मंगलवार, 26 अगस्त 2025

जैता जी बगड़ी

जैता जी, पंचायण (अखैराजोत) के पुत्र थे।
ये बगड़ी के ठाकुर थे।
मण्डोर पर राव जोधा का अधिकार होने पर इनके बड़े भाई अखैराज ने तत्काल अपने अँगूठे को तलवार से चीरकर रुधिर से जोधाजी के मस्तक पर राज-तिलक लगा दिया। इस पर जोधाजी ने भी मेवाड़ वालों से छीन कर बगड़ी का अधिकार उसे वापस सौंप देने की प्रतिज्ञा की।

उसी दिन से मारवाड़ में यह प्रथा चली है कि जब कभी किसी महाराजा का स्वर्गवास हो जाता है, तब बगड़ी जब्त करने की आज्ञा दे दी जाती है,
और नए महाराजा के गद्दी पर बैठने के समय बगड़ी ठाकुर अपना अँगूठा चीरकर रुधिर से तिलक करता है, बगडी वापस दे दी जाती है। जैताजी के वंशज जैतावत ‘‘राठौड़” कहलाते हैं।

जैताजी महान् योद्धा थे। ये राव गाँगा जोधपुर की सेवा में थे। कुँपाजी को जैताजी ने ही राव गाँगा की तरफ मिलाया था। जैता जी ने भी कँपा जी के साथ रहते हुए अनेक युद्धों में भाग लिया था। वि.सं. १५८६ (ई.स. १५२९) में राव गाँगा के काका शेखा (पीपाड़) ने नागौर के शासक दौलत खाँ की सहायता से जोधपुर पर आक्रमण किया।

दोनों सेनाओं में सेवकी’ नामक स्थान पर युद्ध हुआ। शेखा रणखेत रहा और दौलत खाँ प्राण बचाकर रणक्षेत्र से भाग गया। राव गाँगा की सेना में जैताजी ने भाग लिया था । राव गाँगा के बाद राव मालदेव मारवाड़ के शासक बने ।

राव मालदेव ने विशाल साम्राज्य स्थापित किया उसमें जैताजी का विशेष योगदान रहा। उन्होंने मालदेव के प्रत्येक सैनिक अभियान में भाग लिया । राव वीरमदेव मेड़तिया से अजमेर और मेड़ता में हुए युद्धों में जैताजी ने अद्भुत पराक्रम दिखाकर मालदेव को विजय दिलाई। वीरमदेव डीडवाना चला गया,जैताजी और कँपा जी ने डीडवाना से वीरमदेव का कब्जा हटवाया।

राणा उदयसिंह को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाने में भी जैता जी का योगदान रहा।
वणवीर से हुए युद्ध में राव मालदेव ने उदयसिंह की सहायता के लिए एक सेना भेजी थी। उस सेना में अखैराज सोनगरा, कँपाजी राठौड़ और जैताजी राठौड़ सम्मिलित थे। माहोली (मावली) में हुए युद्ध में उदयसिंह की विजय हुई और वह मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। वि.सं. १५९८ (ई.स. १५४१) में राव मालदेव ने बीकानेर पर चढ़ाई की।

राव जैतसी बीकानेर रणखेत रहा, राव मालदेव की विजय हुए। इस युद्ध में जैताजी और कँपाजी ने विशेष वीरता दिखाई। शेरशाह सूरी आगरे से एक विशाल सेना के साथ राव मालदेव पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ। इसकी सूचना जैताजी और कँपाजी को डीडवाणा में मिली।

इन्होंने शेरशाह की मारवाड़ पर चढ़ाई की सूचना राव मालदेव को दी। अखैराज सोनगरा, कँपाजी और जैताजी अजमेर पहुँचे। सुमेल-गिररी (जैतारण पाली) में दोनों सेनाओं ने ब्यूह रचना की। लगभग एक महीने तक सेनाएँ आमनेसामने रही, लेकिन शेरशाह की हिम्मत नहीं हुई कि वह मारवाड़ी वीरों पर आक्रमण कर दे। रोज छुट-पुट लड़ाई होती थी जिनमें पठानों का नुकसान अधिक होता था।

