बुधवार, 8 मई 2019

राव शेखाजी

*शेखावत वंश व् शेखावाटी के प्रवतक, वीरवर क्षत्रिय शिरोमणि पूजनीय महाराव शेखाजी के 531वे निर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन
राव शेखाजी
राजस्थान में शूर-वीरों की कभी कोई कमी नहीं रही।
यही कारण था कि राजस्थान के इतिहास के जनक जेम्स कर्नल टॉड को यह कहना पड़ा कि इस प्रदेश का शायद ही कोई ग्राम हो जहाँ एक भी वीर नहीं हुआ हो। बात सही भी लगती है।

इस अध्याय में जिन वीर शेखा का वृतांत ले रहे हैं वो किसी बड़े राज्य के स्वामी नहीं बल्कि उनका एक बहुत ही छोटे ठिकाने में जन्म हुआ था।
आज भले ही वह क्षेत्र एक बड़े नाम 'शेखावाटी' से जाना जाता है।
जिसमें राजस्थान को दो जिले सीकर व झुंझनु आते हैं।
यह शेखावाटी इन्ही वीर शेखा के नाम पर है।

शेखा का सम्बन्ध यूं तो जयपुर राजघराने के कछवाह वंश से है लेकिन उनके पिता राव मोकल के पास मात्र 24 गाँवों की जागीर थी।
राव मोकल के घर आंगन में शेखा का जन्म सम्वत् 1490 में हुआ था।
इनके जन्म की भी अपनी एक रोचक कहानी है जो इस प्रकार है।

राव मोकल बहुत ही धार्मिक वृति के पुरुष थे।
मोकल के वृद्धावस्था तक कोई सन्तान नहीं हुई फिर भी संतोषी प्रवृति के होने के कारण किसी से कोई शिकायत नहीं थी।
बस, साधु-संतों की सेवा-सुश्रा में लगे रहते थे।
मोकल को एक दिन किसी महात्मा ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी और उसी के अनुसार महाराव मोकल वृंदावन गये।
वहां उन्हें गऊ सेवा में एक विशिष्ट आनन्द की अनुभूति हुई।
यहीं उन्हें किसी ने गोपीनाथजी की भक्ति करने के लिए कहा। मोकल अपनी वृद्धावस्था में गऊ सेवा और भगवान गोपीनाथजी की सेवा-आराधना में ऐसे लीन हुए कि उन्हें दिन कहाँ बीतता, पता ही नहीं लगता।

मोकल जी की
निरबान रानी की कोख से बच्चे ने जन्म लिया। 
शेखा निश्चित ही प्रतापी पुरुष थे। इन्होंने अपने पिता की 24 गाँवों की छोटी सी जागीर को 360 गाँवों की एक महत्वपूर्ण जागीर का रूप दे दिया।
सच तो यह है कि शेखा किसी जागीर के मालिक नहीं थे बल्कि वे एक स्वतंत्र रियासत के मुखिया हो गये थे।

दूरदृष्टा-राव शेखा ने अपने जीवन काल में करीब बावन युद्ध लड़े। इनमें कुछ तो अपने ही भाइयों आम्बेर के कछवाहों के साथ भी लड़े।
शेखा की दिन दूनी-रात चौगूनी सफलता को नहीं पचा पाए, जिसके कारण उनके न चाहते हुए भी उन्हें संघर्ष को मजबूर होना पड़ा था।
सौभाग्य से उन्हें हर युद्ध में सफलता प्राप्त हुई।
एक बार आम्बेर नरेश ने नाराज होकर बरवाड़ा पर आक्रमण कर दिया तो राव शेखा ने इस क्षेत्र में रहने वाले पन्नी पठानों को अपनी तरफ करके उस आक्रमण को भी विफल कर दिया।

