ऊभी आई हूं अर आडी निकल़ूंली-
नांणो बैड़ा ठिकांणै रो एक गांम हो। बैड़ा मारवाड़ में राणावत सिसोदियां रो ठिकाणो हो। उठै रा तत्कालीन ठाकुर रो आपरी छोटी ठुकराणी माथै लाड घणो हो। उण ठकुराणी रो ठाकुर थूक ई नीं उलांघता। जोग सूं ठाकुर बीमार पड़्या तो ठकुराणी नै चिंता हुई कै ठाकुर तो पाटवी बेटो बणसी अर उवो मोटोड़ी रो है। जणै उण ठकुराणी ठाकुर रै मांचै री ईस कनै बैठ निसासो न्हाखियो।
ठकुराणी नै निसासो न्हाखतां देख ठाकुरां कह्यो कै-- "आयो है सो तो जावसी। कोई बेगो तो कोई मोड़ो, जावणो ई है। इणमें निसासो न्हाखण री कांई जरूरत?"
जणै ठकुराणी कह्यो कै- "हुकम! आपरै सौ वरस कर्यां, हूं अर म्हारो जायो लोगां रा मातेत हुय जासां। उणां री इच्छा माथै जीवणो दुभर हुय जासी। सो म्हारै छोरै सारू ई, कठै न्यारी पगरखी खोलण री जागा आपरै रैतां-रैतां हुय जावै तो म्हारै नहचो हुवै।"
बात ठाकुरां रै हियै बैठगी। उणां आपरै मोटै कुंवर नै बुलाय कह्यो -
"बेटा! आपांरै कुळ मं अर जात मं ऐड़ा-ऐड़ा नर हुयग्या जिकां बाप री इच्छा रै सनमान सारू राज, देस तक छोड दिया। सो म्हारी इच्छा है, कै तूं म्हारी बात मान।"
बेटो सपूत हो। उण कह्यो आपरी इच्छा है, तो हूं म्हारो हक छोड दूं लो।"
जणै ठाकुरां कह्यो कै--
"नीं, हूं बैड़ा सूं आधो ठिकाणो तनै अर नाणा सूं आधो ठिकाणो लोहड़ियै नै देवूं।तूं इण बात नै मानै तो हूं मर्यो मुखातर पाऊं।" बडै बेटै बात मानली अर बैड़ा ठिकाण रा दो बंट हुयग्या।
पण जिकी बात लिख रह्यो हूं, उण दिनां बैड़ा रो ठाकुर पृथ्वीसिंह अर नाणा रा ठाकुर चिमनसिंह, पदमसिंह रो हा। चिमनसिंह घुड़सवारी रो शौकीन। चिमनसिंह बड़बोलो ई हो। अर जिका मुटबोला हुवै उणां सूं रणांगण में कृपाण रो तेज झलै नीं। आ ई नीं, चिमनसिंह लांग रो काचो ई हो।
इणी चिमनसिंह रै कुंवर रो नाम हो लालसिंह। लालसिंह रो ब्याव निबैड़ै रै उदावत सिमरथसिंह री बेटी अगरां साथै हुयो। अगरां वीर, साहसी, चरित्रवान अर दूरदर्शी महिला ही। आ ई नीं उवा शिकार री पण शौकीन ही, सो उण कनै आबू, अजमेर आद जागा सूं अंग्रेज मीमड़ियां आवती रैवती। अर आ उणां नै आपरै इलाकै में शिकार रमावती, सोरी राखती सो मीमड़ियां इण सूं घणी राजी।
अठीनै बैड़ा ठाकुर पृथ्वीसिंह रो ब्याव मारवाड़ रै मुसाहिब ए-आला अर ईडर नरेश सर प्रताप री बेटी सागै हुयो। सर प्रताप नै लोगां कह्यो कै "हुकम! आप ईडर रा नरेश अर मारवाड़ धणी रा भाई हो पछै आप एक गांम धणी नै आपरा बाईसा परणाय कोई गीरबैजोग काम नीं कियो! कठै राजा रो रजवाड़ो अर कठै इंदर रो अखाड़ो?" सर प्रताप नै सलाहकारां सलाह दीन्हीं कै कम सूं कम आप 'नाणा' नै पाछो 'बैड़ा' भेळो रळाय दो।
