये। हमने ही पगड़ी माथे पर बान्ध रखी है। ठुकराणी जी अन्दर पधारो जो कह दिया वो ही बहुत है।”
सुनते ही ठुकराणी के आग लग गयी। जोर से दहाड़ी “माथे पर पगड़ी बांधते आप। पगड़ी बांधते तो काकोसा को छुड़ाकर लाते। ये माथे की पगड़ी मुझे दो, मेरा घाघरा तुम पहनो।”
ठुकराणी ने चूड़ीयाँ उतारकर सरदारो पर फैंक दी। “जो मरने से डरता है, वो चूड़ियाँ पहन ले और पड़दे में जाकर बैठ जाये। मुझे दे दो तुम्हारे हाथो की तलवार।”
ठुकराणी ने दुर्गा का रुप धारण कर लिया, आँखो से चिंगारियां निकल रही। ठुकराणी के बोल मर्दो के कलेजे में ऐसे लगे जैसे चाबुक, भाला की तरह आर पार होकर चुभ गये।
जवारजी मचमचा कर खड़े हो गये। अन्दर की मर्दानगी जग गयी। डूंगजी को छुड़ाने का विचार करने लगे, उनके बारे में कौन पता लगावे कि बंध तक पहुँचने का रास्ता क्या है, कौन बीड़ा चाबे किसमे हिम्मत है, कई जणे खिसक लिये। कहाँ तो आगरा। कहाँ सात खाइयो का परकोटा। वहाँ कौन पहूँचने दे और कौन खबर लाये। भाई भतीजे सब ने मना कर दिया।
यह सब देख कर करणिया को गुस्सा आया वो बोला “जाने वाले के लिए आगरा हाथ के निचे है। किस कि माँ ने जन्म दिया वो जाये।” लोटिया जाट ने उठकर बीड़ा झेला, “मै जाउंगा मेरे साथी डूंगजी के लिए में जान देने को तैयार हूँ।”
लोटिया जाट और करणिया मीणा ने आगरा का रास्ता लिया।

आगरा के किले के सामने साधु धुणी तप रहे थे। दो दो दिन तक आँख नही खोल रहे थे। किले के सिपाई बाबाजी को रोज नमस्कार करते। औरते धोक लगाती चैला धूणी में लकड़िया डालता दर्शन के लिए भक्तो की भीड़ लग गयी। दरोगा सिपाई सब उनके चर्चे करते सब धोक देते। ऐसा साधु कभी नही देखा सच्चा साधु है। हमारा भाग्य जो हमें दर्शन दिये।
अंग्रेज अफसर ने किले के दरवाजे के बाहर एक साधु को तपते हुए देखा। सुबेदार को हुक्म दिया “साधु बाबा से कह दो दरवाजे से दूर हट जाये।” सुबेदार ने कहा “बाबाजी समाधि में है। समाधि टूटते ही उनको हटा देंगे।” छः महिने बाद समाधि टूटी। सुबेदार ने हाथ जोड़ नमस्कार कर बाबाजी से कहा “बाबाजी धन्य भाग है हमारे जो आपने तपस्या यहाँ की परन्तु राज की तामील करनी पड़ रही है, राज का हुक्म है आप और कही चले जाओ। पाँच पच्चीस जो भी हमसे होगा हम आप को भेंट करेंगे।”
बाबाजी बोले “बच्चे रुपये से हमें क्या करना। हम तो भाव के भूखे है, माया का हमें क्या करना है। आबू से साधू उतर कर आया है। गंगा स्नान को जायेंगे। अगर तुम्हारे हमारे लिए भावना है तो एक काम करदो।”
