गुरुवार, 15 अगस्त 2019

कीरत कज कुरबान किया

कीरत कज कुरबान
किया--
        
आदू कुल़ रीत रही आ अनुपम,
भू जिणरी भल साख भरै।
महि मेवाड़ मरट रा मंडण,
सौदा भूषण जात सिरै।।1

दिल सूं हार द्वारका दिसिया,
वाट हमीरै राण वरी।
माता वचन बारू मन मोटै,
केलपुरै री मदत करी।।2

चढियो ले पमंग पांचसौ चारण,
सीर सनातन भीर सही।
वीरत पाण राखिया बारू,
मेदपाट रा थाट मही।।3

दिल सनमान सिसोदै दीधो,
दूथी निजपण थाप दियो।
हाटक गयँद साथ में हैवर,
कूरब कव रो अथग कियो।।4

अड़सी सुतन आंतरी अरपी,
साथै ग्यारा गांम सही।
बारू नीत ऊजल़ी वीदग,
राजावां  सम रीत रही।।5

हेतव वरत भांजवा हाडै,
कुबुद्धि लालै वाद कियो।
व्रतधारी बारू उण वेल़ा,
दूथी निज सिर काट दियो।।6

बारू तणै वंश में बेखो,
जैसो केसव मरद जयो।
पातल रै जुपिया पख जाहर,
अंजस सुणियां सरब अयो।।7

हल़दीघाट हींसिया हैवर,
रजवट पातल उठै रखी।
कट पड़िया जैसो नै केसव,
ईहग वीरत रखण अखी।।8

ज्यांरो जस जाणै सह जगती,
कवियण वरणै बात कसी।
सँभल़ी जिकां गरब सूं सांप्रत,
चित आजादी जोत चसी।।9

बारू तणी ऐल़ में बेखो,
हेक भल़ै नरपाल़ हुवो।
जुपियो पखै मरद जगदीसर,
वीरत वाल़ी वाट बुवो।।10

ओरँग चढ आयो उदियापुर,
राजड़ सूं रण रचण रसा।
हलचल़ हुई सिसोदां हिरदै,
कव वरणै वरणाव कसा।।11

राणो जदन सुरक्षित राजड़,
गढ तजनै वन भोम गयो।
अणडर वीर पोल़ रै आडो,
अनड़ लड़ण नरपाल़ अयो।।12

कट पड़ियो कुटका हुय कवियण,
निडर पोल़ सूं हट्यो नहीं।
मातभोम मानी सम माता,
मंडी नरपत मरण मही।।13

पसर्यो सुजस जैण रो पुहमी,
सकवि हरस्या सँभल़ सको।
हुइयो नाय दूसरो हेतव,
नरिये रै समरूप नको।।14

किसनो हुवो ऐण कुल़ कवियण,
मुर- सुत जिणरै शेर मनो।
केसर किशो जोरसी कहिये,
धर नित लाटण धिनो धिनो।।15

केसर हुवो केसरी समवड़,
दाकल गूंजी दिसो दसां।
धुरपण मर्द धीरत रो धारी,
कीरत पसरी कितै किसां।।16

अड़ियो नर आजादी कारण,
सँकिया गोरा जदै सको।
दूठां जद दारूण दुख दीधो,
पात हुवो दुख पाय पको।।18

त्यागी पुरस त्यागियो तन-सुख,
दिल-सुख फेरूं त्याग दियो।
त्याग दियो परिवार तिकै दिन,
कटण देश कज मतो कियो।।19

तन- मन- धन परिवार तीखपण,
दुख जन हरवा छोड दिया।
केहरिया किसनेस- तणा कव, 
कीरत कज कुरबान किया।। 20

वतन हितैषी भमियो बेखो,
भाखर थल़ियां किती भल़ै।
थिरता रखी अंकै नीं थाको,
गरल़ भूतपत जेम गल़ै।।21

जेल़ा़ं  भुगत कष्ट सह झूल्यो,
भूल्यो नाहीं गुमर भलां।
वतनपरस्ती पाल़ वडै नर,
गाढ धार इल़ थपी गलां।।22