आ सलाह सर प्रताप रै जचगी अर उणां एक दळ मेल्यो, अर नाणा ठाकुर चिमनसिंह नै आदेश दियो कै "नाणो पाछो बैड़ै में मिला दियो सो ओ गढ छोड दियो जावै, नीतर राज आपरै दल़-बल़ सूं गढ छोडावैला। बेइज्जती कराय'र बैवोला तो इणसूं आछो है कै सदियै-सदियै निकळ जावो।"
चिमनसिंह थोड़ो घणो उजर कियो जणै सर प्रताप रो आदेश आयो कै -"तपड़ बारै फैंक दिया जावै अर हुकम अदूली में ठाकुर अर कुंवर नै पकड़ लियो जावै।"
राज रै किणी संदेशवाहक पाछो जाय ठाकुर नै सारी हकीकत कैयी तो ठाकुर रै बळ जवाब दे दियो। वो जनाना गाभा पैर आपरै कुंवर सागै लारलै बगैरणै सूं आपरै ठिकाणै रै एक गांम चांमडरी जावतो रुक्यो।
सर प्रताप रै दल़- मुखिया देख्यो कै कोट नै अजै ई चिमनसिंह खाली नीं कियो तो उण रीस में धमकी दी कै
-"या तो गढ छोड दियो जावै या जीवित पकड़ीजण सारू संभ जावै।"
आ बात सुण'र कोट रै मांयां सूं कुंवराणी कैवायो कै-
" गढ में ठाकुर नीं है, सो कोट खाली नीं कर सकां। उवां आयां ई खाली हुसी, म्हैं एकलै जनाना कठै जावा?"
ऐ समाचार जोधपुर पूगाया तो सर प्रताप कैवायो कै कुंवराणी नै कैवाय देवो कै -आप मरदाना डोढी सूं जनाना डोढी में जावो परा ताकि म्हे बैड़ा ठाकुर साहब रै नाम रो अमल गळाय दुहाई फेरावां।"
आ सुण कुंवराणी कह्यो कै--
"अठै कोई मरद है नीं, जणै मरदाना ड्योढी भळे कैड़ी? अठै सगळी जनाना ई इज है, सो आज तो जनाना ड्योढी इज है। अतः कोट खाली नीं कियो जा सकै।"
ऐ समाचार भल़ै जोधपुर पूगा तो सर प्रताप पाछो आदेश दियो, कै लुगायां है, गिदड़-भभक्यां करो। डर जावैला सो एकर कूड़ी बंदूकां ताणो।"
सैन्यदळ भळे पग पटक्या अर बंदूकां ताणी तो मांयां सूं कुंवराणी ई बंदूकां ताणली। उणां समाचार कराया कै -
"म्हांनै नाणो सर प्रताप रै दियोड़ो नीं है, सो इयां डर'र छोड दूं! कोट मं म्हैं मोड़ वडो कियो है। *अठै म्हैं ऊभी आई हूं, अर आडी जावूंला।* हमैं कोट कानी पग उवो इज करैला जिणरै दो माथा हुवै, या जिणरै बटीड़ लाग लोही री जागा दूध निकल़तो हुवै। जैड़ो कुतको थां कनै है, उड़ो खीलो म्हारै कनै ई है।" आ कैय कुंवराणी आपरी बंदूंक ताण भुरज में मोरचो लियो।
सर प्रताप रै मेल्यै मिनखां हकीकत सूं पाछा सर नै अवगत कराया। आ सुण सर प्रताप गतागम मं फसग्या। आगै कुवो अर लारै खाई वाळी बात हुयगी। उवां दल़ नै समाचार करायो कै चार-पांच दिन उठै जमिया रैवो। आगलै आदेश नै उडीको।
अठीनै जोग ऐड़ो बण्यो कै अंग्रेज मीमड़ियां आबू सूं सिकार रै मिस घूमती-घूमती नाणा ढूकी। कोट मं आई तो आगै कोट में सोपो पड़्योड़ो। मिनख रो बोलाल़ो ई नीं। उवै इचरज में पड़गी। घोड़ां सूं उतर खड़ां-खड़ां कोट में गी। आगै कुंवराणी बंदूक ताण्यां उणांरै स्वागत में मिली।
