शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

बीकानेर राज्य के ताजीमी ठिकाने

बीकानेर राज्य के ताजीमी ठिकाने
ताजीमी ठिकाने
.        (संकलन- घनश्यामसिंह राजवी चंगोई)

बीकानेर रियासत में चार प्रकार के ताजीमी ठिकाने थे, जिनको उनकी श्रेणी के अनुसार सम्मान प्राप्त था …

 १. सिरायत
इन्हें आम बोलचाल की भाषा में (बड़े होने के कारण) अधराजिया भी कहते थे। इन ठिकानों के ठिकानेदार जब महाराजा से भेंट करने जाते तब महाराजा खड़े होकर उनका स्वागत करते व भेंट के उपरांत खड़े होकर विदा करते थे। इनको दोलड़ी ताजीम के अलावा हाथ के कुरब का सम्मान प्राप्त था। इनके पदनाम अलग-2 थे। इनकी संख्या मात्र 4 थी …

1. रावतसर (रावतोत कांधल)- बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीकाजी के चाचा रावत कांधलजी के पुत्र राजसिंह को सन 1500 में यह ठिकाना दिया गया था। इनकी पदवी रावत थी।

2. बीदासर (बीदावत केशोदासोत)- राव बीकाजी के छोटे भाई बीदाजी के प्रपोत्र केशवदास को यह ठिकाना दिया गया था। इनकी पदवी राजा थी।

3.  महाजन (रतनसिंहोत बीका)- बीकानेर के 3रे राजा राव लूणकरण जी के पुत्र रतनसिंह को सन 1505 में यह ठिकाना दिया गया था। इनकी पदवी राजा थी।

4. भूकरका (श्रृंगोत बीका)- बीकानेर के 3रे राजा राव जैतसी के पुत्र श्रृंग के पुत्र भगवानदास को यह ठिकाना दिया गया था। इनकी पदवी राव थी।

२.दोलड़ी ताजीम वाले ठिकाने
इन ठिकानों के ठिकानेदार भी जब महाराजा से भेंट करने जाते तब महाराजा खड़े होकर उनका स्वागत करते व भेंट के उपरांत खड़े होकर विदा करते थे। राज्य में इनकी संख्या 29 थी  …

1.पूगल (केलणोत भाटी : उपाधी राव)- जैसलमेर के रावळ केहर के पुत्र केलण द्वारा बाकानेर की स्थापना से पूर्व स्थापित।

2. चूरू (बणीरोत कांधल)- रावत कांधलजी के पुत्र बाघसिंह के पुत्र  बणीर को तत्कालीन महाराजा द्वारा यह ठिकाना दिया गया था।

3. सांखू (किशनसिंहोत बीका) – बीकानेर के राजा सूरसिंह के छोटे भाई किशनसिंह को सन 1618 में यह ठिकाना दिया गया था।

4. नीमा (किशनसिंहोत बीका) – उपरोक्त किशनसिंह के पुुत्र जगतसिंह को 1630 में यह ठिकाना दिया गया था।

5. सिद्धमुख (श्रृंगोत बीका)- भूकरका के राव श्रृंग के प्रपोत्र  किशनसिंह को 1616 में यह ठिकाना दिया गया था।

6. ददरेवा (पृथ्वीराजोत बीका)- बीकानेर के 6ठे राजा रायसिंह के भाई पृथ्वीराजजी के पुत्र सुंदरसिंह को 1617 में यह ठिकाना दिया गया।

7. बांय (श्रृंगोत बीका)- भूकरका के राव श्रृंग के छठवें वंंशज दौलतसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।

8. राजपुरा (भीमराजोत बीका)- बीकानेर के 4थे राजा राव जैतसी के पुत्र भीमराज के 8वेंं वंशज हिम्मतसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।

9. जसाणा (श्रृंगोत बीका)- भूकरका के राव श्रृंग के पांचवें वंशज अमरसिंह को 1694 में यह ठिकाना दिया गया था।