राठौड़ वीरों की शौर्य गाथाएँ सुनकर शेरशाह हताश होकर लौटने का निश्चय करने लगा। यह देख वीरम ने उसे बहुत समझाया। जब इस पर भी वह सम्मुख युद्ध में लोहा लेने की हिम्मत न कर सका, तब अन्त में वीरम ने उसे यह भय दिखाया कि यदि आप इस प्रकार घबराकर लौटेंगे, तो रावजी की सेना पीठ पर आक्रमण कर आपके बल को आसानी से नष्ट कर डालेगी।

परन्तु जब इतने पर भी शेरशाह सहमत न हुआ, तब वीरम ने कपट जाल रचा।
ऐसे जाली पत्र मालदेव के शिविर में भिजवा दिए, जिन्हें देखकर राव मालदेव को अपने प्रमुख-प्रमुख सरदारों पर शंका हुई कि ये लोग शत्रु से मिल गए हैं।

राव मालदेव की शंका का निवारण करने के लिए जैताजी, कँपाजी और अखैराज सोनगरा ने रावजी को खूब समझाया कि ये फरमान जाली हैं। मालदेव रात में ही वहाँ से जोधपुर कूच कर गया। युद्ध से पहले विशाल सेना एकत्र हुई थी, वह रावजी के मैदान से हटते ही छिन्न-भिन्न हो गई।

जैताजी, कुँ पाजी और अखैराज ने अपने ऊपर लगे स्वामिद्रोही के कलंक को हटाने के लिए शेरशाह से युद्ध करने की ठानी। अपने बारह हजार सैनिकों को लेकर रात में ही युद्ध के लिए रवाना हुए।

परन्तु दुर्भाग्य से, अधिक अंधकार के कारण सैनिक रास्ता-भटक गए। सुबह जल्दी आक्रमण के समय केवल पाँच-छः हजार योद्धा ही साथ थे। शेरशाह की अस्सी हजार सेना से राजपूत योद्धा भिड़ गए।

घमासान लड़ाई हुई। युद्ध में ऐसा प्रलय मचाया कि शत्रु सेना हारकर भागने की तैयारी करने लगी, लेकिन उसी समय शेरशाह का एक सरदार जलाल खाँ अपने सुरक्षित दस्ते के साथ मैदान में आ गया। राजपूतों को चारों ओर से घेर लिया।

राजपूत घोड़ों से उतरकर युद्ध में प्रलय मचाने लगे। लेकिन शत्रू सेना अपार थी। एक-एक राजपूत वीरगति को पहुँचा। जैताजी अपने साथियों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में लगभग पाँच हजार राजपूत रणखेत रहे। वि.सं. १६०० पोस सुदि ११ को (ई.स. १५४४ जनवरी ५) सुमेल-गिररी की रक्तरंजित लड़ाई समाप्त हुई।

जैताजी ने जिस स्वामिभक्ति का परिचय दिया है वह मारवाड़ के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इस बलिदान से पूरे मारवाड़ में शोक की लहर छा गई। मालदेव को जब यह खबर मिली तो वह बड़ा दुखी हुआ कि मैंने अपने सरदारों पर शंका की।
परन्तु समय निकल चुका था पछतांने के अलावा कोई चारा नहीं था।

जैताजी के वंशज जैतावत राठौड़ कहलाते हैं। इनका बगड़ी (पाली) में मुख्य ठिकाना हैं।

“गिररी हन्दै गौरवे, सज भारत दोहू सूर।
जैतो-कुँ पो जोरवर, स्रग नै ड़ा घर दूर।

शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

कोडमदे अर सादै(शार्दूल) भाटी


 मरणो एकण बार
राजस्थान रै मध्यकालीन वीर मिनखां अर मनस्विनी महिलावां री बातां सुणां तो मन मोद ,श्रद्धा अर संवेदनावां सूं सराबोर हुयां बिनां नीं रैय सकै।

