बेला और कल्याणी
"बेला" पृथ्वीराज चौहान की पुत्री थी और "कल्याणी" जयचंद की पौत्री. जैसा कि हम सभी जानते ही है कि - अजमेर के राजा प्रथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द आपस में रिश्तेदार (मौसेरे भाई) थे. उनके नाना दिल्ली के राजा अनंगपाल ने दिल्ली का राज प्रथ्वीराज को सौंप दिया था इस बजह से जयचंद प्रथ्वीराज से ईर्ष्या करता था.
इसके अलावा जयचन्द की पत्नी की भतीजी संयोगिता (जिसे जयचन्द अपनी बेटी की तरह स्नेह करता था) का प्रथ्वीराज से प्रेम हो जाने और प्रथ्वीराज द्वारा संयोगिता का हरण कर ले जाने के कारण यह ईर्ष्या दुश्मनी में बदल गई थी. इन कारणों से जयचन्द किसी भी तरह से प्रथ्वीराज चौहान को समाप्त करना चाहता था.
उन दिनों में अफगान लुटेरा मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर आक्रमण किया था जिसमे प्रथ्वीराज चौहान की सेना के साथ सभी भारतीय हिन्दू राजाओं ने साथ दिया था. इस लड़ाई में मोहम्मद गौरी को बंदी बना लिया गया था तब वह कुरआन की कसम खाकर माफी मांग कर अपनी जान बचाकर वापस गया था.
गौरी का एक आदमी (मोइनुद्दीन चिश्ती) जो तंत्र मन्त्र में माहिर था वह अजमेर में रह कर संत की तरह एक मंदिर के बाहर बैठकर जासूसी का काम करेने लगा. जब उसको प्रथ्वीराज और जयचंद की दुश्मनी का पता चला तो उसने जयचन्द को समझाया कि - अगर तुम गौरी का साथ दो तो तुमको दिल्ली की सत्ता मिल सकती है.
जयचन्द उसकी बातों में आ गया क्योंकि तब तक जितने भी इस्लामी हम्लाबर भारत में आये थे वे केवल लूटमार करके वापस चले गए थे कोई भी भारत में राज करने के लिए नहीं रुका था. गौरी के फिर भारत पर हमले के समय जयचन्द ने न केवल गौरी का साथ दिया बल्कि अपने मित्र राजाओं को भी प्रथ्वीराज का साथ देने से रोका.
उस लड़ाई में प्रथ्वीराज की हार हुई और गौरी प्रथ्वीराज को बंदी बनाकर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया. जयचंद को लगता था कि उसे अब दिल्ली का राजा बनाया जाएगा उस जयचंद के मोहम्मद गौरी से जीत का ईनाम मांगने पर उसकी यह कहकर गरदन काट दी गई कि - जो अपनों का नहीं हुआ वह हमारा क्या होगा.
जिस संयोगिता के हरण को जयचन्द ने अपनी इज्ज़त का प्रश्न बनाया था उस संयोगिता को चिश्ती के कहने पर पूर्ण नग्न करके सैनिको के सामने फेंक दिया गया था. गौरी ने भारत की सत्ता अपने गुलाम कुतुबुद्दीन और बख्तियार खिलजी को सौंप दी और प्रथ्वीराज को बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया. साथ में भरत की हजारों महिलाओं को भी ले गया.
उन स्त्रीयों में प्रथ्वीराज की चचेरी बहन "बेला" और जयचन्द की पौत्री "कल्याणी" भी थी. मोहम्मद गौरी ने अपनी जीत के तोहफे के रूप में बेला और कल्याणी को गजनी के सर्वोच्च काजी निजामुल्क को देने का ऐलान कर दिया. इस घटना पर बने एक नाटक में बोले गए गौरी और काजी निजामुल्क के संवाद को भी यहाँ लिखना प्रासंगिक समझता हूँ.
गौरी ने काजी निजामुल्क से कहा - ‘‘काजी साहब! मैं हिन्दुस्तान से सत्तर करोड़ दिरहम मूल्य के सोने के सिक्के, पचास लाख चार सौ मन सोना और चांदी, इसके अतिरिक्त मूल्यवान आभूषणों, मोतियों, हीरा, पन्ना, जरीदार वस्त्रा और ढाके की मल-मल की लूट-खसोट कर भारत से गजनी की सेवा में लाया हूं’’
इस पर गौरी की तारीफ करते हुए काजी ने पूछा - ‘‘बहुत अच्छा! लेकिन वहां के लोगों को कुछ दीन-ईमान का पाठ पढ़ाया कि नहीं?’’
गौरी ने कहा - ‘‘बहुत से लोग इस्लाम में दीक्षित हो गए हैं’’ कुतुबुद्दीन, बख्तियार और चिश्ती वहीँ है और वे बुतपरस्ती को ख़त्म करने और इस्लाम का प्रचार करने में लगे हुए हैं
‘‘और वहां से लाये गए दासों और दासियों का क्या किया?’’
दासों को गुलाम बनाकर गजनी लाया गया है. अब तो गजनी में बंदियों की सार्वजनिक बिक्री की जा रही है. रौननाहर, इराक, खुरासान आदि देशों के व्यापारी गजनी से गुलामों को खरीदकर ले जा रहे हैं. एक-एक गुलाम दो-दो या तीन-तीन दिरहम में बिक रहा है.’’
