महाराजा जसवंतसिंह जी की शहादत के बाद मारवाड राजघराने
के एक मात्र जीवित चिराग राजकुंवर अजितसिंह को जब
औरंगजेब ने अपने किले मे बन्दी बनाकर मारने की योजना
बनाई. जिसकी भनक लगते ही वायु से भी तेज वेग और बिजली
से भी अधिक फुर्ती से राष्ट्रवीर दुरगादास राठौड मुगलिया
किले मे प्रवेश कर राजकुंवर अजितसिंह को अपनी पीठ पर
बांधकर किले से बाहर लेकर आये. मेवाड, सिरोही और मारवाड
रिसायत के अलग अलग ठिकानो पर शिशु अजितसिंह को
औरंगजेब की कुदृष्टी से छुपाकर युगपुरुष वीरवर दुर्गादास
राठौड ने उनका लालन पालन कर बडा किया. कभी गोगुन्दा की
पहाडियो के बीच तो कभी सिरोही की चुली, राडबर की
पहाडियो मे तो कभी गोईली गांव मे अजित को छुपाकर रखा.
कभी जालोर जिले के जंगलो मे तो कभी बाडमेर के छप्पन की
पहाडियो मे ओट लेकर लगभग 20 वर्षो तक अजितसिंह को
दुनिया की नज़र नही लगने दी.
महाराजा जसवंतसिंह जी को दिये वचन और महाराजा के भरोसे
(आज मै इस पर छाया कर रहा हु एक दिन ये मारवाड पर छाया
करेगा) पर खरा उतरते हुये वीरवर दुर्गादास राठौड ने प्रतिज्ञा
ली थी कि जब तक अजितसिंह को मारवाड का शासक घोषित
नही करवा दुं तब तक ना खुद चैन से बैठुंगा और ना ही
औरंगजेब को चैन की निन्द सोने दुंगा. साथ ही ये भी शपथ ली
कि औरंगजेब की मुस्लिम राष्ट्र की निति को मारवाड मे कभी
कामयाब नही होने दुंगा. जिसके चलते ही मारवाड मे हिन्दु धर्म
को किसी प्रकार की कोई आंच तक नही आयी. औरंगजेब
मारवाड का एक भी धार्मिक मन्दिर नही तोड सका, एक भी
हिन्दु व्यक्ति को मुस्लिम नही बना सका. औरंगजेब के मिशन
इस्लाम को सफल बनाने मे लगे उसके सिपाहियो और गोळो
(गांगाणी का पट्टा प्राप्त करने वाले) को मारवाड के
प्रतिपालक दुर्गादास राठौड ने कभी कामयाम नही होने दिया.
वीर शिरोमणी दुर्गादास राठौड ने मारवाड की जिर्णशिर्ण
राजपुत शक्ति को पुनः एक बार महाशक्ति मे तब्दिल किया.
छोटे छोटे कुनबो मे बिखर चुके राजपुतो को पुनः पंचरंगा ध्वज
के निचे एकजुट करके औरंगजेब को इतने घाव दिये कि
औरंगजेब का पुरा शरीर छलनी हो गया. औरंगजेब हर मोर्चे और
हर चाल मे विफल होता गया. यहाँ तक कि उसका स्वयं का
पुत्र उसके विरोध मे खडा हो गया.
जिस पर कवि ने लिखा
ढबक ढबक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारा की!
आसा घर दुर्गो ना होतो सुन्नत होती सारो की!!
अर्थात आज जिन घरो और मन्दिरो मे ढोल और नगारे बज रहे
है यानी कि हिन्दुत्व कायम है वो सिर्फ और सिर्फ दुर्गादास
की वजह से कायम है. अगर आसकरण जी के घर दुर्गादास ने
जन्म नही लिया होता तो आज मारवाड मे चारो ओर सुन्नत
(मुस्लिम ही मुस्लिम) नज़र आती.
देश सपूत वीरवर दुर्गादास राठौड मात्र मारवाड या राजपुताने
तक ही सिमित नही रहे. उन्होने पुरे हिन्दुस्तान के साथ साथ
एशिया और युरोप मे भी अपनी धाक जमाई. काबूल के पठानो
से लेकर अरब के शेखो तक को अपनी तरफ मिलाकर विदेशी
आक्रमण से औरंगजेब को भयभित किया तो मराठा, सिख और
गुरखो से अलग अलग विद्रोह करवा कर औरंगजेब को हमेशा
मारवाड से कोसो दुर रखा. क्षात्र धर्म के नेमी वीरवर
दुर्गादास की कूटनिति का ही परिणाम था कि इन 20 से 25
वर्षो तक औरंगजेब कभी शांति से मारवाड के बारे मे सोच ही
नही सका. उपर से वीर दुर्गादास राठौड ने औरंगजेब की नाक
के नीचे से उसके छोटे छोटे पोता पोती को अगवा करके छप्पन
की पहाडियो मे लाकर छुपा दिया. जो औरंगजेब के लिये छुल्लु
भर पानी मे डुब मरने जैसी बात हो गयी. दुर्गादास ने औरंगजेब
के पोता पोती को कई सालो तक अपनी कैद मे रखा. और इस
दरम्यान उनको उर्दु तालिम देने के लिये दुर्गादास ने बकायदा
एक मौलवी को तैनात किया. बाडमेर के गढ सिवाणा के पास
छप्पन की पहाडियो मे एक छोटा सा किलानुमा पोल बनायी.
