सोमवार, 6 जनवरी 2025

राव कुंपा, राव जेता और शेरशाह सूरी ( गिरी सुमेल युद्ध )

राव कुंपा, राव जेता और शेरशाह सूरी ( गिरी सुमेल युद्ध )

 जोधपुर राज्य के इतिहास में  राव कुंपा और उनके चचेरे भाई राव जैता का नाम प्रसिद्ध  है अपनी वीरता, शौर्य और  राष्ट्रभक्ति के लिए, उनका नाम मारवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है |
राव कुंपा जोधपुर के महाराजा राव जोधा के भाई राव अखैराज के पौत्र व मेहराज जी के पुत्र थे इनका जन्म वि.सं. 1559 कृष्ण द्वादशी माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी कर्मेती भटियाणी जी के गर्भ से हुआ था |
राव जैता मेहराज जी के भाई राव पंचायण जी के  पुत्र थे अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा की आयु एक वर्ष थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक राव मालदेव की सेवा में चले गए |
राव मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे राव कुंपा व राव जैता जेसे वीर उनके सेनापति थे,मेड़ता व अजमेर के शासक विरमदेव को राव मालदेव की आज्ञा से राव कुंपा व जैता ने अजमेर व मेड़ता पर अधिकार कर लिया था |

राव कुंपा, राव जैता और राव विरमदेव:-

अजमेर व मेड़ता छीन जाने के बाद राव विरमदेव ने डीडवाना पर अधिकार कर लिया किन्तु राव कुंपा व राव जैता ने राव विरमदेव को डीडवाना में फिर जा घेरा और भीषण युद्ध के बाद डीडवाना से भी विरमदेव को अपना अधिकार छोड़ना पड़ा, राव विरमदेव भी अद्वितीय वीर योद्धा थे |
डीडवाना के युद्ध में राव विरमदेव की वीरता देख राव जैता ने कहा था कि यदि मालदेव व विरमदेव शत्रुता त्याग कर एक हो जाये तो हम संपूर्ण हिन्दुस्थान पर विजय प्राप्त कर सकतें है


राव कुंपा व राव जैता ने राव मालदेव की और से कई युद्धों में भाग लेकर विजय प्राप्त की।
शेर शाह सूरी के प्रपंच में फंसकर राव मालदेव के अपने सामंतों के प्रति अविश्वाश की भावना उत्पन्न हो जाने पर वो युद्धभूमि से जाने लगे और उन्होंने राव जैता व राव कुंपा को भी आदेशित किया तब दोनों प्रखर योद्धाओं ने ये प्रतिउत्तर दिया: 

उठा आंगली धरती रावजी सपूत होए
खाटी  थी तिण दिशा रावजी फुरमायो सू म्हे कियो
 ने अठा आन्गली धरती रावले माइतें
नै म्हारे माइते भेला हुय खाटी हुती
आ धरती छोड ने म्है निरसण रा नहीं

अर्थात( वँहा तक की भूमि रावजी ने सपूत होकर  प्राप्त की थी अतः उस दिशा में आपके कहने पर हम पीछे हट गए परंतु  यँहा से आगे की  भूमि आपके और हमारे महान पूर्वजों ने  मिलकर प्राप्त की थी अतः यह पावन धरा छोड़ कर हम निकलने वाले नहीं)

 अब पीछे आना संभव नहीं है 
कुपां जी ने कहा :
पड़ियो  सूत पाराथ , उड़ियोज्य्ं भिमय ऊ भय
भिड़यो जुद्द भारत कदे न मुड़ीयो  कुंपसि

 युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त होने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 

मरुधरा रा सिर मोड तोड़ घणा तुरका तणा
 जैत झुंझार मोड कटपड़ीयो  रण  कुपसी

इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुंपा व राव जैता मात्र दस हजार सेनिकों के साथ थे, भीषण युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सैनिकों को मारकर राव कुंपा व राव जैता ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ वीर गति प्राप्त की व मातृभूमि की रक्षार्थ   युद्ध में अपने प्राण न्योछावर करने की अपनी क्षत्रियोचित परंपरा का निर्वाह किया। 
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"अमर लोक बसियों अडर,रण चढ़ कुंपो राव ।
सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव ।।
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उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सेनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण का साहस नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा: 