‘‘हिन्दुस्तान के मंदिरों का क्या किया?’’
‘‘मंदिरों को लूटकर 17000 हजार सोने और चांदी की मूर्तियां लायी गयी हैं, दो हजार से अधिक कीमती पत्थरों की मूर्तियां और शिवलिंग भी लाए गये हैं और बहुत से पूजा स्थलों को नेप्था और आग से जलाकर जमीदोज कर दिया गया है।’’
‘‘वाह! अल्हा मेहरबान तो गौरी पहलवान’’ फिर मंद-मंद मुस्कान के साथ बड़बड़ाए, ‘‘गौरे और काले, धनी और निर्धन गुलाम बनने के प्रसंग में सभी भारतीय एक हो गये हैं जो भारत में प्रतिष्ठित समझे जाते थे, आज वे गजनी में मामूली दुकानदारों के गुलाम बने हुए हैं’’ फिर थोड़ा रुककर कहा, ‘‘लेकिन हमारे लिए कोई खास तोहफा लाए हो या नहीं?’’
‘‘लाया हूं ना काजी साहब!’’
‘‘क्या?’’
‘‘जन्नत की हूरों से भी सुंदर जयचंद की पौत्री कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला’’
‘‘तो फिर देर किस बात की है।’’
‘‘बस आपके इशारे भर की’’
और काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया. कल्याणी और बेला की अद्भुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं. उसने दोनों राजकुमारियों (बेला और कल्याणी) से इस्लाम कबूलने और उससे निकाह करने का प्रस्ताव रखा.
बेला और कल्याणी भी समझ चुकी थी कि - अब बचना असंभव है इसलिए उन्होंने एक खतरनाक चाल चली. बेला ने काजी से कहा -‘‘काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं’’
‘‘कहो..कहो.. क्या शर्तें हैं तुम्हारी! तुम जैसी हूरों के लिए तो मैं कोई भी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।
‘‘पहली शर्त से तो यह है कि शादी होने तक हमें अपवित्र न किया जाए और दुसरी शर्त है कि - हमारी परम्परा के अनुसार दूल्हा और दुल्हन का जोड़ा हमारी पसंद का और भारत से मंगबाया जाए. इस पर काजी ने खुश होकर कहा - ‘‘मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं’’
फिर बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया. काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया. रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आए.
कल्याणी, बेला और काजी ने भी भारत से आये हुए कपड़े पहन रखे थे. शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी. तभी बेला ने काजी साहब से कहा-‘‘हमारे होने वाले सरताज! हम कलमा और निकाह पढ़ने से पहले जनता को झरोखे से दर्शन देना चाहती हैं, क्योंकि विवाह से पहले जनता को दर्शन देने की हमारे यहां प्रथा है
और फिर गजनी वालों को भी तो पता चले कि आप बुढ़ापे में जन्नत की सबसे सुंदर हूरों से शादी रचा रहे हैं. शादी के बाद तो हमें जीवनभर बुरका पहनना ही है, तब हमारी सुंदरता का होना न के बराबर ही होगा. नकाब में छिपी हुई सुंदरता भला तब किस काम की।’’
‘‘हां..हां..क्यों नहीं’’ काजी ने उत्तर दिया और कल्याणी और बेला के साथ राजमहल के कंगूरे पर गया, लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते ही काजी साहब के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगी, क्योंकि क्योंकि कविचंद ने बेला और कल्याणी का रहस्यमयी पत्र समझकर बड़े तीक्ष्ण विष में सने हुए कपड़े भेजे थे.
काजी साहब विष की ज्वाला से पागलों की तरह इधर-उधर भागने लगा, तब बेला ने उससे कहा-‘‘तुमने ही गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया था ना, हमने तुझे मारने का षड्यंत्र रचकर अपने देश को लूटने का बदला ले लिया है. हम हिन्दू कुमारियां हैं समझे, किसमें इतना साहस है जो जीते जी हमारे शरीर को हाथ भी लगा दे’’
कल्याणी ने कहा, ‘‘नालायक! बहुत मजहबी बनते हो, अपने धर्म को शांतिप्रिय धर्म बताते हो और करते हो क्या? जेहाद का ढोल पीटने के नाम पर लोगों को लूटते हो और शांति से रहने वाले लोगों पर जुल्म ढाहते हो, थू! धिक्कार है तुम पर.’’
इतना कहकर दोनों राजकुमारियों ने महल की छत के किनारे खड़ी होकर एक-दूसरी की छाती में विष बुझी कटार जोर से भोंक दी और उनके प्राणहीन देह उस उंची छत से नीचे लुढ़क गये. पागलों की तरह इधर-उधर भागता हुआ काजी भी तड़प-तड़प कर मर गया.
भारत की इन दोनों बहादुर बेटियों ने विदेशी धरती पर पराधीन रहते हुए भी बलिदान की जिस गाथा का निर्माण किया, वह सराहने योग्य है आज सारा भारत इन बेटियों के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद करता है. यह कहानी स्कूली इतिहास की किताबों में नहीं मिलेगी लेकिन यह बहुत मशहूर लोककथा है जिसपर मेलों में अक्सर नाटक खेला जाता है.
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