हिवड़ै लेस लायो न हीणप
रेणव तण-तण ऊंच रखी।
पच थाका गोरा बल़ पूरै,
दाव दीनता नाय दखी।।23

मोटो मिनख हिंद रो मोभी,
निमख इये में झूठ नहीं।
किसना-तणा ताहरी कीरत,
कवियण प्रणमे गीध कही।।24
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

सोमवार, 15 जुलाई 2019

Lt Gen Sagat Singh Rathore

Lt Gen Sagat Singh Rathore , Padma bhushan, PVSM  is known as hero of Goa, Chinese killer at Nathu la & liberator of Bangla Desh .
He was born in village Kusumdesar Dist Churu Rajasthan on 14 Jul 1919& died on 26 sep 2001.
He joined  as a Naik in Bikaner Ganga risala in 1938 & was later commissioned as 2 Lt in same unit in1941& saw action in Sindh , Iran & Iraq. In 1950, he joined 3 GR &later, commanded 3/3 GR . In sep 1961 he was appointed as cdr 50 para bde .On 19 Dec 1961 , he raised Indian Tricolour at Panjim & liberated it from Portuguese occupation. He took over 17 Mtn Div& took firm action against Chinese intrusion at Nathu la in sep 1967.Later he was posted as cdr 101 com zone.ln Dec 1970 he was promoted to Lt Gen & took over 1V corps .He launched offensive from eastern side .His famous Aero bridge at Mighty Meghna river  demoralised Pak forces & forced Gen Niazi to surrender at Dacca to Gen JS Arora  Goc in C Eastern Army. He was awarded  Padma bhusan
He was a real tiger & a legend....long live Gen Sagat singh....Jai ho🇮🇳
A  beautiful memorial of Gen Sagat singh has been dedicated to nation on 13 Jul 2019  at Jaipur Mil Stn by Army cdr SWC  to commemorate his birth centenary .

बुधवार, 8 मई 2019

राव शेखाजी

*शेखावत वंश व् शेखावाटी के प्रवतक, वीरवर क्षत्रिय शिरोमणि पूजनीय महाराव शेखाजी के 531वे निर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन
राव शेखाजी
राजस्थान में शूर-वीरों की कभी कोई कमी नहीं रही।
यही कारण था कि राजस्थान के इतिहास के जनक जेम्स कर्नल टॉड को यह कहना पड़ा कि इस प्रदेश का शायद ही कोई ग्राम हो जहाँ एक भी वीर नहीं हुआ हो। बात सही भी लगती है।

इस अध्याय में जिन वीर शेखा का वृतांत ले रहे हैं वो किसी बड़े राज्य के स्वामी नहीं बल्कि उनका एक बहुत ही छोटे ठिकाने में जन्म हुआ था।
आज भले ही वह क्षेत्र एक बड़े नाम 'शेखावाटी' से जाना जाता है।
जिसमें राजस्थान को दो जिले सीकर व झुंझनु आते हैं।
यह शेखावाटी इन्ही वीर शेखा के नाम पर है।

शेखा का सम्बन्ध यूं तो जयपुर राजघराने के कछवाह वंश से है लेकिन उनके पिता राव मोकल के पास मात्र 24 गाँवों की जागीर थी।
राव मोकल के घर आंगन में शेखा का जन्म सम्वत् 1490 में हुआ था।
इनके जन्म की भी अपनी एक रोचक कहानी है जो इस प्रकार है।

राव मोकल बहुत ही धार्मिक वृति के पुरुष थे।
मोकल के वृद्धावस्था तक कोई सन्तान नहीं हुई फिर भी संतोषी प्रवृति के होने के कारण किसी से कोई शिकायत नहीं थी।
बस, साधु-संतों की सेवा-सुश्रा में लगे रहते थे।
मोकल को एक दिन किसी महात्मा ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी और उसी के अनुसार महाराव मोकल वृंदावन गये।
वहां उन्हें गऊ सेवा में एक विशिष्ट आनन्द की अनुभूति हुई।
यहीं उन्हें किसी ने गोपीनाथजी की भक्ति करने के लिए कहा। मोकल अपनी वृद्धावस्था में गऊ सेवा और भगवान गोपीनाथजी की सेवा-आराधना में ऐसे लीन हुए कि उन्हें दिन कहाँ बीतता, पता ही नहीं लगता।