बोल्यो सूरी बैन यूँ , गिरी घाट घमसान
मुठी खातर बाजरी,खो देतो हिंदवान

कि मुट्ठी भर बाजरे कि खातिर मैं दिल्ली की सल्तनत खो बैठता,और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना पर आक्रमण करने कि भूल नहीं की।

जोधाने माल अजेगढ़ जैतो, कुंप विकपुर राज करे।।
लाखां लोग रह ज्यां लारे, दिल्ली आगरों दोहू डरे।।

कीरत जैते कुंपरी इल आ अजै अखंड।
मरिया पग रोपे मरद, मारवाड़ नै मंड।।

उनकी प्रेरक स्थली पर प्रतिवर्ष 5 जनवरी को सुमेल गिरी बलिदान दिवस के रूप में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है और इन राष्ट्रनायकों को श्रद्धासुमन अर्पित किये जाते है। हमारे ऐसे राष्ट्रवीरों के बारे में सही ही कहा गया है: भवन, महल, किले, प्रस्तर लेख आदि समय के साथ लुप्त हो जायेंगे किन्तु इन महान योद्धाओं की शौर्य गाथाएं युगों युगों तक राष्ट्रभक्तों के हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला का संचार करती रहेगी।

-गिरी का युद्ध ५ जनवरी, १५४४ ई. को जोधपुर-मारवाड़ के शासक राव मालदेव के सेनानायक जैता व कूँपा राठौड़ के नेतृत्व में दस हजार वीर योद्धा व अफगान शासक शेरशाह सूरी की अस्सी हजार की विशाल सेना के मध्य सुमेल-गिरी स्थान पर लड़ा गया था। इस युद्ध में बोरवाड़ (मगरांचल) के शासक *नरा चौहान (नाहर सिंह)* के नेतृत्व में तीन हजार राजपूत सैनिकों के नेतृत्व में युद्ध में अद्वितीय योगदान दिया।

शेरशाह सूरी को "एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए विवश करने वाले मारवाड़ के रण बांकुरो के शौर्य की साक्षी रही सुमेल-गिरी रणभूमि इतिहास के पन्नों में अपने गौरव के लिए जानी जाती है। सन् १५३१ ई. में राव मालदेव राठौड़ मारवाड़ के शासक बने। वे अपने समय के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे‌। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार नागौर, मेड़ता, अजमेर, जालोर, सिवाणा, भाद्राजून, बीकानेर तक किया। मुगल शासक हुमायूं शेरशाह सूरी से पराजित होने के बाद इनकी सहायता लेने के उद्देश्य से १५४२ ई. में मारवाड़ आया। राव मालदेव के साम्राज्य विस्तार और हुमायूं का साथ देने से दिल्ली का अफगान शासक शेरशाह अत्यधिक चितिंत था। मारवाड़ की शक्ति को नष्ट करने की दृष्टि से शेरशाह ने १५४३ ई. में ८० हजार सैनिकों की एक विशाल सेना लेकर फतेहपुर मेड़ता होते हुए सुमेल आ पहुंचा। इधर सूचना मिलते ही राव मालदेव भी अपने सैनिकों के साथ गिरी आ पहुंचे और पीपाड़ को संचालन केंद्र बनाया। इसी समय इस क्षेत्र के नरा चौहान के नेतृत्व में स्थानीय लोग भी राव मालदेव की सहायता हेतु आ डंटे। प्रति दिन दोनों सेनाओं में छुट-पुट भिड़ंत होती, जिसमें शेरशाह की सेना को हानि होती। कई दिनों की अनिर्णीत भिड़ंतों से शेरशाह थक गया और उसने छुट-पुट भिड़ंत समाप्त कर दी। इस तरह कई दिनों तक सेनाएं आमने-सामने तनी रही। शेरशाह के अनिर्णय की स्थिति मे लौट पाना भी असंभव था,ऐसी स्थिति में उसने छल कपट का आश्रय लिया। शेरशाह सूरी ने  राव मालदेव के सामंतों के तम्बुओं में फिरोजशाही मोहरें भिजवाई और नई ढालों के अंदर शेरशाह के फरमानों को सिलवा दिया था, उनमें लिखा था कि सरदार मालदेव को बंदी बनाकर शेरशाह को सौंप देंगे। यह जाली पत्र कुटिलता से राव मालदेव के पास भी पहुंचा दिये थे। इससे राव मालदेव को अपने सेनापतियों पर सन्देह हो गया। राव मालदेव ने जोधपुर की सुरक्षा को देखते हुए युद्ध के लिए मना कर दिया और राव जैता व राव कूंपा को भी पीछे हटने का आदेश दिया, किन्तु दोनों ने पीछे हटने से मना कर दिया। फिर भी राव मालदेव नहीं माने और सारे सैनिक लेकर पुनः जोधपुर चले गए। इस प्रकार मारवाड़ की सेना बिखर गई।