इस सफलता के पीछे राव शेखा की दूरदृष्टि थी।

मर्यादा पुरुष-राजपूती संस्कृति के अनुरूप शेखा एक मर्यादाशील पुरुष थे तथा अन्य से भी मर्यादोचित व्यवहार की अपेक्षा रखते थे, फिर वे चाहे कोई भी हो।
जीवन पर्यन्त उन्होंने मर्यादाओं की रक्षा की।
इतिहास गवाह है कि एक स्त्री की मान मर्यादा के पालनार्थ उन्होंने अपने ही ससुराल झूथरी के गौड़ों से झगड़ा मोल लिया जिसके परिणामस्वरूप घाटवे का युद्ध हुआ और उसमें उन्हें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी थी।

घटना कुछ इस प्रकार से थी। झूथरी ठिकाने का राव मोलराज गौड़ अहंकारी स्वभाव का था। उसने अपने गाँव के पास से जाने वाले रास्ते पर एक तालाब खुदवाना आरम्भ किया और यह नियम बनाया कि रास्ते से गुजरने वाले प्रत्येक राहगीर को एक तगारी मिट्टी खोदकर बाहर की ओर डालनी होगी।

एक कछवाह राजपूत अपनी पत्नी के साथ गुजर रहा था। पत्नी रथ में थी, वह स्वयं घोड़े पर था, साथ में एक आदमी और था। इन सबको भी मिट्टी डालने को विवश किया। कछवाह राजपूत व उसके साथ के आदमी ने तो मिट्टी डालदी परन्तु वहाँ के लोग स्त्री से भी मिट्टी डलवाने के लिए जबरदस्ती रथ से उतारने
लगे तो पति ने समझाया-बुझाया पर जब नहीं माने और बदसूलकी पर उतर आये तो उसने गौड़ों के एक आदमी को तलवार से काट दिया।
इस पर वहाँ एकत्रित गौड़ों ने भी स्त्री के पति को मौत के घाट उतार दिया।
पत्नी ने अपने आदमी का अन्तिम संस्कार करने के बाद वहाँ से एक मुट्ठी मिट्टी अपनी साड़ी के पलू में बांधकर लाई और सारी घटना से शेखा को अवगत कराया।
शेखा ने सारा वृतांत जानकर गौड़ों को तुरन्त दंड देने का मन बना लिया और झूथरी पर चढ़ाई करदी।
जमकर संघर्ष हुआ और गौड़ सरदार का सिर काटकर ले आये और उस विधवा महिला के पास भिजवा दिया।
बाद में शेखा ने वह सिर अपने अमरसर गढ़ के मुख्य द्वार भी टांगा ताकि कभी और कोई ऐसी हरकत नहीं करें।

न्याय तो हो गया लेकिन गौड़ों ने इसे अपना घोर अपमान समझा और पूरी शक्ति के साथ घाटवा के मैदान में शेखा को ललकारा। शेखा ने भी उनकी चुनौती को स्वीकारा।
दोनों ओर से घमासान मचा। शेखा को 16 घाव लगे लेकिन वे निरन्तर लड़ते रहे।
गौड उनके आगे नहीं ठहर सके किंतु इस युद्ध के बाद बैशाख शुक्ला 3 (आखा तीज) संवत् 1545 में वे अपनी राजपूती मान-मर्यादा की बेदी पर स्वर्ग सिधार गये।

संक्षेप में शेखा निडर एवं आत्म स्वाभिमानी थे।
शौर्य व साहस की प्रतिमूर्ति थे, धर्म-कर्म और पुण्य के मार्ग के अनुयायी थे।
सम्भवत: शेखा के इन्हीं पुण्यात्मकता के कारण उनके नाम से प्रसिद्ध शेखावटी अचंल आज विश्वस्तर पर नाम को रोशन कर रहा।
शेखा के बाद आठ पुत्रों की संतानें शेखावत कहलाई और इन्हीं में से एक खांप ने देश को उपराष्ट्रपति (भैरोसिंह शेखावत) दिया तो एक खांप की पुत्रवधु देश की राष्ट्रपति बनी।

ऐसे ही विश्व का सबसे धनी व्यक्ति भी इसी शेखावटी क्षेत्र की देन है। अत: स्वयं शेखा अपने समय में राजपूताने के एक ख्यातिनाम वीर पुरुष थे और आज भी उनका नाम सर्वत्र सम्मानीय है। इतिहासकार सर यदूनाथ सरकार ने भी लिखा है की जयपुर राजवंश में शेखावत सबसे बहादुर शाखा है।