10. कुंभाणा (रत्नसिंहोत बीका)- बीकानेर के राजा लूणकरण जी के पुत्र रत्नसिंह के वंंशज केेशरीसिंह को यह ठिकाना मिला था।

11. हरदेसर (अमरसिंहोत बीका)- बीकानेर के 5वेे राजा कल्याण मल के पुत्र अमरसिंह को सन 1594 में यह ठिकाना मिला था।

12. मगरासर (नारणोत बीका)- बीकानेर के राजा लूणकरण जी के पोत्र नारण के पुत्र भोपतसिंह को यह ठिकाना मिला था।

13. भादरा (सांईदासोत कांधल)- रावत कांधलजी के पुत्र अरड़कमल पहले साहवा के मालिक हुए। बाद में अरड़कमल के पोत्र सांईदास के वंशज लालसिंह को भादरा का ठिकाना मिला।

14. जैतपुर (रावतोत कांधल)- रावत कांधलजी के पुत्र राजसिंह के वंशज चद्रसेन को सन 1601 में यह ठिकाना मिला था।

15. झारिया (बणीरोत कांधल)- ठाकुर कुशलसिंह चूरू के पुत्र धीरतसिंह को 1764 में यह ठिकाना मिला था।

16. गोपालपुरा (बीदावत तेजसिंहोत)-  बीदाजी के प्रपौत्र द्रोणपुर के राव गोपालदास के पुत्र जसवंतसिंह ने यह ठिकाना कायम किया था।

17. चाड़वास (बीदावत तेजसिंहोत)-  बीदाजी के प्रपौत्र द्रोणपुर के राव गोपालदास ने पुत्र तेजसिंह को यह ठिकाना दिया था।

18. सांडवा (बीदावत मनोहरदासोत)- उपरोक्त द्रोणपुर के राव गोपालदास के पोत्र मनोहरदास के पुत्र रूपसिंह को यह ठिकाना मिला था।

19. मलसीसर (बीदावत तेजसिंहोत)- चाड़वास ठिकाने के  रामचंद्र के वंशज बख्तसिंह को यह ठिकाना मिला था।

20. लोहा (बीदावत खंगारोत)- राव बीदाजी के प्रपौत्र खंगारसिंह के पुत्र लाखणसिंह को 1632 में यह ठिकाना मिला था।

21. खुड़ी (बीदावत खंगारोत)- राव बीदाजी के प्रपौत्र खंगारसिंह के पुत्र किशनसिंह को 1638 में यह ठिकाना मिला था।

22. कनवारी (बीदावत खंगारोत)- राव बीदाजी के प्रपौत्र खंगारसिंह के वंशज बख्तसिंह लोहा के पुत्र दीपसिंह को यह ठिकाना मिला था।

23. सोभासर (बीदावत मदनावत)- राव बीदाजी के पुुत्र संसारचन्द्र के वंशज मदनसिंह के पौत्र उदयभान को यह ठिकाना मिला था।

24. हरासर (बीदावत पृथ्वीराजोत)- द्रोणपुर के राव गोपालदास के पोत्र पृथ्वीराज के पुत्र थानसिंह को यह ठिकाना मिला था।

25. नोखा (करमसोत जोधा)- राव जोधाजी के पुत्र करमसी के वंशज खींवसर ठाकुर जोरावरसिंह के पुत्र चांदसिंह को 1760 में यह ठिकाना मिला था।

26. सारूंडा (मंडलावत जोधा)- राव जोधाजी के भाई मंडलाजी के पुत्र द्वारा सन 1494 में स्थापित।

27. गड़ियाला (रावलोत भाटी- देरावरिया)- देरावर के रावल रघुनाथसिंह के पुत्र जालिमसिंह को 1784 में यह ठिकाना मिला था।

28. जेतसीसर (पंवार)- श्रीनगर (अजमेर) के ठाकुर जेतसिंह पंवार को यह ठिकाना मिला था।

