गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

रिड़मल राठौड़

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता....
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया

!कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर सेतो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की...

"बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।"राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय हैकैसे मानेगा !अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा थाये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगालेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूररहिये।

माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों ...?यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए...?इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे औरअपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये

हिन्दू भाइयो ये सच्चीघटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन.
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट शेयर जरूर करें,,  जय  माँ भवानी

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राजस्थान रै मध्यकाल़ीन  इतियास नै निष्पक्ष भाव सूं देखण अर पुर्नलेखन री दरकार है।क्यूंकै आज जिणगत युवापीढी में जीवणमूल्यां रै पेटे उदासीनता वापर रैयी है वा कोई शुभ संकेत री प्रतीक नीं है।
उण बखत लोग अभाव में हा पण एकदूजै सूं भाव अर लगाव अणमापै रो राखता। ओ वो बखत हो जद स्वामीभक्ति अर देशभक्ति एक दूजै रा पूरक गिणीजता  हा।जिणांरै रगत में स्वामीभक्ति रैयी उणांरै ईज रगत में देशभक्ति रैयी।भलांई आपां आज इण बात नै थोड़ी संकीर्ण मानतां थकां  व्यक्तिवाद नै पोखण वाल़ी कैय सकां पण आ बात तो मानणी ईज पड़सी कै उण मिनखां में त्याग,समर्पण, अर मरण नै सुधारण री अद्भुत ललक ही।इणी ललक रै पाण उवै आज ई खलक में आदरीजै।
उण बखत ऐड़ा मोकल़ा मिनख हुया जिकां बिखम परिस्थितियां में ई ऊंची ताणी नीची नीं।मोत नै साम्हीं देख अट्टहास कियो पण उदास नीं हुया।वै चावता तो हालात सूं समझौतो कर लेता अर आवण वाल़ी पीढ्यां रा पग बांध जावता पण उवां हीणी नीं भाखी जिणरो साखी आज ई अठै रो संवेदनशील मानखो है, जिको उणांरो जस जनकंठां में पिरोय राख्यो है।
ऐड़ी ई एक गर्विली गाथा है  बीकानेर रै दो सपूतां -भोजराज रूपावत अर महेश सांखला री। बीकानेर रै इण दो महानायकां  माथै अजैतक नीं रै बरोबर लिखीज्यो है।
दोनूं ई निकलंक खाग रा धणी हा।दोनूं ई मातभोम रै खातर मरण नै  वरण सारू केसरिया कियोड़ा ईज राखता।
भोजराज रूपावत ,रूपाजी रिड़मलोत री वंश परंपरा में सादाजी रूपावत रा बेटा अर भेल़ू रा ठाकुर हा तो महेश सांखला जांगल़ू रा सांखल़ा पुनपालजी री वंश परंपरा में हुया।
सांखला जांगल़ू रा शासक रह्या।जांगल़ू नै पृथ्वीराज चौहाण री राणी अजांदे दहियाणी बसायो।अठै कीं दिन दइया शासक रह्या।जिणांरै मुदमुख केसोदादो उपाध्याय हो।
उणी दिनां रूण सूं गाडां गोल़ ले सीहड़दे सांखला रो भाई ,रायसी सांखलो अठै आय
गोल़वास रह्यो।इणरी बायां साथै दइयां रा कुंवरड़ा बोछरडायां करै।पण साखला पतल़ा सो करै कांई?
उणी दिनां केसोदादै  जांगल़ू री पोल़ आगै आपरै नाम सूं "केसोल़ाव" खुदावणो तय कियो पण दइया नटग्या।इण बात सूं रीसाय केसोदादै सांखल़ां साथै रल़ ,घात सूं दइयां नै मरा दिया।अठै रा शासक सांखला बणिया ।जिकै 'जांगल़वा सांखला' बाजै।
कह्यो जावै कै दइयां री हाय सूं केसोदादो तल़ाई खुदावतो बिचै ई मरग्यो हो।लोग तो आ ई कैवै कै जा पछै केसोदादै री संतति में फूठरा मिनख जनमणा बंद हुयग्या --
कुछ काणा कुछ काबरा,
केयक रेढारेड़।
दादा देखण आवजै,
केसू थारो केड़।।

इणी रायसी री परंपरा में खींवसी,कंवरसी जैड़ा अजरेल हुया।इणी ऊजल़ परंपरा में महेश सांखला रो जनम हुयो।
उण दिनां बीकानेर माथै राव जैतसी रो राज।वो जैतसी , जिणां रातीघाटी रै जुद्ध में काबुल रै मुगल पातसाह कामरान नै आपरी तरवार रो तेज बताय बांठां पग देवण सारू मजबूर कर दियो हो-

