मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

स्वांगिया/भादरिया राय माता

वंश_कुलदेवी_दर्शन (स्वांगिया/भादरिया राय माता)

यदुवंशी_भाटियों_की_कुलदेवी_स्वांगीया_जी

देवी स्वांगिया का इतिहास बहुत पुराना है। भगवती आवड़ के पूर्वज सिन्ध में निवास करने वाले सउवा शाखा के चारण थे जो गायें पालते और घी व घोडों का व्यापार करते थे। मांड प्रदेश (जैसलमेर) के चेलक गांव में चेला नामक एक चारण आकर रहे। उसके वंश में मामड़िया जी चारण हुए जिसने संतान प्राप्ति के लिए सात बार हिंगलाज माता धाम की यात्रा की तब विक्रमी सम्वत् 808 में सात कन्याओं के रूप में देवी हिंगलाज ने मामड़िया के घर में जन्म लिया। इनमें बडी कन्या का नाम आवड़ रखा गया। आवड़ की अन्य बहिनों के नाम आशी, सेसी, गेहली, हुली, रूपां और लांगदे था। अकाल पडने पर ये कन्याएँ अपने माता-पिता के साथ सिन्ध में जाकर हाकड़ा नदी पाकिस्तान के किनारे पर रहीं। पहले इन कन्याओं ने सूत कातने का कर्म किया। इसलिए ये कल्याणी देवी कहलाई। फिर आवड़ देवी की पावन यात्रा और जनकल्याण की अद्भुत घटनाओं के साथ ही क्रमशः सात मन्दिरों का निर्माण हुआ और समग्र मांड प्रदेश में आवड माता के प्रति लोगों की आस्था बढती गई|
देवी का प्रतीक रुप स्वांग(भाला) व सुगन चिड़ी है। ये प्रतीक जैसलमेंर के राज्य चिन्ह में विद्यमान है। आजादी से पहले तक जैसलमेर के शासक दशहरा, दीपावली के दिन अपने घोड़ों को सजाते समय चांदी या सोने की चिड़िया बनाकर शक्ति के प्रतीक को बैठा कर पूजा करते थे| जैसलमेर के सिक्कों पट्टो-परवानो, स्टांपो, तोरणो आदि पर शुगन चिड़ी की आकृतियों का अंकन किया जाता था |

स्वांगिया या आवड़ माता के ये सात मन्दिर निम्नलिखित हैं –

 (1) तनोट राय मन्दिर:- 
राव तनु ने 8 वी शताब्दी में निर्माण करवाया।
इस स्थान पर मोहम्मद बिन कासिम, हुसैनशाह पठान, लंगाहो, वराहों,यवनों जोइयों व खीचियों ने कई आक्रमण किए। तनोट के शासक  विजयराव ने  देवी के प्रताप से ईरान के शाह व खुरासान के शाह को पराजित कर कुल 22 युद्ध जीते। 
सिंध के मुसलमान ने जब विजयराव पर आक्रमण किया तो देवी से प्रार्थना की कि अगर विजयी हुआ तो अपना मस्तक देवी को अर्पित करेगा। युद्ध में देवी ने विजयराव की मदद की और राव की विजय हुई। इस पर वह मंदिर में जाकर तलवार से अपना मस्तक काटने लगा तो देवी प्रकट हो गई और बोले कि मैनै तेरी पूजा मान ली और अपनी हाथ की सोने की चूड़ उतार🎂 कर दी। यही विजयराव इतिहास में #विजयराव_चूंडाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1965 ई व 1971 ई में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। सभी युद्धों में देवी के प्रताप से विजय मिली। 1965 ई के बाद BSF द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
जहाँ 1965 ई में पाकिस्तान के गिराए 300 बम बेअसर हुए थे। देवी की कृपा से पाकिस्तान के सैनिक रात के अंधेरे में आपस में लड़.कर मारे गए। इस समय पाकिस्तान ने 150 किमी तक कब्जा कर लिया था।
तनोट देवी को #थार_की_वैष्णों_देवी भी कहा जाता है। BSF की एक यूनिट का नाम तनोट वारियर्स है। 

 (2) घंटियाली राय मंदिरः– तनोट से 5 KM की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में है। वीरधवल नामक पुजारी को नवरात्र के दिनों में देवी ने शेरनी के रूप में दर्शन दिए जिसके गले में घंटी बंधी थी। 1965 ई में पाकिस्तानी सैनिकों ने इस मंदिर की मूर्तियों को खंडित किया था। जिन्हें देवी ने मृत्यु दंड दिया।

