गुरुवार, 21 मार्च 2019

जोरजी चम्पावत

जोरजी_चम्पावत .....यह एक सत्य ऐतिहासिक बात है

वर्षों से मारवाड में फागुन_के_लोकगीतों में जोरजी चम्पावत को गाया जा रहा है,  जोरजी_चांपावत कसारी गांव के थे, जो जायल से 10 किमी खाटू सान्जू रोड़ पर है जहा जौरजी की छतरी भी है । जोधपुर के महाराजा नें एक विदेश से बन्दूक मंगाई थी और दरबार मे उसका बढ चढ कर वर्णन कर रहे थे संयोग से जौरजी भी दरबार मे मौजूद थे । दरबार ने जोरजी से कहा, देखो जोरजी ये बन्दूक हाथी को मार सकती है । जोरजी ने कहा, इसमे कोनसी बड़ी बात है हाथी तो घास खाता है ।
दरबार ने फिर कहा, ये शेर को मार सकती है..
जोरजी ने कहा, शेर तो जानवर को खाता है ।
इस बात को लेकर जोरजी और जोधपुर दरबार मे कहा सुनी हो गयी...तब जोरजी ने कहा, मेरे पास अगर मेरे मनपसंद का घोड़ा और हथियार हो तो मुझे कोई नही पकड सकता चाहे पुरा मारवाड़ पिछे हो जाय..तो जोधपुर दरबार ने कहा आपको जो अच्छा लगे वो घोड़ा ले लो और ये बन्दुक ले लो...जोरजी ने वहा से एक अपने मनपसंद का घोड़ा लिया और वो बन्दुक ले कर निकल गये..और मारवाड़ मे जगह जगह डाका डालते रहे ।
जोधपुर दरबार के नाक मे दम कर दिया। दरबार ने आस पास की रियासतो से भी मदद ली पर जोरजी को कौई पकड़ नही पाये ।तब ये दोहा प्रचलित हुआ ।
'"#चाम्पा_थारी_चाल_औरा_न_आवे_नी,
#बावन_रजवाङा_लार_तु_हाथ_कोई_के_आवे_नी ।"
फिर दरबार ने जोरजी पर इनाम रखा की जो उनको पकड़ के लायेगा उन्हे इनाम दिया जायेगा । इनाम के लालच मे आकर जोरजी के मासी के बेटे भाई खेरवा ठाकर धोखे से खेरवा बुलाकर जोरजी को मारा । जोरजी ने मरते मरते ही खेरवा ठाकर को मार गिराया । जब जोधपुर दरबार को जोरजी की मौत के बारे मे पता चला तो बहुत दूखी हुवे और बोले ऐसे शेर को तो जिन्दा पकड़ना था ऐसे शेर देखने को कहा मिलते है । जोरजी बन्दुक और कटारी हरसमय साथ रखते थे, खेरवा मे रात को सोते समय बन्दुक को खुंटी मे टंगा दी और कटारी को तकिये के नीचे रखते थे । जब जोरजी को निन्द आ गयी तो खेरवा ठाकर बन्दुक को वहा से हटवा दी और जोरजी के घोड़े को गढ़ से बहार निकाल कर दरवाजे बन्द कर दिया । तो घोड़ा जोर जोर से बोलने लगा घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर जोरजी को कुछ अनहोनी की आसंका हुई वो उठे ओर बन्दुक की तरफ लपके पर वहा बन्दुक नही थी । तो जोरजी को पुरी कहानी समझ मे आ गयी ओर कटारी लेकर आ गये चौक मे मार काट शुरू कर दी उन सैनिको को मार गिराया ।
खेरवा ठाकर ढ्योढी मे बैठा था वहा से गोली मारी । जोरजी घायल शेर की तरह उछल कर ठाकर को ढ्योढी से निचे मार गिराया । ओर जोरजी घायल अवस्था मे अपने खुन से पिण्ड बना कर पिण्डदान करते करते प्राण त्याग दिये । ( उस समय जो राजपुत खुद अपने खुन से पिण्डदान करे तो उनकी मोक्स होती है ऐसी कुछ धारणा थी) राजस्थान के गाँवों मे जौर जी लिये होली पर गाया जाने वाला वीर-रस पूर्ण गीत :-
लिली लैरया ने लिलाड़ी माथे हीरो पळके वो
के मोडो बतलायो ओ जोरजी सिंघनी को जायो रे
के मोड़ो बतलायो.....
मेहला से उतरता जोरजी लोड़ालाडी बरजे वो
ढोड्या से निकलता जोरजी थाने मांजी बरजे वो
के मत खैरवे ओ खैरवो भाया को बैरी रे..
के मत जा खैरवे....
पागडी़ये पग देता जोरजी डाई कोचर बोली वो
जिवनी झाड्.या मे थाने तितर बरजे वो
के मत जा खैरवे..
गॉव से निकलता जोरजी काळो खोदो मिलयो वो
जिवनी झाड़्या मे थाने स्याळ बरजे वो
के मत जा खैरवे....
ओ खैरवो भाया को बैरी रे
जोरजी रा घुड़ला कांकड़ - कांकड़ खड़िया वो
जोरजी रो झुन्झरियो भरीयोड़ो हाले वो
के मत जा खैरवे..
जोरजी रा घुड़ला सुंवा बजारा खडि़या वो
खाटू आळे खाण्डेय डूगंर खाली तोपा हाले वो
खैरवा ठाकर घोड़ा आडा दिना वो
खाटू रा सिरदारा थाने धान किकर भावे वो
जोरजी रो मोरियो जोधाणे हाले वो
के मत जा खैरवे...
भरियोड़ी बोतलड़ी ठाकर जाजम माते ढुळगी वो
राम धर्म न देय न दरवाजा जड़िया वो
के मोड़ो बतलायो ओ जोरजी सिंघनी रो जायो रे
के मोड़ो बतलायो.....
ढाल न तलवार ठाकर महल माते रेगी रे
के भरियोड़ी बन्दुक बैरन धोखो देगी रे
के मत जा खैरवे....
जोरजी चाम्पावत थारे महल माथे मेड़ी वो
अर मेड़ी माते मोर बोले मौत नेड़ी वो
के मत जा खैरवे ओ खैरवो भाया को बैरी वो
के मत जा खैरवे.......
(यह जानकारी हमें श्री रतनसिंह जी चम्पावत जोधपुर ने उपलब्ध करवायी है)