“करने योग्य हुआ तो जरुर करेंगे।”
“बच्चा इस किले में हमारा एक भक्त कैद है। उसको एक नजर दिखावो। डूंगजी हमारा कंठी बन्ध चैला है। एक बार हमारे भक्त से मिला दो।” सुबेदार सिपाईयो ने विचार किया। डूंगजी इसका भक्त है दिखाने में क्या जाता है। यह कोई कपटी साधु तो है नही चार सिपाई साथ जाकर मिला देंगे। साधु अपनी धुणी उठा के चला जायेगा। इसकी इच्छा पुरी कर दो।
बाबाजी को आगे पीछे से सिपाई घेर कर ले जा रहे थे। बाबाजी उपर नीचे दाये बाये रास्ते सब देखते जा रहे थे। कैदियो के बीच डूंगजी बैड़ियो में जकड़े बैठे थे।
लोटिया बोला “बच्चा सुखी रहो” आवाज सुनते ही डूंगजी पहचान गये। मन में बोले “धन्य है लोटियो, तुझे भली जाटनी ने जन्म दिया।” लोटिया बोला “बच्चा हम इधर से जा रहे थे तुमसे मिलने की इच्छा थी पुरी हुई।” डूंगजी बोले “महाराज आपने दर्शन दिये मेहरबानी। हमको काले पानी की सजा हुई है। आज से चैदह दिन बाद काले पानी भेज देंगे।”
“बच्चा सब अच्छा होगा चिंता मत कर” यह कहते हुए सब वापस घुम गये सफीलें और मोर्चे देखते हुए जा रहे थे। भगवा वस्त्र फेंककर सौ रु में एक ऊँट लेकर रात को चले सुबह बठोठ पहुँच गये। दोनो सुबह पहुँच कर जवारजी से मुजरा किया। जवारजी जी ने दोनो को छाती से लगाकर बोले “आगरा का क्या समाचार है।”
समाचार यह “काकोसा को कालापानी का हुकम हुआ है। मिलना है तो इसी वक्त वापस चलो। नही तो सपने में देखोगे।”
करणिया बोला “देर करने की बात नही है, अभी इसी वक्त घोड़े कसो हाथा में हथकड़ियां, पैरो में बैड़ियां और गले में तोख जड़ी है, डूंगजी के ऐसे जीने से तो मरना अच्छा है।”
ऊँट और घोड़े सजे हुए थे, किसी ठिकाणे की बारात जा रही थी दिन को डेरा देती और रात को चलती। आगरा से दो कोस पहले बारात रुक गयी। यमुना किनारे रेवड़ चर रहा था। एक बराती ने जाकर एक मींढा ले आया। मींढा की अर्थी बनायी गयी, बाराती सब भदर हो गये चार लोगो ने अर्थी को कंधा दिया। नाई एक लोटे में आग लेकर आगे चल दिया। किले के पास जाकर यमुना किनारे अर्थी उतारी। मींढसिंह जी का दाह संस्कार कर दिया। कम्पनी साहब ने देखा सामने कोई मुर्दा जल रहा है। साहब को गुस्सा आया, घोड़े पर चढ़कर साथ में एक कुत्ता लेकर वहा पहुँच गया। तुमने यह बहुत बुरा किया “मुर्दे को यहाँ क्यो जलाया।”
“देखो साहब मुर्दा मुर्दा मत बोलो, यह हमारे सब के सरदार है। उक चूक बोले तो तलवारे चल जायेगी” सब एक साथ बोले।
साहब ने पुछा “कौन है यह ?”
