गांव भाखरी मे पन्द्रह वी शताब्दी मे भोजाजी गौङ ने "केशर न नीपजे अठै न हीरा निकलन्त सिर कटिया खग सामणा इण धरती उपजन्त।।कवि को ऐसे दोहे लिखने को प्रेरित किया । वीरप्रसूता धरा मारवाड के भेङ गांव मे मुगल आक्रन्ता गौवंश को वद के लिऐ लूटकर लेजाने लगे पुरे ग्रामीण भयतीत व आतंकित थे गायें व बच्छडे भयवश रंभा रहे थे ऐसे विकट संकट की घडी में वीर प्रसूता धरा का लाडला नौजवान भोजाजी गोड मां भवानी का स्मरण कर अश्वारूढ हो खांडा यानी तलवार ले सैकङो मुगलो से अकेला ही भीङ गया। "हाथ तलवार मां दे रजपूतां ने मजबूती" हर हर महदेव के उदघोष के साथ भेङ गांव का चौहटा रणक्षेत्र मे तब्दील हो गया। मुगल गाजर मूली की तरह कटने लगे अचानक एक मुगल के पीठ पीछे वार से भोजाजी की सिर धङ से अलग हो गया लेकिन उस कमद ने तलवार की गती बढादी इस दृश्य से मुगल भयतीत होकर दौङने लगे तो गौरक्षार्थ झुझांर ने १७किमी तक इन मलेच्छो का पीछा कर उन्हें मारा गायो को मुक्त करवाया भेङ से भाखरी के बीच मे मुगलो से लङते हुऐ वीरवर के शरीर के अंग सिर की भूजा भेङ मे अश्वारुढ की मूर्ति के रुप मे तथा धङ घोङे सहीत भाखरी डेलोलाई तालाब पर शांत हुआ इसलिए धङ की स्माधिरूप मे पूजा भाखरी मे होती है हर वर्ष भादवा सुदी बीज को भेङ व भाखरी दोनो जगह विशाल मेला भरता है गौरखवाला भोजाजी का स्मरण करते है पीढीयो पुर्व गावं छोड गये प्रदेश मे बशे सभी वर्ष मे एक बार तो पूजा अर्चना करने आते है ।
हमे गर्व है हमने इस वीर प्रसूता मारवाड धरा पर जन्म लिया व पाबुजी भोजाजी जैसे गौरक्षार्थ झूझारो के स्मरण कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है
दौरा धिरज नीपजे धोरा धरम निवाण।
धौरा रे रज कण मिलै सतियां सूर सुजाण।।
जुगतसिह करनोत
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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019
गांव भाखरी के भोजाजी गौङ
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