सोमवार, 4 मार्च 2019

झरड़ो!पाबू सूं करड़ो!

झरड़ो!पाबू सूं करड़ो!!-

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

प्रणवीर पाबूजी राठौड़ अपने प्रण पालन के लिए वदान्य है तो उनके भतीज झरड़ा राठौड़ अपने कुल के वैरशोधन के लिए मसहूर है।
मात्र बारह वर्ष की आयु में जींदराव खीची को मारा। जींदराव की पत्नी पेमां जो स्वयं जींदराव की नीचता से क्रोधित थी और इस इंतजार में थी कि कब उसका भतीजा आए और अपने वंश का वैर ले।संयोग से एकदिन झरड़ा जायल आ ही गया।जब पेमल को किसी ने बताया कि एक बालक तलाई की पाल़ पर बैठा है और उसकी मुखाकृति तुम्हारे भाईयों से मिलती है।पेमल की खुशी की ठिकाना नहीं रहा।वो उसके पास गई।उसकी मुखाकृति देखकर पहचान गई तो साथ ही उसकी दृढ़ता देखकर आश्वस्त  भी हो गई कि यह निश्चित रूप से वैरशोधन कर लेगा।
उलेख्य है कि झरड़ा का जन्म उसकी मा का पेट चीरकर करवाया गया था इसलिए यह 'झरड़ा'नाम से विदित है।
जींदराव को ललकारकर मारा।बाद में ये गौरखनाथजी के शिष्य हो गए तथा रूपनाथ के नाम से जाना जाते हैं।कहते हैं कि आजके ही दिन उन्होंने अपने गुरू से दीक्षा ली थी।वर्तमान बीकानेर जिले की नोखा तहसील के 'सैंगाल़ धोरा' पर इन्होंने तपस्या की और यहीं समाधि ली।आजके दिन यहां विशाल मेला भरता है और अनेक भक्त दर्शनार्थ आते हैं।आज बीकानेर से जोधपुर जाते समय नोखा में ट्रेन से उतरते भक्तों को देखकर एक 'सोहणा' गीत इन्हें समर्पित किया जो आपसे भी साझा कर रहा हूं--
गीत सोहणो-
प्रणधर वर वीर हुवो  धिन पाबू,
कीरत जग कव मांड करै।
अँजसै कोम आ भोम  अजलग,
धुर -जन अंतस ध्यान धरै।।1