“ये बावन गाँव के धणी है, मींढसिंह जी सरदार है, समय की बात है साहब क्या सोचा था क्या हो गया। राम से उपर जोर नही है।” जोरजी बीदावत ने हकीकत सुनायी।
“अच्छा तीन घड़ी का तीसरा करदो, बारह घड़ी का बारहवां करके रवाना हो जावो।”
लोटिया बोला “साहब यह हमारी इज्जत का सवाल है, तीन दिन का तीसरा और बारह दिन का बारहवां होगा उसके बाद आपका पानी ही नही पियेंगे।”
साहब ने सोचा “जाने दो हुज्जत करना ठीक नही है।”
रात के दो पहर बीतने पर करणिया और लोटिया ने किले पर लकड़ी बनी सिढी लगायी, सब सरदार पीछे चढ़ कर किले में कूद गये। सत्तर सरदारो के साथ कैदियो की बुर्ज में घुस गये। लोटिया लपक कर डूंगजी की हथकड़ियां बैड़ियां काटने लगा।
डूंगजी ने नाहर की दहाड़ लगायी “ठहर लोटिया ठहर, पहले दूसरो की बेड़ियां काट बाद में मेरी काट। पहले इनकी काट ये भी क्या याद रखेंगे। डूंगजी ने सबको आजाद कराया। लोटिया दुनिया याद करेगी।”
लोटिया को गुस्सा आया “ठाकरां देर मत करो। फिरंगियो को पता चल गया तो हमें तोपो पर चढ़ा देंगे। छुड़वाना महंगा पड़ेगा।” सुनते ही डूंगजी ने कहा “इस मुंह का धणी लोटिया मुझे छुड़ाने आया ? तोप से डर गया, जा जा तेरे घर जा।”
सुनते ही लोटिया के तन में आग लग गयी, छीणी हथोड़े से सत्तर लोगो के बन्ध काट कर डूंगजी के पास गया। “अब तो राजी हो” करणिया ने जल्दी से बन्ध काटे। डूंगजी बोले “ला मुझे तलवार दे” सत्तर ही कैदियो को आगे कर के डूंगजी चलने लगे। जल्दबाजी में चैबीस कैदी एक सीढ़ी पर लटक गये। सीढ़ी टूट गयी अब उतरने का कोई रास्ता नही देख सब भालो और तलवारो से दरवाजे पर टूट पड़े। दरवाजे के पास पहरेदार सो रहे थे। शेखावत, बिदावत, मेड़तिया, तंवर, पंवार, मीणा, बावरी कंधे से कंधा मिलाकर सब साथ उलट पड़े। तलवारो से चिंगारियां निकलने लगी, भाले चमकने लगे, दरवाजा टूट गया। एक सौ अठाइस पहरेदारो को काट डाला। चैबीस तो पूरबिया पेहरोदारो को काटा, सोलह चैकीदारो को ठोड़ राखियां, सित्तर कबायलियो को सुलाया और अठारह मुगल पठानो को पोढाया। बाकी कैदियो को कहते गये “हमारा तो फिरंगी पीछा करेंगे, तुम तुम्हारा रास्ता लो।” जयकारा करते हुए डूंगजी किले से बाहर निकल गये। घोड़ो पर टाप लगायी। रामगढ़ आ गये। डूंगजी को देखते ही सेठ कांपने लगे। हवेलियो में हलचल मच गयी। डूंगजी बाजार में पहूँचे।
“फिरंगियो के सपूतो बाहर आओ, डूंगजी आये है। बुलाओ तुम्हारे बापो को हिम्मत है तो पकड़े।” सेठजी हाथ जोड़ने लगे हे ठाकरां म्हे तो थाँका हा। डूंगजी ने सोलह सेठों को पकड़ लिया। बाजार में सन्नाटा छा गया। एक दो बुढा सेठ हवेली में जाकर सेठाणियों से कहा “थे जावो डूंगजी के आगे अरदास करो। औरतो को देख डूंगजी का गुस्सा कम हो जायेगा।” सेठाणियां डूंगजी के हाथ जोड़ने लगी “ठाकरां थे म्हाका धणी हो, म्हे थाकी रेत हाँ। म्हे तो आप क भरोसे ही हा, कसूर माफ करो।” औरते डूंगजी के धोक देने लग गयी। डूंगजी को दया आ गयी सेठों को छोड़ दिया जैसे दूसरा जन्म मिल गया हो।