उसके पास ही उनको रखा गया था. जहाँ स्वयं वीर दुर्गादास
राठौड प्रतिदिन उनकी देखभाल के लिये आते थे. लेकिन इतने
सालो मे एक बार भी इस वीर ने औरंगजेब के पोता पोती को
अपना चेहरा नही दिखाया, पर्दे की ओट मे ही उनसे बातचित
की जाती थी. जिसके कारण दोनो बच्चे दुर्गादास जी को केवल
आवाज़ से ही पहचानते थे शक्ल से नही. जब वीरवर दुर्गादास
राठौड और औरंगजेब के बीच समझौता हुआ, उसने मारवाड के
शासक के रूप मे अजितसिंह को स्वीकार किया तब उसके पोता
पोती को ससम्मान वापस पहुंचाया गया. बच्चो से मिलकर जब
औरंगजेब ने पुछा कि बच्चो आप कहाँ थे? और आपको वहाँ
किसने रखा था? तो बच्चो ने कहा जगह का तो पता नही पर
हम वहाँ दुर्गा बाबा के पास थे. तब औरंगजेब ने कहा आपका
दुर्गाबाबा कौन है हमे भी बताओ तब बच्चो ने कहा हम उनको
शक्ल से तो नही जानते पर अगर वो बोलेंगे तो हम बता देंगे, हम
उन्हे सिर्फ आवाज़ ही पहचानते है. उनको कभी देखा नही.
कहते है वीर दुर्गादास राठौड ने औरंगजेब के सामने जब उन
बच्चो को पुकारा तो दोनो बच्चो ने बाबा को बाहों मे भर लिया
और लिपट गये. कहते है जब औरंगजेब ने ये दृश्य देखा तो
उसके मन से कट्टरता की भावना ही खत्म हो गयी.
ताम्रपत्र को रखा घुटने पर, औरंगजेब को किया जलिल
महाराजा जसवंतसिंह की शहादत के बाद मारवाड को अपने
एकाधिकार मे लेने की सोच के साथ ही औरंगजेब ने एलान
करवा दिया था कि कोई भी व्यक्ति जसवंतसिंह या उसके
परिजनो का नाम लेगा उसकी जुबान काट दी जायेगी. लोग
अजितसिंह और जसवंतसिंह का नाम तक अपनी जुबान पर नही
लाते थे. जब वीरवर दुर्गादास राठौड और औरंगजेब के बीच
समझौता हुआ. उसके पोता पोती के बदले मारवाड का राज्य
देने की बान बन गयी तब दुर्गादास राठौड को मारवाड राज्य का
ताम्रपत्र जारी किया गया. उस काल की परम्पराओ के अनुसार
बादशाह द्वारा बक्शिस किया गया ताम्रपत्र अपने हाथो मे
लेकर सिर पर रखने का रिवाज़ था. एक कहावत कही जाती है
कि “राज का आदेश सिरोधार्य”! लेकिन वीर दुर्गादास ने वो
ताम्रपत्र सिर पर नही रखकर अपने दाहिने पैर के घुटने पर
रखा. जिसे देखते ही औरंगजेब तुरंत समझ गया कि स्व.
महाराजा जसवंतसिंह का पुत्र राजकुंवर अजितसिंह अभी तक
जिन्दा है. और औरंगजेब के मुंह से अनायास ही निकल गया
“क्या जसवंतसिंह की औलाद जिन्दा है?” तब महान
रणनितिकार वीरवर दुर्गादास राठौड ने कहा “मै नही आप कह
रहे है” यानी कि अब जुबान कटवाने की बारी आपकी है. कहा
जाता है कि उस समय औरंगजेब भरी सभा मे बहुत लज्जित
हुआ और फिर इस लज्जा से बचने के लिये आटे से औरंगजेब
का एक पुतला बनाकर उसकी जीभ काटकर औपचारिकता पुरी
की गयी.
“शत शत नमन वीरवर दुर्गादास राठौड”
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