29. राणासर (पंवार)- महाराजा सूरतसिंह के साले के पुत्र भोमसिंह को 1831 में यह ठिकाना मिला था।

 

३.इकोलड़ी ताजीम वाले ठिकाने
इन ठिकानों के ठिकानेदार जब महाराजा से भेंट करने जाते तब महाराजा खड़े होकर उनका स्वागत करते लेकिन भेंट के उपरांत खड़े नहीं होते बल्कि अपने स्थान पर बैठे-2 ही विदा करते थे। राज्य में इनकी संख्या  27 थी  …

चंगोई (तारासिंहोत राजवी)- बीकानेर के 14वें राजा गजसिंह जी द्वारा अपने बड़े भाई तारासिंहजी के पुत्र भवानीसिंह को सन 1787 में चंगोई की जागीर दी गई।
फोगां (अमरसिंहोत राजवी)- बीकानेर के 14वें राजा गजसिंह जी द्वारा अपने बड़े भाई अमरसिंहजी के पुत्र सरदारसिंह को सन 1759 में फोगां की जागीर दी गई।
मेहरी (गूदड़सिंहोत राजवी)- बीकानेर के 14वें राजा गजसिंह जी द्वारा अपने बड़े भाई गूदड़सिंहजी के पुत्र जगतसिंह को मेहरी की जागीर दी गई।
अजीतपुरा (श्रृंगोत बीका)- बीकानेर के 4थे राजा जैतसीजी के पुत्र श्रृंग के पौत्र मनोहरदास को सन 1594 में अजीतपुरा की जागीर दी गई।
बिरकाली (श्रृंगोत बीका)- उपरोक्त श्रृंग के वंशज कुशलसिंह भूकरका के पुत्र सुल्तानसिंह को सन 1750 में बिरकाली की जागीर दी गई।
शिमला (श्रृंगोत बीका)- उपरोक्त श्रृंग के 9वें वंशज मदनसिंह भूकरका के पुत्र ज्ञानसिंह को सन 1790 में शिमला की जागीर दी गई।
थिराणा (श्रृंगोत बीका)- उपरोक्त श्रृंग के 10वें वंशज जैतसिंह भूकरका के पुत्र ज्हठीसिंह को सन 1854 में थिराणा की जागीर दी गई।
रसलाणा (श्रृंगोत बीका)- उपरोक्त श्रृंग के 9वें वंशज रणजीतसिंह बांय के पुत्र हुकमसिंह को सन 1861 में रसलाणा की जागीर दी गई।
घड़सीसर (घड़सियोत बीका)- राव बीकाजी ने अपने पुत्र घडीसीजी को सन 1505 में घड़सीसर की जागीर दी।
गारबदेसर (घड़सियोत बीका)- उपरोक्त घडीसीजी के पुत्र देवीसिंह को गारबदेसर की जागीर दी गई।
मेघाणा (बाघावत बीका)- राव जैतसी के पुत्र बाघसिंह के पुत्र रघुनाथसिंह को 1580 में मेघाणा की जागीर दी गई।
पड़िहारा (मनोहरदासोत बीदावत)- राव गोपालदास के वंशज रघुनाथसिंह को यह जागीर दी गई।
चरला (केशोदासोत बीदावत)- राव गोपालदास के पुत्र केशोदास के सातवें वंशज जालिमसिंह बीदासर को यह जागीर दी गई।
काणुता (तेजसिंहोत बीदावत)- राव गोपालदास के पुत्र तेजसिंह के वंशज बख्तसिंह को 1808 में यहां की जागीर दी गई।
घंटियाल (तेजसिंहोत बीदावत)- राव गोपालदास के पुत्र तेजसिंह के वंशज संग्रामसिंह चाड़वास के पुत्र बख्तावरसिंह को यहां की जागीर दी गई।
सात्यू (बणीरोत कांधल)- राव बीकाजी ने रावत कांधल के पुत्र बाघसिंह (बणीरजी के पिता) को सन 1489 में (बीकानेर की स्थपना के एक वर्ष बाद ही) सात्यू का ठिकानेदार बनाया था। उनके वंशज विजयसिंह को महाराजा गजसिंह द्वारा सन 1755 में ताजीम का सम्मान दिया गया।
ल्होसणा (बणीरोत कांधल)- चूरू के ठाकुर बलभद्रसिंह के वंशज अर्जुनसिंह को 1790 में यहां की जागीर दी गई।
देपालसर (बणीरोत कांधल)- चूरू के ठाकुर भीमसिंह के पुत्र छत्रसाल को 1733 में यहां की जागीर दी गई।
बिसरासर (रावतोत कांधल)- रावतसर के रावत चतरसिंह के पुत्र आनंदसिंह को सन 1759 में यहां की जागीर दी गई।
सूँई (रावतोत कांधल)- रावतसर के रावत नाहरसिंह के पुत्र जैतसिंह को सन 1864 में यहां की जागीर दी गई।
बगसेऊ (करमसोत जोधा)- रोड़ा के ठाकुर अनाड़सिंह के पुत्र शार्दूलसिंह को 1902 में यहां की जागीर दी गई।
सत्तासर (हरावत भाटी)- पूगल के राव अभयसिंह के पुत्र अनूपसिंह को 1810 में यहां की जागीर दी गई।
जयमलसर (खिंया भाटी)- पूगल के राव शेखा के पुत्र खींवा के छठे वंशज चांदसिंह को 1618 में यहां की जागीर दी गई।
कूदसू (भाटी)- महाराजा गंगासिंह के साले बीकमकोर (जोधपुर) के ठाकुर प्रतापसिंह को 1909 में यहां की जागीर दी गई।
लखासर (तंवर)- बीकानेर के 9वें राजा कर्णसिंह द्वारा अपने ससुर (ग्वालियर के तंवर राजा मानसिंह के वंशज) केशोदास को 1713 में यहां की जागीर दी गई।
सांवतसर (तंवर)- महाराजा गंगासिंहजी ने अपने ससुर सुल्तानसिंह (उपरोक्त्त केशोदास के वंशज) को 1899 में यहां की जागीर दी गई। जोधासर (चंद्रावत सिसोदिया)- महाराजा गंगासिंह जी के नाना बख्तावरसिंह को 1852 में यहां की जागीर दी गई।
जोधासर (चंद्रावत सिसोदिया)- महाराजा गंगासिंह जी के नाना बख्तावरसिंह को 1852 में यहां की जागीर दी गई।
 