सेना का गठन
अब केवल राव जैता व राव कूंपा के साथ बहुत कम सैनिक रह गए। ऐसी परिस्थिति में मगरे के नरा चौहान अपने नेतृत्व में ३००० सैनिकों को लेकर राव जैता व राव कूंपा के सहयोग के लिए आगे आये।

युद्ध
अदभुत पराक्रम के साथ राव जैता, राव कूंपा, राव नरा चौहान, राव लखा चौहान, राव अखैराज देवडा़, राव पंचायण, राव खींवकरण, राव सूजा,मान चारण*  सहित अग्रणी सैनिकों के नेतृत्व में लगभग ८००० सैनिकों ने शेरशाह की ८० हजार सैनिकों की भारी भरकम सेना का क्षत्रियोचित वीरता से सामना किया और ऐसा भीषण संहार किया, जिससे शेरशाह की सेना में भगदड़ मच गई। वे शेरशाह की तरफ बढ़ने लगे जिस पर एक पठान ने शेरशाह को युद्ध स्थल छोड़ जाने को कहा, किन्तु तुरन्त ही खवास खां व जलाल खां ने असंख्य सैनिकों के साथ दायीं और बायीं ओर घेरा बना लिया। इस घेरे में जैता राठौड़, कूंपा राठौड़, नरा चौहान व अनेक योद्धा तलवारों से अंतिम श्वास  तक संघर्ष करते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए। इस प्रकार ८ हजार सैनिकों ने ८० हजार सैनिकों से इतनी प्रचंड वीरता से युद्ध किया कि शेरशाह अत्यंत ही कठिनाई से यह युद्ध जीत पाया। इस युद्ध मे़ं सामंतों की वीरता को देखकर शहंशाह सूरी को ये कहना पडा़ कि " एक मुट्ठी बाजरे के लिए वह दिल्ली की सल्तनत खो देता।" 
यह  युद्ध ऐसा था, जिसमें साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं हिंदुत्व की रक्षार्थ हेतु लड़ा गया। इस एक दिन के युद्ध में बादशाह के चालीस हजार से अधिक सैनिक मारे गए। हिंदूत्व रक्षार्थ हेतु गिरी सुमेल रणस्थली पर अनेक पराक्रमी शूरवीर रणखेत रहे जिसमें —— १.कूंपा मेहराजोत अखैराजोत २.जेता पंचायणोत अखैराजोत ३.भदा पंचायणोत अखैराजोत ४.भोमराज पंचायणोत अखैराजोत ५.उदय जैतावत पंचायणोत ६.रायमल अखैराजोत ७. जोगा रावलोत अखैराजोत ८.पता कानावत अखैराजोत ९.वेैरसी राणावत अखैराजोत १०.हमीर सिंहावत अखैराजोत ११.सूरा अखैराजोत १२.रायमल अखैराजोत १३. राणा अखैराजोत १४.खींवकरण उदावत १५.जैतसी उदावत १६.पंचायण करमसोत १७.नीबो आणदोत १८.बीदा भारमलोत १९.सुरताण डूंगरोत २०.वीदा डूंगरोत २१.जयमल डूंगरोत २२.कला कान्हावत २३.भारमल बालावत २४.भवानीदास राठौड़ २५.हरपाल राठौड़ २६.रामसिंह ऊहड़ २७.सुरजन ऊहड़ २८.राव नरा चौहान(३०००सैनिकों का योगदान) २९.राव लखा चौहान ३०.(भोजराज अखैराज सोनगरा ३१.अखैराज सोनगरा सहित २२ सोनगरा काम आये) ३२.अखैराज देवडा़ ३३.भाटी पंचायण जोधावत ३४.भाटी सूरा पर्वतोत ३५.भाटी जेसा लवेरा ३६.भाटी महरा अचलावत ३७.भाटी माघा राघोत ३८.भाटी साकर सुरावत ३९.भाटी गांगा वरजांगोत ४०.इंदा किशनसिंह ४१.हेमा नरावत ४२.सोढा़ नाथा देदावत ४३.धनराज सांखला ४४.डूंगरसिंह सांखला ४५.चारण मान खेतावत ४६.लुबां ४७.पठान अलदाद खां । लगभग ८ हजार वीरगति को प्राप्त योद्धाओं (राठौड़, सोनगरा, भाटी,मगरे के चौहान, देवडा़, इंदा, सांखला, मांगलिया व सोढा़ राजपूत सहित कई क्षत्रियों ने भी अपना बलिदान दिया।