ऐड़ी ई एक कथा  है कोडमदे अर सादै(शार्दूल) भाटी री।
कोडमदे छापर-द्रोणपुर रै राणै माणकराव मोहिल री बेटी ही।

ओ द्रोणपुर उवो इज है जिणनै पांडवां-कौरवां रा गुरु द्रोणाचार्य आपरै नाम सूं बसायो।

मोहिल चहुवांण राजपूतां री चौबीस  शाखावां मांय सूं एक शाखा रो नाम जिका आपरै पूर्वज 'मोहिल' रै नाम माथै हाली।

इणी शाखा में माणकराव मोहिल हुयो।जिणरै घरै कोडमदे रो जलम हुयो।कोडमदे रूप, लावण्य अर शील रो त्रिवेणी संगम ही।मतलब अनद्य सुंदरी।
राजकुमारी ही सो हाथ रै छालै ज्यूं पल़ी अर मोटी हुई।

राजकुमारी कोडमदे मोटी हुई जणै उणरै माईतां नै इणरै जोड़ वर जोवण री चिंता हुई।उण दिनां राजपूतां में फूठरै वर नै इती वरीयता नीं दिरीजती जिती  एक वीर पुरुष नै दिरीजती।इणी कारण उणरी सगाई मंडोवर रै राजकुमार अड़कमल चूंडावत सागै करी दी गई।

कोडमदे जितरी रूप री लंझा ही अडकमल उतरो इज कठरूप।एक'र चौमासै रो बगत हो।बादल़ चहुंवल़ा गैंघूंबियोड़ा हा,बीजल़ी पल़ाका करै ही ,झिरमिर मेह वरसै हो।ऐड़ै में जोग सूं एकदिन अड़कमल सूअर री शिकार रमतो छापर रै गोरवैं पूगग्यो।उठै ई जोग सूं कोडमदे आपरी साथण्यां सागै झूलरै में हींड हींडै ही।हींड लंफणां पूगी कै उणरी नजर सूअर लारै घोड़ै चढिये डारण देहधारी बजरागिये अड़कमल माथै पूगी।नजर रै सागै ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो अर उवां थांथल़ीजगी।थांथरणै रै साथै ई धैंकीज'र पड़गी।पड़तां ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो।रंग में भंग पड़ग्यो।साथण्यां ई सैतरै-बैतरै हुयगी। उणनै ऊंचाय'र महल में लेयगी अर झड़फा-झड़फी करण  सूं उणरो सास पाछो बावड़्यो।ज्यूं सास बावड़्यो जणै साथण्यां पूछ्यो कै-
"बाईसा! इयां एकएक भंवल़ कियां आयगी?ओ तो आखड़िया जैड़ा पड़िया नीं नीतर आज जुलम हुय जावतो।म्हे मूंडो ई कठै काढती?"

जणै कोडमदे कह्यो कै-
"अरै गैलक्यां भंवल़ नीं आई।म्हैं तो उण ठालैभूलै ठिठकारिये घोड़ै सवार नै देखर धैलीजगी।"

आ सुणतां ई उणां मांय सूं एक बोली -
"अरे बाईसा!उवै घोड़ै सवार नै देख'र ई धैलीजग्या जणै पछै उण सागै रंगरल़ी कीकर करोला?उणरै सागै तो थांरो हथल़ोवो जुड़ण वाल़ो है!"