मोकल जी की
निरबान रानी की कोख से बच्चे ने जन्म लिया। 
शेखा निश्चित ही प्रतापी पुरुष थे। इन्होंने अपने पिता की 24 गाँवों की छोटी सी जागीर को 360 गाँवों की एक महत्वपूर्ण जागीर का रूप दे दिया।
सच तो यह है कि शेखा किसी जागीर के मालिक नहीं थे बल्कि वे एक स्वतंत्र रियासत के मुखिया हो गये थे।

दूरदृष्टा-राव शेखा ने अपने जीवन काल में करीब बावन युद्ध लड़े। इनमें कुछ तो अपने ही भाइयों आम्बेर के कछवाहों के साथ भी लड़े।
शेखा की दिन दूनी-रात चौगूनी सफलता को नहीं पचा पाए, जिसके कारण उनके न चाहते हुए भी उन्हें संघर्ष को मजबूर होना पड़ा था।
सौभाग्य से उन्हें हर युद्ध में सफलता प्राप्त हुई।
एक बार आम्बेर नरेश ने नाराज होकर बरवाड़ा पर आक्रमण कर दिया तो राव शेखा ने इस क्षेत्र में रहने वाले पन्नी पठानों को अपनी तरफ करके उस आक्रमण को भी विफल कर दिया।

इस सफलता के पीछे राव शेखा की दूरदृष्टि थी।

मर्यादा पुरुष-राजपूती संस्कृति के अनुरूप शेखा एक मर्यादाशील पुरुष थे तथा अन्य से भी मर्यादोचित व्यवहार की अपेक्षा रखते थे, फिर वे चाहे कोई भी हो।
जीवन पर्यन्त उन्होंने मर्यादाओं की रक्षा की।
इतिहास गवाह है कि एक स्त्री की मान मर्यादा के पालनार्थ उन्होंने अपने ही ससुराल झूथरी के गौड़ों से झगड़ा मोल लिया जिसके परिणामस्वरूप घाटवे का युद्ध हुआ और उसमें उन्हें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी थी।

घटना कुछ इस प्रकार से थी। झूथरी ठिकाने का राव मोलराज गौड़ अहंकारी स्वभाव का था। उसने अपने गाँव के पास से जाने वाले रास्ते पर एक तालाब खुदवाना आरम्भ किया और यह नियम बनाया कि रास्ते से गुजरने वाले प्रत्येक राहगीर को एक तगारी मिट्टी खोदकर बाहर की ओर डालनी होगी।

एक कछवाह राजपूत अपनी पत्नी के साथ गुजर रहा था। पत्नी रथ में थी, वह स्वयं घोड़े पर था, साथ में एक आदमी और था। इन सबको भी मिट्टी डालने को विवश किया। कछवाह राजपूत व उसके साथ के आदमी ने तो मिट्टी डालदी परन्तु वहाँ के लोग स्त्री से भी मिट्टी डलवाने के लिए जबरदस्ती रथ से उतारने
लगे तो पति ने समझाया-बुझाया पर जब नहीं माने और बदसूलकी पर उतर आये तो उसने गौड़ों के एक आदमी को तलवार से काट दिया।
इस पर वहाँ एकत्रित गौड़ों ने भी स्त्री के पति को मौत के घाट उतार दिया।
पत्नी ने अपने आदमी का अन्तिम संस्कार करने के बाद वहाँ से एक मुट्ठी मिट्टी अपनी साड़ी के पलू में बांधकर लाई और सारी घटना से शेखा को अवगत कराया।
शेखा ने सारा वृतांत जानकर गौड़ों को तुरन्त दंड देने का मन बना लिया और झूथरी पर चढ़ाई करदी।
जमकर संघर्ष हुआ और गौड़ सरदार का सिर काटकर ले आये और उस विधवा महिला के पास भिजवा दिया।
बाद में शेखा ने वह सिर अपने अमरसर गढ़ के मुख्य द्वार भी टांगा ताकि कभी और कोई ऐसी हरकत नहीं करें।

