शनिवार, 25 सितंबर 2021

राई रा भाव राते बीत ग्या


राई रा भाव राते बीत ग्या

ये बात है सन 1305 ई.की...  आज आधी रात तक मुँह मांग्या दाम है सा...
घुड़सवार नगाड़े पीटते हुए #जालोर के बाजार की गलियों में घूम रहे थे, लोग अचंभित थे लेकिन राई के मुँह मांगे दाम मिल रहे थे, इसलिए किसी ने इस बात पर गौर करना उचित नही समझा कि आखिर एका एक राई के मुँह मांगे दाम मिल क्यों रहे हैं ।

शाम होते होते लगभग शहर के हर घर में पड़ी राई घुड़सवारों ने खरीद ली थी । 

अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही दुर्ग से अग्नि-ज्वाला की लपटें उठती देख लोगों को अंदेशा हो गया था कि आज का दिन जालोर के इतिहास के पन्नों में जरूर सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने वाला है या जालोर की प्रजा के लिए काला दिवस साबित होने वाला है ।

प्रातः दासी ने थाली में गेंहू पीसने से पहले साफ करने के लिए थाली में लिए ही थे कि अचानक थाली में पड़े गेँहू में हलचल हुई। फर्श पर पड़ी गेंहू से भरी थाली में कम्पन्न होने लगी, दासी को किसी भारी अनिष्ट की शंका हुई, दासी दौड़ती हुई राजा कान्हड़देव जी के पास गई और थाली में कम्पन्न वाली बात बताई । 

कान्हड़देव जी को अहसास हो गया कि हो न हो किसी भेदी ने दुर्ग की दीवार के कमजोर हिस्से की जानकारी दुश्मन को दे दी हैं, ओर दुश्मन किले में प्रवेश कर चुका है ।

क्योंकि दुर्ग का निर्माण करते समय दीवार का एक कोना शेष रह गया था, तभी संदेश मिल गया था कि अलाउद्दीन की सेना दिल्ली से जालोर पर कब्जा करने कुच कर चुकी है अतः आनन फानन में उस शेष बचे हिस्से को मिट्टी और गोबर से लीप कर बना दिया था, यह जानकारी मात्र गिने चुने विश्वासपात्र लोगों को ही थी । 

आभ फटे,धर उलटे, #कटे बगत रा कोर
शीश कटे धड़ तड़फड़े, #तब छुटे जालोर 

यह लड़ाई थी स्वाभिमान की, यह लड़ाई थी क्षत्रित्व की, अल्लाउद्दीन की बेटी फिरोजा विरमदेव जी से विवाह करना चाहती थी, लेकिन विरमदेव एक तुर्कणी से विवाह करना नही चाहते थे, इसी कारण अल्लाउद्दीन ने जालौर पर सेना भेजी थी, वैसे इसके पहले भी अल्लाउद्दीन जालौर पर दो बार आक्रमण कर चुका था, लेकिन दोनों ही बार कान्हड़देव जी से उसे पराजित होना पड़ा था ।

मामो लाजे भाटिया #कुऴ लाजे चव्हाण
 हुं जद परणु तुरकणी #उल्टो उगे भाण..!

अलाउद्दीन की सेना कई महीनों से जालोर दुर्ग को घेर कर बैठी रही, लेकिन दुर्ग की दीवार को भेदना असंभव था, सेना इसी आस में बैठी थी कि आखिर जब किले में राशन पानी खत्म हो जाएगा तब राजपूत शाका जरूर करेंगे, लेकिन न राशन पानी खत्म हुआ और ना ही सेना किले को भेद सकी आखिर में थक हारकर सेना दिल्ली के लिए कुच करने लगी, तभी विका दहिया नामक व्यक्ति ने जा कर सेनापति को उस दीवार के कच्चे भाग की जानकारी दे दी, ( क्योकि विका दहिया और कान्हड़देव जी मे किसी बात को लेकर मतभेद हो गया था )  विका दहिया को यह तो पता था कि किले की दीवार का एक हिस्सा कच्चा है लेकिन कौनसा यह पता नही था  

उधर वीका दहिया की पत्नी हीरादे को यह बात मालूम पड़ी की उसके पति ने विश्वास घात किया है, विका दहिया के घर जाने पर उनकी पत्नी हीरादे ने कटार से विका दहिया का सिर धड़ से अलग कर दिया था ।

तुर्की सेनापति ने कयास लगाया, क्यों न पूरी दीवार पर पानी छिड़क कर राई डाल दी जाये ताकि सुबह तक जो भाग कच्ची मिट्टी और गोबर से बना होगा वहां #राई अंकुरित हो जाएगी और हमे पता चल जाएगा कि कौनसा हिस्सा कमजोर है । 

उधर कान्हड़देव जी ने दरबार लगाया, क्षत्राणियों को भी संदेश पहुंचाया गया कि आज मर्यादा की बलिवेदी प्राणों की आहुति मांग रही है । 

चेत मानखा दिन आया  #रणभेरी आज बजावाला आया
उठो आज पसवाडो फेरो, #सुता सिंह जगावाला आया..!