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शनिवार, 4 मई 2019

बीकानेर-बखांण

बीकानेर-बखांण

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

        दूहा
दे सुमती सगती दुरस,
पुनि उगती कँठ पूर।
जगती वरणां जँगल़ जस,
सती जती बड सूर।।1

जांगल़धर धिन जोगणी,
थपियो हाथां थाट।
बैठो बीको वरदधर,
पह जिकण धिन पाट।।2
कमधज बीकै वीर बड,
झूड़ किया अरि जेर।
जिण थपियो गढ जाहरां,
बंकै बीकानेर।।3

बीज शुकल़ बैसाग री,
पनरै साल पैंताल़।
सूर धरा सौभागगढ,
बीक थप्यो विरदाल़।।4
गहरा जल़ धोरा घणा,
विरछ कँटाल़ा बेख।
रतन अमोलख इण रसा,
नर-नारी धिन नेक।।5
   छंद -त्रोटक
इल़ जंगल़ मंगल़ देश अठै।
जुड़ दंगल़ जीपिय सूर जठै।
थपियो करनी कर भीर थही।
सद बीक नरेसर पाट सही।।1

जगजामण आप देसांण जठै।
उजल़ी धर थान जहान उठै।
गहरा जल़ धूंधल़ धोर घणा।
तर बोरड़ कैरड़ जाल़ तणा।।2

हरियाल़ उनाल़ नुं जोम हरै।
भुइ फाबत हूंस उरां सभरै।
चर तोरड़ रीझ पता चरणी।
धिन धिन्न हु जांगल़ री धरणी।।3

देशणोक जु राय खल़ां दरणी।
वरदायक गल्ल कथा वरणी।
हरणी हर संकट हेर हथां।
करणी नित भीर सताब कतां।।4

नागणेचिय थांन जहांन नमै।
रँज भाखर ऊपर मात रमै।
चित साकर दूध रसाल़ चढै।
पड़ पाव कवेसर छंद पढै।।5

कमलापत धांम अमांम कियो।
दत राज राजेसर नाथ दियो।
लख लोग सदा जस लाभ लहै।
कट पातक ऐम पुरांण कहै।।6

दिस कोडमदेसर भैर दिपै।
थल़ थांन रूखाल़िय आप थपै।
मगरै कपिलायत धांम मही।
सुज मोचण पाप अनाप सही।।7

कर कांधल त्यागिय वीर कहो।
उण भांजिय दोयण धीर अहो।
पसरी धर सीम असीम  पुणां।
सुज भाव लगाव उछाव सुणां।।8

हद बात धणी धर लूण हुवो।
वसु थापण वीदग बात बुवो।
धिन खाग बल़ां धिब माडधरा।
खित सौभिय भूप उदार खरा।।9

कमरू दल़ आय अटक्क कियो।
लग दोयण घेर आसेर लियो।
जद जैतल वीर सधीर जठै।
वणियो अगवाण अबीह बठै।।10

भिड़ियो रतवाह नत्रीठ भलो।
हिव मुग्गल फौज परै हमलो।
करवाल़ बल़ां जिण जेर किया।
डर काबल पाव सु छोड दिया।।11

कव सूजड़ रोहड़ क्रीत करी।
सच ऊफण सांभल़ बात सरी।
फब जीत धजा असमान फरै।
सह हिंदुस्तान कथा समरै।।12

दुनि दांनिय कर्मसी साख दखां।
उण सूंपिय आस नुं पूत अखां।
जिण होड नही धर और जुवो।
हर चक्क सिरोमण नांम हुवो।।13

दत कोड़ नरेसर राय दिया।
कव खूब करीबँध भूप किया।
सुण शंकर बारठ साख सची।
रट कायब रोहड़ जेण रची।।14

महि पातल रै हलचल्ल मची।
कछु होय अधीर  नुं ताक कची।
पिथुराज हुवो गहलोत पखै।
रजपूत चित्तौड़  अनम्म रखै।।15