मीमड़ियां हकीकत पूछी जणै कुंवराणी सारी बात अर नाणा रो इतियास ई बतायो। आपरी गाय रो घी सौ कोसै आडो आवै। इणीगत मीमड़ियां कुंवराणी री आवभगत सूं घणी राजी ही। सो उवै अजेज पाछी चढी, अर आबू जाय अंग्रेज सरकार सूं सर प्रताप रै आदेश माथै स्टे दिरा दियो। तीजै-चौथै दिन मारवाड़ रै राजाजी रै दळ री कार्रवाई माथै स्टे आयग्यो, अर पछै नाणो मुकदमो ई जीत ग्यो।
इण पूरी घटना उत्तर मध्यकालीन एक कटु साच नै आपांरै साम्ही अड़ीखंभ ऊभो कर दियो।
राणा रा वंशज जिकै कदै ई आपरी वीरता अर धीरता रै कारण चावा हा, उणी राणा रो एक वंशज चिमनसिंह आपरै विरुद्ध तणती तोपां नै देख'र छूटण सूं पैला ई गढ छोड पड़ छूटो। पण उणरी बहुआरी *अगरां* आपरी कुळ परंपरा रै विरद 'रणबंका राठौड़' नै अखी बणायो राख्यो।
अगरां रै चरित्र नै देखां तो लागै कै महाकवि सूर्यमल्लजी मीसण वीर सतसई में एक कायर पति सारू लिख्यो-
कंत घरै किम आविया,
तेगां रो घण त्रास।
लहंगै मूझ लुकीजिए,
वैरी रो न विसास।।
चिमनसिंह अर लालसिंह उण सूं ई एक पाऊंडो आगला निकल़्या। क्यूंकै दूजा कायर पति दुश्मणां सूं डरता घर आय आपरै धण रै गाघरै में लुकता जदकै ऐ तो घर छोड न्हाठा।
लक्ष्मीदानजी रै ऐ दूहा इण बात रा साखीधर है, कै चारण कायरां रा कटु निंदक अर वीरां नै वंदन वाळा हा। चिमनसिंह नै फटकारतां कवि लिखै--
कर कर केसरियाह,
बातां घणी बणावतो।
फौजां दळ फिरियाह,
छांनै पड़ भागो चिमन।।
(आडै दिन तो केसरिया कर करनै घणी ई बातां बगारतो पण जद फौजां आय फिरी तो कणै गढ छोड न्हाठो पतो ई नीं पड़ण दियो।)
कुल़ री छोडै कांण,
छतै पांण गढ छोडियो.
रजवट रो वट रांण,
छांटो नह रहियो चिमन।।
(चिमनसिंह आपरै घराणै री मरजादा छोड गाढ थकां गढ छोड न्हाठो। इण सूं क्षत्रियत्व में जिको मरट हुवै उणरो छांटो लारै नीं बच्यो)
लूंबै खळ लागाह,
दल़ फिरिया गढ दोल़िया।
भागल पड़ भागाह,
चिड़ियां ढळ पड़िया चिमन।।
(दल़ आय गढ घेरियो तो चिमनसिंह मनभागल हुय न्हाठो जाणै ढूलो चिड़्यां में पड़्यां चिड़्यां उडै)
लखणां हीणा लाल,
ओल़जहीणा आपही।
गढ में सेरी घाल,
चेरी बण भागो चिमन।।
(उणरै कुंवर लालसिंह में ई कीं लखण नीं हा अर ओ तो खुद ओल़झहीण हो ई सो दासी रै रूप में गढ री भींत में बारी घाल पड़ छूटो)
क्यां थे इतो कियोह,
विरथा वाद हिमत बिनां।
गढ छिटकाय गयोह,
चमक झमक करतो चिमन।।
(कवि कैवै कै थैं में गाढ नीं हो तो पैला वाद चढ्यो क्यूं? हमैं पगां में पायल़ बजावतो निकल़्यो नीं!)
वै सो बाल़क,
उणरै हाथ न ऊतरै।
नांणा गढ रो नेह,
चित सूं किम छूटो चिमन।।
(अरे गैला छोटै टाबर रै हाथ में कोई नाणो (रुपिया) झलादे तो सोरै सास बो ई पाछो नीं दे सो तूं अधबूढ नाणै रो नेह त्याग इयां कीकर निकल़ग्यो?)