 (3) श्री देगराय मन्दिर - जैसलमेर के पूर्व में देगराय जलाशय पर स्थित है। महारावल अखैसिह ने इस नवीन मंदिर का निर्माण करवाया था। देवियों ने महिष के रुप में विचरण कर रहे दैत्य को मारकर उसी के सिर का देग बनाकर उससे रक्तपान किया।
यहाँ रात को नगाड़ों व घुघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है। कभी कभी दीपक स्वतः ही प्रज्ज्वलित हो जाता है।

 (4) भादरियाराय का मन्दिर:- इसका निर्माण महारावल गजसिंह जी ने #बासणपी_की_लडाई जीतने के पश्चात  करवाया और अपनी रानी व मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री रुपकंवर के साथ जाकर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई।
महारावल शालीवाहन ने देवी को चांदी का भव्य सिंहासन अर्पित किया। सिंहासन के ऊपर जैसलमेर का राज्यचिन्ह उत्कीर्ण है जिसे महारावल शालीवाहन सिंह ने भेंट चढा़या।  फिर जवाहरसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। 
शक्तियो ने वहादरिया ग्वाले को परचा दिया । वहादरिया के निवेदन करने पर देवी ने यहीं निवास किया। इसी कारण वाहदरिया भादरिया नाम से प्रसिद्ध हुआ। राव तणु ने यहाँ पहुंच कर देवियों के दर्शन किए। इस स्थान को आधुनिक रूप संत हरिवंश राय निर्मल ने दिया ।यहाँ पर विशाल गौशाला व एशिया का सबसे बडा़ भूमिगत पुस्तकालय स्थित है। यहाँ पर एक विश्वविद्यालय बनना भी प्रस्तावित है। महाराज ने शिक्षा, पर्यावरण, नशामुक्ति, चिकित्सा एवमं स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम किया । कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, बाल विवाह का सदा विरोध किया। यहाँ का शक्ति और सरस्वती का अनूठा संगम अन्यत्र दुर्लभ है।

(5) श्री तेमड़ेराय मंदिर :- जैसलमेर के दक्षिण में गरलाउणे पहाड़ की कंदरा में बना हुआ है। इसका निर्माण महारावल केहर ने करवाया था। केहर ने मंदिर की पहाड़ी के नीचे एक सरोवर का निर्माण करवाया तथा सरोवर के निकट दो परसाले भी बनवाई । यहां देवी की पूजा छछुन्दरी के रुप में होती है। चारण इसे द्वितीय हिंगलाज मानते है। महारावल अमरसिंह ने तेमडेराय पहाड़ की पाज बंधाई,मंदिर के सामने बुर्ज, पगोथिये व उस पर बंगला बनवाया। महारावल जसवंतसिंह ने परसाल व बुर्ज का निर्माण करवाया व प्रतिष्ठा करवाई। महारावल जवाहरसिंह ने इसके निज मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। यहाँ शक्तियों ने तेमड़ा नामक दैत्य का वध किया था। बीकानेर महाराजा रायसिंह जी ने अपनी रानी व जैसलमेर की राजकुमारी गंगाकुमारी के साथ यहां की यात्रा की और देवी ने नागिणियों के रुप में दर्शन दिए तो रायसिंह ने मंदिर के सामने खंभो वाला देवल बनाया।
करणी माता भी तेमडेराय की परम भक्त थी। इसलिए कुछ लोग करणी जी को स्वांगीया का अवतार भी मानते है।

(6) स्वांगिया माता गजरूप सागर मन्दिर :- यह गजरुप सागर तालाब के पास समतल पहाडी पर निर्मित मंदिर. जिसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था। वे प्रातःकाल उठते ही किले से देवी के दर्शन करते है।

(7) श्री काले डूंगरराय मन्दिर:-जैसलमेर से 25किमी दूर इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारावल जवाहरसिंह ने निर्माण कराया।
काले रंग के पहाड़ पर स्थित है। सिंध का मुसलमान इन कन्याओं से बलात विवाह करना चाहता था। सिंध से लौटने समय देवी ने हाकड़ा से मार्ग मांगा परंतु हाकडा के मार्ग नहीं देने पर  देवी के चमत्कार से हाकडा़ नदी का पानी सुख गया। इसके पश्चात शक्तियां कुछ समय यहां भी रही थी।

