गुरुवार, 9 सितंबर 2021

विरांगना "किरण देवी"

जब गर्दन में रखी कटारी तो अकबर ने विरांगना "किरण देवी" से मांगी क्षमा..

 राजस्थान रेतीले धोरों और राजपूतो की वीरता, त्याग और बलिदान की पहचान है। राजस्थान की धरती पर ऐसे कई वीर – वीरांगनाओ ने जन्म लिया है जिनकी वीरता की प्रशंसा आज भी कि जाती है, और राजस्थान का इतिहास ऐसी कई घटनाओं का संग्रहण किये हुए है।

 यह वीरांगना और कोई नही बल्कि "वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी" के छोटे भाई "शक्ति सिंह" की पुत्री किरणदेवी की है।"किरणदेवी" ने अकबर को प्राणों की भीख मांगने पर विवश कर दिया था। इस घटना का संबध दिल्ली में लगने वाले नौरोज मेले से है, यह मेला अकबर द्वारा आयोजित किया जाता था।

 इस मेले में अकबर स्वयं वेशभूषा बदलकर जाता और सुंदर महिलाओं को देखता और जो उसे पसन्द आ जाती उसको महल में बुलवाता और अपनी हवस को शान्त करता। एक दिन मेले में घूमते - घूमते अकबर की नजर "किरण देवी" पर पड़ी। अकबर "किरण देवी" का सुंदर रूप देख कर मोहित हो गया और किरण देवी को किसी भी हालत में पाना चाहता था। तुरंत ही उसने गुप्तचरो को पता लगाने का आदेश दिया, तो पता चलता है की वो "महाराणा प्रताप" के छोटे भाई "शक्ति सिंह जी" की बेटी है और उसका विवाह बीकानेर के "पृथ्वीराज राठौड़" से हुआ है, जो उनके ही दरबार में सेवक है।

अकबर ने "पृथ्वीराज" को युद्ध के बहाने बाहर भेज दिया और एक सेविका के द्वारा संदेश भिजवाया की बादशाह ने आपको बुलवाया है। "किरण देवी" ने शाही आदेश का मान रखते हुए महल में चले गये। वंहा पहुँचने "किरण देवी" को अकबर के मनसूबो का पता चल जाता है। इस बात को लेकर किरण देवी को क्रोध आ जाता है, और अकबर जीस कालीन पर खड़ा होता है, "किरण देवी" उस कालीन को खींचती है और अकबर को धराशाई कर देती है।

 किरण सिहनी - सी चडी, उर पर खीच कटार।
भीख मांगता प्राणकी, अकबर हाथ पसार।।
"किरण देवी" शस्त्र चलाने में तथा "आत्मरक्षा" करने में निपुण थी। "किरण देवी" अपनी "कटारी" निकाल कर अकबर की गर्दन पर रख कर बोलती है बताये अकबर बादशाह आपकी आखरी इच्छा क्या है। इस बाजी का इतना जल्दी तकता पलट जायेगा अकबर ने सोचा भी नही था।

 अकबर क्षमा याचना करता है और बोलता है की अगर मेरी मृत्यु हो गयी तो देश में बहुत सारी समस्या खड़ी हो जायगी, और वचन देता है की कभी भी नोरोज मेला नही लगाऊंगा। "किरण देवी" अकबर को खरी खोटी सुनाकर छोड़ी देती है तथा चेतावनी देकर वापस अपने महल चली जाती है।

 आप स्वयं सोचिये की एक वीरांगना से "प्राणों की भीख" मांगता अकबर महान कैसे हो सकता है, जब भी हमारे वीर योद्धाओ का मुग़लो से युध्द हुआ तब मुग़लों को धूल चटाई, किंतु युद्ध मे विश्वासघात होने पर ही हमारे "वीर योद्धाओ" की पराजय हुई है, बाकी किसी भी मुग़लो की औकात न थी कि हमारे "वीर योद्धाओ" को पराजय कर सके, इस बात का इतिहास साक्षी है।

 नमन है ऐसे "वीर योद्धा ओर वीरांगनाओं" को जिन्हों ने धर्म की रक्षा के हेतु अपने प्राण न्योछावर किये ओर धर्म बचाये रखा।

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