शुक्रवार, 12 जून 2020

भाटी राजपूत गेट--पाकिस्तान

भाटी राजपूत गेट--पाकिस्तान 

लाहौर(पंजाब, पाकिस्तान) की उन हरी दीवारों के मध्य केसरिया (राजपूती आन बान शान) और भाटी राजवंश के स्वर्णिम इतिहास को बयां करता यह भाटी दरवाजा|
लाहौर शहर में स्थित यह राजपूत भाटी गेट, मुल्तान पर राज्य स्थापित करने की याद में भाटी शासक द्वारा बनवाया गया। 
यह गेट आज भी लाहौर में राजपूत भाटी गैट नाम से जाना  जाता है |
 भाटी गेट लाहौर के ऐतिहासिक तेरह फाटकों में से एक है।
राजपूत भाटी गेट पुराने शहर की पश्चिमी दीवार पर स्थित है। राजपूत भाटी गेट को ऐतिहासिक रूप से ओल्ड लाहौर में कला और साहित्य के केंद्र के रूप में जाना जाता है। गेट लाहौर के हकीमन बाजार के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में कार्य करता है |भाटी गेट लाहौर जिले की तहसील रवि में केंद्रीय परिषद 29 के रूप में भी कार्य करता है।
 श्री कृष्ण की 90 वी पीढ़ी में जन्मे राजा भाटी लाहौर की राजगद्दी पर विराजे| भाटी का अधिकार गजनी और ह सार तक रहा फिर भटनेर (वर्तमान हनुमानगढ़) नगर बसाया और भटनेर को अपनी राजधानी बनाया| भाटी जी ने 14 युद्धों में विजय प्राप्त की | इसके पश्चात राजा_भाटी के पुत्र राजा भूपत लाहौर की राजगद्दी पर विराजे और भटनेर के किले का निर्माण करवाया| भटनेर के किले के बारे में तैमूर लंग ने अपनी आत्मकथा "तुजुक-ए-तैमूरी" में कहा है कि मैंने इतना मजबूत और इससे सुरक्षित किला पूरे हिंदुस्तान में कहीं नहीं देखा |
इसके समय जब खुरासानी सेना मुल्तान तक पहुंची तो भूपत ने उस पर धावा बोला 3 दिन के घमासान युद्ध में खुरासानी सेना हार गई | भूपत ने यवनों की ऐसी कमर थोड़ी थी कि डेढ़ सौ वर्ष तक भारत की भूमि पर कोई आक्रमण नहीं किया|

सोमवार, 8 जून 2020

Bhakri Fort

भकरि गढ़  मेड़तिया राठौडौ़ का ठिकाना जो औरंगज़ेब और जयपुर की सैना दोनों से अजेय रहा


मेडतिया रघुनाथ रे मुख पर बांकी मुछ भागे हाथी शाह रा करके ऊँची पुंछ
मेडतिया रघुनाथ रासो, लड़कर राखयो मान, जीवत जी गैंग पहुंचा, दियो बावन तोला हाड ,
हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोड ! बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठोड !!
मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
उपरोक्त कहावतों में मेडतिया राठोडों को आत्मोत्सर्ग में अग्रगण्य तथा युद्ध कौशल में प्रवीण मानते हुए मृत्यु को वरण करने के लिए आतुर कहा गया है मेडतिया राठोडों ने शौर्य और बलिदान के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए है ईसका जीता जागता उदाहरण भकरि गाँव कि छोटी सी पहाड़ी पर अपना गर्वीला मस्तक उठाकर खड़े इस छोटे से किले का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है| इस किले के राठौड़ों की मेड़तिया शाखा से है। यहाँ के वीर शासकों ने अपने से बड़ी बड़ी सेनाओं को चुनौतियाँ दी है, जिन्हें पढ़कर लगता है कि उन्हें मरने का कहीं कोई खौफ ही नहीं था, उनके लिए जीवन से ज्यादा अपना स्वाभिमान व जातीय आन थी जिसकी रक्षा के लिए वे बड़े से बड़ा खतरा उठाने के लिए मौत के मुंह में हाथ डालने से भी नहीं हिचकते थे| इस किले व यहाँ के वीर शासकों से ऐसी ही कुछ घटनाएँ आज हम आपके साथ साझा कर रहे है-

