MAHARAJA MAN SINGH OF AAMER JAIPUR लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
MAHARAJA MAN SINGH OF AAMER JAIPUR लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 6 जुलाई 2025

महाराजा मानसिंह की उपलब्धियां

 राजा मान सिंह
जन्म - 21 दिसम्बर, 1550 ई.
जन्म भूमि - आमेर, राजस्थान 
मृत्यु तिथि - 6 जुलाई, 1614 ई.
पिता- राजा भगवानदास, माता- रानी भगवती बाई
राजा मानसिंह के शासनकाल में आमेर राज्य ने बड़ी उन्नति की। मुग़ल प्रशासन में अत्यधिक प्रभावशाली मानसिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया अनेक राज्यों पर आक्रमण कर के जो अपरिमित संपत्ति लूटी थी, उसके द्वारा आमेर राज्य को शक्तिशाली बना दिया। धौलाराय के बाद आमेर, जो एक साधारण राज्य समझा जाता था, मानसिंह के समय वही एक शक्तिशाली और विस्तृत राज्य हो गया था।भारत के इतिहास में कछवाहो का महत्वपूर्ण स्थान आता है मानसिंह के समय कछवाहो ने खुतन से समुद्र तक अपने बल, पराक्रम और वैभव की प्रतिष्ठा की थी। राजा मानसिंह की राजपूत सेना, बादशाह की सेना से कहीं अधिक शक्तिशाली मानी जाती थी,हिन्दू धर्म के सच्चे संरक्षक के रूप में कछवाहों ने कार्य किया और कट्टर इस्लामीकरण से भारत और समस्त हिंदुओं को बचाए रखा ,कट्टर औरंगज़ेब के समय कछवाहो और मुगलों के सम्बन्ध खराब हो गए थे और औरगज़ेब के अंतिम समय मै कछवाहो ने मुगलों से दूरी बना ली थी।

मात सुणावै बालगां,
       खौफ़नाक रण-गाथ |
काबुल भूली नह अजै,
         ओ खांडो, ऎ हाथ ||

काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किये गए प्रचंड खड्ग प्रहारों को नहीं भूल सकी है | उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों को आज भी डराकर सुलाती है |

महमूद गजनी के समय से ही आधुनिक शास्त्रों से सुसज्जित यवनों के दलों ने अरब देशों से चलकर भारत पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया था | ये आक्रान्ता काबुल (अफगानिस्तान)होकर हमारे देश में आते थे अफगानिस्तान में उन दिनों पांच मुस्लिम राज्य थे ,जहाँ पर भारी मात्रा में आधुनिक शास्त्रों का निर्माण होता था वे भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे बदले में भारत से लूटकर ले जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे |

इस प्रकार काबुल का यह क्षेत्र उस समय बड़ा भारी शस्त्र उत्पादक केंद्र बन गया था जिसकी सहायता से पहले यवनों ने भारत में लुट की व बाद में यहाँ राज्य स्थापना की चेष्टा में लग गए | ऐसी परिस्थिति में आमेर के शासक भगवानदास व उनके पुत्र मानसिंह ने मुगलों से संधि कर अफगानिस्तान (काबुल) के उन पांच यवन राज्यों पर आक्रमण किया व उन्हें इस प्रकार तहस नहस किया कि वंहाँ राजा मानसिंह के नाम का इतना भय व्याप्त हो गया कि वहां की स्त्रियाँ अपने बच्चों को राजा मानसिंह के नाम से डराकर सुलाने लगी | राजा मानसिंह ने वहां के समस्त हथियार बनाने वाले कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली तकनीक को जयगढ़ (आमेर) में स्थापित करवाया |

इस कार्यवाही के परिणामस्वरुप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बंद हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत में अपनी शक्ति एकत्रित करने का अवसर प्राप्त हुआ | मानसिंह की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतो ने भी पूरी तरह संरक्षण दिया व उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति में हर की पेड़ियों पर उनकी एक विशाल छतरी बनवाई | यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पांच यवन राज्यों पर विजय के चिन्ह स्वरुप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गयी व मंदिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा | 

आज भी उनके बारे यह उक्ति प्रसिद्ध है -
*माई एडो पूत जण, जैडौ मान मरद |*
*समदर खान्ड़ो पखारियो ,काबुल पाड़ी हद ||*

नाथ सम्प्रदाय के भक्त गंगामाई के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यश गान आज भी गाते है ।

 राजा मान सिंह जी अपने साथ चारण ( कवि ) रखा करते थे । दो ऐसे अवसर आए जब कवियो ने मान सिंह जी का मनोबल बढाया । जब काबुल जाते समय अटक ( अब पाकिस्तान मे है) मे सिंधू नदी पार करते समय सेना शंकित हो रही थी । तब कवि ने कहा :-
सब भूमि गोपाल की
          या मे अटक कहा ।
जां के मन मे अटक है
           वो ही अटक रहा ।।  
( अर्थात् ये सारी धरती भगवान की है इसमे अडचन कहा है ? किन्तु जिनके मन मे अडचने है केवल वही लोग अटके (रूके ) हुए हैं । ) ये सुनते ही सबसे पहले मान सिंह जी ने सिंधु नदी को पार किया बाद मे उनके पीछे सेना ने पार किया । 
 
कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- आमेर, मानसिंह के समय एक शक्तिशालीऔर विस्तृत राज्य हो गया था । भारतवर्ष के इतिहास में मानसिंह के समय कछवाहा लोगों ने खुतन से समुद्र तक अपने बल, पराक्रम, और वैभव की प्रतिष्ठा की थी ।

मानसिंह जी ने उडीसा और आसाम को जीता । और इन्होंने बिहार , बंगाल, दक्षिण और काबुल को जीतकर वहां शासन किया । 
मान सिंह जी अपनी नौसेना बनाकर श्रीलंका पर आक्रमण करने वाले थे परन्तु एक चारण ने कहा :-
*रघुपति दीनो दान,*
         *विप्र विभिसन जानिके ।*
*मान महिपत मान,*
        *दियो दान किमी लीजिये ।।*
{ भगवान राम ने विभीषण ( ब्राह्मण ) को श्रीलंका दान मे दे दिया । }
हे राजा मानसिंह ,रूको । एक बार कुछ भी दान कर दिया जाए , उसे वापस नही लिया जाता है । 
[श्रीलंका राजा मानसिंह के पूर्वज अयोध्या के राजा श्रीराम द्वारा जीता गया और रावण के सौतेले भाई विभीषण को राज करने के लिए दे दिया गया ।] 
कहा जाता है कि इसके बाद राजा मानसिंह जी ने श्रीलंका पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया ।

*राजा मानसिंह और सनातन धर्म:*

आमेर के इतिहास प्रसिद्ध राजा मानसिंह सनातन धर्म के अनन्य उपासक थे। वे सनातन धर्म के सभी देवी और देवताओं के भक्त थे व स्वधर्म में प्रचलित सभी सम्प्रदायों का समान रूप से आदर करते थे| उनकी धार्मिक आस्था पर भले ही समय समय पर किसी सम्प्रदाय विशेष का प्रभाव रहा हो, पर वे हमेशा एक आम क्षत्रिय की भांति अपनी कुलदेवी, कुलदेवता व इष्ट के उपासक रहे| अपनी दीर्घकालीन वंश परम्परा के अनुरूप राजा मानसिंह ने सभी सम्प्रदायों के संतों का आदर किया पर उनके जीवन पर रामभक्त संत दादूदयाल का सर्वाधिक प्रभाव रहा। 

राजा मानसिंह के काल में अकबर ने धर्म क्षेत्र में नया प्रयोग किया और अपने साम्राज्य में एक विश्वधर्म की स्थापना के लिए “दीने इलाही” धर्म विकसित किया| अकबर के भरसक प्रयत्न के बाद भी वे अपने स्वधर्म से एक इंच भी दूर हटने को तैयार नहीं हुये| अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायुनी का कथन है कि “एक बार 1587 में जब राजा मानसिंह बिहार, हाजीपुर और पटना का कार्यभार संभालने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे तब बादशाह ने उन्हें खानखाना के साथ एक मित्रता का प्याला दिया और दीने इलाही का विषय सामने रखा| कुंवर ने दृढ़ता 
से धर्म परिवर्तन का प्रस्ताव ठुकरा कर अपने स्वधर्म में अप्रतिम आस्था प्रदर्शित की| रॉयल ऐशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल के जरनल में मि. ब्लैकमैन ने अपने लेख में लिखा है- “अकबर के अनुयायी मुख्यरूप से मुसलमान थे| केवल बीरबल को छोड़कर जो आचरणहीन था, दूसरे किसी हिन्दू सदस्य का नाम धर्म परिवर्तन करने वालों में नहीं था| वृद्ध राजा भगवंतदास, राजा टोडरमल और राजा मानसिंह अपने धर्म पर दृढ रहे यद्धपि अकबर ने उनको परिवर्तित करने की चेष्टा की थी|

 राजा के निजी कक्ष की चन्दन निर्मित झिलमिली पर राधाकृष्ण के चित्रों का चित्रांकन राजा मानसिंह की सनातन धर्म में अटूट आस्था के बड़े प्रमाण है| आमेर राजमहल में राजा मानसिंह का निजी कक्ष में विश्राम के लिए अलग कक्ष व पूजा के लिए अलग कक्ष व पूजा कक्ष के सामने एक बड़ा तुलसी चत्वर, राजमहल के मुख्य द्वार पर देवी प्रतिमा राजा मानसिंह के धार्मिक दृष्टिकोण को समझने के लिए प्रयाप्त है|