*जय मरुधरा*

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

गोगा देव जी शौर्य गाथा

गोगा देव जी शौर्य गाथा


मोहम्मद गजनी जब सोमनाथ मन्दिर को लूटने के इरादे से आयाथा तब 
ददरेवा राजपूताने के शासक गोगा राणा ने उस आतातायी लुटेरे को सोमनाथ जाने से अपने राज्य की सीमाओं पर ही रोक लिया था ।
दस दिन तक विशाल सेना से युद्ध 
कर आगे बढ़ने से रोके रखा।अन्तत:
उस विशाल सेना के सामने गोगा की छोटी सेना गोगा सहित वीर गति को प्राप्त हुयी ।रनवास की रानियों ने सभी दासियों सहित अग्नि स्नान किया।
इस प्रकार गोगा राणा ने अपना सर्वस्व
भगवान सोमनाथ मन्दिर की रक्षार्थ स्वाहा कर दिया।
इतिहास कारों ने इनके पराक्रम ओर गजनी से युद्ध के बारे में विस्तृत रूपसे 
लिखा है ।विदेशी इतिहास कारो में प्रसिद्ध कर्नल टाड ने हिस्ट्री आफ राजस्थान में लिखा है कि गोगा के बासठ पुत्र ओर सैंतालीस पौत्रों ने बलिदान दिया था।दूसरे इतिहास कार कनिंघम ने भी इसी बात को दोहराते हुये लिखा है कि हिमालय के निचले तराइ के हिस्से में वीर पूजा प्रचलित है
पर कइ वीर पूजा भारत के सुदूर तक पूजे जाते है उनमें से गोगा वीर प्रमुख है,,कनहैयालाल मानिक लाल मुन्सी
ने अपने विख्यात ग्रन्थ जय सोमनाथ
में इस युद्ध का विस्तृत वर्णन करते हुये ग्रन्थ की भूमिका में लिखा है कि
गोगा के पराक्रम काल्पनिक नहीं है। 
गोगा का एक पुत्र सज्जन सिंह अपने 
पुत्र सामन्त सिंह के साथ उस समय 
सोमनाथ दर्शन की यात्रा पर गये हुये थे, उनको सोमनाथ में ही गजनी के आने का समाचार मिलगया था।
पिता -पुत्र दोनो ने अविलम्ब उस दुष्ट को रोकने के लिये वहाँ से  अलग अलग मार्ग से प्रस्थान किया।जिस मार्ग से सज्जन गया उस मार्ग में गजनी से सामना होगया ।उनके सैनिकों ने सज्जन को बन्दी बना कर गजनी के सामने पेश किया गजनी ने पूछा कहाँ से आरहें हो, कहां जा रहे हो ,सज्जन को तबतक पता होगया कि हमारा राज्य 
तहस नहस होगया है, अत: उसने गजनी 
से बदला लेने की ठानकर बताया मैं सोमनाथ से दर्शन करके आरहा हूं ।
गजनी ने कहा हमें मार्ग बताओ तो तुम्हे छोड़ देंगे   ।चौहान सज्जन सिंह ने कहा पहले मेरी ऊँटनी जो आपके सैनिकों ने लेली है वह मुझे लौटाएँ,
एसा ही हुआ गोगा पुत्र ने उसकी सेना को मार्ग बताने के बहाने घोर मरुस्थल 
में भटका दिया जहाँ धूलभरी तप्त बालू रेत में गजनी के दस हजार सैनिक ऊंटों सहित मरुस्थल में समागये सज्जन भी वहीं बलिदान हुये।
इस प्रकार गोगा पुत्र ने दुश्मनों से बदला लेकर इतिहास में अमर होगये।