४.सादी ताजीम वाले ठिकाने
इन ठिकानों के ठिकानेदार जब महाराजा से भेंट करने जाते तब महाराजा अपने स्थान पर बैठे-2 ही उनका स्वागत करते तथा भेंट के उपरांत भी खड़े नहीं होते बल्कि अपने स्थान पर बैठे-2 ही विदा करते थे। राज्य में इनकी संख्या  60 थी  …

आसपालसर (राजवी अमरसिंहोत)- बीकानेर के 14वें राजा गजसिंह जी द्वारा अपने बड़े भाई अमरसिंहजी के पुत्र दल थंभनसिंह को सन 1786 में आसपालसर की जागीर दी गई।
रावतसर कुंजला (किशनसिंहोत बीका)- सांखू के ठाकुर किशनसिंह के वंशज भूरसिंह को सन 1933
कानासर (श्रृंगोत बीका)- भूकरका के राव श्रृंग के वंशज पेमसिंह बांय के पुत्र सालिमसिंह को 1808 में यह ठिकाना दिया गया था।
रणसिसर (श्रृंगोत बीका)- कुशलसिंह भूकरका के पोत्र शेरसिंह को 1813 में यह ठिकाना दिया गया था।
जबरासर (श्रृंगोत बीका)- भूकरका के राव श्रृंग के वंशज लालसिंह जसाणा के पुत्र शिवदानसिंह को 1862 में यह ठिकाना दिया गया था।
तेहनदेसर (नारणोत बीका)- लूणकरण के पोत्र नारण के पांचवें वंशज आइदानसिंह को 1678 में यह ठिकाना दिया गया था।
कातर (नारणोत बीका)- लूणकरण के पोत्र नारण के पांचवें वंशज गोरखदानसिंह को 1668 में यह ठिकाना दिया गया था।
मेणसर (नारणोत बीका)- लूणकरण के पोत्र नारण के पुत्र बलभद्रसिंह को 1678 में यह ठिकाना दिया गया था। 
बीनादेसर (मनोहरदासोत बीदावत)- सांडवा के ठाकुर दानसिंह के वंशज दूल्हसिंह को 1879 में यह ठिकाना दिया गया था। 
कक्कू (मनोहरदासोत बीदावत)- सांडवा के ठाकुर भोमसिंह के पुत्र जवानीसिंह को 1808 में यह ठिकाना दिया गया था।
पातलीसर (मनोहरदासोत बीदावत)- सांडवा के ठाकुर दानसिंह के प्रपोत्र रत्नसिंह को 1848 में यह ठिकाना दिया गया था।
सारोठिया (पृथ्वीराजोत बीदावत)- महाराजा सरदारसिंह ने हरासर के ठाकुर देवीसिंह के छोटे पुत्र हरीसिंह के वंशजों को यह ठिकाना दिया गया था।
हामूसर (खंगारोत बीदावत)- लोहा के ठाकुर बख्तसिंह के वंशज शिवनाथ सिंह को 1902 में यह ठिकाना दिया गया था।
जोगलिया (तेजसिंहोत बीदावत)- चाड़वास के ठाकुर बहादुरसिंह के पुत्र गूदड़सिंह को 1836 में यह ठिकाना दिया गया था।
बड़ाबर (तेजसिंहोत बीदावत)- मलसीसर के ठाकुर बख्तसिंह के पोत्र अगरसिंह को 1829 में यह ठिकाना दिया गया था।
मालासर (तेजसिंहोत बीदावत)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने ADC गोपसिंह को 1902 में यह ठिकाना दिया गया था।
नोसरिया (मानसिंहोत बीदावत)- चाड़वास के ठाकुर संग्रामसिंह के पुत्र पन्नेसिंह को 1861 में यह ठिकाना दिया गया था।
गौरीसर (मानसिंहोत बीदावत)- महाराजा सरदारसिंह द्वारा उपरोक्त पन्नेसिंह के वंशजों को यह ठिकाना दिया गया था।
दूधवा मीठा (बणीरोत कांधल)- ठाकुर बलभद्रसिंह चूरू के वंशज भोजराज को 1733 में यह ठिकाना दिया गया था।
पिरथिसर (बणीरोत कांधल)- झारिया के ठाकुर धीरतसिंह के वंशज बींजराजसिंह को 1877 में यह ठिकाना दिया गया था।
पिथरासर (सांईदासोत कांधल)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने खास ओहदेदार ठाकुर किशोरसिंह को 1910 मे यह ठिकाना दिया गया था।
