लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़ जिन्होंने भरी सभा मे पंडित जवाहरलाल नेहरू की चुटकी ले ली ।
लेफ्टिनेंट जनरल नाथूसिंह राठौड़ , एक ऐसी शख्सियत जिन्हें हम सभी को अवश्य जानना चाहिए । कौन हैं नाथू सिंह राठौड़ ,
तो फिर आइये जानते हैं इनके महान व्यक्तित्व को ।
लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर सन् 1902 में पैदा हुए थे. वो ठाकुर हामिर सिंह जी के इकलौते बेटे थे और अपने माता-पिता को बचपन में ही खो देने के बाद उन्हें #डुंगरपुर के महारावल विजय सिंह ने पाला था. उन्हें उनके दोस्त बागी कहकर पुकारते थे. एक बेहतर आर्मी अफसर बनने की तैयारी के लिए वे इंग्लैंड के प्रतिष्ठित Sandhurst मिलिट्री कॉलेज भी गए थे. वह एक उत्कृष्ट अफसर तो बने ही, लेकिन उनको इतिहास में एक ईमानदार और बेबाक सैन्य अफसर के रूप में याद किया जाता है. जिसने सेना की एक बेहद महत्वपूर्ण नीति को दिशा दी।
#ब्रिटिश अधिकारियों और उनकी मेस का अपमान - नाथूसिंह राठौड़ जी चुकी शाही परिवार से सम्बंध रखते थे , इसलिए वो मेस में अंग्रेजों अफसरों के साथ भोजन ग्रहण करने से मना कर दिए थे
इस बात पर बहुत बवाल मचा था क्योंकि अंग्रेज भारतीयों को तुच्छ समझते थे और पहली बार किसी भारतीय ने अंग्रेजों को यह महसूस करवाया की उनकी औकात एक राजपूत रजवाड़े के सामने क्या हैं।
नेहरू vs नाथू सिंह राठौड़ :-
भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहर लाल नहरू ने एक मीटिंग बुलाई थी जिसमें डिफेंस फोर्स के उच्च अधिकारी और कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेता मौजूद थे. उस मीटिंग का मकसद था कि भारतीय #आर्मी #चीफ के पद पर किसी अच्छे सिपाही को रखा जाए।
नेहरू ने उस मीटिंग में कहा था कि मुझे लगता है कि 'किसी ब्रिटिश ऑफिसर को भारतीय आर्मी का जनरल बना देना चाहिए. हमारे पास संबंधित विषय के लिए ज्यादा अनुभव नहीं है. ऐसे में भारतीय आर्मी को लीड कैसे कर पाएंगे।
उस मीटिंग में मौजूद अधिकतर लोग इस बात के लिए मान गए, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर नहीं माने. उन्होंने भरी सभा में नेहरू को जवाब दिया ।
पर सर, हमारे पास देश को चलाने के लिए भी कोई अनुभव नहीं है. तो क्या हमें किसी ब्रिटिश को भारत का पहला #प्रधानमंत्री नहीं चुन लेना चाहिए?'
नेहरू शर्मिंदा हुए और उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ , फिर राठौड़ साहब को आर्मी चीफ के पद पर नियुक्ति के लिए प्रस्ताव रखा गया किन्तु उन्होंने अपने सीनियर #के. एम. करिअप्पा का नाम आगे बढ़ा दिया । और इसी प्रकार भारत के पहले आर्मी चीफ के. एम. करिअप्पा हुए ।
अगर राठौड़ साहब ने दिलेरी न दिखाई होती तो , आजादी की मांग करने वाले हम भारतीयों के मुह पर यह एक करारा तमाचा साबित होता , क्योंकि हम वैश्विक पटल पर यह एक बार फिर साबित कर रहे थे कि हम भारतीय अपने देश को चलाने योग्य नहीं हैं , और हमे ब्रिटेन से भाड़े पर अंग्रेज अधिकारी चाहिए ।
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