 जय माँ कुलदेवी

जठै यादवों राज जोरे जमाया।
वठै जा करी जोगणी छत्र छाया।।

जय माँ स्वांगीया 🚩🙏

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

कछवाह क्षत्रिय वंश - शेखावत

कछवाह क्षत्रिय वंश - शेखावत

शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ़,नवलगढ़, मंडावा,मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास,दूंद्लोद,अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिध है वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतास गढ़ और रोहताश से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वाहन के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली महात्मा ने राजा को वरदान दिया था कि जब तक तेरे वंशज अपने नाम के आगे पाल शब्द लगाते रहेंगे यहाँ से उनका राज्य नष्ट नहीं होगा सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रशिध दुर्ग का निर्माण कराया नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार) हुवा

जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रशिध नायक है उसका विवाह पुन्गल कि राजकुमारी मार्वणी के साथ हुवा था, ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परमप्रतापी महाराजाधिराज बज्र्दामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी मंगल राज दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए,किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद सोढ्देव का पुत्र दुल्हेराय हुवा जिनका विवाह dhundhad के मौरां के चौहान राजा की पुत्री से हुवा था
दौसा पर अधिकार करने के बाद दुल्हेराय ने मांची,bhandarej खोह और झोट्वाडा पर विजय पाकर सर्वप्रथम इस प्रदेश में कछवाह राज्य की नीवं डाली मांची में इन्होने अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनवाया वि.सं. 1093 में दुल्हेराय का देहांत हुवा दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव पिता के उतराधिकारी हुए जिन्होंने आमेर के सुसावत जाति के मीणों का पराभव कर आमेर जीत लिया और अपनी राजधानी मांची से आमेर ले आये 

काकिलदेव के बाद हणुदेव व जान्हड़देव आमेर के राजा बने जान्हड़देव के पुत्र पजवनराय हुए जो महँ योधा व सम्राट प्रथ्वीराज के सम्बन्धी व सेनापति थे संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने,राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओं का निकास हुवा उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखाजी का जनम वि.सं. 1490 में हुवा वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये 

जिनमे अनेकानेक वीर योधा,कला प्रेमी व स्वतंत्रता सेनानी हुए शेखावत वंश जहाँ राजा रायसल जी,राव शिव सिंह जी, शार्दुल सिंह जी, भोजराज जी,सुजान सिंह आदि वीरों ने स्वतंत्र शेखावत राज्यों की स्थापना की वहीं बठोथ, पटोदा के ठाकुर डूंगर सिंह, जवाहर सिंह शेखावत ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चालू कर शेखावाटी में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजा दिया था शेखावत वंश के ही श्री भैरों सिंह जी भारत के उप राष्ट्रपति बने |

शेखावत वंश की शाखाएँ

* टकनॆत शॆखावत‍‍‍‍- शेखा जी के ज्येष्ठ पुत्र दुर्गा जी के वंशज टकनॆत शॆखावत‍‍‍‍ कहलाये !खोह,पिपराली,गुंगारा आदि इनके ठिकाने थे जिनके लिए यह दोहा प्रशिध है
खोह खंडेला सास्सी गुन्गारो ग्वालेर !
अलखा जी के राज में पिपराली आमेर !!
टकनॆत शॆखावत‍‍‍‍ शेखावटी में त्यावली,तिहाया,ठेडी,मकरवासी,बारवा ,खंदेलसर,बाजोर व चुरू जिले में जसरासर,पोटी,इन्द्रपुरा,खारिया,बड्वासी,बिपर आदि गावों में निवास करते है !

* रतनावत शेखावत -महाराव शेखाजी के दुसरे पुत्र रतना जी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाये इनका स्वामित्व बैराठ के पास प्रागपुर व पावठा पर था !हरियाणा के सतनाली के पास का इलाका रतनावातों का चालीसा कहा जाता है
*मिलकपुरिया शेखावत -शेखा जी के पुत्र आभाजी,पुरन्जी,अचलजी के वंशज ग्राम मिलकपुर में रहने के कारण मिलकपुरिया शेखावत कहलाये इनके गावं बाढा की ढाणी, पलथाना ,सिश्याँ,देव गावं,दोरादास,कोलिडा,नारी,व श्री गंगानगर के पास मेघसर है !

* खेज्डोलिया शेखावत -शेखा जी के पुत्र रिदमल जी वंशज खेजडोली गावं में बसने के कारण खेज्डोलिया शेखावत कहलाये !आलसर,भोजासर छोटा,भूमा छोटा,बेरी,पबाना,किरडोली,बिरमी,रोलसाहब्सर,गोविन्दपुरा,रोरू बड़ी,जोख,धोद,रोयल आदि इनके गावं है !
*बाघावत शेखावत - शेखाजी के पुत्र भारमल जी के बड़े पुत्र बाघा जी वंशज बाघावत शेखावत कहलाते है ! इनके गावं जेई पहाड़ी,ढाकास,सेनसर,गरडवा,बिजोली,राजपर,प्रिथिसर,खंडवा,रोल आदि है !