मेहलिया (रावतोत कांधल)- रावत नाहरसिंह रावतसर के पुत्र शिवदानसिंह को 1864 में यह ठिकाना दिया गया था।
कल्लासर (रावतोत कांधल)- महाराजा गजसिंह द्वारा रावत कांधल के प्रपोत्र जसवंतसिंह के वंशज भोपालसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
धांधूसर (रावतोत कांधल)- रावत लखधीरसिंह रावतसर के पुत्र जोरावरसिंह को यह ठिकाना दिया गया था। 
रायसर (करमसोत जोधा)- करमसिंह के सातवें वंशज सामंतसिंह को 1835 में यह ठिकाना दिया गया था।
सुरनाणा (करमसोत जोधा)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने खास ओहदेदार भूरसिंह को 1912 में यह ठिकाना दिया गया था।
देसलसर (करमसोत जोधा)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने खास ओहदेदार मोतीसिंह को 1921 में यह ठिकाना दिया गया था।
भादला (रूपावत राठौड़)- राव बीकाजी के चाचा रूपाजी के पुत्र भोजराज को राव जेतसीजी द्वारा सन 1534 में यह ठिकाना दिया गया था।
सिंजगुरु (रूपावत राठौड़)- राव बीकाजी के चाचा रूपाजी के वंशज लक्ष्मणसिंह को 1827 में यह ठिकाना दिया गया था।
परावा (रत्नोत राठौड़)- जोधपुर के राव सूजा के वंशज रतनसिंह के वंशज सुखसिंह को 1784 में यह ठिकाना दिया गया था।
खारी (मेड़तिया राठौड़)- मेड़ता के राव दूदाजी के पौत्र जयमल के वंशज चांदसिंह को 1877 में यह ठिकाना दिया गया था।
रोजड़ी (केलणोत भाटी)- पूगल के राव अमरसिंह के वंशज गुमानसिंह को 1881 में यह ठिकाना दिया गया था।
केलां (केलणोत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पुत्र हरा के वंशज केशरीसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
खियेरां (केलणोत भाटी)- पूगल के राव शेखा के वंशजों को यह ठिकाना दिया गया था।
बीठनोक (खिंया धनराजोत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पौत्र धनराज के वंशजों को यह ठिकाना दिया गया था।
खिंदासर (खिंया धनराजोत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पौत्र धनराज के वंशज ठाकुर बलवंतसिंह को महाराजा गंगासिंहजी द्वारा 1910 में यह ठिकाना दिया गया था।
जांगलू (खिंया धनराजोत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पौत्र धनराज के वंशज ठाकुर हुकमसिंह को महाराजा सरदारसिंहजी द्वारा 1871 में यह ठिकाना दिया गया था।
खारबारा (किशनावत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पौत्र किशनदास को सन 1506 में यह ठिकाना दिया गया था।
राणेर (किशनावत भाटी)- पूगल के राव शेखा के पौत्र किशनदास के पुत्र रामसिंह को राव जेतसीजी ने सन 1531 में यह ठिकाना दिया गया था।
हाडलां बडी पांती (रावलोत भाटी- देरावरिया)- देरावल के रावल रघुनाथसिंह के पुत्र गाड़ियाला के रावल जालिमसिंह के पुत्र बाघसिंह को 1814 में यह ठिकाना दिया गया था।
हाडलां छोटी पांती (रावलोत भाटी- देरावरिया)- देरावल के रावल रघुनाथसिंह के पुत्र गाड़ियाला के रावल जालिमसिंह के पुत्र सुरजमालसिंह को 1814 में यह ठिकाना दिया गया था।
टोकलां (रावलोत भाटी- देरावरिया)- देरावल के रावल रघुनाथसिंह के पुत्र गाड़ियाला के रावल जालिमसिंह के पुत्र भोमसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