करनादे रा कोटड़ा,
कोटां काबल़ वट्ट।
राव हकारै जैतसी,
भागा कमरा थट्ट।।

जैतसी रै पसरतै सुजस अर बांकम सूं खार खाय वि.सं.1598 में बीकानेर माथै जोधपुर रा  राव मालदेव आपरै महाक्रमी सूरां जैता- कुंपा री अगवाणी में हमलो करण सारू आपरी सेना साथै बीकानेर रै गांम सोवै में डेरा दिया अर 
दबाव बणायो कै राव जैतसी मालदेव रै झंडै नीचै आय जावै।जैतसी जैड़ै अडर इण प्रस्ताव नै नीं मानियो।
सेवट आ तय हुई कै एक'र बीकानेर रै सरदारां सूं ई सलाह करली जावै।जद ओ प्रस्ताव सरदारां रै साम्हीं आयो उण बखत केई सरदारां कह्यो कै -"ठीक रैसी।क्यूं फालतू में ई एक ई घर रो रगत बहायो जावै।"
आ बात सुण'र उठै बैठे किलेदार  महेश सांखला माथो धूणियो।महेश नै माथो धूंणतां देख सरदारां पूछ्यो कै- "महेशजी माथो कीकर धूंणो? इण में कांई अजोगती है?सावल़ ईज है भाई नै भाई रो माथो नीं बाढणो पड़ै।"
आ सुण महेश कह्यो- "जर जमी जोर री!
जोर गयां और री!!
रसा कंवारी रावतां ,
वरै तिको ई वींद।
माथो तो मालकां रो है आपांरो नीं।लागै कै आपनै मरण रो भय है।जणै ई टाबरां दांई बातां करो!भाई !किसो भाई?ई मालदेव रै बाप गांगैजी नै जोधपुर किण दिरायो?इणी मोटमनै जैतसी---
सांभल़ै वचन मन धिखै क्रन -समोभ्रम,
धरे अत फौज घण मछर धायो।
जैतसी वडै प्रब जाय गढ जोधपुर,
उबेलण राव नै राव आयो।।(खेतसी गाडण)
दूजै कानी ओ मालदेव उणरो ओसाप उतारण नै बीकानेर खोसण आयो है !अर आप रातै कोइयां वाल़ा इणरी पगवाह सूं डरग्या!-
'डर सूं शस्त्र नांखदे ,
जिकै किसा रजपूत ?'
म्हैं अठा रो किलेदार हूं।किलो! म्हैं मरियां ई रावजी सूंप सकै ।म्हारै जीवता़ं नीं।
जिकै मरण सूं डरै ,उवै अठै सूं कूच करै अर जिणांनै बीकानेर रै "सौभागदीप" रो दीपक जगमगतो राखणो है उवै केसरिया करै।गढ! रावजी अर रावजी रै बाप दादां रो है। उवै चावै तो किणी नै ई दे सकै पण गिदड़ भभक्यां सूं राजपूत गढ सूंपै ओ पीढ्यां नै कल़ंक है।"
सभा में एक'र तो नीरवता छायगी।कोई कीं नीं बोल्यो।
महेश पाछो बोल्यो-
सूरां रो मरण तो स्वामी रै सटै ईज जगत में सौभै।किणी सूर रै ऊभां उणरो स्वामी चलविचल़ हुय आपरी आन-बाण छोडण सारू सोचै तो आ उण सूर रै सारू मरण सूं बधीक है।महेश रै इण भावां नै समकालीन कवि सूजा बीठू   कितरै सतोलै आखरां में पिरोया है कै महेश रै साम्हों ओ मरणमहोच्छब रो अवसर आयो तो उवो असमर झाल गर्व रै साथै बोल्यो कै म्हनै मारूराव आ धरती माथै रै सटै सूंपी है-
यूं कहै महेस वडे प्रब आयै,
गह असमर दाखवै गही।
मह मो सांपी राव मारूवै,
माथा साटै जितूं मही।।