दियो वचन देवल नै दाटक,
वित्त  कज थारै मोत वरूं।
आवै जम ले फौज अराड़ी,
कीधो पूरण कोल करूं।।2

दीधी जदै काल़मी देवल,
दख भोल़ावण भल़ै दही।
सुरभी मूझ चरै वन सारी,
रण रखवाल़ण त्यार रही।।3

वचनां मूझ मान तूं बाई,
कमधज एकर भल़ै कयो।
दे दृढ भाव देवल नै डारण,
वाट घरां री वीर बयो।।4

बणियो वींद सोढी नै वरवा,
केसर ऊपर जीण करी।
मिणधर धाट थाट रै मारग,
भल- भल निजरां रीझ भरी।।5

आई जान धरा अमराणै,
कितरा सोढां कोड किया।
सारां आय  कियो सामेल़ो,
दत्त चित्त सारा नेग दिया।।6

तोरण वींद निरखियो तारां,
दिल सासू लखदाद दिया।
कंवरी भाग सराया कितरा,
लुल़ लुल़ वारण घणा लिया।।7

बैठो जाय चवरियां वरधर,
उण वेल़ा फरियाद अई।
खल़ बल़ आय जींदरो खीची,
लांठेपै गौ खोस लई।।8

ढिग पाबू निज आय ढैंभड़ै,
डाकर ओ संदेश दियो।
गँठबँध त्याग ऊठ गाढाल़ै,
कमधज झट प्रस्थान कियो।।9

भिड़ियो आय वीर भुरजाल़ो,
खित पर राखण बात खरी।
कमधज जदै चारणां कारण,
वड नर सांप्रत मोत वरी।।10

कमधज धरा बात रै कारण,
खल़ खीची रै दिया खला।
रह्या सरब धांधल रा रण में,
भील एक सौ बीस भला।।11

रगतस देय बात धिन राखी,
साखी सूरज-चांद सको।
नर धिन करी वीरता नाहर
जाहर है इतियास जको।।12

बूड़ै  साथ बल़ण नै बोड़ी,
हिव छत्राणी त्यार हुई।
परतख पेट जदै परनाल़ै,
बत झरड़ै री बात बुई।।13

सँभल़ी जदै पेमला सारी,
कुल़ छल़ भायां नाम कियो।
बूड़ै घरै वंश रो वारिस,
रसा तूंतड़ो एक रयो।।14

आयो क्रोध अँतस में अणथग,
हाथां धव ना खून हुवै।
झरड़ै तणी भुआ नित जोरां,
जायल बैठी वाट जुवै।।15

बारै वरस वीतग्या बातां,
नैणां रातां नींद नहीं।
जायल आय उतरियो झरड़ो,
कथ पणिहारण बात कही।।16

सँभल़ी बात भुआ मन सरसी,
छाती वरसी ठंड छती।
हरसी आय भीड़ियो हिरदै,
सतधर करजै मूझ सती।।17

आयो वैर उग्राहण अब तो,
भुआ मानजै बात भली।
काको-बाप लेउं कज कीरत,
जिण कज आ तरवार झली।।18

पूगो जाय कोट में पाधर,
ऊठ जींदड़ा वीर अयो।
पाबू -बूड़ जारलै  प्रिथमी,
कहजै एहड़ो मरद कियो।।19

खीची भभक खडग नै खांची,
पण नह उणसूं पार पड़ी,
वंश रै वैर खीझ नै बंकै,
झरड़ै करड़ै सीस जड़ी।।20

धिन- धिन हुवो धांधलहर धरती,
ऊजल़ करनै नाम असा।
पसरी वेल सुजस री परगल़,
रात दिवस जप नाम रसा।।21

झरड़ो करड़ो जो पाबू सूं,
वसू कहावत अजै बहै।
चेलो कियो गौरख चित साचै,
रूपनाथ धर रूप रहै।।22

नामी नाथ हुवो निरभै नर,
धोरै धिन सैंगाल़ धरा।
जांगल़ भोम जिकी जग जाहर,
खमा करै नित भगत खरा।।23

रणवट रखी रसा रजपूती
भीनो भगती रूप भल़ै।
मनमें बसा जबर मजबूती,
रीती नाथां पंथ रल़ै।।24

नाथां सिरहर रूप नमामी,
जस रट थारो जयो जयो।
कीरत कथा सुणी कवि गिरधर,
कथनै सिरधर गीत कयो।।25
गिरधरदान रतनू दासोड़ी