डूंगजी बठोठ पँहुचे। ठुकराणी चोबारे से रास्ता देख रही थी। घोड़े की हिनहिनाहट सुनते ठुकराणी समझ गयी। ठाकर आ गये। आवाज लगायी “छोरी आरती सजा। हमारी जीत हुई।” डोडी में आते ही ठुकराणी ने आरती उतारी। डूंगजी बोले “मेरी नही आरती लोटिया की उतारो मुझे तो यह लेकर आया है।”
डूंगजी आगरा का किला तोड़ कर निकल गये पुरे मुल्क को पता चल गया। औरते गाँवो में डूंगजी के गीत गाने लगी। डूंगजी ने अपने दल बल को वापस तैयार किया। कभी अंग्रेजो का खजाना लूटते कभी माल लूटते। रोज कम्पनी को शिकायत मिलने लगी।
जवारजी ने कहा “छोटी मोटी लूट नही करके एक बड़ी लूट करो। दुनिया को पता चले।” डूंगजी ने कहा “फिरंगियो को देश से बाहर निकालने में बहुत ताकत लगेगी। छत्तीस कोम को समझाना पड़ेगा ये फिरंगी तुम्हारे दुश्मन है। हमारे देश का माल समुद्र पार ले जा रहे है।” विचार करके बोले “रजवाड़ो के बीच नसीराबाद छावनी है उस को लूटो।” पुरे दल को सूचना भेजी। फलां दिन अलग अलग दल बारात के रुप में नसीराबाद पहुँचना है। सब सरदार इकठ्ठे होकर चार सौ घोड़े और सौ ऊँटो से छावनी पर टूट पड़े। खजाना लूट लिया घोड़े छीन लिये। अंग्रेज देखते ही रह गये। देखते ही देखते आँधी की तरह सकुशल वापस निकल गये। पुरे देश में आग की तरह सूचना पहुँच गयी। डूंगजी ने छावनी लूट ली। डूंगजी की धाक जम गई। फिरंगियो की फौज में डर बैठ गया।
छावनी की लूट सुनते ही अंग्रेजो का नशा हीरण हो गया। अजमेर के सुप्रीडेन्ट ने आबू में बैठे ए.जी.जी. सदरलेंड को एक हाथ लम्बा पत्र लिखा।
“साहब हमारी इज्जत लेकर डूंगर चला गया, यह तो अच्छा हुआ कि उसने अजमेर की तरफ मुँह नही किया। अजमेर लुट जाता तो कही के नही रहते। खजाने के लिए फौज का इन्तजाम करो।” सदरलेंड घबरा गया। गोरो में हलचल मच गयी। डूंगजी जवारजी के नाम से बंगलो में सूती गोरी मेम चमने लगी।
अंग्रेज अफसरो ने मिलकर डूंगजी जवारजी को पकड़ने के लिए कमर कसली। छावनी-छावनी थानो-थानो में बिगुल बजा दिया। जोधपुर से मेशन साहब हाईक्लास बड़ी फौज लेकर डूंगजी के पीछे पड़ गये। बीकानेर की सीमा पर पहुँचकर ए.जी.जी. ने रईसो के नाम पर डांट के लम्बे चौडे खत लिखवाये। बीकानेर ने अनमने से फौज भेज दी। जोधपुर तख्तसिंह जी ने अपने खास मुसायब विजयसिंह जी मेहता और कमलराज जी सिंघवी को किलेदार ओनाड़ सिंह के साथ फौज देकर अंग्रेजो की मदद के लिए भेजा। तीनो ओर से फौजे बढ़ती देख डूंगजी बीकानेर के पास गाँव घड़सीसर में घिर गये। डूंगजी ने साथ वालो से कहा “अब बचना मुश्किल है। मौका देख खिसक लो। जीवन रहा तो और मिलेंगे।” ये कहते हुए डूंगजी जवारजी ने अपनी तलवार निकाल ली। घेरे