महेश सांखला रा ऐ सतोला आखर सुण सेवट  भोजराज कह्यो -खमा!महेशजी री बात सोल़ै आना सही है ,आपां मालदेवजी री झंडी नीचै नीं बल्कि रणचंडी करनी री झंडी नीचै रैवांला।जुद्ध करांला पण हीणो डाव नीं देवांला।
सेवट आ ईज बात तय हुई के मालदेवजी नै मुंहतोड़ जवाब दियो जावै।
जद आ बात कूंपा महिराजोत नै ठाह लागी कै बीकानेर रा बीजा सरदारां रो मतो तो रावजी नै आपांरी बात सूं राजी करण रो हो पण महेश सांखलै बल़ती में पूल़ो नांखियो।आडी रो देवाल़ हुयो।कूंपोजी रीसाय महेश नै समाचार कराया कै-"म्हे भाई -भाई राजी जणै तूं कुण है आडी रो देवाल़?म्हांनै फालतू में लड़ावै।"आ सुण महेश समाचार कराया कै-थे रावजी रै भाई पाप रा हो, म्हे धरम रा भाई हां।म्हे लूण खायो है ।जठै रावजी रो पसीनो टपकसी उठै म्हांरो लोही झरसी।बीकानेर रो गढ म्हां मरियां मिलसी।म्हां जीवतां नीं।
राव जैतसी मुकाबलो करण रो द्रढ निर्णय कियो अर गढ रो भार रूपावत भोजराज नै भोल़ाय खुद मालदेवजी रो मुकाबलो करण गया।आम्हां-साम्हां डेरा हुया।राव जैतसी पठाणां सूं घोड़ा लिया जिको कामदारां नै पईसा चूकावण रो कैयग्या पण कामदारां दिया नीं जणै उवै पठाण लारै सोवै गया अर रावजी सूं तगादो कियो।आ सुण रावजी घोड़ां जीण कराय बीकानेर आया अर कामदारां नै फटकारिया।पठाण ई अणी-पाणी वाल़ा हा सो रावजी नै आफत में देख रुपिया लेवण सूं नटग्या।लारै दो च्यार बीकानेर रा सरदारां डेरे में चाल सूं हाको करायो कै रावजी पाछा कोट में बुवा गया।उठै थोड़ी घणी भगदड़ मचगी।अठीनै रावजी रातोरात पाछा सोवै गया पण रात रै अंधारै रै कारण भूल सूं राव मालदेव रै डेरे में बड़ग्या।राव मालदेव अर उणां रा आदमी रावजी माथै टूट पड़िया।मोत नै साम्हीं देख जैतसी न्हाठा नीं ,मुकाबलो कियो अर राव मालदेव रै धर्मविरोधी आचरण रै कारण वीरगत पाई।कवि सूजा बीठू लिखै कै मोत सूं डर'र न्हाठण नै तो जैतसी ई न्हाठ सकता पण आ बात उणां सीखी नीं ही। आ बात मालदेवजी ई सीखी जिकै केई वल़ा न्हाठा-
गांगावत जिम मांम गमाड़ै,
करन-समोभ्रम जाय किम।
भाजण तणा ज महणा अणभंग,
जैत न सहिया माल जिम।।
आ खबर बीकानेर पूगी तो गढ में अफरातफरी मचगी।उण बखत भोजराज कह्यो कै -गढ तो रावजी म्हनै सूंपग्या सो म्हैं माथै सटै ई सूंपसूं।जिकै मरण सूं डरो उवै कुशल़ जाओ परा अर जिणां रै नैणां लाज है उवै तरवारां लेवै।हे गढ!तनै जितै डरण री जरूरत नीं है जितै म्हारो सिर साबतो है--
बोहड़ो जिकै मरण सूं बीहै,
रहज्यौ जिकौ ज साथ रहै।
सिर साटै देसी सादावत,
कोटम बीहै भोज कहै।।(राघव बीठू)
उण बखत विशाल सेना रै साम्हीं भोजराज रूपावत अर महेश सांखला आपरै मुट्ठीक मिनखां साथै जिण अडरता सूं मुकाबलो कियो वो आज ई इतियास रै पानां में अमर है --