छनेरी (रावलोत भाटी- देरावरिया)- उपरोक्त भोमसिंह के पुत्र भभूतसिंह को 1875 में यह ठिकाना दिया गया था।
सिंदू (रावलोत भाटी)- महाराजा सूरतसिंहजी द्वारा ठाकुर हरीसिंह को 1797 में यह ठिकाना दिया गया था।
परेवड़ा (रावलोत भाटी)- महाराजा सूरतसिंहजी द्वारा ठाकुर जसवंतसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
नांदड़ा (रावलोत भाटी)- ठाकुर लखेसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
झझू (रावलोत भाटी)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा ठाकुर प्रभुसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
भीमसरिया (रावलोत भाटी)- महाराजा डूंगरसिंहजी द्वारा 1882 में यह ठिकाना दिया गया था।
राजासर (पंवार)- जेतसीसर के ठाकुर जेतसिंह के पौत्र कान्हसिंह को 1836 में यह ठिकाना दिया गया था।
सोनपालसर (पंवार)- जेतसीसर के ठाकुर जेतसिंह के पौत्र शिवदानसिंह को 1837 में यह ठिकाना दिया गया था।
नाहरसरा (पंवार)- जेतसीसर के ठाकुर जेतसिंह के वंशज सरदारसिंह को 1794 में यह ठिकाना दिया गया था।
लूणासर (पंवार)- उपरोक्त सरदारसिंह नाहरसरा के वंशज शिवसिंह को 1878 में यह ठिकाना दिया गया था।
रामपुरा (पंवार)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने ADC आसूसिंह को 1929 में यह ठिकाना दिया गया था। 
भालेरी (कच्छवाहा राजावत- कुम्भावत)- महाराजा गजसिंह ने शिवजीसिंह के पुत्र मदनसिंह को 1751 में यह ठिकाना दिया गया था।
नैयांसर (कच्छवाहा राजावत- कुम्भावत)- भालेरी के ठाकुर गुलाबसिंह के पुत्र हुकमसिंह को यह ठिकाना दिया गया था।
गजरूपदेसर (कच्छवाहा राजावत)- महाराजा सूरतसिंह द्वारा ठाकुर सुरजनसिंह को 1809 में यह ठिकाना दिया गया था।
दुलरासर (शेखावत रावजीका)- महाराजा डूंगरसिंह जी द्वारा कच्छवाहा नाथूसिंह को 1876 में यह ठिकाना दिया गया था।
आसलसर (शेखावत गिरधरजीका)- महाराजा सूरतसिंह जी द्वारा 1794 में यह ठिकाना दिया गया था।
पुंदलसर (शेखावत गिरधरजीका)- महाराजा गजसिंह जी द्वारा कच्छवाहा सामंतसिंह को 1778 में यह ठिकाना दिया गया था।
इंद्रपुरा (शेखावत गिरधरजीका)- महाराजा रतनसिंह द्वारा यह ठिकाना दिया गया था।
दाऊदसर (तंवर)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने ADC पृथ्वीसिंह को 1901 में यह ठिकाना दिया गया था।
ऊँचाएडा (तंवर)- महाराजा सरदारसिंह द्वारा देवीसिंह को 1861 में यह ठिकाना दिया गया था।
गजसुखदेसर (सिसोदिया राणावत)- महाराजा सूरतसिंह द्वारा मेवाड़ के बनेड़ा ठिकाने के वंशज आनंदसिंह को 1810 में यह ठिकाना दिया गया था।
पाण्डुसर (सिसोदिया राणावत)- महाराजा सरदारसिंह द्वारा उपरोक्त गजसुखदेसर के वंशज को 1863 में यह ठिकाना दिया गया था।
समंदसर (पड़िहार)- महाराजा गंगासिंहजी द्वारा अपने खास ओहदेदार ठाकुर बख्तावरसिंह को 1902 मे यह ठिकाना दिया गया था। ये बीकाजी के मामा ‘बेला पड़िहार’ वंशज हैं।
धीरासर (हाड़ा चौहान)- महाराजा द्वारा ठाकुर नाथूसिंह चौहान को यह ठिकाना दिया गया था। 
 