को चीरते हुए तलवार बजाते हुए निकल गये। जवारजी बीकानेर राजा रतनसिंह जी की शरण में चले गये। रतनसिंह जी ने उन्हे छाती से लगाया। दल तीतर बितर हो गया। फौज डूंगजी के पीछे पड़ गयी। जैसलमेर के गिरदड़ा गाँव में डूंगजी चारो ओर से घिर गये। अंग्रेजो ने जोधपुर के मुसायब को भेज कर कहलवाया “म्हे था सू मिलबा न आ रीया हाँ।” सींघवी जी बोले “ठाकरां मरने मंे को समझदारी कोनी है। समझदारी तो जींवता रहने मे है।” मेहता जी तसल्ली से बोले “गिदड़ की मौत क्यो मरो।” “आपकी बाता भी रह जावे और कम्पनी की भी” सिंघवी जी ने ठंडे दिमाग से समझाया। मेहता जी बोले “जवारजी को देखो बीकानेर मे घर की तरह रह रहे है। कौनसी उनके हथकड़ियां है ? अंग्रेजो की मजाल है जो जवारजी ने बीकानेर बाहर बुलाले। तीनो मुसायबो ने डूंगजी को भरोसा में लिया “जोधपुर में राजा जी आप के पास रखेंगे। जोधपुर गढ़ घर है थारो। बठोठ में नही रह कर जोधपुर में रह लिए।” डूंगजी ने मुसायब का भरोसा किया। डूंगजी मान गये और आत्मसमर्पण कर दिया।
लाट साहब का हुकम एक बीकानेर पहुँचा एक जोधपुर डूंगजी जवारजी हमारे सुपुर्द करो। बीकानेर राजा जी रतन सिंह जी ने साफ टक्का सा जवाब लिख भेजा “साहब जवारजी को हम किसी भाव आपको नही देंगे। आप मेरे दोस्त हो आप के वहाँ रहे या मेरे यहाँ रहे एक ही बात है कोई खून करे तो जिम्मेदार मैं हूँ।” लाट साहब का वापस हुकम आया “नही हमकू सुपुर्द कर दो।” राजा जी तैश में आ गये “साब जवारजी को सुपुर्द नही करुँगा यह मेरी नाक का सवाल है। आपको मुझ पर भरोसा नही तो जवारजी के बदले आप मेरे पाटवी बेटे को ले जाये।” राजा जी का तोरा देख अंग्रेज ढीले पड़ गये। जोधपुर वालो ने भरोसा तो दिया था परन्तु अंग्रेजो की घुड़की के सामने पग छोड़ दिये। डूंगजी को अंग्रेजो के सुपुर्द कर दिया। बावन रजवाड़ा तख्तसिंह को थू थू करने लगे। चारण कविताओ के चटके देने लगे। तख्तसिंह शर्म से पानी पानी हो गये। ए.जी.जी. को बहुत कहलवाया। ए.जी.जी. टस से मस नही हुये। आबू में बावन रजवाड़ा के वकील भेज कर कहलवाया “डूंगजी को जोधपुर को सुपुर्द कर दो नही तो पब्लिक में गदर हो जायेगा।” ए.जी.जी. ने सोचा “बावन रजवाड़े खिलाफ खड़े हो जायेंगे इनको हाथो में रखना जरुरी है।” कलकत्ता में फोर्ट विलियम में लाट साहब का दफतर था वहाँ ए.जी.जी. ने खैंच कर एक पत्र लिखा “डूंगजी के जब तक मुकदमा चले तब तक डूंगजी को जोधपुर राजा जी को सुपुर्द कर दिया जाये। यदि सुपुर्द नही किया तो इनसे हमारे संबंध खतरे में पड़ जायेंगे। जोधपुर राजा जी की बदनामी हो रही है।” खैर डूंगजी को जोधपुर भेजा। जब तक जीये डूंगजी जोधपुर के किले में और जवारजी बीकानेर के किले में फिरंगियो को देश के बाहर निकालने के सपने देखते रहे।
न डूंगजी रहे ना जवारजी परन्तु उनका सपना पुरा हो गया।