भगतां पिथुराज धरा ज भलो।
पकड्यो जिण माधव हाथ पलो।
कितरा रच कायब राच किया।
दतचित्त प्रभू दिस ध्यान दिया।।16

अमरेस हुवा अजरेल इसा।
जिण भांगिय आरबखान जिसा।
हद हारण खेत सुहेत हुवो।
वरियांम रणां सुरलोक बुवो।।17

मुगलां दलपत्त नहीं मुड़ियो।
जस जांगल़ काज जुधां जुड़ियो।
वर मोत लिवी हठियाल़ वसू।
जग राख गयो नरपाल़ जसू।।18

पत जांगल़ भूप करन्न पुणां।
सज तोड़िय ओरंग नाव सुणां।
कमधेस नवांखँड नांम
कियो।
लड़ जांगल़ पात'सा व्रिद लियो।।19

सजियो हिंदवांण रि भीर सही।
घट भांगण रोद सु सार गही।
अवरंग अरोड़ सूं युं अड़ियो।
जिणरो जस कायब में जड़ियो।।20

अवनी नरपाल़ अनै इसड़ा।
जग शारद सेव करी जिसड़ा।
भुइ साख भरै ग्रँथगार भली।
चरचा धिन भारत देश चली।।21

जग सूर हुवा पदमेस जिसा।
रिम दोटण खाटण क्रीत रसा।
छल़ बांधव शेर सधीर छिड़्यो।
बल़ गंजण रोद सक्रोध बड़्यो।।22

भड़ पैंड सदा अणबीह भर्या।
डग जेण भरी तुरकांण डर्या।
करवाल़ निसांणिय लालकिले।
हव आजतकै जिण गल्ल हलै।।23

दिल एक दूहै नवलाख दिया।
लख जीभ जिकै जस लूट लिया।
अवनाड़ उदार समान अखां।
पह नीर चढाविय चार पखां।।24

वरसै थल बादल़ रीझ वल़ै।
पड़ नीर अधीर झड़ां प्रगल़ै।
भल सांमण मास सरां भरिया।
हद खेत किसांन हुवै हरिया।।25

मधुरा सुर मोर झिंगोर मही।
सदभावण धोर सिंगार सही।
वरदाल़िय बाजर ऊंच बगी।
लटियाल़िय जायर आभ लगी।।26

वसुधा सुरियंद धणी बणियो।
हथ माथ  दुकाल तणो हणियो।
मिसरी सम नीर मतीर मणा।
तिरपत्त मना थल़ देश तणा।27

धन धांन सधीणाय देख धरा।
हिव जोय जठीनुय दीख हरा।
घण गाजत आभ धुनी गहरा।
अड़डै जल धार निसि-अहरा।।28

सुरलोक समोवड भोम सही।
मनु आय गयो मघवान मही।
इण रुत्त फिरै फणियाल़ अही।
निजरां अवनी थल़ जोड़ नहीं।।
29

बसु तीजणियां बणियै -ठणियै।
उतरी अछरां मनु ऐ अणियै।
हद पैंड हस्तीय ज्यूं हलवै।
घण गीत उगीर मधु गलवै।।30

नर-नार उरां छल़ छंद नहीं।
सुधभाव लगाव रखाव सही।
कवि मन्न अनंद सु छंद कयो।
जय हो धर जंगल देश जयो।।31
       छप्पय
जय हो जांगल़ देश,
जेथ राजै जगजामण।
सांमण मास सदैव,
सको मन मांय सुहामण।
रूपनाथ जिण रसा,
मुखां रटियो माहेसर।
जेथ तप्यो जसनाथ,
जांगल़ू गुरु जंभेसर।
साह सती  सँत  सूरा सकव,
लाट सुजस सारां लियो। 
बीक री धरा धिन धिन बसू,
कवियण गिरधर जस  कियो।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 1 मई 2019

राव टोडरमल (उदयपुरवाटी)

"राव टोडरमल"(उदयपुरवाटी)

