शनिवार, 21 जून 2025

मारवाड़ नरेश मंडोर के शासक राव रणमल(रिङमल) राठौड़ व वंशज

मारवाड़ नरेश मंडोर के शासक राव रणमल(रिङमल) राठौड़ व वंशज
  
राव रिङमल के 28 पुत्र हुए एवं राठौङ कुल की 22  शाखाएं चली सभी 28 पुत्र राव पदवी कहलाए
 मारवाड़ नरेश राव रणमल भारी भरकम शरीर के बहुत ही खतरनाक शूरवीर क्षत्रिय बलिष्ठ वीर पुरुष योद्धा थे।

राव रणमल ने कई क्षेत्र जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। राव रणमल की 8 रानियों व पुत्रों के कारण उनका परिवार काफी बड़ा था, जिससे काफी वंश वृद्धि हुई।

राव रणमल के पुत्रों का वर्णन :- 
राव रणमल के पुत्रों से राठौड़ वंश की शाखाओं का जितना प्रसार हुआ है, उतना किसी अन्य राठौड़ शासक के पुत्रों से नहीं हुआ।

राव रणमल के पुत्रों की संख्या कहीं 24, तो कहीं 26 बताई गई है। मुझे विभिन्न ख्यातों पूर्व इतिहासों के शोध से राव रणमल के कुल 28 पुत्रों के नाम मिले हैं, जो इस तरह हैं :-

(1) राव कुँवर अखैराज :- ये राव रणमल के ज्येष्ठ पुत्र थे। अखैराज की मुख्य जागीर बगड़ी थी। अखैराज जी के वंश से राठौड़ों की कुल 5 शाखाएं चलीं। अखैराज के पुत्र मेहराज, पचायण हुए। मेहराज ईनके पुत्र कूंपा जैता हुए। बड़े ही वीर पुरुष थे। (जैतावत कुंपावत भंडावत कलावत राणावत)

ईनका व उनके वंशजों का इतिहास गौरवशाली रहा। कूंपा के वंशज कूंपावत कहलाए। कूंपावत राठौड़ों के आसोप सहित कुल 54 ठिकाने हैं। पचायण के पुत्र जैता हुए, जिनके वंशज जैतावत कहलाए।

जैतावत राठौड़ों के कुल 13 ठिकाने हैं। पचायण के पुत्र भदा जी से भदावत शाखा चली। भदावत राठौड़ों के भदावतों का गुड़ा,रावर सहित कुल 4 ठिकाने हैं।

अखैराज जी के पुत्र रावल जी हुए, रावल जी के पुत्र जोगीदास जी हुए, जोगीदास जी के पुत्र कला जी हुए। कला जी से कलावत शाखा चली। अखैराज जी के पुत्र राणाजी से राणावत शाखा चली। इस शाखा का स्थान पालड़ी है।

(2) राव कुंवर जोधा :- ये राव रणमल के देहांत के बाद मारवाड़ के अगले शासक बने। इनके वंशजों के लाडनूं, भाद्राजूण आदि कुल 152 ठिकाने हैं। राव जोधा ने ही जोधपुर का ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किला एवं नगर जौधाणा,जोधपुर की स्थापना की थी।

(3) कुँवर राव कांधल :- इनके वंशज कांधलोत कहलाए। इनके वंशज अधिकतर बीकानेर की तरफ हैं। रावतसर, बीसासर, बिलमु, सिकरोड़ी आदि 70 से अधिक कांधलोत राठौड़ों के ठिकाने हैं।

(4) कुँवर चांपा :- मंडोर से 15 कोस पूर्व में स्थित कापरड़ा नामक गाँव इन्होंने ही बसाया। इनके वंशज चांपावत कहलाए।
चांपावत राठौड़ों की बल्लू दासोत, आईदानोत, विट्ठलदासोत आदि कुल 15 उप-शाखाएं हैं। इनके पोकरण, हरसोलाव आऊवा, पीलवा, कापरड़ा, रनसीगांव, दासपा, सिणली, रोहट, आदि बड़े ठिकाना सहित कुल 109 ठिकाने हैं।
वीर बल्लू चंपावत जिनमें मरणोपरांत दौ बार वीरता की घटना है व 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को धूल चटाने वाले महान क्रांतिकारी ठाकुर कुशालसिंह जी इन्हीं चांपा जी के वंशज थे।