न्याय तो हो गया लेकिन गौड़ों ने इसे अपना घोर अपमान समझा और पूरी शक्ति के साथ घाटवा के मैदान में शेखा को ललकारा। शेखा ने भी उनकी चुनौती को स्वीकारा।
दोनों ओर से घमासान मचा। शेखा को 16 घाव लगे लेकिन वे निरन्तर लड़ते रहे।
गौड उनके आगे नहीं ठहर सके किंतु इस युद्ध के बाद बैशाख शुक्ला 3 (आखा तीज) संवत् 1545 में वे अपनी राजपूती मान-मर्यादा की बेदी पर स्वर्ग सिधार गये।

संक्षेप में शेखा निडर एवं आत्म स्वाभिमानी थे।
शौर्य व साहस की प्रतिमूर्ति थे, धर्म-कर्म और पुण्य के मार्ग के अनुयायी थे।
सम्भवत: शेखा के इन्हीं पुण्यात्मकता के कारण उनके नाम से प्रसिद्ध शेखावटी अचंल आज विश्वस्तर पर नाम को रोशन कर रहा।
शेखा के बाद आठ पुत्रों की संतानें शेखावत कहलाई और इन्हीं में से एक खांप ने देश को उपराष्ट्रपति (भैरोसिंह शेखावत) दिया तो एक खांप की पुत्रवधु देश की राष्ट्रपति बनी।

ऐसे ही विश्व का सबसे धनी व्यक्ति भी इसी शेखावटी क्षेत्र की देन है। अत: स्वयं शेखा अपने समय में राजपूताने के एक ख्यातिनाम वीर पुरुष थे और आज भी उनका नाम सर्वत्र सम्मानीय है। इतिहासकार सर यदूनाथ सरकार ने भी लिखा है की जयपुर राजवंश में शेखावत सबसे बहादुर शाखा है।

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शनिवार, 4 मई 2019

बीकानेर-बखांण

बीकानेर-बखांण

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

        दूहा
दे सुमती सगती दुरस,
पुनि उगती कँठ पूर।
जगती वरणां जँगल़ जस,
सती जती बड सूर।।1

जांगल़धर धिन जोगणी,
थपियो हाथां थाट।
बैठो बीको वरदधर,
पह जिकण धिन पाट।।2
कमधज बीकै वीर बड,
झूड़ किया अरि जेर।
जिण थपियो गढ जाहरां,
बंकै बीकानेर।।3

बीज शुकल़ बैसाग री,
पनरै साल पैंताल़।
सूर धरा सौभागगढ,
बीक थप्यो विरदाल़।।4
गहरा जल़ धोरा घणा,
विरछ कँटाल़ा बेख।
रतन अमोलख इण रसा,
नर-नारी धिन नेक।।5
   छंद -त्रोटक
इल़ जंगल़ मंगल़ देश अठै।
जुड़ दंगल़ जीपिय सूर जठै।
थपियो करनी कर भीर थही।
सद बीक नरेसर पाट सही।।1

जगजामण आप देसांण जठै।
उजल़ी धर थान जहान उठै।
गहरा जल़ धूंधल़ धोर घणा।
तर बोरड़ कैरड़ जाल़ तणा।।2

हरियाल़ उनाल़ नुं जोम हरै।
भुइ फाबत हूंस उरां सभरै।
चर तोरड़ रीझ पता चरणी।
धिन धिन्न हु जांगल़ री धरणी।।3

देशणोक जु राय खल़ां दरणी।
वरदायक गल्ल कथा वरणी।
हरणी हर संकट हेर हथां।
करणी नित भीर सताब कतां।।4

नागणेचिय थांन जहांन नमै।
रँज भाखर ऊपर मात रमै।
चित साकर दूध रसाल़ चढै।
पड़ पाव कवेसर छंद पढै।।5

कमलापत धांम अमांम कियो।
दत राज राजेसर नाथ दियो।
लख लोग सदा जस लाभ लहै।
कट पातक ऐम पुरांण कहै।।6

दिस कोडमदेसर भैर दिपै।
थल़ थांन रूखाल़िय आप थपै।
मगरै कपिलायत धांम मही।
सुज मोचण पाप अनाप सही।।7