राजा रायसल दरबारी खंडेला के 12 पुत्रों को जागीर में अलग अलग ठिकाने मिले। और यही से शेखावतों की विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ। इन्ही के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली। इन्ही के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत" कहलाते हैं। भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुरवाटी (शेखावाटी)के स्वामी बने,टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास विख्यात है,टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझार सिंह थे,झुंझार सिंह  वीर प्रतापी निडर कुशल योद्धा थे, उस समय "केड" गाँव पर नवाब का शासन था,नवाब की बढती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए| परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थे। इसलिए केड पर अधिकार नहीं कर पाए|कहते हैं टोडरमल जी मृत्यु शय्या पर थे लेकिन मन्न में एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी,इसके चलते उनके पैर सीधे नहीं हो रहे थे। वीर पुत्र झुंझार सिंह ने अपने पिता से इसका कारण पुछा|टोडरमल जी ने कहा "बेटा पैर सीधे कैसे करू,इनके केड अड़ रही है"(अर्थात केड पर अधिकार किये बिना मुझे शांति नहीं मिलेगी)| पिता की अंतिम इच्छा सुनकर वीर क्षत्रिय पुत्र भला चुप कैसे बैठ सकता था?  झुंझार सिंह अपने नाम के अनुरूप वीर योद्धा,पित्रभक्त थे !उन्होंने तुरंत केड पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में उन्होंने केड को बुरी तरह तहस नहस कर दिया। जलते हुए केड की लपटों के उठते धुएं को देखकर टोडरमल जी को परमशांति का अनुभव हुआ,और उन्होंने स्वर्गलोक का रुख किया। इन्ही झुंझार सिंह ने अपनी प्रिय ठकुरानी गौड़जी के नाम पर "गुढ़ा गौड़जी का" बसाया| तत्कालीन समय में इस क्षेत्र में डाकुओं का आतंक था, झुंझार सिंह ने उनके आतंक से इस क्षेत्र को मुक्त कराया| किसी कवि का ये दोहा आज भी उस वीर पुरुष की यशोगाथा को बखूबी बयां कर रहा है

*डूंगर बांको है गुडहो,रन बांको झुंझार!*
*एक अली के कारण, मारया पंच हजार!!*

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

रिड़मल राठौड़

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता....
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया

!कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर सेतो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की...

"बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।"राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय हैकैसे मानेगा !अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा थाये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगालेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूररहिये।

माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों ...?यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए...?इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे औरअपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये

हिन्दू भाइयो ये सच्चीघटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन.
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट शेयर जरूर करें,,  जय  माँ भवानी