*सातलपोता शेखावत -शेखाजी के पुत्र कुम्भाजी के वंशज सातलपोता शेखावत कहलाते है !

*रायमलोत शेखावत -शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमल जी के वंशज रायमलोत शेखावत कहलाते है
इनकी भी कई शाखाएं व प्रशाखाएँ है जो इस प्रकार है !
-तेजसी के शेखावत -रायमल जी पुत्र तेज सिंह के वंशज तेजसी के शेखावत कहलाते है ये अलवर
जिले के नारायणपुर,गाड़ी मामुर और बान्सुर के परगने में के और गावौं में आबाद है !

-सहसमल्जी का शेखावत -- रायमल जी के पुत्र सहसमल जी के वंशज सहसमल जी का
शेखावत कहलाते है !इनकी जागीर में सांईवाड़ थी !
-जगमाल जी का शेखावत -जगमाल जी रायमलोत के वंशज जगमालजी का शेखावत कहलाते
है !इनकी १२ गावों की जागीर हमीरपुर थी जहाँ ये आबाद है

-सुजावत शेखावत -सूजा रायमलोत के पुत्र सुजावत शेखावत कहलाये !सुजाजी रायमल जी के
ज्यैष्ठ पुत्र थे जो अमरसर के राजा बने !
-लुनावत शेखावत :-लुन्करण जी सुजावत के वंशज लुन्करण जी का शेखावत कहलाते है इन्हें लुनावत शेखावत भी कहते है,इनकी भी कई शाखाएं है !
उग्रसेन जी का शेखावत ,अचल्दास का शेखावत,सावलदास जी का शेखावत,मनोहर दासोत शेखावत आदि !

-लुनावत शेखावत :-लुन्करण जी सुजावत के वंशज लुन्करण जी का शेखावत कहलाते है इन्हें लुनावत शेखावत भी कहते है,इनकी भी कई शाखाएं है !
उग्रसेन जी का शेखावत ,अचल्दास का शेखावत,सावलदास जी का शेखावत,मनोहर दासोत शेखावत आदि !

रायसलोत शेखावत :- लाम्याँ की छोटीसी जागीर जागीर से खंडेला व रेवासा का स्वतंत्र राज्य
स्थापित करने वाले राजा रायसल दरबारी के वंशज रायसलोत शेखावत कहलाये !राजा रायसल के १२
पुत्रों में से सात प्रशाखाओं का विकास हुवा जो इस प्रकार है !
A- लाड्खानी :- राजा रायसल जी के जेस्ठ पुत्र लाल सिंह जी के वंशज लाड्खानी कहलाते है
दान्तारामगढ़ के पास ये कई गावों में आबाद है यह क्षेत्र माधो मंडल के नाम से भी प्रशिध है
पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी इसी वंश से है !
B- रावजी का शेखावत :- राजा रायसल जी के पुत्र तिर्मल जी के वंशज रावजी का शेखावत कहलाते है !
इनका राज्य सीकर,फतेहपुर,लछमनगढ़ आदि पर था !
C- ताजखानी शेखावत :- राजा रायसल जी के पुत्र तेजसिंह के वंशज कहलाते है इनके गावं चावंङिया,
भोदेसर ,छाजुसर आदि है
D. परसरामजी का शेखावत :- राजा रायसल जी के पुत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते है !
E. हरिरामजी का शेखावत :- हरिरामजी रायसलोत के वंशज हरिरामजी का शेखावत कहलाये !

. गिरधर जी का शेखावत :- राजा गिरधर दास राजा रायसलजी के बाद खंडेला के राजा बने
इनके वंशज गिरधर जी का शेखावत कहलाये ,जागीर समाप्ति से पहले खंडेला,रानोली,खूड,दांता आदि ठिकाने इनके आधीन थे !
G. भोजराज जी का शेखावत :- राजा रायसल के पुत्र और उदयपुरवाटी के स्वामी भोजराज के वंशज भोजराज जी का शेखावत कहलाते है ये भी दो उपशाखाओं के नाम से जाने जाते है,
१-शार्दुल सिंह का शेखावत ,२-सलेदी सिंह का शेखावत
*गोपाल जी का शेखावत - गोपालजी सुजावत के वंशज गोपालजी का शेखावत कहलाते है 
* भेरू जी का शेखावत - भेरू जी सुजावत के वंशज भेरू जी का शेखावत कहलाते है
* चांदापोता शेखावत - चांदाजी सुजावत के वंशज के वंशज चांदापोता शेखावत कहलाये.