शेखाजी से हार के बाद चन्द्रसेन का अपनी हार पर चिन्तन करना और अपनी सेना को संगठित कर शेखाजी पर फिर से आक्रमण की तैयारी करना।
शौर्य शेखा का अध्याय-6
शेखा आ तूँ बुरी करी,घटग्यो म्हारो माण।
वक़्त वक़्त री बातां सारी,वक़्त प लेस्यां जाण।।
वक़्त थारो तो आतोड़ो है,म्हारी गयी पिछाण।
शेर मारण र खातर शेखा,ऊँचो घाल्यो मचाण।।
चन्द्रसेन रा राज र माँहि,काळो पड्यो अकाश।
चाँद सूरज भी काळा पड़ग्या ,ना देवे प्रकाश।।
जीत है जश्न मानवणी,जीत्यो गढ़ आमेर।
रही अबे न लाग लपट अर,ना ही रही बछेर।।
शेखा थारो जस बढियो बढ्यो सिंघ रो राज।
कुल कछावा माँहि शेखो,भुपां रो शरताज।।
हार,हरण सूं मरण भलो,भलो बिना सिर ताज।
काट्या पंख पखेरू रा,ना पँखा परवाज।।
चिंता चिता समान है,चिंता चित रो नाश।
चिंता छोडो चंद्रराज जी,इण सूं हुवे विनाश।।
गढ़ आमेरी लश्कर डटिया,गाँव धुळी र खेत।
आज बचेड़ो चुकसी शेखा,चुकसी सूद समेत।।
घणो तने समझायो चन्दरजी,मत न रोपे फ़ांस।
रण मं पीठ दिखावणियो,तूँ कुल रो खोनाश।।
हारया ओजूं फेर चन्दरजी,भाग रह्या ढुंढाँर।
अबक शेखोजी कर लियो,कूकस पर अधिकार।।
जे गढ़ आमेरी सूरज डूब्यो,रुळ ज्यासी ढ़ूंढ़ाड़।
एको करल्यो अब सगळा,जीत लेवां बरवाड़।।
शेखो अब ललकार रह्यो,सकल कछावा भूप।
कसल्यो काठी घुड़लां री,रण में करस्यां कूच।।
नरुजी जायो नार रो,चन्दर थारे साथ।
गढ़ आमेरी मान राखस्यां,धर तरवारां हाथ।।
रणछोड़ू रणधीर थे होग्या,दो बर बखस्या प्राण।
तीजां रण र माहि चन्दर जी,थारा जगे मसाण।।
किण भगतां तूं जण्यो चंद्रजी,कलंक लग्यो रघुराज।
घणा घणा कुलधीर जन्मिया,इण कुल रा सिरताज।।
कुबद थारी अब मिटे चन्द्रजी,रख रजपूती मान।
कायर बणियो कुळ कलंक ,भागे रण मैदान।।
रजपूती रो जायो नहीं,जे छूटे मैदान।
ओ शेखो तो रण रमें,रण रो है बरदान।।
जे तूं साँचो बीर कहिजे,रण मं मिल्जये आज।
थारो शीश चढ़ाय के,रखूँ कछावा लाज।।
कुल कछाव जन्म लियो,जन्माय वीर अनूप।
शेखा मिलसी रण माँहि,सकल ढूंढाड़ी भूप।।
गढ़ आमेरी लश्कर उतराया,कूकस नद री पाळ।
शेखाजी रा लश्कर देखो,शस्त्र लिया सम्भाळ।।
देख शेखा रा लश्कर न,नरजी है बेहाल।
सूरज जेड़ो चमक रह्यो,शेखाजी रो भाल।।
झट नरजी अब पाळो बदल्यो,शेखाजी शरणाय।
नरजी थारे साथ है शेखा,हारलो चन्दराय।।
नरजी शेखा लश्कर माँहि,लग्यो चन्दर र घात।
म्हरो साथ निभावणीय अब,शेखाजी र साथ।।
हार मान क अब चन्द्रजी भेज्यो एक प्रस्ताव।
शेखा संधि मान ल्यो म्हारी,मेटो अब दुर्भाव।।
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