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राजस्थान रै मध्यकाल़ीन  इतियास नै निष्पक्ष भाव सूं देखण अर पुर्नलेखन री दरकार है।क्यूंकै आज जिणगत युवापीढी में जीवणमूल्यां रै पेटे उदासीनता वापर रैयी है वा कोई शुभ संकेत री प्रतीक नीं है।
उण बखत लोग अभाव में हा पण एकदूजै सूं भाव अर लगाव अणमापै रो राखता। ओ वो बखत हो जद स्वामीभक्ति अर देशभक्ति एक दूजै रा पूरक गिणीजता  हा।जिणांरै रगत में स्वामीभक्ति रैयी उणांरै ईज रगत में देशभक्ति रैयी।भलांई आपां आज इण बात नै थोड़ी संकीर्ण मानतां थकां  व्यक्तिवाद नै पोखण वाल़ी कैय सकां पण आ बात तो मानणी ईज पड़सी कै उण मिनखां में त्याग,समर्पण, अर मरण नै सुधारण री अद्भुत ललक ही।इणी ललक रै पाण उवै आज ई खलक में आदरीजै।
उण बखत ऐड़ा मोकल़ा मिनख हुया जिकां बिखम परिस्थितियां में ई ऊंची ताणी नीची नीं।मोत नै साम्हीं देख अट्टहास कियो पण उदास नीं हुया।वै चावता तो हालात सूं समझौतो कर लेता अर आवण वाल़ी पीढ्यां रा पग बांध जावता पण उवां हीणी नीं भाखी जिणरो साखी आज ई अठै रो संवेदनशील मानखो है, जिको उणांरो जस जनकंठां में पिरोय राख्यो है।
ऐड़ी ई एक गर्विली गाथा है  बीकानेर रै दो सपूतां -भोजराज रूपावत अर महेश सांखला री। बीकानेर रै इण दो महानायकां  माथै अजैतक नीं रै बरोबर लिखीज्यो है।
दोनूं ई निकलंक खाग रा धणी हा।दोनूं ई मातभोम रै खातर मरण नै  वरण सारू केसरिया कियोड़ा ईज राखता।
भोजराज रूपावत ,रूपाजी रिड़मलोत री वंश परंपरा में सादाजी रूपावत रा बेटा अर भेल़ू रा ठाकुर हा तो महेश सांखला जांगल़ू रा सांखल़ा पुनपालजी री वंश परंपरा में हुया।
सांखला जांगल़ू रा शासक रह्या।जांगल़ू नै पृथ्वीराज चौहाण री राणी अजांदे दहियाणी बसायो।अठै कीं दिन दइया शासक रह्या।जिणांरै मुदमुख केसोदादो उपाध्याय हो।
उणी दिनां रूण सूं गाडां गोल़ ले सीहड़दे सांखला रो भाई ,रायसी सांखलो अठै आय
गोल़वास रह्यो।इणरी बायां साथै दइयां रा कुंवरड़ा बोछरडायां करै।पण साखला पतल़ा सो करै कांई?
उणी दिनां केसोदादै  जांगल़ू री पोल़ आगै आपरै नाम सूं "केसोल़ाव" खुदावणो तय कियो पण दइया नटग्या।इण बात सूं रीसाय केसोदादै सांखल़ां साथै रल़ ,घात सूं दइयां नै मरा दिया।अठै रा शासक सांखला बणिया ।जिकै 'जांगल़वा सांखला' बाजै।
कह्यो जावै कै दइयां री हाय सूं केसोदादो तल़ाई खुदावतो बिचै ई मरग्यो हो।लोग तो आ ई कैवै कै जा पछै केसोदादै री संतति में फूठरा मिनख जनमणा बंद हुयग्या --
कुछ काणा कुछ काबरा,
केयक रेढारेड़।
दादा देखण आवजै,
केसू थारो केड़।।

इणी रायसी री परंपरा में खींवसी,कंवरसी जैड़ा अजरेल हुया।इणी ऊजल़ परंपरा में महेश सांखला रो जनम हुयो।
उण दिनां बीकानेर माथै राव जैतसी रो राज।वो जैतसी , जिणां रातीघाटी रै जुद्ध में काबुल रै मुगल पातसाह कामरान नै आपरी तरवार रो तेज बताय बांठां पग देवण सारू मजबूर कर दियो हो-