"हैं!उण सागै म्हारो हथल़ेवो!तूं आ कांई काली बात करै?अर जे आ बात सही है अर ओ इज अड़कमल है तो सुणलो इण सागै हथल़ोवो जोड़ूं तो म्हारै बाप सागै जोड़ूं।"कोडमदे रै कैतां ई आ बात उणरै माईतां तक पूगी।
कोडमदे रै मा-बाप दोनां ई कह्यो -
"बेटी !तूं आ बात जाणै नीं है कै थारो हुवण वाल़ो वींद कितरो जोरावर अर आंटीलो है।उणरै हाथ रो वार एक'र तो भलां-भलां सूं नीं झलै।पछै तूं ई बात नै  जाणै है कै नीं कै सिहां अर सल़खाणियां सूं वैर कुण मोल लेवै?आ सगाई छोड दां ला तो थारो हाथ झालण नै, ई जमराज सूं डरतो कोई त्यार नीं हुवैला।"
आ सुणतां ई कोडमदे कह्यो-
"अंकनकुंवारी रैय सकूं पण अड़कमल सूं गंठजोड़ नीं जोड़ूं।"

माणकराव मोहिल आपरी बेटी रो नारेल़ दे मिनखां नै वल़ोवल़ी मेल्या पण अड़कमल रै डर सूं किणी कान ई ऊंचो नीं कियो।
सेवट आदमी पूगल रै राव राणकदे भाटी रै बेटे सादै(शार्दूल)नै कोडमदे रै जोग वर मान टीको लेयग्या। पण राणकदेव सफा नटग्यो।उण राठौड़ां सूं भल़ै वैर बधावणो ठीक नीं समझ्यो।
मोहिलां रा आदमी मूंडो पलकार'र पाछा टुरग्या।उवै पूगल़़ सूं कोस दो-तीनेक आगीनै आया हुसी कै पूगल़ रो कुंवर सादो उणांनै आपरी घोड़ी चढ्यो मिल्यो।
असैंधा आदमी देख'र सादै पूछ्यो तो उणां पूरी बात धुरामूल़ सूं मांड'र बताई।
जद सादै नै इण बात रो ठाह लागो तो उणरो रजपूतपणो जागग्यो,मूंछां रा बाल़ ऊभा हुयग्या।भंवारा तणग्या।उण मोहिलां रै आदम्यां नै कह्यो-
 "हालो पाछा पूगल़।टीको म्हारै सारू लाया हो तो नारेल़ हूं झालसूं!
सादै आवतां रावजी नै कह्यो कै-
"हुकम!ठंठेरां री मिनड़ी जे खड़कां सूं डरै तो उणरै पार कीकर पड़ै?जूंवां रै खाधां कोई गाभा थोड़ा ई न्हाखीजै?राजपूत अर मोत रै तो चोल़ी-दामण रो साथ है।जे टीको नीं झाल्यो तो निकल़ंक भाटी कुल़ रै.जिको कल़ंक लागसी उवो जुगां तक नीं धुपैलो।आप तो जाणो कै गिरां अर नरां  रो उतर्योड़ो नीर पाछो नीं चढै--
धन गयां फिर आ मिले,
त्रिया ही मिल जाय।
भोम गई फिर से मिले,
गी पत कबुहन आय।।
आ कैय सादै, मोहिलां री कुंवरी कोडमदे रो नारेल़ झाल लियो पण एक शर्त राखी कै -
"म्हारी कांकड़ में बड़ूं जितै म्हनै राठौड़ां रो चड़ी रो ढोल नीं सुणीजणो चाहीजै तो साथै ई उणांरै रै घोड़ां रै पोड़ां री खेह ई नीं दीसणी चाहीजै।
ऐ दोनूं बातां हुयां म्है उठै सूं एक पाऊंडो ई आगै नीं दे सकूं।क्यूंकै--
झालर बाज्यां भगतजन,
बंब बज्यां रजपूत।
ऐतां बाज्यां ना उठै,
(पछै)आठूं गांठ कपूत।।
मोहिलां वचन दियो अर सावो थिर कियो।
आ बात जद अड़कमल नै ठाह लागी तो उणरै रूं-रूं में लाय लागगी।उण आपरै साथ नै कह्यो- कै -