राजवी
बीकानेर महाराजा के निकटवर्ती भाईबंद राजवी कहलाते थे व अन्य ठिकानेदारों को भी ताजीम का सम्मान प्राप्त होता था। रियासतकाल में पांव में सोने का कड़ा या अन्य गहना पहनने का अधिकार सिर्फ ताजीमी सरदारों को ही होता था, जबकि सभी राजवीयों को यह सम्मान प्राप्त था। बीकानेर के 14वें शासक महाराज गजसिंह व उनके तीनों भाईयों अमरसिंह, गूदड़सिंह, व तारासिंह के वंशज राजवी कहलाते हैं। हालांकि इनमें भी अलग-2 श्रेणियां हैं।

ड्योढी वाले राजवी

1. अनूपगढ़ (पूर्व में छतरगढ़)- बीकानेर के 14वें महाराजा गजसिंह के पुत्र छत्रसिंह के पुत्र दलेलसिंह को 1800 में छतरगढ़ ठिकाना दिया गया व 1914 में उनके वंशज को अनूपगढ़ दिया गया। महाराजा गंगासिंह जी के पिता लालसिंह छतरगढ़ के मालिक थे। बाद में गंगासिंह जी के पुत्र बिजेसिंह जी अनूपगढ़ के मालिक हुए। इनकी उपाधि महाराजा ……… जी बहादुर ऑफ अनूपगढ़ थी।