करनादे रा कोटड़ा,
कोटां काबल़ वट्ट।
राव हकारै जैतसी,
भागा कमरा थट्ट।।

जैतसी रै पसरतै सुजस अर बांकम सूं खार खाय वि.सं.1598 में बीकानेर माथै जोधपुर रा  राव मालदेव आपरै महाक्रमी सूरां जैता- कुंपा री अगवाणी में हमलो करण सारू आपरी सेना साथै बीकानेर रै गांम सोवै में डेरा दिया अर 
दबाव बणायो कै राव जैतसी मालदेव रै झंडै नीचै आय जावै।जैतसी जैड़ै अडर इण प्रस्ताव नै नीं मानियो।
सेवट आ तय हुई कै एक'र बीकानेर रै सरदारां सूं ई सलाह करली जावै।जद ओ प्रस्ताव सरदारां रै साम्हीं आयो उण बखत केई सरदारां कह्यो कै -"ठीक रैसी।क्यूं फालतू में ई एक ई घर रो रगत बहायो जावै।"
आ बात सुण'र उठै बैठे किलेदार  महेश सांखला माथो धूणियो।महेश नै माथो धूंणतां देख सरदारां पूछ्यो कै- "महेशजी माथो कीकर धूंणो? इण में कांई अजोगती है?सावल़ ईज है भाई नै भाई रो माथो नीं बाढणो पड़ै।"
आ सुण महेश कह्यो- "जर जमी जोर री!
जोर गयां और री!!
रसा कंवारी रावतां ,
वरै तिको ई वींद।
माथो तो मालकां रो है आपांरो नीं।लागै कै आपनै मरण रो भय है।जणै ई टाबरां दांई बातां करो!भाई !किसो भाई?ई मालदेव रै बाप गांगैजी नै जोधपुर किण दिरायो?इणी मोटमनै जैतसी---
सांभल़ै वचन मन धिखै क्रन -समोभ्रम,
धरे अत फौज घण मछर धायो।
जैतसी वडै प्रब जाय गढ जोधपुर,
उबेलण राव नै राव आयो।।(खेतसी गाडण)
दूजै कानी ओ मालदेव उणरो ओसाप उतारण नै बीकानेर खोसण आयो है !अर आप रातै कोइयां वाल़ा इणरी पगवाह सूं डरग्या!-
'डर सूं शस्त्र नांखदे ,
जिकै किसा रजपूत ?'
म्हैं अठा रो किलेदार हूं।किलो! म्हैं मरियां ई रावजी सूंप सकै ।म्हारै जीवता़ं नीं।
जिकै मरण सूं डरै ,उवै अठै सूं कूच करै अर जिणांनै बीकानेर रै "सौभागदीप" रो दीपक जगमगतो राखणो है उवै केसरिया करै।गढ! रावजी अर रावजी रै बाप दादां रो है। उवै चावै तो किणी नै ई दे सकै पण गिदड़ भभक्यां सूं राजपूत गढ सूंपै ओ पीढ्यां नै कल़ंक है।"
सभा में एक'र तो नीरवता छायगी।कोई कीं नीं बोल्यो।
महेश पाछो बोल्यो-
सूरां रो मरण तो स्वामी रै सटै ईज जगत में सौभै।किणी सूर रै ऊभां उणरो स्वामी चलविचल़ हुय आपरी आन-बाण छोडण सारू सोचै तो आ उण सूर रै सारू मरण सूं बधीक है।महेश रै इण भावां नै समकालीन कवि सूजा बीठू   कितरै सतोलै आखरां में पिरोया है कै महेश रै साम्हों ओ मरणमहोच्छब रो अवसर आयो तो उवो असमर झाल गर्व रै साथै बोल्यो कै म्हनै मारूराव आ धरती माथै रै सटै सूंपी है-
यूं कहै महेस वडे प्रब आयै,
गह असमर दाखवै गही।
मह मो सांपी राव मारूवै,
माथा साटै जितूं मही।।
महेश सांखला रा ऐ सतोला आखर सुण सेवट  भोजराज कह्यो -खमा!महेशजी री बात सोल़ै आना सही है ,आपां मालदेवजी री झंडी नीचै नीं बल्कि रणचंडी करनी री झंडी नीचै रैवांला।जुद्ध करांला पण हीणो डाव नीं देवांला।
सेवट आ ईज बात तय हुई के मालदेवजी नै मुंहतोड़ जवाब दियो जावै।