"मांग तो मर्यां नीं जावै। हूं तो जीवतो हूं।सादै अर मोहिलां अजै म्हारी खाग रो पाणी चाख्यो नीं है।हुवो त्यार।मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई सादै नै सुरग रो वटाऊ नीं बणा दियो तो म्हनै असल राजपूत मत मानजो।"
अठीनै सादो जान ले चढ्यो अर उठीनै अड़कमल आपरा जोधार लेय खार खाय चढ्यो।
कोडमदे अर सादै(शार्दूल) भाटी 
माणकराव आपरी लाडकंवर रो घणै लाडै -कोडै ब्याव कियो अर आपरै सात बेटां नै हुकम दियो कै-
"बाई नै पूगल़ पूगायर आवो।आपां सादै नै वचन दियो है पछै भलांई स्वारथ हुवै कै कुस्वारथ बात सूं पाछो नीं हटणो।
आगै मोहिल अर लारै आपरी परणेतण कोडमदे सागै सादो।
मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई अड़कमल रो मोहिलां सूं सामनो हुयो।ठालाभूलां नै मरण मतै देख एक'र तो राठौड़ काचा पड़्या पण पछै सवाल मूंछ रो हो सो राटक बजाई।बारी -बारी सूं मोहिल आपरी बैन री बात सारू कटता रैया पण पाछा नीं हट्या।जसरासर,साधासर,कुचौर,नापासर,आद जागा मोहिल वीर राठौड़ां सूं मुकाबलो करतां कटता रैया।छठो भाई बीकानेर अर नाल़ रै बिचाल़ै कट्यो तो सातमो मेघराज मोहिल आपरी बात सारूं कोडमदेसर में वीरगत वरग्यो।ऐ सातूं भाई आज ई इण भांयखै में भोमियां रै रूप में लोक री श्रद्धा रा पूरसल पात्र है।
हालांकि उण दिनां ओ कोडमदेसर नीं हो पण आ छेहली लड़ाई इणी जागा हुई। अठै इज भाटी सादै अर अड़कमल री आंख्यां च्यार हुई।उठै आदम्यां सादै नै कह्यो -
"हुकम!आप ठंभो मती।आप पूगल़ दिसा आगै बढो।"
जणै सादै कह्यो कै-
"हमैं कांकड़ म्हारी है!म्हैं अठै सूं न्हाठ'र कठै जाऊंलो?मोत तो एक'र ई  आवै ,रोजीनै नीं-
कंथा पराए गोरमे,
नह भाजिये गंवार।
लांछण लागै दोहुं कुल़ां,
मरणो एकण बार।।
 जोरदार संग्राम हुयो सेवट अड़कमल रै हाथां सादो भाटी ई वीरता बताय'र आपरी आन-बान रै सारू स्वर्गारोहण करग्यो पण धरती माथै नाम अमर करग्यो।
आपरै पति नै वीरता सागै लड़'र वीरगत वरण माथै कोडमदे नै ई अंजस हुयो।उण आपरी तरवार काढ आपरो जीवणो हाथ बाढ्यो अर  उठै ऊभै एक आदमी नै झलावतां कह्यो-
"लो !ओ म्हारो  हाथ पूगल ले जाय म्हारी सासू रै पगै लगावजो अर कैजो कै थांरै बेटे थांरो दूध नीं लजायो तो थांरी बहुआरी थांरो नाम नीं लजायो तो ओ दूजै हाथ रो गैणो है इणसूं म्हारै सुसरैजी नै कैजो कै इण तालर में तिसियां खातर एक तल़ाव खणावजो।"
इतो कैय  उण जुग री रीत मुजब कोडमदे रथी बणाय आपरै पति महावीर सादै रै साथै सुरग पूगी-
आ धर खेती ऊजल़ी,
रजपूतां कुल़ राह।
चढणो धव लारै चिता,
बढणो धारां वाह!!
उठै राव राणकदे कोडमदे री स्मृति में कोडमदेसर तल़ाब खोदायो जिको इण बात रो आज ई साखीधर है कै मरतां-मरतां ई आपरी बात री धणियाणी मनस्विनी कोडमदे किणगत लोककल्याणकारी भावनावां रो सुभग संदेश जगत नै देयगी।

कोडमदे अर सादै(शार्दूल) भाटी