जोधपुर के महाराजा अभयसिंह जी ने अपने भाई बखतसिंह द्वारा भड़काए जाने पर बीकानेर पर दो बार हमले किये| दूसरे हमले के वक्त बीकानेर के महाराजा जोरावरसिंह जी जोधपुर की सेना का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं थे अत: उन्होंने जयपुर के राजा जयसिंह जी द्वितीय को मदद के लिए पत्र लिखा| जोधपुर महाराजा अभयसिंहजी महाराजा सवाई जयसिंह जी के दामाद थे अत: जयपुर के सामंत अपने दामाद के खिलाफ बीकानेर को सहायता देने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन सीकर के राव शिवसिंहजी की राय थी कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो जोधपुर की शक्ति बढ़ जाएगी जो राजस्थान के अन्य राज्यों के लिए खतरा हो सकती है अत: शक्ति संतुलन के लिए बीकानेर की सहायता करनी चाहिए|
राव शिवसिंह की राय को मानते हुए आखिर सवाई जयसिंहजी ने बीकानेर की सहायता का निर्णय लिया व अपने दामाद जोधपुर नरेश अभयसिंह को पत्र लिखकर बीकानेर से हटने का आग्रह किया| लेकिन अभयसिंह ने उनका आग्रह यह कहते हुए ठुकरा दिया कि- राठौड़ों के आपसी झगड़े में उन्हें टांग अड़ाने की जरुरत नहीं है|   इस जबाब से क्रुद्ध होकर सवाई जयसिंहजी ने 20 हजारी सेना जोधपुर पर आक्रमण के लिए भेज दी| इसकी खबर मिलते ही अभयसिंहजी को समझ आया कि अब सैनिक टकराव उनके हित में नहीं है अत: वे बीकानेर से घेरा उठाकर जोधपुर आये अपने ससुर महाराजा सवाई जयसिंह जी से अगस्त 1740 ई. में एक संधि की| इस संधि की कई शर्तें राठौड़ों के लिए अपमानजनक थी, जिसे जोधपुर के कई सामंतों ने कछवाहों द्वारा राठौड़ों की नाक काटने की संज्ञा दी|

इस तरह जयपुर की सेना ने बिना युद्ध किये जोधपुर से प्रस्थान किया| मार्ग में जयपुर की सेना ने परबतसर से लगभग 35 किलोमीटर दूर भकरी गांव Bhakri Fort के पास डेरा डाला| उस वक्त भकरी पर ठाकुर केसरीसिंह मेड़तिया राठौड़ का शासन था, ठाकुर केसरीसिंह जातीय स्वाभिमान से ओतप्रोत बड़े गर्वीले वीर थे और उनके किले में स्थित शीतला देवी का उन्हें आशीर्वाद प्राप्त था| इतिहासकारों के अनुसार जब जयपुर की सेना का भकरी के पास पड़ाव था तब नींदड के राव जोरावरसिंघ ने झुंझलाकर कहा कि – “लगता है राठौड़ों का राम निकल गया, सो कछवाहों की तोपें भी खाली ना करवा सके, लगता है मारवाड़ में अब रजपूती नहीं रही|”

यह बात वहां उपस्थित भकरी के किसी व्यक्ति ने सुन ली और उसने जाकर ठाकुर केसरीसिंह को बताया, भकरी Bhakri Fort के इतिहास के अनुसार खुद केसरीसिंह जी उस वक्त उधर से गुजर रहे थे और उन्होंने जोरावरसिंघ की कही बात सुन ली| बस फिर क्या था अपने जातीय स्वाभिमान व आन की रक्षा के लिए ठाकुर केसरीसिंह जी ने अपने कुछ सैनिकों के बल पर ही जयपुर की सेना को युद्ध का निमंत्रण भेज दिया और दूसरे दिन अपने छोटे से किले से जयपुर की सेना पर तोपों से गोले बरसाए| जबाबी कार्यवाही में भकरी किले को काफी नुकसान पहुंचा पर चार दिन तक चले युद्ध व कई सैनिकों के बलिदान के बाद भी जयपुर की विशाल सेना भकरी किले पर कब्ज़ा नहीं कर पाई|