(5) कुँवर लखा/लाखा :- इनके वंशज लखावत कहलाए, यह जोधा के पुत्र बीका के साथ गए थे जो बीकानेर में रहे। इनके अधिकतर ठिकाने बीकानेर में ही हैं।

(6) कुँवर भाखर :- इनके वंशज भाखरोत राठौड़ कहलाए। भाखर के पुत्र बाला हुए, जिनके वंशज बालावत कहलाए। इनके मोकलसर आदि कुल 40 ठिकाने हैं।

(7) कुँवर डूंगरसी :- इनके वंशज डूंगरोत कहलाए, जो भाद्राजूण में रहे। बाद में भाद्राजूण पर जोधा राठौड़ों का अधिकार हुआ।

(8) कुँवर जैतमाल :- इनके पुत्र भोजराज हुए, जिनके वंशज भोजराजोत कहलाए। भोजराज को राव जोधा ने पालासणी गांव दिया। इस तालाब के किनारे जोगी का आसन है, जिसका निर्माण भोजराज ने करवाया था।

(9) कुँवर मंडला :- इनके वंशज मंडलावत कहलाए। मंडला को राव जोधा ने सारूंडा गांव दिया। चंंरकडां, भँवरानी समेत इनके कुल 9 ठिकाने हैं।

(10) कुँवर राव पाता :- इनके वंशज पातावत कहलाए। आऊ, चोटिला, करनू, चाडी बरजानसर, समेत इनके कुल 15 ठिकाने हैं।

(11) कुँवर राव रूपा :- इनके वंशज रूपावत कहलाए। राव जोधा ने चाडी पुनासर मानेवड़ा का पट्ठा रूपा को दिया था भेलू ऊदट उदासर,मूंजासर, चाखु,भेड़ आदि ठिकाने रूपावत राठौड़ों के हैं। रूपावत वीर पुरुष राव भोजराज भेलू, ठा.सरदार सिंह पल्ली एवं क्षत्रिय संस्कार की ऐतिहासिक घटना चिमटी नमक के कारण शीश कटाने वाले खेत सिंह चाङी जैसे महान वीर हुए हैं इनके कुल 21 ठिकाने हैं।

(12) कुँवर राव करण :- इनके वंशज करणोत कहलाए। इन्हीं के वंश में मारवाड़ केसरी राष्ट्रवीर शिरोमणि वीर दुर्गादास राठौड़ ने जन्म लिया था। राव जोधा ने करण को सालवा का पट्टा जागीर में दिया।
एक ख्यात में करणोत के मूडी, कनाणो, समदड़ी, बाघावास, झंवर, सुरपुरा, कीटनोद, चांदसमा, मुड़ाडो, जाजोलाई आदि कुल 18 ठिकाने होना लिखा है।

(13) कुँवर राव साडा/सांडा :- इनके वंशज साडावत कहलाए।

 (14) कुँवर राव मांडण :- इनके वंशज मांडणोत कहलाए। पहले मांडण को गुडो, मोगड़ो, झंवर आदि गांव जागीर में मिले थे। एक ख्यात में मांडणोत राठौड़ों के अलाय आदि कुल 7 ठिकाने होना लिखा है।

(15) कुँवर राव नाथा :- इनके वंशज नाथावत/नाथोत कहलाए। बीकानेर में नाथूसर आदि गांवों में इनका निवास है। उक्त गांव नाथा जी ने ही बसाया।

(16) कुँवर राव ऊदा :- इनके वंशज ऊदावत कहलाए। बीकानेर में ऊदासर गांव बसाया बीकानेर के काफी गांवों में इनका निवास है।
 (17) कुँवर राव वैरा :- इनके वंशज वेरावत कहलाए। पहले इनका ठिकाना दूदोड था।

