महेंद्र सिंह राठौड़ जाखली मधु हाल जयपुर कृत
(मायड़ भाषा राजस्थानी में)
(1)
कट बढ़ कर ही झूजतो, ऐडो़ हो मजबूत
पाछे कोनी देख तो, रण खेतां रजपूत
(2)
जद कद आई आफताँ, बणियौ नाही बूत
खड़काँ सूं ऐ बाढ़ताँ, रण खेतां रजपूत
(3)
बेरी सेना राँभती, बाँके पड़ता जूत
क्षत्रियता ऐ राखता, रण खेतां रजपूत
(4)
आन बान ने राखियाँ, रज पूताँ रा पूत
दोरी राखी आबरू, रण खेतां रजपूत
(5)
शमशीर जबर चालती, निकाल देता भूत
साफ करा हा सूंपड़ो, रण खेतां रजपूत
(6)
सिर कट कर गिर जावतो,कमधज लडे़ सपूत
लड़ लड़ कर ही जीतता, रण खेतां रजपूत
(7)
राज पाठ ने राखणो, ही खांडा री धार
क्षत्रिय तो मजबूत हो, जणा पड़ी ही पार
(8)
मरूधरा रा राजवी, उतारता हा भार
दुसमण ऊबो कांपतो, बाढ़ह देता मार
(9)
एक नजर सूं देखतो, सेना लेता कूंत
खड़गा जद खड़गावता, रण खेतां रजपूत
(10)
जावो योद्धा साहिबा, अरि ने काटो आज
आन बान ओ शान की, राखो जावो लाज
(11)
मरूधरा री आबरू, सिर पर लागे ताज
ऊंची राखो साहिबा, मां धरती की लाज
(12)
पेली सब ने काट ज्यों,कर कर जोरां गाज
एक एक ने बाढ़ ज्यों, मोटो कर ज्यों काज
(13)
तिलक है रंग लाल सूं, म्हानै थां पर नाज
केसरिया पग सोवणी, सिर पर सोणो ताज
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