2. खारड़ा– उपरोक्त दलेलसिंह के पुत्र मदनसिंह के पुत्र खेतसिंह को 1848 में यह ठिकाना दिया गया। इनकी उपाधि महाराजा ……… जी बहादुर थी।

3. रिड़ी– उपरोक्त दलेलसिंह के पुत्र खंगसिंह के पोत्र जगमालसिंह को यह ठिकाना दिया गया। इनकी उपाधि महाराजा …….. जी साहिब थी।

हवेली वाले राजवी ..
बणीसर
नाभासर
आलसर
साईंसर
सलुंडिया
कुरजड़ी
बिलनियासर
धरणोक
ये सभी महाराजा गजसिंह के वंशज थे। इनकी उपाधि ‘राजवी श्री ………. हवेली वाला’ थी।

अन्य राजवी

इनके अलावा महाराज गजसिंह के तीनों भाईयों अमरसिंह, गूदड़सिंह व तारासिंह के वंशज के क्रमशः  फोगां, मेहरी व चंगोई ताजीमी ठिकाने थे। इनकी उपाधि भी राजवी थी।

सोमवार, 22 नवंबर 2021

ऐडो़ हो मजबूत

 महेंद्र सिंह राठौड़ जाखली मधु हाल जयपुर कृत

(मायड़ भाषा राजस्थानी में)

(1)
कट  बढ़  कर  ही  झूजतो,  ऐडो़  हो  मजबूत
पाछे   कोनी   देख   तो,  रण   खेतां   रजपूत

(2)
जद  कद  आई  आफताँ,  बणियौ  नाही   बूत
खड़काँ   सूं   ऐ  बाढ़ताँ,  रण   खेतां   रजपूत

(3)
बेरी    सेना    राँभती,   बाँके    पड़ता     जूत 
क्षत्रियता   ऐ   राखता,  रण    खेतां    रजपूत

(4)
आन    बान   ने   राखियाँ,  रज पूताँ रा  पूत
दोरी   राखी   आबरू,    रण    खेतां   रजपूत

(5)
शमशीर  जबर   चालती,  निकाल   देता  भूत
साफ   करा   हा  सूंपड़ो,  रण   खेतां  रजपूत

(6)
सिर कट कर गिर जावतो,कमधज लडे़  सपूत
लड़  लड़  कर  ही जीतता, रण  खेतां  रजपूत

(7)
राज   पाठ   ने  राखणो,  ही  खांडा  री   धार
क्षत्रिय  तो  मजबूत  हो, जणा  पड़ी   ही  पार

(8)
मरूधरा   रा    राजवी,   उतारता    हा    भार
दुसमण   ऊबो   कांपतो,  बाढ़ह    देता   मार

(9)
एक   नजर   सूं   देखतो,   सेना   लेता    कूंत
खड़गा   जद  खड़गावता, रण  खेतां   रजपूत

(10)
जावो   योद्धा  साहिबा, अरि  ने  काटो   आज
आन  बान  ओ  शान की, राखो  जावो   लाज

(11)
मरूधरा  री   आबरू,  सिर   पर   लागे   ताज
ऊंची   राखो  साहिबा,  मां   धरती  की   लाज

(12)
पेली सब  ने  काट  ज्यों,कर  कर  जोरां  गाज
एक  एक  ने  बाढ़ ज्यों, मोटो  कर  ज्यों काज

(13)
तिलक  है  रंग  लाल सूं, म्हानै  थां   पर   नाज
केसरिया  पग  सोवणी, सिर  पर  सोणो   ताज