(18) कुँवर राव हापा :- इनके वंशज हापावत कहलाए।

 (19) कुँवर राव अड़वाल :- इनके वंशज अड़वालोत कहलाए। इनके वंशजों का निवास मेड़ता के गांव आछीजाई में रहा।

(20) कुँवर सावर/सायर :- इनका देहांत धणला के तालाब में डूबने से हुआ। इनका देहांत बाल्यावस्था में ही हो गया था।

(21) कुँवर जगमाल :- इनके वंशज जगमालोत कहलाए। जगमाल के पुत्र खेतसी हुए। खेतसी से खेतसीगौत शाखा चली। खेतसी के वंशजों का निवास नेतड़ां नामक गाँव में था।

(22) कुँवर सगता/शक्ता :- वीरगति को बालक अवस्था में ही

(23) कुँवर गोइंद :- इनका देहांत हो गया था। 

(24) कुँवर करमचंद :- इनसे करमचंदोत शाखा चली। करमचंद का देहांत शीतला (चेचक बीमारी) से हुआ।

(25) कुँवर सूडा :- इनको भी वंशज का इतिहास गुमनाम

(26) कुँवर तेजसी :- इनसे तेजसीगौत शाखा चली। अभी गुमनाम है

(27) कुँवर बनवीर :- इनसे बनवीरोत शाखा चली। इनका भी खास पता नहीं ह

(28) कुँवर गोपा इनका भी इतिहास गुमनाम है

नोट- राव रिङमल के इन 28 पुत्रौ की शाखों की कहानी, निवास या निवास स्थान की जानकारी एवं इतिहास हो तो जरूर बताएं ताकि इतिहास शुद्धिकरण हो जाए

हूँ रण लड्यो

जो लोग क्षत्रियों को अत्याचारी ठाकुर और निर्दयी सामन्त के रूप में प्रचारित कर रहे है वो जरा इन पंक्तियों को पढ़कर जबाब देवे।

हूँ रण लड्यो हूँ अडिग खड्यो, लोगां री लाज बचावण न।
मानस र खातर हाजिर रहतो, मौत सूं आँख मिलावण न।।

लोग काह्व ठुकराई करतो, हूँ सोतो नागां रा बाड़ा म।
कुटम्ब कबीलो खोयो सारो, रण खून टपकतो नाड़ा म।।

तलवारों रो वार झेलतो, थारा ही घर बसावण न।
चौसठ फोर मौत नाचती, मौत री सजा सुणावण न।।

कुण सामन्ती कयाँ रा ठाकर, म्हे तो चौकीदार रह्या।
खुद न छोटा बता हमेशा, थे गढ़ रा गदार रह्या।।

सौ सौ घावां धड़ झेल्या, पूत सागेड़ा रण मेल्या।
थारा घर रा दिवला ताणी, म्हे तो रातां रण खेल्या।।

छोड्या पूत पालण सोता, छोड़्या म्हे दरबारां न।
रोती छोड़ मरवण न म्हे तो, धारी ही तरवारां न।।

कदे भेष में साँगा र तो, कदे मैं पिरथिराज बण्यो।
कदे प्रताप भेक बणा र, मेवाड़ी री कुख जण्यो।।

मैं ही तो बो शेखों जिण न धर्म रो पाठ पढ़ायो हो।
धर्म धरा अर धेनु ताणी, खुद रो शीश चढायो हो।।

कियां भूलग्या हठ हाडा रो, क्यों भुल्या बाँ रणधीरां न।
थारी खातर रण मं कटता, कियाँ भुल्या थे बाँ वीरां न।।

न ब धर्म जात में बंटता, ना ही कुटम कबिलां में।
पिढ्यां खुद री रण में मेली, राखण खुशियां थारा कबीला मे।।

बण राणोजी महल म्हे छोड़्या, थारो मान बचावण न।
फण थे के बाकी छोड़ी, दोख्यां रो साथ निभावण न।।

रुगा चुग्गा दे दे पाळया, ब ही फण फैलायो है।
ना जोगा फुँकार है मारी, विष ओ घोळ पिलाय