गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

राव कुंपा


राव कुंपा

जल ड्योढी थल माय,कुंपा री कीरत करां।
शीप समंदा मांय, मोती बख्सया मेहराजवत ।।



वीर योद्धा, दानी राव कुंपाजी ने अपने 41 वर्ष के जीवन काल में 52 युद्ध लड़े व सभी में विजयी रहे।
राव कुंपा जी राठौड़ का नाम  दक्ष सेनापति, वीरता, साहस, पराक्रम और देश भक्ति के लिए मारवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। राव कुंपा जी, जोधपुर के राजा राव जोधा के भाई, राव अखैराज के पौत्र व मेहराज जी के पुत्र थे।
इनका जन्म वि.सं. 1559 शुक्ल द्वादशी मार्गशीर्ष माह को राडावास धनेरी (सोजत) गांव में मेहराज जी की रानी करमेति भटियाणी जी के गर्भ से हुआ था।
राव जेता जी, मेहराज जी के भाई, पंचायण जी के पुत्र थे। अपने पिता के निधन के समय राव कुंपा जी की आयु एक वर्ष थी,बड़े होने पर ये जोधपुर के शासक मालदेव की सेवा में चले गए। मालदेव अपने समय के राजस्थान के शक्तिशाली शासक थे, राव कुंपा व जैता जी जैसे वीर उसके सेनापति थे, राव कुंपाजी व राव जैता जी ने राव मालदेव की ओर से कई युद्धों में भाग लेकर विजय प्राप्त की और अंत में वि.सं. 1600 चेत्र कृष्ण पंचमी को गिरी सुमेल युद्ध में दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के साथ लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। इस युद्ध में बादशाह की अस्सी हजार सेना के सामने राव कुंपा व जेता दस हजार सैनिकों के साथ थे। भयंकर युद्ध में बादशाह की सेना के चालीस हजार सैनिक काट डालकर राव कुंपा व जेता ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ वीरगति प्राप्त की। मातृभूमि की रक्षार्थ युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले मरते नहीं वे तो इतिहास में अमर हो जाते है-

अमर लोक बसियों अडर,रण चढ़ कुंपो राव।
सोले सो बद पक्ष में चेत पंचमी चाव।

उपरोक्त युद्ध में चालीस हजार सैनिक खोने के बाद शेरशाह सूरी आगे जोधपुर पर आक्रमण की हिम्मत नहीं कर सका व विचलित होकर शेरशाह ने कहा :-

बोल्यो सूरी बैन यूँ , गिरी घाट घमसाण।
मुठ्ठी खातर बाजरी,खो देतो हिंदवाण।।

अर्थात -“मुट्ठी भर बाजरे कि खातिर मैं दिल्ली कि सल्तनत खो बैठता।” और इसके बाद शेरशाह सूरी ने कभी राजपूताना में आक्रमण करने कि गलती नहीं की।
राव कुंपा जी राठौड़ के वंशज वर्तमान समय में कुंपावत राठौड़ कहलाते हैं।

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