Bhakri Fort भकरी के इतिहास के अनुसार जब जयपुर नरेश को पता चला कि किले में स्थित शीतला माता के आशीर्वाद के कारण किले को जीता नहीं जा सकता तब दैवीय चमत्कार को मानकर जयपुर नरेश ने युद्ध बंद किया और देवी के चरणों में आकर भूल स्वीकार की और एक सोने का छत्र देवी के चरणों में चढ़ाया| इस तरह भकरी के ठाकुर केसरीसिंह जी ने राठौड़ों का जातीय स्वाभिमान व आन बरकरार रखी और नींदड के राव जोरावरसिंघ की बात का जबाब कछवाह सेना की तोपें खाली करवाकर दिया और साबित किया कि मारवाड़ कभी वीरों से खाली नहीं रह सकती | ठाकर केसरीसिंघजी जयपुर की तोपें खाली नहीं करवाते तो मारवाड़ पर सदा के लिए यह कलंक रह जाता। जयपुर सेना का गर्व भंग पर ठाकुर केसरीसिंह जी ने मारवाड़ की नाक बचाली और यश कमाया, उनके यश को कवियों ने इस तरह शब्द दिए-

केहरिया करनाळ, जे नह जुड़तौ जयसाह सूं।

आ मोटी अवगाळ, रहती सिर मारू धरा।।

Bhakri Fort भकरी इतिहास के अनुसार वि.स. 1687 में औरंगजेब गुजरात विजय से लौट रहा था, तब भकरी के ठाकुर दाणीदास जी ने उसे भी युद्ध का निमंत्रण देकर रोका. तब दोनों के मध्य पांच दिन युद्ध चला. आखिर पांच दिन चले युद्ध में कई सैनिकों को खोने के बाद औरंगजेब को पता चला कि किले में स्थित शीतला माता के चमत्कार के कारण वह इस छोटे से किले को अधिकार में नहीं कर पाया. तब औरंगजेब ने देवी के चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम किया और एक स्वर्ण छत्र मातेश्वरी की सेवा में अर्पण किया| अपने से कई बड़ी बड़ी सेनाओं से लोहा लेने वाले भकरी किले पर आज भी आक्रान्ताओं की तोपों के निशान देखे जा सकते है आक्रान्ता आये और चले गए पर भकरी किला आज भी अपना गर्वीला मस्तक ऊपर उठाये शान से खड़ा है |

राठौड़ वंश की खापें

राठौड़ वंश की खापें

1. इडरिया राठौड़ 
2. हटुण्डिया राठौड़ 
3. बाढेल (बाढेर) राठौड़ 
4. बाजी राठौड़ 
5. खेड़ेचा राठौड़ 
6. धुहडि़या राठौड़ 
7. धांधल राठौड़ 
8. चाचक राठौड़ 
9. हरखावत राठौड़ 
10. जोलू राठौड़ 
11. सिंघल राठौड़ 
12. उहड़ राठौड़ 
13. मूलू राठौड़ 
14. बरजोर राठौड़ 
15. जोरावत राठौड़ 
16. रैकवार राठौड़ 
17. बागडि़या राठौड़ 
18. छप्पनिया राठौड़ 
19. आसल राठौड़ 
20. खोपसा राठौड़ 
21. सिरवी राठौड़ 
22. पीथड़ राठौड़ 
23. कोटेचा राठौड़ 
24. बहड़ राठौड़ 
25. ऊनड़ राठौड़ 
26. फिटक राठौड़ 
27. सुण्डा राठौड़ 
28. महीपालोत राठौड़ 
29. शिवराजोत राठौड़ 
30. डांगी राठौड़ 
31. मोहणोत राठौड़ 
32. मापावत राठौड़ 
33. लूका राठौड़ 
34. राजक राठौड़ 
35. विक्रमायत राठौड़ 
36. भोवोत राठौड़ 
37. बांदर राठौड़ 
38. ऊडा राठौड़ 
39. खोखर राठौड़ 
40. सिंहमकलोत राठौड़ 
41. बीठवासा राठौड़ 
42. सलखावत राठौड़ 
43. जैतमालोत राठौड़ 
44. जुजाणिया राठौड़ 
45. राड़धड़ा राठौड़ 
46. महेचा राठौड़ (महेचा राठौड़ की चार उप शाखाएँ है।) 
47. पोकरण राठौड़ 
48. बाडमेरा राठौड़ 
49. कोटडि़या राठौड़ 
50. खाबडिया राठौड़ 
51. गोगादेव राठौड़ 
52. देवराजोत राठौड़ 
53. चाड़ देवोत राठौड़ 
54. जैसिंधवे राठौड़ 
55. सातावत राठौड़ 
56. भीमावत राठौड़ 
57. अरड़कमलोत राठौड़ 
58. रणधीरोत राठौड़ 
59. अर्जुनोत राठौड़ 
60. कानावत राठौड़ 
61. पूनावत राठौड़ 
62. जैतावत राठौड़ (जैतावत राठौड़ की तीन उप शाखाएँ है।) 
63. कालावत राठौड़ 
64. भादावत राठौड़ 
65. कूँपावत राठौड़ (कूँपावत राठौड़ की 7 उप शाखाएँ है।)