लाडी हूंता लाल,
कंवरांणी हूती कमंध।
झिलम टोप खग झाल,
नांणो गढ छोडत नहीं।।
(जे थारो कुंवर लाडी हुवतो अर इणरी जागा जागा इणरी जोड़ायत कुंवर हुवती तो बखतर पैर लड़ती, इयां गढ छोडती नीं।)
अगरां नै कवि दिल खोल कवि दाद देतां लिखै--
कियो चिमन लालै कंवर,
नैड़ो उदियानेर।
अगरां सिंघण एकली,
आंगमियो आसेर।।1
*फौजां नै देख चिमनसिंह अर लालसिंह तो डरतां गढ छोड उदयपुर नेड़ो कियो पण अगरां गढ नै अंगेज हेज साथै मरण संभी)
फौजां झंडा फरहरै,
भभकी तोपां भाळ।
चित ओचकियो चिमन रो,
भैचकियो भुरजाळ।।2
(जद फौजां आय आपरा झंडा तांण्या अर तोपां घुराई तो चिमनसिंह रो चित्त जागा छोड दी।चिमनसिंह नै चैताचूक दीठो तो विचारो कोट ई डरग्यो कै हमैं म्हारो धणी कुण?)
धणियांणी धीरोपियो,
कंवरांणी क्रोधाळ।
म्हूं लड़सूं सधरै मतै,
भैचक मत भुरजाळ।।3
(ऐड़ै में गढ री धणियाप करतां धणियाणी खार खाय गढ रो जीव जमावतां कह्यो कै हे गढ! डर मत। थारै कारण हूं गंभीरता सूं लड़ूंली।)
मन द्रढ रख डरपै मती,
त्रह त्रहत्रहिया त्रंबाळ।
सिर धड़ ऊपर साबतो,
भिल़ण न दूं भुरजाळ।।4
(हे गढ! तूं चल़विचल़ मत होय। तूं मन में द्रढ रैय। ऐ जुद्ध -नगारा भलांई बाजो। जितै तक म्हारी धड़ माथै माथो साबतो है, उतै तक म्हैं तनै भिळण नीं दूं अर्थात वैर्यां रो मांयां आंगळी टिकाव ई नीं हुवण दूं।)
फौजां लड़ करसूं फतै,
तेगां झड़ रणताल़।
आंच थनै न आंणदूं,
जांण न दूं भुरजाल़।।5
(म्हैं खुद तरवार झाल रणांगण में फौजां कर'र लड़ूंली। तनै ई धकल ई नीं आण दूं अर नीं तनै वैर्यां रै हाथां जावण दूं।)
समर छोड खामंध ससुर
कायर भागो कंत।
हूं भाग जावूं हमैं,
धरती सिर धुणंत।।6
(थारो डरणो सही है क्यूंकै म्हारो कायर सुसरो अर डरपोक पति दोनूं समर छोड न्हाठग्या पण तूं निरभै रैय जे आंरै दांई म्हैं ई न्हाठगी तो धरती लाजां मरती माथो धूणैली)
समर छोड खामंध ससुर,
भागा दुरंग भळाय।
किलो छोड परठूं कदम,
(म्हारी)जात रसातल़ जाय।।7
(हे गढ! तूं आ मानलै कै उवै थोनूं गढ म्हनै भोळाय ग्या ऐड़ै में जे हूं थारो साथ छोड दूंली, तो म्हारी जात री गरिमा खतम हुय जावैला अर्थात रसातलळ में बुई जावैली।)
तात मात मौसाल़ तक,
सूरां साख संसार।
पल़टूं गढ ऊभां पगां,
(म्हारो)लाजै पीहर लार।।8
(हां थारो डरणो सही है कै म्हारा च्यारूं पख ऊजल़ा नीं है पण तूं आ तो जाणै कै म्हारा दो पख अर्थात पीहर अर नानाणो तो वीरता रै मारग ऊजल़ा है। इण बात री साख संसार भरै सो म्हैं ई थारै सूं बदल़गी तो म्हारो पीहर लाज सूं मर जावैला)
कंवरांणी सजियो किल्लो,
बिलकुल मरण विचार।
किलो रहियां रहसी कलम,
(म्हारी)लाज किला री लार।।9
(अतः कंवरांणी किल्लै नै रुखाल़ण सारू मरण तेवड़ियो क्यूंकै उवां जाणती कै किल्लो रह्यां म्हारी जीतब है। म्हारी लाज रो ढाकण ओ किल्लो इज है सो ओ रह्यां लाज रहसी।)
साभार- अजयसिंह राठौड़ सिकरोड़ी
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