राजा मानसिंह ने अपने जीवनकाल में कई मंदिरों का निर्माण, कईयों का जीर्णोद्धार व कई मंदिरों के रख रखाव की व्यवस्था कर सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई| 
 बनारस में राजा मानसिंह ने मंदिर व घाट के निर्माण पर अपने एक लाख रूपये के साथ शाही खजाने से दस लाख रूपये खर्च कर दिए थे, जिसकी शिकायत जहाँगीर ने अकबर से की थी।
राजा मानसिंह ने अपने राज्य आमेर के साथ साथ बिहार, बंगाल और देश के अन्य स्थानों पर कई मंदिर बनवाये| पटना जिले के बरह उपखण्ड के बैंकटपुर में राजा मानसिंह ने एक शिव मंदिर बनवाया और उसके रखरखाव की समुचित व्यवस्था की जिसका फरमान आज भी मुख्य पुजारी के पास उपलब्ध है| इसी तरह गया के मानपुर में भी राजा ने एक सुन्दर शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे स्वामी नीलकंठ मंदिर के नाम से जाना जाता है| इस मंदिर में विष्णु, सूर्य, गणेश और शक्ति की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई थी| मि. बेगलर ने बंगाल प्रान्त की सर्वेक्षण यात्रा 1872-73 की अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि- “राजा मानसिंह ने बड़ी संख्या में मंदिर बनाये और पुरानों का जीर्णोद्धार करवाया| ये मंदिर आज भी बिहार में बंगाल के उपखंडों में विद्यमान है| रोहतास किले में भी राजा मानसिंह द्वारा मंदिर बनवाये गए थे|

मानसिंह जी के कारण ही आज जगन्नाथ पुरी का मंदिर मस्जिद नही बना । उड़ीसा के पठान सुल्तान ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद बनाने का प्रयास किया था, जब इसकी सूचना राजा मानसिंहजी को मिली, तब उन्होंने अपने योद्धा उड़ीसा भेजे, किन्तु विशाल सेना के कारण सभी वीरगति को प्राप्त हुए । उसके बाद राजा मानसिंह स्वयं उड़ीसा गए, ओर पठानों ओर उनके सहयोगी हिन्दू राजाओ को कुचलकर रख दिया ।। उसके बाद पठान वर्तमान बंगाल की ओर भाग गया । जगन्नाथ मंदिर की रक्षा हिन्दू इतिहास का सबसे स्वर्णिम इतिहास है । यह हिंदुओ के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है ।। राजा मानसिंह जी महान कृष्ण भक्त थे, उन्होंने वृंदावन में सात मंजिला कृष्णजी ( गोविन्ददेव जी ) का मंदिर बनाया ।। बनारस के घाट, पटना के घाट, ओर हरिद्वार के घाटों का निर्माण आमेर नरेश मानसिंहजी ने ही करवाया था । जितने मंदिर मध्यकाल से पूर्व धर्मान्ध मुसलमानो ने तोड़े थे, वह सारे मंदिर मानसिंहजी ने बना दिये थे, किन्तु औरंगजेब के समय मुगलो का अत्याचार बढ़ गया था , ओर हिन्दू मंदिरों का भारी नुकसान हो गया।

मथुरा के तत्कालीन छ: गुंसाईयों में से एक रघुनाथ भट्ट के अनुरोध पर राजा मानसिंह ने वृन्दावन में गोविन्द देवजी का मंदिर बनवाया था|
आमेर के किले शिलादेवी का मंदिर भी राजा मानसिंह की ही देन है| शिलादेवी की प्रतिमा राजा मानसिंह बंगाल में केदार के राजा से प्राप्त कर आमेर लाये थे| परम्पराएं इस बात की पुष्टि करती है कि राजा मानसिंह ने हनुमान जी की मूर्ति को और सांगा बाबा की मूर्ति को क्रमश: चांदपोल और सांगानेर में स्थापित करवाया था| आज भी लोक गीतों में गूंजता है-

आमेर की शिलादेवी, सांगानेर को सांगा बाबो ल्यायो राजा मान|

आमेर में जगत शिरोमणी मंदिर का निर्माण कर उसमें राधा और गिरधर गोपाल की प्रतिमाएं भी राजा मानसिंह द्वारा स्थापित करवाई हुई है| 
मंदिर निर्माणों के यह तो कुछ ज्ञात व इतिहास में दर्ज कुछ उदाहरण मात्र है, जबकि राजा मानसिंह ने सनातन धर्म के अनुयायियों हेतु पूजा अर्चना के के कई छोड़े बड़े असंख्य मंदिरों का निर्माण कराया, पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया और कई मंदिरों के रखरखाव की व्यवस्था करवाकर एक तरह से सनातन धर्म के रक्षक के रूप में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई|

राजा मान सिंह भारतीय इतिहास के महानतम राजाओं में से एक है। उनके जैसे वीर योद्धा विरले ही हुए है।