कर कांधल त्यागिय वीर कहो।
उण भांजिय दोयण धीर अहो।
पसरी धर सीम असीम  पुणां।
सुज भाव लगाव उछाव सुणां।।8

हद बात धणी धर लूण हुवो।
वसु थापण वीदग बात बुवो।
धिन खाग बल़ां धिब माडधरा।
खित सौभिय भूप उदार खरा।।9

कमरू दल़ आय अटक्क कियो।
लग दोयण घेर आसेर लियो।
जद जैतल वीर सधीर जठै।
वणियो अगवाण अबीह बठै।।10

भिड़ियो रतवाह नत्रीठ भलो।
हिव मुग्गल फौज परै हमलो।
करवाल़ बल़ां जिण जेर किया।
डर काबल पाव सु छोड दिया।।11

कव सूजड़ रोहड़ क्रीत करी।
सच ऊफण सांभल़ बात सरी।
फब जीत धजा असमान फरै।
सह हिंदुस्तान कथा समरै।।12

दुनि दांनिय कर्मसी साख दखां।
उण सूंपिय आस नुं पूत अखां।
जिण होड नही धर और जुवो।
हर चक्क सिरोमण नांम हुवो।।13

दत कोड़ नरेसर राय दिया।
कव खूब करीबँध भूप किया।
सुण शंकर बारठ साख सची।
रट कायब रोहड़ जेण रची।।14

महि पातल रै हलचल्ल मची।
कछु होय अधीर  नुं ताक कची।
पिथुराज हुवो गहलोत पखै।
रजपूत चित्तौड़  अनम्म रखै।।15

भगतां पिथुराज धरा ज भलो।
पकड्यो जिण माधव हाथ पलो।
कितरा रच कायब राच किया।
दतचित्त प्रभू दिस ध्यान दिया।।16

अमरेस हुवा अजरेल इसा।
जिण भांगिय आरबखान जिसा।
हद हारण खेत सुहेत हुवो।
वरियांम रणां सुरलोक बुवो।।17

मुगलां दलपत्त नहीं मुड़ियो।
जस जांगल़ काज जुधां जुड़ियो।
वर मोत लिवी हठियाल़ वसू।
जग राख गयो नरपाल़ जसू।।18

पत जांगल़ भूप करन्न पुणां।
सज तोड़िय ओरंग नाव सुणां।
कमधेस नवांखँड नांम
कियो।
लड़ जांगल़ पात'सा व्रिद लियो।।19

सजियो हिंदवांण रि भीर सही।
घट भांगण रोद सु सार गही।
अवरंग अरोड़ सूं युं अड़ियो।
जिणरो जस कायब में जड़ियो।।20

अवनी नरपाल़ अनै इसड़ा।
जग शारद सेव करी जिसड़ा।
भुइ साख भरै ग्रँथगार भली।
चरचा धिन भारत देश चली।।21

जग सूर हुवा पदमेस जिसा।
रिम दोटण खाटण क्रीत रसा।
छल़ बांधव शेर सधीर छिड़्यो।
बल़ गंजण रोद सक्रोध बड़्यो।।22

भड़ पैंड सदा अणबीह भर्या।
डग जेण भरी तुरकांण डर्या।
करवाल़ निसांणिय लालकिले।
हव आजतकै जिण गल्ल हलै।।23

दिल एक दूहै नवलाख दिया।
लख जीभ जिकै जस लूट लिया।
अवनाड़ उदार समान अखां।
पह नीर चढाविय चार पखां।।24

वरसै थल बादल़ रीझ वल़ै।
पड़ नीर अधीर झड़ां प्रगल़ै।
भल सांमण मास सरां भरिया।
हद खेत किसांन हुवै हरिया।।25

मधुरा सुर मोर झिंगोर मही।
सदभावण धोर सिंगार सही।
वरदाल़िय बाजर ऊंच बगी।
लटियाल़िय जायर आभ लगी।।26

वसुधा सुरियंद धणी बणियो।
हथ माथ  दुकाल तणो हणियो।
मिसरी सम नीर मतीर मणा।
तिरपत्त मना थल़ देश तणा।27