66. बीदावत राठौड़ ( बीदावत राठौड़ की 22 उप शाखाएँ है।)

67. उदावत राठौड़ 
68. बनीरोत राठौड़ (बनीरोत राठौड़ की 11 उप शाखाएँ है।)

69. कांधल राठौड़ ( कांधल राठौड़ की चार उप शाखाएँ है।) 
70. चांपावत राठौड़ (चांपावत राठौड़ की 15 उप शाखाएँ है।)

71. मण्डलावत राठौड़ (मण्डलावत राठौड़ की 13 उप शाखाएँ है।) 
72. मेड़तिया राठौड़ (मेड़तिया राठौड़ की 26 उप शाखाएँ है।) 
73. जौधा राठौड़ (जौधा राठौड़ की 45 उप शाखाएँ है।) 
74. बीका राठौड़ (बीका राठौड़ की 26 उप शाखाएँ है।) 

महेचा राठौड़ की चार उप शाखाएँ 

1. पातावत महेचा 
2. कालावत महेचा 
3. दूदावत महेचा 
4. उगा महेचा 

जैतावत राठौड़ की तीन उप शाखाएँ 

1. पिरथी राजोत जैतावत 
2. आसकरनोत जैतावत 
3. भोपतोत जैतावत 

कूँपावत राठौड़ की 7 उप शाखाएँ

1. महेशदासोत कूंपावत 
2. ईश्वरदासोत कूंपावत 
3. माणण्डणोत कूंपावत 
4. जोध सिंगोत कूंपावत 
5. महासिंगोत कूंपावत 
6. उदयसिंगोत कूंपावत 
7. तिलोक सिंगोत कूंपावत 

बीदावत राठौड़ की 22 उप शाखाएँ

1. केशवदासोत बीदावत 
2. सावलदासोत बीदावत 
3. धनावत बीदावत 
4. सीहावत बीदावत 
5. दयालदासोत बीदावत 
6. घेनावत बीदावत 
7. मदनावत बीदावत 
8. खंगारोत बीदावत 
9. हरावत बीदावत 
10. भीवराजोत बीदावत 
11. बैरसलोत बीदावत 
12. डँूगरसिंगोत बीदावत 
13. भोजराज बीदावत 
14. रासावत बीदावत 
15. उदयकरणोत बीदावत 
16. जालपदासोत बीदावत 
17. किशनावत बीदावत 
18. रामदासोत बीदावत 
19. गोपाल दासोत 
20. पृथ्वीराजोत बीदावत 
21. मनोहरदासोत बीदावत 
22. तेजसिंहोत बीदावत 

बनीरोत राठौड़ की 11 उप शाखाएँ

1. मेघराजोत बनीरोत 
2. मेकरणोत बनीरोत 
3. अचलदासोत बनीरोत 
4. सूरजसिंहोत बनीरोत 
5. जयमलोत बनीरोत 
6. प्रतापसिंहोत बनीरोत 
7. भोजरोत बनीरोत 
8. चत्र सालोत बनीरोत 
9. नथमलोत बनीरोत 
10. धीरसिंगोत बनीरोत 
11. हरिसिंगोत बनीरोत 

कांधल राठौड़ की चार उप शाखाएँ 

1. रावरोत कांधल 
2. सांइदासोत कांधल 
3. पूर्णमलोत कांधल 
4. परवतोत कांधल 

चांपावत राठौड़ की 15 उप शाखाएँ 

1. संगतसिंहोत चांपावत 
2. रामसिंहोत चांपावत 
3. जगमलोत चांपावत 
4. गोयन्द दासोत चांपावत 
5. केसोदासोत चांपावत 
6. रायसिंहोत चांपावत 
7. रायमलोत चांपावत 
8. विठलदासोत चांपावत 
9. बलोत चांपावत 
10. हरभाणोत चांपावत 
11. भोपतोत चांपावत 
12. खेत सिंहोत चांपावत 
13. हरिदासोत चांपावत 
14. आईदानोत चांपावत 
15. किणाल दासोत चांपावत 