दुसरी ओर सज्जन का पुत्र सामन्त को भी हकीकत का पता चल गया कि अपना राज्य समाप्त होगया है,उसकी 
क़द काठी ओर शक्ल गोगा जैसी ही थी,उसने गाँव गाँव घूमकर लोगों को 
सचेत करते हुये गाँवों को ख़ाली कर ने का गजनी की विशाल सेना के बारे मे सबको बताया कि तीस हजार ऊँटों पर पानी की बखाल लिये एक लाख लुटेरों 
को साथ लिये आरहा है 
गाँव ख़ाली होगये कुवों को पाट दिया गया चारे को जलादिया गया,,नतीजा यह हुआ कि गजनी की सेना को राशन पानी पशुओं को चारा नहीं मिलने से 
भारी परेशानी का सामना करना पड़ा 
गजनी के सैनिक बताते कि साहब गांवों मे गोगा के भूत ने  गाँव ख़ाली करवा दिये,तब गजनी ने कहा ये गोगा 
"जाहर पीर है"जहाँ देखो वहीं मौजूद 
दिखता है,,यू पी में गोगा को इसी नाम से जानते व पूजते है।
सामन्त ने एक काम ओर किया कि उस मार्ग के राजाओं  को एकत्रित कर उनकी सेनाओं के साथ सोमनाथ में मोर्चा लगाया ओर डटकर सामना किया गजनी को अपनी जान बचाकर सभी सैनिकों को युद्ध में मरवाकर स्वयम् कच्छ के रास्ते से वापस भाग गया।
कम्युनिस्टो ने ग़लत इतिहास लिखकर ये बताया कि सोमनाथ की रक्षा के लिये कोइ भी भारतीय नहीं लड़ा ।के एम मुन्सी जो कांग्रेस के बड़े नेता रहे है ने "जय सोमनाथ "ग्रन्थ में 
विस्तृत वर्णन कियाहै कि भारत के वीरों ने ने कैसे  मुक़ाबला कर दुश्मन को भगायाथा।
आज एक हजार वर्ष से भी अधिक समय से भारत माँ के उस वीर सुपुत्र को भारत की जनता इतना सम्मान देती है कि उनको लोक देवता के रूपमें पूजती है,गोगा मेडी नाम के स्थान पर इनकी समाधान पर मेला लगता है जो उतर भारत का कुम्भ माना जाता है
दिल्ली से गोगा मेडी रेलवे स्टेशन तक
भारत सरकार तीन तीन स्पेशल  ट्रेनें चलाती है भादों मास की बदी व सूदी नवमी को ददरेवा जन्म स्थान व गोगा मेडी जहाँ गोगा जी वीर गति को प्राप्त
हुये ,जंगी मेले लगते है एक अनुमान के अनुसार १५से २० लाख यात्री मे ले मे पहुँच कर श्रद्धा पूर्वक पूजा व मनोकामना  माँगते है, युपी बिहार के यात्री पीले वस्त्र पहन कर आते है जो केशरिया बाना पहन कर धर्म युद्ध करने की परम्परा की याद ताज़ा करवाता है,,इसदिन राजस्थान सरकार 
की ओर से सरकारी छुट्टी रहती है,
राजस्थान में आज के दिन धर धर में
खीर चूरमा बनता है  पूर्णिमा को बाँधी 
राखी आज खोली जाती है जिसे गोगा की  प्रतिमा परचढाइ जाती है
मिट्टी से बनी घोड़े पर सवार गोगा की प्रतिमा की घरघर पूजा होती है,
इसके सम्बन्ध में एकदोहा विख्यात है

पाबू हरबू रामदे,मांगलिया मेहा। 
पांचू वीर पधारज्यो,गोगाजी जेहा  ।।