धन धांन सधीणाय देख धरा।
हिव जोय जठीनुय दीख हरा।
घण गाजत आभ धुनी गहरा।
अड़डै जल धार निसि-अहरा।।28

सुरलोक समोवड भोम सही।
मनु आय गयो मघवान मही।
इण रुत्त फिरै फणियाल़ अही।
निजरां अवनी थल़ जोड़ नहीं।।
29

बसु तीजणियां बणियै -ठणियै।
उतरी अछरां मनु ऐ अणियै।
हद पैंड हस्तीय ज्यूं हलवै।
घण गीत उगीर मधु गलवै।।30

नर-नार उरां छल़ छंद नहीं।
सुधभाव लगाव रखाव सही।
कवि मन्न अनंद सु छंद कयो।
जय हो धर जंगल देश जयो।।31
       छप्पय
जय हो जांगल़ देश,
जेथ राजै जगजामण।
सांमण मास सदैव,
सको मन मांय सुहामण।
रूपनाथ जिण रसा,
मुखां रटियो माहेसर।
जेथ तप्यो जसनाथ,
जांगल़ू गुरु जंभेसर।
साह सती  सँत  सूरा सकव,
लाट सुजस सारां लियो। 
बीक री धरा धिन धिन बसू,
कवियण गिरधर जस  कियो।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 1 मई 2019

राव टोडरमल (उदयपुरवाटी)

"राव टोडरमल"(उदयपुरवाटी)

राजा रायसल दरबारी खंडेला के 12 पुत्रों को जागीर में अलग अलग ठिकाने मिले। और यही से शेखावतों की विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ। इन्ही के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली। इन्ही के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत" कहलाते हैं। भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुरवाटी (शेखावाटी)के स्वामी बने,टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास विख्यात है,टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझार सिंह थे,झुंझार सिंह  वीर प्रतापी निडर कुशल योद्धा थे, उस समय "केड" गाँव पर नवाब का शासन था,नवाब की बढती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए| परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थे। इसलिए केड पर अधिकार नहीं कर पाए|कहते हैं टोडरमल जी मृत्यु शय्या पर थे लेकिन मन्न में एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी,इसके चलते उनके पैर सीधे नहीं हो रहे थे। वीर पुत्र झुंझार सिंह ने अपने पिता से इसका कारण पुछा|टोडरमल जी ने कहा "बेटा पैर सीधे कैसे करू,इनके केड अड़ रही है"(अर्थात केड पर अधिकार किये बिना मुझे शांति नहीं मिलेगी)| पिता की अंतिम इच्छा सुनकर वीर क्षत्रिय पुत्र भला चुप कैसे बैठ सकता था?  झुंझार सिंह अपने नाम के अनुरूप वीर योद्धा,पित्रभक्त थे !उन्होंने तुरंत केड पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में उन्होंने केड को बुरी तरह तहस नहस कर दिया। जलते हुए केड की लपटों के उठते धुएं को देखकर टोडरमल जी को परमशांति का अनुभव हुआ,और उन्होंने स्वर्गलोक का रुख किया। इन्ही झुंझार सिंह ने अपनी प्रिय ठकुरानी गौड़जी के नाम पर "गुढ़ा गौड़जी का" बसाया| तत्कालीन समय में इस क्षेत्र में डाकुओं का आतंक था, झुंझार सिंह ने उनके आतंक से इस क्षेत्र को मुक्त कराया| किसी कवि का ये दोहा आज भी उस वीर पुरुष की यशोगाथा को बखूबी बयां कर रहा है

*डूंगर बांको है गुडहो,रन बांको झुंझार!*
*एक अली के कारण, मारया पंच हजार!!*

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

रिड़मल राठौड़

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता....
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया

!कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर सेतो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की...

"बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।"राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय हैकैसे मानेगा !अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा थाये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगालेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूररहिये।

माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों ...?यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए...?इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे औरअपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये

हिन्दू भाइयो ये सच्चीघटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन.
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट शेयर जरूर करें,,  जय  माँ भवानी