रानीमहल में जौहर की तैयारियां शुरू हुई, इधर क्षत्राणियां सोलह श्रृंगार कर सज-धज कर अपनी मर्यादा की बलिवेदी पर अग्निकुंड में स्नान हेतु तैयार थी, उधर रणबांकुरे केसरिया पहन शाके के लिए तैयार खड़े थे । 

दिन चढ़ने तक पूरा दुर्ग जय भवानी के नारों से गूंज रहा था, इधर क्षत्राणियां एक एक कर अग्निस्नान हेतु जौहर कुंड में कूद रही थी उधर रणबांकुरे तुर्को पर टूट पड़े और गाजर मूली की तरह काटने लगे, नरमुंड इस तरह कट कर गिर रहे थे जैसे सब्जियां काटी जा रही हो । 

#जोहर री जागी आग अठै, #रळ मिलग्या राग विराग अठै
#तलवार उगी रण खेतां में, इतिहास मंडयोड़ा रेता में..!

मुट्ठीभर रणबांकुरे हजारों की सेना  के आगे कब तक टिक पाते, रणभूमि में लड़ते लड़ते कान्हड़देव जी और उनके बहुत से साथी वीरगति को प्राप्त हो हुए ।

उसी समय विरमदेव जी का राजतिलक किया गया, विरमदेव जी चामुण्डा माता की आराधना करने गए, ओर बोले, हे माँ रणभूमि में मेरा साथ देना, माँ चामुण्डा ने वचन दिया, जा लड़ में तेरे साथ हूँ, पर एक बात का ध्यान रखना, पीछे मुड़कर मत देखना, माता का आशीर्वाद लेकर कूद पड़े रन भूमि में, विरमदेव ऐसे लड़ रहे थे, जैसे साक्षात चामुण्डा रणभूमि में तांडव कर रही हो, दुश्मनों को गाजर मूली की तरह काटने लगे, काटते काटने सेना का अंत ही नही आ रहा था, तभी विरमदेव ने सोचा कि अभी और कितनी सेना बची है, ऐसा सोचकर पीछे देखा, तभी माँ चामुण्डा बोली तेरा मेरा वचन पूरा हुआ, उसके बाद भी वीरमदेव जी लड़ते रहे, तभी अचानक दुश्मन ने पीठ पीछे से वार कर विरमदेव का सिर धड़ से अलग कर दिया । 

युद्ध मे साथ आई मुगल दासी ने विरमदेव का सिर थाली में लिया और ससम्मान दिल्ली के लिए रवाना हो गई ताकि अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा को दिए वचन को पूरा कर सके, सोनगरा का सिर दासी की गोद मे और धड़ रणभूमि में कोहराम मचा रहा था । 

दिन ढलते ढलते सभी क्षत्रिय रणबांकुरे मातृभूमि के काम आ चुके थे, लेकिन विरमदेव का धड़ अभी भी कोहराम मचा रहा था ।

 तभी किसी ने कहा धड़ को अशुद्ध करो, सेनापति ने सोनगरा के धड़ पर अशुद्ध जल के छींटे डाले और धड़ शांत हो गया।

तुर्को ने दुर्ग तो विजय कर लिया था लेकिन चारों तरफ लाशों और नरमुण्डों के ढेर पड़े थे, दुर्ग की नालियों में पानी की जगह खून बह रहा था, वीरान दुर्ग सोनगरा के बलिदान पर आज भी गर्व से सीना तान खड़ा हैं । 

शाम के सन्नाटे में एक लालची सेठ अपनी #राई बेचने निकला "राई ले ल्यो रे राई"

पास से गुजरते सिपाही को पूछा "भाई आज राई नही खरीदोगे"

सिपाही ने जवाब दिया
                           "राई रा भाव राते ई बीत ग्या भाया"

उधर विरमदेव का सिर लिए दासी दिल्ली स्थित फिरोजा के महल पहुँची और शहजादी के समक्ष थाली में सजा सोनगरा का सिर रखा, फिरोजा ने जैसे ही थाल में सजे सोनगरा के सिर से औछार (थाल ढकने का वस्त्र) हटाया, सोनगरा का स्वाभिमानी सिर उल्टा घूम गया, फिरोजा ने अंतिम निवेदन करते हुए कहा
#तज तुरकाणी चाल #हिन्दुआणि हुई हमें,
#भो-भो रा भरतार, #शीश न धुण सोनगरा !

#जग जाणी रे शूरमा  #मुछा तणी आवत,
#रमणी रमता रम रमी #झुकिया नही चौहान

वीर विरमदेव जी सोनगरा का धड़ जहाँ गिरा था, वहाँ पर उनका मन्दिर बना हुआ है, सोनगरा मोमाजी के नाम से पूजे जाते है, तथा जालौर के हर गाँव मे सोनगरा मोमाजी के मन्दिर बने हुए है, हर घर मे उनकी पूजा की जाती है, दीन दुखियों को ठीक करते है, वाजियो को पुत्र देते है, तथा उनसे मांगी हुई हर मनोकामना पूर्ण करते है ।

जय सोनगरा वीर
जालौर दुर्ग का इतिहास 

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