मण्डलावत राठौड़ की 13 उप शाखाएँ

1. भाखरोत बाला राठौड़ 
2. पाताजी राठौड़ 
3. रूपावत राठौड़ 
4. करणोत राठौड़ 
5. माण्डणोत राठौड़ 
6. नाथोत राठौड़ 
7. सांडावत राठौड़ 
8. बेरावत राठौड़ 
9. अड़वाल राठौड़ 
10. खेतसिंहोत राठौड़ 
11. लाखावत राठौड़ 
12. डूंगरोत राठौड़ 
13. भोजराजोत राठौड़ 

मेड़तिया राठौड़ की 26 उप शाखाएँ

1. जयमलोत मेड़तिया 
2. सुरतानोत मेड़तिया 
3. केशव दासोत मेड़तिया 
4. अखैसिंहोत मेड़तिया 
5. अमरसिंहोत मेड़तिया 
6. गोयन्ददासोत मेड़तिया 
7. रघुनाथ सिंहोत मेड़तिया 
8. श्यामसिंहोत मेड़तिया 
9. माधोसिंहोत मेड़तिया 
10. कल्याण दासोत मेड़तिया 
11. बिशन दासोत मेड़तिया 
12. रामदासोत मेड़तिया 
13. बिठलदासोत मेड़तिया 
14. मुकन्द दासोत मेड़तिया 
15. नारायण दासोत मेड़तिया 
16. द्वारकादासोत मेड़तिया 
17. हरिदासोत मेड़तिया 
18. शार्दूलोत मेड़तिया 
19. अनोतसिंहोत मेड़तिया 
20. ईशर दासोत मेड़तिया 
21. जगमलोत मेड़तिया 
22. चांदावत मेड़तिया 
23. प्रतापसिंहोत मेड़तिया 
24. गोपीनाथोत मेड़तिया 
25. मांडणोत मेड़तिया 
26. रायसालोत मेड़तिया 

जौधा राठौड़ की 45 उप शाखाएँ

1. बरसिंगोत जौधा 
2. रामावत जौधा 
3. भारमलोत जौधा 
4. शिवराजोत जौधा 
5. रायपालोत जौधा 
6. करमसोत जौधा 
7. बणीवीरोत जौधा 
8. खंगारोत जौधा 
9. नरावत जौधा 
10. सांगावत जौधा 
11. प्रतापदासोत जौधा 
12. देवीदासोत जौधा 
13. सिखावत जौधा 
14. नापावत जौधा 
15. बाघावत जौधा 
16. प्रताप सिंहोत जौधा 
17. गंगावत जौधा 
18. किशनावत जौधा 
19. रामोत जौधा 
20. के सादोसोत जौधा 
21. चन्द्रसेणोत जौधा 
22. रत्नसिंहोत जौधा 
23. महेश दासोत जौधा 
24. भोजराजोत जौधा 
25. अभैराजोत जौधा 
26. केसरी सिंहोत जौधा 
27. बिहारी दासोत जौधा 
28. कमरसेनोत जौधा 
29. भानोत जौधा 
30. डंूगरोत जौधा 
31. गोयन्द दासोत जौधा 
32. जयत सिंहोत जौधा 
33. माधो दासोत जौधा 
34. सकत सिंहोत जौधा 
35. किशन सिंहोत जौधा 
36. नरहर दासोत जौधा 
37. गोपाल दासोत जौधा 
38. जगनाथोत जौधा 
39. रत्न सिंगोत जौधा 
40. कल्याणदासोत जौधा 
41. फतेहसिंगोत जौधा 
42. जैतसिंहोत जौधा 
43. रतनोत जौधा 
44. अमरसिंहोत जौधा 
45. आन्नदसिगोत जौधा 

बीका राठौड़ की 26 उप शाखाएँ

1. घुड़सिगोत बीका 
2. राजसिंगोत बीका 
3. मेघराजोत बीका 
4. केलण बीका 
5. अमरावत बीका 
6. बीकस बीका 
7. रतनसिंहोत बीका 
8. प्रतापसिंहोत बीका 
9. नारणोत बीका 
10. बलभद्रोत नारणोत बीका 
11. भोपतोत बीका 
12. जैमलोत बीका 
13. तेजसिंहोत बीका 
14. सूरजमलोत बीका 
15. करमसिंहोत बीका 
16. नीबावत बीका 
17. भीमराजोत बीका 
18. बाघावत बीका 
19. माधोदासोत बीका 
20. मालदेवोत बीका 
21. श्रृगोंत बीका 
22. गोपालदासोत बीका 
23. पृथ्वीराजोत बीका 
24. किशनहोत बीका 
25. अमरसिंहोत बीका 
26. राजवी बीका