कीरत कज कुरबान
किया--
आदू कुल़ रीत रही आ अनुपम,
भू जिणरी भल साख भरै।
महि मेवाड़ मरट रा मंडण,
सौदा भूषण जात सिरै।।1
दिल सूं हार द्वारका दिसिया,
वाट हमीरै राण वरी।
माता वचन बारू मन मोटै,
केलपुरै री मदत करी।।2
चढियो ले पमंग पांचसौ चारण,
सीर सनातन भीर सही।
वीरत पाण राखिया बारू,
मेदपाट रा थाट मही।।3
दिल सनमान सिसोदै दीधो,
दूथी निजपण थाप दियो।
हाटक गयँद साथ में हैवर,
कूरब कव रो अथग कियो।।4
अड़सी सुतन आंतरी अरपी,
साथै ग्यारा गांम सही।
बारू नीत ऊजल़ी वीदग,
राजावां सम रीत रही।।5
हेतव वरत भांजवा हाडै,
कुबुद्धि लालै वाद कियो।
व्रतधारी बारू उण वेल़ा,
दूथी निज सिर काट दियो।।6
बारू तणै वंश में बेखो,
जैसो केसव मरद जयो।
पातल रै जुपिया पख जाहर,
अंजस सुणियां सरब अयो।।7
हल़दीघाट हींसिया हैवर,
रजवट पातल उठै रखी।
कट पड़िया जैसो नै केसव,
ईहग वीरत रखण अखी।।8
ज्यांरो जस जाणै सह जगती,
कवियण वरणै बात कसी।
सँभल़ी जिकां गरब सूं सांप्रत,
चित आजादी जोत चसी।।9
बारू तणी ऐल़ में बेखो,
हेक भल़ै नरपाल़ हुवो।
जुपियो पखै मरद जगदीसर,
वीरत वाल़ी वाट बुवो।।10
ओरँग चढ आयो उदियापुर,
राजड़ सूं रण रचण रसा।
हलचल़ हुई सिसोदां हिरदै,
कव वरणै वरणाव कसा।।11
राणो जदन सुरक्षित राजड़,
गढ तजनै वन भोम गयो।
अणडर वीर पोल़ रै आडो,
अनड़ लड़ण नरपाल़ अयो।।12
कट पड़ियो कुटका हुय कवियण,
निडर पोल़ सूं हट्यो नहीं।
मातभोम मानी सम माता,
मंडी नरपत मरण मही।।13
पसर्यो सुजस जैण रो पुहमी,
सकवि हरस्या सँभल़ सको।
हुइयो नाय दूसरो हेतव,
नरिये रै समरूप नको।।14
किसनो हुवो ऐण कुल़ कवियण,
मुर- सुत जिणरै शेर मनो।
केसर किशो जोरसी कहिये,
धर नित लाटण धिनो धिनो।।15
केसर हुवो केसरी समवड़,
दाकल गूंजी दिसो दसां।
धुरपण मर्द धीरत रो धारी,
कीरत पसरी कितै किसां।।16
अड़ियो नर आजादी कारण,
सँकिया गोरा जदै सको।
दूठां जद दारूण दुख दीधो,
पात हुवो दुख पाय पको।।18
त्यागी पुरस त्यागियो तन-सुख,
दिल-सुख फेरूं त्याग दियो।
त्याग दियो परिवार तिकै दिन,
कटण देश कज मतो कियो।।19
तन- मन- धन परिवार तीखपण,
दुख जन हरवा छोड दिया।
केहरिया किसनेस- तणा कव,
कीरत कज कुरबान किया।। 20
वतन हितैषी भमियो बेखो,
भाखर थल़ियां किती भल़ै।
थिरता रखी अंकै नीं थाको,
गरल़ भूतपत जेम गल़ै।।21
जेल़ा़ं भुगत कष्ट सह झूल्यो,
भूल्यो नाहीं गुमर भलां।
वतनपरस्ती पाल़ वडै नर,
गाढ धार इल़ थपी गलां।।22
हिवड़ै लेस लायो न हीणप
रेणव तण-तण ऊंच रखी।
पच थाका गोरा बल़ पूरै,
दाव दीनता नाय दखी।।23
मोटो मिनख हिंद रो मोभी,
निमख इये में झूठ नहीं।
किसना-तणा ताहरी कीरत,
कवियण प्रणमे गीध कही।।24
गिरधरदान रतनू दासोड़ी
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