बीकानेर भोज बढाल़ै,
सारां मुंह ओडवै सरीर।
रूपाहरै राखियो रूड़ौ
नैहचै ई ऊतरतो नीर।।(राघव बीठू)
-
चंद सूर लग नाम चढायौ,
कर लग समदां तणै कड़ै।
सूरां मरण सांम ध्रम साटै,
पोहवी दीनी भ्रगुट पड़ै।।(सूजा बीठू)
तो आ बात ई अमर है कै उण बखत बीकानेर रै केई सरदारां मन माठो कियो तो केइयां घात ई करी।जिकां घात करी उणांनै फटकारतां किणी तत्कालीन कवि खारी बात कैयी पण दुजोग सूं उवा कविता पूरी नीं मिलै।जितरी मिली उवां इण भांत है--
गो रावत वड रंक,
गयो दूदो डंगाल़ी।
गो फाल़स हरराज,
गयो लिछमणियो छाल़ी।
गयो सूम सांगलो,
मोत निजरां जद आई।
गादड़ जगलो गयो,
.......
पण बीकानेर रै गुमेज नै कायम राखण सारू जिकै महावीरां मरण अंगेजियो उणांरो सुजस आज ई कायम है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

MAHARAJA JAIPUR Late SAWAI BRIGADIER BHAWANI SINGH

Remembering "MAHARAJA JAIPUR" - Late 'SAWAI' BRIGADIER BHAWANI SINGH (10 Para,MahaVeer Chakra) on his 8th death anniversary, A king who earned his Para wings, an officer who took 1 rupee as a salary during his entire military career,an officer who led the 10 Para to capture Chachro in Sindh (Virwah and Nagarparker thereafter), 80kms deep inside the Pakistani territory in the 1971 war,an officer who rose to the rank of Brigadier after his retirement (One of the few officers to be promoted post retirement),
Remembering BRIGADIER BHAWANI SINGH SAWAI - the last titular #Maharaja of Jaipur. A brave soldier, an Officer and a Gentleman, who could have chosen a luxurious lifestyle, instead he become a #Commando and fought in the Indo Pak war, earning second highest military decoration - MVC.

Brig Bhawani upheld the finest traditions of the Indian Army and the House of the Kachawas. Like his father who served the Army as Lt General, he was keen to join the #IndianArmy too and was commissioned into 3 Cavalry in 1954 and later served in the President`s Bodyguard for eight years. In 1963, he was posted to Headquarters 50 Independent Parachute Brigade. He volunteered to carry out a parachute drop at a height of 20,000 feet without oxygen. Later he was adjutant of the Indian Military Academy in Dehradun for a few years. In 1970, he helped train Mukti Bahini before the commencement of the Bangladesh Liberation War.

During the 1971 Indo Pak War, (then) Col Bhawani Singh led the boys from 10 PARA SF in an 80 kms deep penetration raid at #Chachro in Sind, Pak. For four days and nights, he led relentless attacks on enemy posts creating panic and confusion forcing the enemy to retreat, leaving behind large number of prisoners and equipment.

In 1972, he took voluntary retirement for personal reasons after the demise of his father. However, his heart continued to beat for his commandos and Indian Army.

His regiment, 10 Para Commando took part in Operation Pawan in Sri Lanka. On 10 October 1987, a jeep of 10 Para was hijacked as reprisal of capture of about 200 LTTE rebels and all the five occupants were killed. Based on Intelligence reports of the presence of rebels in Jaffna University, a heliborne operation was carried out on 12 October by 10 Para and 13 Sikh LI. The troops who had landed in the football field came under intense fire as the LTTE had intercepted the radio message and had laid an ambush. They suffered heavy casualties and the remaining troops were extracted by a detachment of 65 Armoured Regiment. The failure resulted in a setback to the morale of the unit. Lt Col Bhawani Singh MVC visited the unit on a request from Prime Minister. His presence and words helped to restore the morale of the boys. The President of India bestowed on him the rank of Brigadier, a rare honour for a retired officer.

Sir, you are remembered fondly with great reverence by all in the Indian Army. भावभीनी श्रद्धांजलि, शत शत नमन JAI HIND

भावभीनी श्रद्धांजलि,शत शत नमन!!!

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

कहानी शुभ्रक की....

कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,
_यह तो सब जानते हैं,
लेकिन कैसे?

_यह आज हम आपको बताएंगे..

_वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है, लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!

कहानी 'शुभ्रक' की.

कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया,_

_और_

_*उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।*_

_*कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,*_

_जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।_

_एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.._

_और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया।_

_यह तय हुआ कि_
_*राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम चौगान था और खेलने का तरीका भी कुछ और ही था) खेला जाएगा..*_
.
_कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।_

_शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।_

_जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया,_

_तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.._

_उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया_

_और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए,_

_*जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!*_

_इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए.._
.

_मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए।_

_'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.._

_*लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!*_

_राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया,_

_*तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।*_

_*सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..*_

_*भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता*_

_क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं!_

_जबकि_

_*फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।*

_*नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..*_ 🙏

_आज हम लोगों को इस ऐतिहासिक घटना पर गर्व होना चाहिए कि हम उसी देश की संतान हैं जिसके जानवर भी जान देकर भी बफादारी निभाते थे तो उस समय के लोगों में  समर्पण और निष्ठा की भावना कैसी रही होगी ?_

खुन की पवित्रता

खुन की पवित्रता

एक‌ समय की बात है जालोर के राजा कान्हडदेव चौहान राज्य करते थे , उनका पुत्र वीरमदेव  अल्लाउद्दिन खिलजी की सेना में नोकर था , खिलजी की फोज में एक हांजी खाँ पठान था वह मलयुद्ध करके अच्छे अच्छे राजपूत वीरों को परास्त कर मार दिया करता था ।
         वीरमदेव को जब इस बात का पता चला तो वीरमदेव ने बादशाह खिलजी को कहा अगले युद्ध में हांजी खाँ पठान को में चुनोती दुँगा ।
जब इन दोनो के बीच मलयुद्ध हो रहा था तब युद्ध को बादशाह की बेटी फिरोजा अपने महल के झरोखे से देख  रही थी , वीरमदेव ने हाँजी खाँ पठान को मलयुद्ध मे परास्त कर मार डाला , तब फिरोजा उस वीर वीरमदेव पर मोहित हो गयी ओर अपनी माँ के द्वारा बादशाह को कहलवाया की फिरोजा वीरमदेव से शादी करना चाहती है।
यह बात बादशाह ने वीरमदेव को बतायी तो *वीरमदेव ने कहा- शादी ब्याह हमारे बड़े बुजुर्ग तय करते हैं*
बादशाह खिलजी ने जालौर कान्हडदेव चौहान के पास चिट्ठी भेजी ओर यह सब वृतान्त बताया।

*तब कान्हडदेव सोनगरा ने वापस जवाब दिया की शादी सम्बन्ध हमारे यहाँ बराबर वालों में तय‌ होते हैं*। में एक छोटी सी जागीर का मालिक कहाँ आप दिल्ली के बादशाह  , तो फिर बादशाह ने जालोर कान्हडदेव के पास   हाथी , घोड़े, सेना , धन,  दोलत सबकुछ भेजने की इच्छा जताई ओर कहा कि में यह सब भेज रहा हुँ , जिससे आप अपने किले को हमारे किले जैसा बनाकर  हमारे बराबर बनो ।

इतना वृतान्त होने के बाद जालोर के राजा कान्हडदेव सोनगरा बादशाह खिलजी की मंशा अच्छी तरह समझ गये ओर चिट्ठी लिखकर भेजी की हमारे यहाँ बारात हम लेकर आते है आप वीरमदेव को जालोर भेजो बादशाह ने वीरमदेव को जालोर भेज दिया ओर कहा अब शादी की तैयारियां करो ,  तब वीरमदेव ने बादशाह के लिए  चिट्ठी  लिखी -  
*मामा‌ लांज्यै भाटियाँ , कुल लाज्यै चौहान।
वीरम परणै तुर्कडी ,उल्टो ऊगह भान।।

अर्थात्

*में  वीरमदेव अगर इस विधर्मी से शादी करता हुँ तो पहले मेरे मामा जो भाटी सरदार है वो लजाएँगे , फिर मेरा जो चौहान कुल है वो शर्म में डुब जाएगा , अर्थात मेरा इस विधर्मी से  शादी करना सुरज के उल्टे उगने के समान है*

बादशाह खिलजी ने जेसे ही यह चिट्ठी देखी ओर वापस चिट्ठी भेजी की- जालोर खाली करो।

इस पर वीरमदेव ओर कान्हडदेव ने चिट्ठी लिखकर कहा कि -
*आग फटै धरां उल्टै , कटैं वक्त रां कॊर*।
*धड़ तड़पे सिर कटै , जद छुटै जालौर* ।।

*ऎसे थे पहले हमारे पुर्वज* -

*एक विधर्मी से शादी करना उन्हें कँही बर्दाश्त नही था* ।
धन ,दौलत, हाथी, घोड़े, सेना उनके लिए कोई मायने नही रखती थी ।

*खुन की पवित्रता ही उनके लिए सबकुछ थी*।

ओर आज कि नयी पीढ़ी कोर्ट मैरीज  में अपनी शान समझती है
कँही लड़का भगा रहा है , कँही लड़की भाग रही है।

विचार करें मनन करें
हम अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहें हैं।