जद आ बात कूंपा महिराजोत नै ठाह लागी कै बीकानेर रा बीजा सरदारां रो मतो तो रावजी नै आपांरी बात सूं राजी करण रो हो पण महेश सांखलै बल़ती में पूल़ो नांखियो।आडी रो देवाल़ हुयो।कूंपोजी रीसाय महेश नै समाचार कराया कै-"म्हे भाई -भाई राजी जणै तूं कुण है आडी रो देवाल़?म्हांनै फालतू में लड़ावै।"आ सुण महेश समाचार कराया कै-थे रावजी रै भाई पाप रा हो, म्हे धरम रा भाई हां।म्हे लूण खायो है ।जठै रावजी रो पसीनो टपकसी उठै म्हांरो लोही झरसी।बीकानेर रो गढ म्हां मरियां मिलसी।म्हां जीवतां नीं।
राव जैतसी मुकाबलो करण रो द्रढ निर्णय कियो अर गढ रो भार रूपावत भोजराज नै भोल़ाय खुद मालदेवजी रो मुकाबलो करण गया।आम्हां-साम्हां डेरा हुया।राव जैतसी पठाणां सूं घोड़ा लिया जिको कामदारां नै पईसा चूकावण रो कैयग्या पण कामदारां दिया नीं जणै उवै पठाण लारै सोवै गया अर रावजी सूं तगादो कियो।आ सुण रावजी घोड़ां जीण कराय बीकानेर आया अर कामदारां नै फटकारिया।पठाण ई अणी-पाणी वाल़ा हा सो रावजी नै आफत में देख रुपिया लेवण सूं नटग्या।लारै दो च्यार बीकानेर रा सरदारां डेरे में चाल सूं हाको करायो कै रावजी पाछा कोट में बुवा गया।उठै थोड़ी घणी भगदड़ मचगी।अठीनै रावजी रातोरात पाछा सोवै गया पण रात रै अंधारै रै कारण भूल सूं राव मालदेव रै डेरे में बड़ग्या।राव मालदेव अर उणां रा आदमी रावजी माथै टूट पड़िया।मोत नै साम्हीं देख जैतसी न्हाठा नीं ,मुकाबलो कियो अर राव मालदेव रै धर्मविरोधी आचरण रै कारण वीरगत पाई।कवि सूजा बीठू लिखै कै मोत सूं डर'र न्हाठण नै तो जैतसी ई न्हाठ सकता पण आ बात उणां सीखी नीं ही। आ बात मालदेवजी ई सीखी जिकै केई वल़ा न्हाठा-
गांगावत जिम मांम गमाड़ै,
करन-समोभ्रम जाय किम।
भाजण तणा ज महणा अणभंग,
जैत न सहिया माल जिम।।
आ खबर बीकानेर पूगी तो गढ में अफरातफरी मचगी।उण बखत भोजराज कह्यो कै -गढ तो रावजी म्हनै सूंपग्या सो म्हैं माथै सटै ई सूंपसूं।जिकै मरण सूं डरो उवै कुशल़ जाओ परा अर जिणां रै नैणां लाज है उवै तरवारां लेवै।हे गढ!तनै जितै डरण री जरूरत नीं है जितै म्हारो सिर साबतो है--
बोहड़ो जिकै मरण सूं बीहै,
रहज्यौ जिकौ ज साथ रहै।
सिर साटै देसी सादावत,
कोटम बीहै भोज कहै।।(राघव बीठू)
उण बखत विशाल सेना रै साम्हीं भोजराज रूपावत अर महेश सांखला आपरै मुट्ठीक मिनखां साथै जिण अडरता सूं मुकाबलो कियो वो आज ई इतियास रै पानां में अमर है --

बीकानेर भोज बढाल़ै,
सारां मुंह ओडवै सरीर।
रूपाहरै राखियो रूड़ौ
नैहचै ई ऊतरतो नीर।।(राघव बीठू)
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चंद सूर लग नाम चढायौ,
कर लग समदां तणै कड़ै।
सूरां मरण सांम ध्रम साटै,
पोहवी दीनी भ्रगुट पड़ै।।(सूजा बीठू)
तो आ बात ई अमर है कै उण बखत बीकानेर रै केई सरदारां मन माठो कियो तो केइयां घात ई करी।जिकां घात करी उणांनै फटकारतां किणी तत्कालीन कवि खारी बात कैयी पण दुजोग सूं उवा कविता पूरी नीं मिलै।जितरी मिली उवां इण भांत है--
गो रावत वड रंक,
गयो दूदो डंगाल़ी।
गो फाल़स हरराज,
गयो लिछमणियो छाल़ी।
गयो सूम सांगलो,
मोत निजरां जद आई।
गादड़ जगलो गयो,
.......
पण बीकानेर रै गुमेज नै कायम राखण सारू जिकै महावीरां मरण अंगेजियो उणांरो सुजस आज ई कायम है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी