गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

सूरां मरण सांम ध्रम साटै!!

गिरधरदान रतनू दासोड़ी
राजस्थान रै मध्यकाल़ीन  इतियास नै निष्पक्ष भाव सूं देखण अर पुर्नलेखन री दरकार है।क्यूंकै आज जिणगत युवापीढी में जीवणमूल्यां रै पेटे उदासीनता वापर रैयी है वा कोई शुभ संकेत री प्रतीक नीं है।
उण बखत लोग अभाव में हा पण एकदूजै सूं भाव अर लगाव अणमापै रो राखता। ओ वो बखत हो जद स्वामीभक्ति अर देशभक्ति एक दूजै रा पूरक गिणीजता  हा।जिणांरै रगत में स्वामीभक्ति रैयी उणांरै ईज रगत में देशभक्ति रैयी।भलांई आपां आज इण बात नै थोड़ी संकीर्ण मानतां थकां  व्यक्तिवाद नै पोखण वाल़ी कैय सकां पण आ बात तो मानणी ईज पड़सी कै उण मिनखां में त्याग,समर्पण, अर मरण नै सुधारण री अद्भुत ललक ही।इणी ललक रै पाण उवै आज ई खलक में आदरीजै।
उण बखत ऐड़ा मोकल़ा मिनख हुया जिकां बिखम परिस्थितियां में ई ऊंची ताणी नीची नीं।मोत नै साम्हीं देख अट्टहास कियो पण उदास नीं हुया।वै चावता तो हालात सूं समझौतो कर लेता अर आवण वाल़ी पीढ्यां रा पग बांध जावता पण उवां हीणी नीं भाखी जिणरो साखी आज ई अठै रो संवेदनशील मानखो है, जिको उणांरो जस जनकंठां में पिरोय राख्यो है।
ऐड़ी ई एक गर्विली गाथा है  बीकानेर रै दो सपूतां -भोजराज रूपावत अर महेश सांखला री। बीकानेर रै इण दो महानायकां  माथै अजैतक नीं रै बरोबर लिखीज्यो है।
दोनूं ई निकलंक खाग रा धणी हा।दोनूं ई मातभोम रै खातर मरण नै  वरण सारू केसरिया कियोड़ा ईज राखता।
भोजराज रूपावत ,रूपाजी रिड़मलोत री वंश परंपरा में सादाजी रूपावत रा बेटा अर भेल़ू रा ठाकुर हा तो महेश सांखला जांगल़ू रा सांखल़ा पुनपालजी री वंश परंपरा में हुया।
सांखला जांगल़ू रा शासक रह्या।जांगल़ू नै पृथ्वीराज चौहाण री राणी अजांदे दहियाणी बसायो।अठै कीं दिन दइया शासक रह्या।जिणांरै मुदमुख केसोदादो उपाध्याय हो।
उणी दिनां रूण सूं गाडां गोल़ ले सीहड़दे सांखला रो भाई ,रायसी सांखलो अठै आय
गोल़वास रह्यो।इणरी बायां साथै दइयां रा कुंवरड़ा बोछरडायां करै।पण साखला पतल़ा सो करै कांई?
उणी दिनां केसोदादै  जांगल़ू री पोल़ आगै आपरै नाम सूं "केसोल़ाव" खुदावणो तय कियो पण दइया नटग्या।इण बात सूं रीसाय केसोदादै सांखल़ां साथै रल़ ,घात सूं दइयां नै मरा दिया।अठै रा शासक सांखला बणिया ।जिकै 'जांगल़वा सांखला' बाजै।
कह्यो जावै कै दइयां री हाय सूं केसोदादो तल़ाई खुदावतो बिचै ई मरग्यो हो।लोग तो आ ई कैवै कै जा पछै केसोदादै री संतति में फूठरा मिनख जनमणा बंद हुयग्या --
कुछ काणा कुछ काबरा,
केयक रेढारेड़।
दादा देखण आवजै,
केसू थारो केड़।।

इणी रायसी री परंपरा में खींवसी,कंवरसी जैड़ा अजरेल हुया।इणी ऊजल़ परंपरा में महेश सांखला रो जनम हुयो।
उण दिनां बीकानेर माथै राव जैतसी रो राज।वो जैतसी , जिणां रातीघाटी रै जुद्ध में काबुल रै मुगल पातसाह कामरान नै आपरी तरवार रो तेज बताय बांठां पग देवण सारू मजबूर कर दियो हो-

करनादे रा कोटड़ा,
कोटां काबल़ वट्ट।
राव हकारै जैतसी,
भागा कमरा थट्ट।।

जैतसी रै पसरतै सुजस अर बांकम सूं खार खाय वि.सं.1598 में बीकानेर माथै जोधपुर रा  राव मालदेव आपरै महाक्रमी सूरां जैता- कुंपा री अगवाणी में हमलो करण सारू आपरी सेना साथै बीकानेर रै गांम सोवै में डेरा दिया अर 
दबाव बणायो कै राव जैतसी मालदेव रै झंडै नीचै आय जावै।जैतसी जैड़ै अडर इण प्रस्ताव नै नीं मानियो।
सेवट आ तय हुई कै एक'र बीकानेर रै सरदारां सूं ई सलाह करली जावै।जद ओ प्रस्ताव सरदारां रै साम्हीं आयो उण बखत केई सरदारां कह्यो कै -"ठीक रैसी।क्यूं फालतू में ई एक ई घर रो रगत बहायो जावै।"
आ बात सुण'र उठै बैठे किलेदार  महेश सांखला माथो धूणियो।महेश नै माथो धूंणतां देख सरदारां पूछ्यो कै- "महेशजी माथो कीकर धूंणो? इण में कांई अजोगती है?सावल़ ईज है भाई नै भाई रो माथो नीं बाढणो पड़ै।"
आ सुण महेश कह्यो- "जर जमी जोर री!
जोर गयां और री!!
रसा कंवारी रावतां ,
वरै तिको ई वींद।
माथो तो मालकां रो है आपांरो नीं।लागै कै आपनै मरण रो भय है।जणै ई टाबरां दांई बातां करो!भाई !किसो भाई?ई मालदेव रै बाप गांगैजी नै जोधपुर किण दिरायो?इणी मोटमनै जैतसी---
सांभल़ै वचन मन धिखै क्रन -समोभ्रम,
धरे अत फौज घण मछर धायो।
जैतसी वडै प्रब जाय गढ जोधपुर,
उबेलण राव नै राव आयो।।(खेतसी गाडण)
दूजै कानी ओ मालदेव उणरो ओसाप उतारण नै बीकानेर खोसण आयो है !अर आप रातै कोइयां वाल़ा इणरी पगवाह सूं डरग्या!-
'डर सूं शस्त्र नांखदे ,
जिकै किसा रजपूत ?'
म्हैं अठा रो किलेदार हूं।किलो! म्हैं मरियां ई रावजी सूंप सकै ।म्हारै जीवता़ं नीं।
जिकै मरण सूं डरै ,उवै अठै सूं कूच करै अर जिणांनै बीकानेर रै "सौभागदीप" रो दीपक जगमगतो राखणो है उवै केसरिया करै।गढ! रावजी अर रावजी रै बाप दादां रो है। उवै चावै तो किणी नै ई दे सकै पण गिदड़ भभक्यां सूं राजपूत गढ सूंपै ओ पीढ्यां नै कल़ंक है।"
सभा में एक'र तो नीरवता छायगी।कोई कीं नीं बोल्यो।
महेश पाछो बोल्यो-
सूरां रो मरण तो स्वामी रै सटै ईज जगत में सौभै।किणी सूर रै ऊभां उणरो स्वामी चलविचल़ हुय आपरी आन-बाण छोडण सारू सोचै तो आ उण सूर रै सारू मरण सूं बधीक है।महेश रै इण भावां नै समकालीन कवि सूजा बीठू   कितरै सतोलै आखरां में पिरोया है कै महेश रै साम्हों ओ मरणमहोच्छब रो अवसर आयो तो उवो असमर झाल गर्व रै साथै बोल्यो कै म्हनै मारूराव आ धरती माथै रै सटै सूंपी है-
यूं कहै महेस वडे प्रब आयै,
गह असमर दाखवै गही।
मह मो सांपी राव मारूवै,
माथा साटै जितूं मही।।
महेश सांखला रा ऐ सतोला आखर सुण सेवट  भोजराज कह्यो -खमा!महेशजी री बात सोल़ै आना सही है ,आपां मालदेवजी री झंडी नीचै नीं बल्कि रणचंडी करनी री झंडी नीचै रैवांला।जुद्ध करांला पण हीणो डाव नीं देवांला।
सेवट आ ईज बात तय हुई के मालदेवजी नै मुंहतोड़ जवाब दियो जावै।
जद आ बात कूंपा महिराजोत नै ठाह लागी कै बीकानेर रा बीजा सरदारां रो मतो तो रावजी नै आपांरी बात सूं राजी करण रो हो पण महेश सांखलै बल़ती में पूल़ो नांखियो।आडी रो देवाल़ हुयो।कूंपोजी रीसाय महेश नै समाचार कराया कै-"म्हे भाई -भाई राजी जणै तूं कुण है आडी रो देवाल़?म्हांनै फालतू में लड़ावै।"आ सुण महेश समाचार कराया कै-थे रावजी रै भाई पाप रा हो, म्हे धरम रा भाई हां।म्हे लूण खायो है ।जठै रावजी रो पसीनो टपकसी उठै म्हांरो लोही झरसी।बीकानेर रो गढ म्हां मरियां मिलसी।म्हां जीवतां नीं।
राव जैतसी मुकाबलो करण रो द्रढ निर्णय कियो अर गढ रो भार रूपावत भोजराज नै भोल़ाय खुद मालदेवजी रो मुकाबलो करण गया।आम्हां-साम्हां डेरा हुया।राव जैतसी पठाणां सूं घोड़ा लिया जिको कामदारां नै पईसा चूकावण रो कैयग्या पण कामदारां दिया नीं जणै उवै पठाण लारै सोवै गया अर रावजी सूं तगादो कियो।आ सुण रावजी घोड़ां जीण कराय बीकानेर आया अर कामदारां नै फटकारिया।पठाण ई अणी-पाणी वाल़ा हा सो रावजी नै आफत में देख रुपिया लेवण सूं नटग्या।लारै दो च्यार बीकानेर रा सरदारां डेरे में चाल सूं हाको करायो कै रावजी पाछा कोट में बुवा गया।उठै थोड़ी घणी भगदड़ मचगी।अठीनै रावजी रातोरात पाछा सोवै गया पण रात रै अंधारै रै कारण भूल सूं राव मालदेव रै डेरे में बड़ग्या।राव मालदेव अर उणां रा आदमी रावजी माथै टूट पड़िया।मोत नै साम्हीं देख जैतसी न्हाठा नीं ,मुकाबलो कियो अर राव मालदेव रै धर्मविरोधी आचरण रै कारण वीरगत पाई।कवि सूजा बीठू लिखै कै मोत सूं डर'र न्हाठण नै तो जैतसी ई न्हाठ सकता पण आ बात उणां सीखी नीं ही। आ बात मालदेवजी ई सीखी जिकै केई वल़ा न्हाठा-
गांगावत जिम मांम गमाड़ै,
करन-समोभ्रम जाय किम।
भाजण तणा ज महणा अणभंग,
जैत न सहिया माल जिम।।
आ खबर बीकानेर पूगी तो गढ में अफरातफरी मचगी।उण बखत भोजराज कह्यो कै -गढ तो रावजी म्हनै सूंपग्या सो म्हैं माथै सटै ई सूंपसूं।जिकै मरण सूं डरो उवै कुशल़ जाओ परा अर जिणां रै नैणां लाज है उवै तरवारां लेवै।हे गढ!तनै जितै डरण री जरूरत नीं है जितै म्हारो सिर साबतो है--
बोहड़ो जिकै मरण सूं बीहै,
रहज्यौ जिकौ ज साथ रहै।
सिर साटै देसी सादावत,
कोटम बीहै भोज कहै।।(राघव बीठू)
उण बखत विशाल सेना रै साम्हीं भोजराज रूपावत अर महेश सांखला आपरै मुट्ठीक मिनखां साथै जिण अडरता सूं मुकाबलो कियो वो आज ई इतियास रै पानां में अमर है --

बीकानेर भोज बढाल़ै,
सारां मुंह ओडवै सरीर।
रूपाहरै राखियो रूड़ौ
नैहचै ई ऊतरतो नीर।।(राघव बीठू)
-
चंद सूर लग नाम चढायौ,
कर लग समदां तणै कड़ै।
सूरां मरण सांम ध्रम साटै,
पोहवी दीनी भ्रगुट पड़ै।।(सूजा बीठू)
तो आ बात ई अमर है कै उण बखत बीकानेर रै केई सरदारां मन माठो कियो तो केइयां घात ई करी।जिकां घात करी उणांनै फटकारतां किणी तत्कालीन कवि खारी बात कैयी पण दुजोग सूं उवा कविता पूरी नीं मिलै।जितरी मिली उवां इण भांत है--
गो रावत वड रंक,
गयो दूदो डंगाल़ी।
गो फाल़स हरराज,
गयो लिछमणियो छाल़ी।
गयो सूम सांगलो,
मोत निजरां जद आई।
गादड़ जगलो गयो,
.......
पण बीकानेर रै गुमेज नै कायम राखण सारू जिकै महावीरां मरण अंगेजियो उणांरो सुजस आज ई कायम है।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

MAHARAJA JAIPUR Late SAWAI BRIGADIER BHAWANI SINGH

Remembering "MAHARAJA JAIPUR" - Late 'SAWAI' BRIGADIER BHAWANI SINGH (10 Para,MahaVeer Chakra) on his 8th death anniversary, A king who earned his Para wings, an officer who took 1 rupee as a salary during his entire military career,an officer who led the 10 Para to capture Chachro in Sindh (Virwah and Nagarparker thereafter), 80kms deep inside the Pakistani territory in the 1971 war,an officer who rose to the rank of Brigadier after his retirement (One of the few officers to be promoted post retirement),
Remembering BRIGADIER BHAWANI SINGH SAWAI - the last titular #Maharaja of Jaipur. A brave soldier, an Officer and a Gentleman, who could have chosen a luxurious lifestyle, instead he become a #Commando and fought in the Indo Pak war, earning second highest military decoration - MVC.

Brig Bhawani upheld the finest traditions of the Indian Army and the House of the Kachawas. Like his father who served the Army as Lt General, he was keen to join the #IndianArmy too and was commissioned into 3 Cavalry in 1954 and later served in the President`s Bodyguard for eight years. In 1963, he was posted to Headquarters 50 Independent Parachute Brigade. He volunteered to carry out a parachute drop at a height of 20,000 feet without oxygen. Later he was adjutant of the Indian Military Academy in Dehradun for a few years. In 1970, he helped train Mukti Bahini before the commencement of the Bangladesh Liberation War.

During the 1971 Indo Pak War, (then) Col Bhawani Singh led the boys from 10 PARA SF in an 80 kms deep penetration raid at #Chachro in Sind, Pak. For four days and nights, he led relentless attacks on enemy posts creating panic and confusion forcing the enemy to retreat, leaving behind large number of prisoners and equipment.

In 1972, he took voluntary retirement for personal reasons after the demise of his father. However, his heart continued to beat for his commandos and Indian Army.

His regiment, 10 Para Commando took part in Operation Pawan in Sri Lanka. On 10 October 1987, a jeep of 10 Para was hijacked as reprisal of capture of about 200 LTTE rebels and all the five occupants were killed. Based on Intelligence reports of the presence of rebels in Jaffna University, a heliborne operation was carried out on 12 October by 10 Para and 13 Sikh LI. The troops who had landed in the football field came under intense fire as the LTTE had intercepted the radio message and had laid an ambush. They suffered heavy casualties and the remaining troops were extracted by a detachment of 65 Armoured Regiment. The failure resulted in a setback to the morale of the unit. Lt Col Bhawani Singh MVC visited the unit on a request from Prime Minister. His presence and words helped to restore the morale of the boys. The President of India bestowed on him the rank of Brigadier, a rare honour for a retired officer.

Sir, you are remembered fondly with great reverence by all in the Indian Army. भावभीनी श्रद्धांजलि, शत शत नमन JAI HIND

भावभीनी श्रद्धांजलि,शत शत नमन!!!

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

कहानी शुभ्रक की....

कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,
_यह तो सब जानते हैं,
लेकिन कैसे?

_यह आज हम आपको बताएंगे..

_वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है, लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!

कहानी 'शुभ्रक' की.

कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया,_

_और_

_*उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।*_

_*कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,*_

_जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।_

_एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.._

_और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया।_

_यह तय हुआ कि_
_*राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम चौगान था और खेलने का तरीका भी कुछ और ही था) खेला जाएगा..*_
.
_कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।_

_शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।_

_जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया,_

_तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.._

_उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया_

_और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए,_

_*जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!*_

_इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए.._
.

_मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए।_

_'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.._

_*लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!*_

_राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया,_

_*तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।*_

_*सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..*_

_*भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता*_

_क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं!_

_जबकि_

_*फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।*

_*नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..*_ 🙏

_आज हम लोगों को इस ऐतिहासिक घटना पर गर्व होना चाहिए कि हम उसी देश की संतान हैं जिसके जानवर भी जान देकर भी बफादारी निभाते थे तो उस समय के लोगों में  समर्पण और निष्ठा की भावना कैसी रही होगी ?_

खुन की पवित्रता

खुन की पवित्रता

एक‌ समय की बात है जालोर के राजा कान्हडदेव चौहान राज्य करते थे , उनका पुत्र वीरमदेव  अल्लाउद्दिन खिलजी की सेना में नोकर था , खिलजी की फोज में एक हांजी खाँ पठान था वह मलयुद्ध करके अच्छे अच्छे राजपूत वीरों को परास्त कर मार दिया करता था ।
         वीरमदेव को जब इस बात का पता चला तो वीरमदेव ने बादशाह खिलजी को कहा अगले युद्ध में हांजी खाँ पठान को में चुनोती दुँगा ।
जब इन दोनो के बीच मलयुद्ध हो रहा था तब युद्ध को बादशाह की बेटी फिरोजा अपने महल के झरोखे से देख  रही थी , वीरमदेव ने हाँजी खाँ पठान को मलयुद्ध मे परास्त कर मार डाला , तब फिरोजा उस वीर वीरमदेव पर मोहित हो गयी ओर अपनी माँ के द्वारा बादशाह को कहलवाया की फिरोजा वीरमदेव से शादी करना चाहती है।
यह बात बादशाह ने वीरमदेव को बतायी तो *वीरमदेव ने कहा- शादी ब्याह हमारे बड़े बुजुर्ग तय करते हैं*
बादशाह खिलजी ने जालौर कान्हडदेव चौहान के पास चिट्ठी भेजी ओर यह सब वृतान्त बताया।

*तब कान्हडदेव सोनगरा ने वापस जवाब दिया की शादी सम्बन्ध हमारे यहाँ बराबर वालों में तय‌ होते हैं*। में एक छोटी सी जागीर का मालिक कहाँ आप दिल्ली के बादशाह  , तो फिर बादशाह ने जालोर कान्हडदेव के पास   हाथी , घोड़े, सेना , धन,  दोलत सबकुछ भेजने की इच्छा जताई ओर कहा कि में यह सब भेज रहा हुँ , जिससे आप अपने किले को हमारे किले जैसा बनाकर  हमारे बराबर बनो ।

इतना वृतान्त होने के बाद जालोर के राजा कान्हडदेव सोनगरा बादशाह खिलजी की मंशा अच्छी तरह समझ गये ओर चिट्ठी लिखकर भेजी की हमारे यहाँ बारात हम लेकर आते है आप वीरमदेव को जालोर भेजो बादशाह ने वीरमदेव को जालोर भेज दिया ओर कहा अब शादी की तैयारियां करो ,  तब वीरमदेव ने बादशाह के लिए  चिट्ठी  लिखी -  
*मामा‌ लांज्यै भाटियाँ , कुल लाज्यै चौहान।
वीरम परणै तुर्कडी ,उल्टो ऊगह भान।।

अर्थात्

*में  वीरमदेव अगर इस विधर्मी से शादी करता हुँ तो पहले मेरे मामा जो भाटी सरदार है वो लजाएँगे , फिर मेरा जो चौहान कुल है वो शर्म में डुब जाएगा , अर्थात मेरा इस विधर्मी से  शादी करना सुरज के उल्टे उगने के समान है*

बादशाह खिलजी ने जेसे ही यह चिट्ठी देखी ओर वापस चिट्ठी भेजी की- जालोर खाली करो।

इस पर वीरमदेव ओर कान्हडदेव ने चिट्ठी लिखकर कहा कि -
*आग फटै धरां उल्टै , कटैं वक्त रां कॊर*।
*धड़ तड़पे सिर कटै , जद छुटै जालौर* ।।

*ऎसे थे पहले हमारे पुर्वज* -

*एक विधर्मी से शादी करना उन्हें कँही बर्दाश्त नही था* ।
धन ,दौलत, हाथी, घोड़े, सेना उनके लिए कोई मायने नही रखती थी ।

*खुन की पवित्रता ही उनके लिए सबकुछ थी*।

ओर आज कि नयी पीढ़ी कोर्ट मैरीज  में अपनी शान समझती है
कँही लड़का भगा रहा है , कँही लड़की भाग रही है।

विचार करें मनन करें
हम अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहें हैं।

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

शौर्य शेखा का

शेखाजी से हार के बाद चन्द्रसेन का अपनी हार पर चिन्तन करना और अपनी सेना को संगठित कर शेखाजी पर फिर से आक्रमण की तैयारी करना।

         शौर्य शेखा का अध्याय-6
    

शेखा आ तूँ बुरी करी,घटग्यो म्हारो माण।
वक़्त वक़्त री बातां सारी,वक़्त प लेस्यां जाण।।

वक़्त थारो तो आतोड़ो है,म्हारी गयी पिछाण।
शेर मारण र खातर शेखा,ऊँचो घाल्यो मचाण।।

चन्द्रसेन रा राज र माँहि,काळो पड्यो अकाश।
चाँद सूरज भी काळा पड़ग्या ,ना देवे प्रकाश।।

जीत है जश्न मानवणी,जीत्यो गढ़ आमेर।
रही अबे न लाग लपट अर,ना ही रही बछेर।।

शेखा थारो जस बढियो बढ्यो सिंघ रो राज।
कुल कछावा माँहि शेखो,भुपां रो शरताज।।

हार,हरण सूं मरण भलो,भलो बिना सिर ताज।
काट्या पंख पखेरू रा,ना पँखा परवाज।।

चिंता चिता समान है,चिंता चित रो नाश।
चिंता छोडो चंद्रराज जी,इण सूं हुवे विनाश।।

गढ़ आमेरी लश्कर डटिया,गाँव धुळी र खेत।
आज बचेड़ो चुकसी शेखा,चुकसी सूद समेत।।

घणो तने समझायो चन्दरजी,मत न रोपे फ़ांस।
रण मं पीठ दिखावणियो,तूँ कुल रो खोनाश।।

हारया ओजूं फेर चन्दरजी,भाग रह्या ढुंढाँर।
अबक शेखोजी कर लियो,कूकस पर अधिकार।।

जे गढ़ आमेरी सूरज डूब्यो,रुळ ज्यासी ढ़ूंढ़ाड़।
एको करल्यो अब सगळा,जीत लेवां बरवाड़।।

शेखो अब ललकार रह्यो,सकल कछावा भूप।
कसल्यो काठी घुड़लां री,रण में करस्यां कूच।।

नरुजी जायो नार रो,चन्दर थारे साथ।
गढ़ आमेरी मान राखस्यां,धर तरवारां हाथ।।

रणछोड़ू रणधीर थे होग्या,दो बर बखस्या प्राण।
तीजां रण र माहि चन्दर जी,थारा जगे मसाण।।

किण भगतां तूं जण्यो चंद्रजी,कलंक लग्यो रघुराज।
घणा घणा कुलधीर जन्मिया,इण कुल रा सिरताज।।

कुबद थारी अब मिटे चन्द्रजी,रख रजपूती मान।
कायर बणियो कुळ कलंक ,भागे रण मैदान।।

रजपूती रो जायो नहीं,जे छूटे मैदान।
ओ शेखो तो रण रमें,रण रो है बरदान।।

जे तूं साँचो बीर कहिजे,रण मं मिल्जये आज।
थारो शीश चढ़ाय के,रखूँ कछावा लाज।।

कुल कछाव जन्म लियो,जन्माय वीर अनूप।
शेखा मिलसी रण माँहि,सकल ढूंढाड़ी भूप।।

गढ़ आमेरी  लश्कर उतराया,कूकस नद री पाळ।
शेखाजी रा लश्कर देखो,शस्त्र लिया सम्भाळ।।

देख शेखा रा लश्कर न,नरजी है बेहाल।
सूरज जेड़ो चमक रह्यो,शेखाजी रो भाल।।

झट नरजी अब पाळो बदल्यो,शेखाजी शरणाय।
नरजी थारे  साथ है शेखा,हारलो चन्दराय।।

नरजी शेखा लश्कर माँहि,लग्यो चन्दर र घात।
म्हरो साथ निभावणीय अब,शेखाजी र साथ।।

हार मान क अब चन्द्रजी भेज्यो एक प्रस्ताव।
शेखा संधि मान ल्यो म्हारी,मेटो अब दुर्भाव।।

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

हुंकार कलंगी ,(चुण्डावत सिरदार)

हुंकार कलंगी ,(चुण्डावत सिरदार)
ठिकाणा-कोशीथल(मेवाड़)
*मांजी मराठा मारीया ,
       *रणचंडी बण रा"ड़ ।
*पाई हुंकार कलँगी ,
     *मुकट  मणीं  मेवाड़।।
दोहा रचना द्वारा----
*भगवतसिंह बालावत रायथल
हुंकार की कलंगी : लोक कथा
उदयपुर के महलों में राणा जी ने आपात सभा बुला रखी थी| सभा में बैठे हर सरदार के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ नजर आ रही थी, आँखों में गहरे भाव नजर आ रहे थे सबके हाव भाव देखकर ही लग रहा था कि किसी तगड़े दुश्मन के साथ युद्ध की रणनीति पर गंभीर विचार विमर्श हो रहा है| सभा में प्रधान की और देखते हुए राणा जी ने गंभीर होते हुए कहा-
“इन मराठों ने तो आये दिन हमला कर सिर दर्द कर रखा है|”
“सिर दर्द क्या रखा है ? अन्नदाता ! इन मराठों ने तो पूरा मेवाड़ राज्य ही तबाह कर रखा है, गांवों को लूटना और उसके बाद आग लगा देने के अलावा तो ये मराठे कुछ जानते ही नहीं !” पास ही बैठे एक सरदार ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा|
“इन मराठों जैसी दुष्टता और धृष्टता तो बादशाही हमलों के समय मुसलमान भी नहीं करते थे| पर इन मराठों का उत्पात तो मानवता की सारी हदें ही पार कर रहा है| मुसलमान ढंग से लड़ते थे तो उनसे युद्ध करने में भी मजा आता था पर ये मराठे तो लूटपाट और आगजनी कर भाग खड़े होते है|” एक और सरदार ने पहले सरदार की बात को आगे बढाया|
सभा में इसी तरह की बातें सुन राणा जी और गंभीर हो गए, उनकी गंभीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रही थी|
मराठों की सेना मेवाड़ पर हमला कर लूटपाट व आगजनी करते हुए आगे बढ़ रही थी मेवाड़ की जनता उनके उत्पात से बहुत आतंकित थी| उन्हीं से मुकाबला करने के लिए आज देर रात तक राणा जी मुकाबला करने के लिए रणनीति बना रहे थे और मराठों के खिलाफ युद्ध की तैयारी में जुटे थे| अपने ख़ास ख़ास सरदारों को बुलाकर उन्हें जिम्मेदारियां समझा रहे थे| तभी प्रधान जी ने पूरी परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा-
“खजाना रुपयों से खाली है| मराठों के आतंक से प्रजा आतंकित है| मराठों की लूटपाट व आगजनी के चलते गांव के गांव खाली हो गए और प्रजा पलायन करने में लगी है| राजपूत भी अब पहले जैसे रहे नहीं जो इन उत्पातियों को पलक झपकते मार भगा दे और ऐसे दुष्टों के हमले झेल सके|”
प्रधान के मुंह से ऐसी बात सुन पास ही बैठे एक राजपूत सरदार ने आवेश में आकर बोला –“पहले जैसे राजपूत अब क्यों नहीं है ? कभी किसी संकट में पीछे हटे है तो बताएं ? आजतक हम तो गाजर मुली की तरह सिर कटवाते आये है और आप कह रहें है कि पहले जैसे राजपूत नहीं रहे ! पिछले दो सौ वर्षों से लगातार मेवाड़ पर हमले हो रहे है पहले मुसलमानों के और अब इन मराठों के| रात दिन सतत चलने वाले युद्धों में भाग लेते लेते राजपूतों के घरों की हालत क्या हो गयी है ? कभी देखा है आपने ! कभी राजपूतों के गांवों में जाकर देखो एक एक घर में दस दस शहीदों की विधवाएं बैठी मिलेंगी| फिर भी राजपूत तो अब भी सिर कटवाने के लिए तैयार है| बस एक हुक्म चाहिए राणा जी का! मराठा तो क्या खुद यमराज भी आ जायेंगे तब भी मेवाड़ के राजपूत पीठ नहीं दिखायेंगे|”
ये सुन राणा बोले- “राज पाने व बचाने के लिए गाजर मुली की तरह सिर कटवाने ही पड़ते है, इसीलिए तो कहा जाता है कि राज्य का स्वामी बनना आसान नहीं| स्वराज्य बलिदान मांगता है और हम राजपूतों ने अपने बलिदान के बूते ही यह राज हासिल किया है| धरती उसी की होती है जो इसे खून से सींचने के लिए तैयार रहे| हमारे पूर्वजों ने मेवाड़ भूमि को अपने खून से सींचा है| इसकी स्वतंत्रता के लिए जंगल जंगल ठोकरे खायी है| मातृभूमि की रक्षा के लिए घास की रोटियां खाई है, और अब ये लुटरे इसकी अस्मत लुटने आ गए तो क्या हम आसानी से इसे लुट जाने दे ? अपने पूर्वजों के बलिदान को यूँ ही जाया करें? इसलिए बैठकर बहस करना छोड़े और मराठों को माकूल जबाब देने की तैयारी करें|”
राणा की बात सुनकर सभा में चारों और चुप्पी छा गयी| सबकी नजरों के आगे सामने आई युद्ध की विपत्ति का दृश्य घूम रहा था| मराठों से मुकाबले के लिए इतनी तोपें कहाँ से आएगी? खजाना खाली है फिर सेना के लिए खर्च का बंदोबस्त कैसे होगा? सेना कैसे संगठित की जाय? सेना का सेनापति कौन होगा? साथ ही इन्हीं बिन्दुओं पर चर्चा भी होने लगी|
आखिर चर्चा पूरी होने के बाद राणा जी ने अपने सभी सरदारों व जागीरदारों के नाम एक पत्र लिख कर उसकी प्रतियाँ अलग-अलग घुड़सवारों को देकर तुरंत दौड़ाने का आदेश दिया|
पत्र में लिखा था-“मेवाड़ राज्य पर उत्पाती मराठों ने आक्रमण किया है उनका मुकाबला करने व उन्हें मार भगाने के लिए सभी सरदार व जागीरदार यह पत्र पहुँचते ही अपने सभी सैनिकों व अस्त्र-शस्त्रों के साथ मेवाड़ की फ़ौज में शामिल होने के लिए बिना कोई देरी किये जल्द से जल्द हाजिर हों|”
पत्र में राणा जी के दस्तखत के पास ही राणा द्वारा लिखा था- “जो जागीरदार इस संकट की घडी में हाजिर नहीं होगा उसकी जागीर जब्त कर ली जाएगी| इस मामले में किसी भी तरह की कोई रियायत नहीं दी जाएगी और इस हुक्म की तामिल ना करना देशद्रोह व हरामखोरी माना जायेगा|”
राणा का एक सवार राणा का पत्र लेकर मेवाड़ की एक जागीर कोसीथल पहुंचा और जागीर के प्रधान के हाथ में पत्र दिया| प्रधान ने पत्र पढ़ा तो उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गयी| *कोसीथल चुंडावत राजपूतों के वंश की एक छोटीसी जागीर थी और उस वक्त सबसे बुरी बात यह थी कि उस वक्त उस जागीर का वारिस एक छोटा बच्चा था| कोई दो वर्ष पहले ही उस जागीर के जागीरदार ठाकुर एक युद्ध में शहीद हो गए थे और उनका छोटा सा इकलौता बेटा उस वक्त जागीर की गद्दी पर था| इसलिए जागीर के प्रधान की हवाइयां उड़ रही थी| राणा जी का बुलावा आया है और गद्दी पर एक बालक है वो कैसे युद्ध में जायेगा? प्रधान के आगे एक बहुत बड़ा संकट आ गया| सोचने लगा-“क्या इन मराठों को भी अभी हमला करना था| कहीं ईश्वर उनकी परीक्षा तो नहीं ले रहा?”*
प्रधान राणा का सन्देश लेकर जनाना महल के द्वार पर पहुंचा और दासी की मार्फ़त माजी साहब (जागीरदार बच्चे की विधवा माँ) को आपात मुलाकात करने की अर्ज की|
दासी के मुंह से प्रधान द्वारा आपात मुलाकात की बात सुनते ही माजी साहब के दिल की धडकनें बढ़ गयी-“पता नहीं अचानक कोई मुसीबत तो नहीं आ गयी?”
खैर.. माजी साहब ने तुरंत प्रधान को बुलाया और परदे के पीछे खड़े होकर प्रधान का अभिवादन स्वीकार करते हुए पत्र प्राप्त किया| पत्र पढ़ते ही माजी साहब के मुंह से सिर्फ एक छोटा सा वाक्य ही निकला-“हे ईश्वर ! अब क्या होगा?” और वे प्रधान से बोली-“अब क्या करें ? आप ही कोई सलाह दे! जागीर के ठाकुर साहब तो आज सिर्फ दो ही वर्ष के बच्चे है उन्हें राणा जी की चाकरी में युद्ध के लिए कैसे ले जाया जाय ?
तभी माजी के बेटे ने आकर माजी साहब की अंगुली पकड़ी| माजी ने बेटे का7 मासूम चेहरा देखा तो उनके हृदय ममता से भर गया| मासूम बेटे की नजर से नजर मिलते ही माजी के हृदय में उसके लिए उसकी जागीर के लिए दुःख उमड़ पड़ा| राणा जी द्वारा पत्र में लिखे *आखिरी वाक्य माजी साहब के नजरों के आगे घुमने लगे-“हुक्म की तामिल नहीं की गयी तो जागीर जब्त कर ली जाएगी| देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा आदि आदि|”*
पत्र के आखिरी वाक्यों ने माजी सा के मन में ढेरों विचारों का सैलाब उठा दिया-“जागीर जब्त हो जाएगी ! देशद्रोह व हरामखोरी समझा जायेगा! मेरा बेटा अपने पूर्वजों के राज्य से बाहर बेदखल हो जायेगा और ऐसा हुआ तो उनकी समाज में कौन इज्जत करेगा? पर उसका आज बाप जिन्दा नहीं है तो क्या हुआ ? मैं माँ तो जिन्दा हूँ! यदि मेरे जीते जी मेरे बेटे का अधिकार छिना जाए तो मेरा जीना बेकार है ऐसे जीवन पर धिक्कार| और फिर मैं ऐसी तो नहीं जो अपने पूर्वजों के वंश पर कायरता का दाग लगने दूँ, उस वंश पर जिसनें कई पीढ़ियों से बलिदान देकर इस भूमि को पाया है मैं उनकी इस बलिदानी भूमि को ऐसे आसानी से कैसे जाने दूँ ?
*ऐसे विचार करते हुए माजी सा की आँखों वे दृश्य घुमने लगे जो युद्ध में नहीं जाने के बाद हो सकते थे- “कि उनका जवान बेटा एक और खड़ा है और उसके सगे-संबंधी और गांव वाले बातें कर रहें है कि इन्हें देखिये ये युद्ध में नहीं गए थे तो राणा जी ने इनकी जागीर जब्त कर ली थी| वैसे इन चुंडावतों को अपनी बहादुरी और वीरता पर बड़ा नाज है हरावल में भी यही रहते है|”* और ऐसे व्यंग्य शब्द सुन उनका बेटा नजरें झुकाये दांत पीस कर जाता है| ऐसे ही दृश्यों के बारे में सोचते सोचते माजी सा का सिर चकराने लगा वे सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो बेटा बड़ा होकर मुझ माँ को भी धिक्कारेगा|
*ऐसे विचारों के बीच ही माजी सा को अपने पिता के मुंह से सुनी उन राजपूत वीरांगनाओं की कहानियां याद आ गयी जिन्होंने युद्ध में तलवार हाथ में ले घोड़े पर सवार हो दुश्मन सेना को गाजर मुली की तरह काटते हुए खलबली मचा अपनी वीरता का परिचय दिया था| दुसरे उदाहरण क्यों उनके ही खानदान में पत्ताजी चुंडावत की ठकुरानी उन्हें याद आ गयी जिसनें अकबर की सेना से युद्ध किया और अकबर की सेना पर गोलियों की बौछार कर दी थी| जब इसी खानदान की वह ठकुरानी युद्ध में जा सकती थी तो मैं क्यों नहीं ? क्या मैं वीर नहीं ? क्या मैंने भी एक राजपूतानी का दूध नहीं पिया ? बेटा नाबालिग है तो क्या हुआ ? मैं तो हूँ ! मैं खुद अपनी सैन्य टुकड़ी का युद्ध में नेतृत्व करुँगी और जब तक शरीर में जान है दुश्मन से टक्कर लुंगी| और ऐसे वीरता से भरे विचार आते ही माजी सा का मन स्थिर हो गया उनकी आँखों में चमक आ गयी, चेहरे पर तेज झलकने लगा* और उन्होंने *बड़े ही आत्मविश्वास के साथ प्रधान जी को हुक्म दिया कि-*
*“राणा जी हुक्म सिर माथे ! आप युद्ध की तैयारी के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी को तैयार कीजिये हम अपने स्वामी के लिए युद्ध करेंगे और उसमें जान की बाजी लगा देंगे|”*
प्रधान जी ने ये सुन कहा- “माजी सा ! वो तो सब ठीक है पर बिना स्वामी के केसी फ़ौज ?
माजी सा बोली- “हम है ना ! अपनी फ़ौज का हम खुद नेतृत्व करेंगे|”
प्रधान ने विस्मय पूर्वक माजी सा की और देखा| यह देख माजी सा बोली-
“क्या आजतक महिलाएं कभी युद्ध में नहीं गयी ? क्या आपने उन महिलाओं की कभी कोई कहानी नहीं सुनी जिन्होंने युद्धों में वीरता दिखाई थी ? क्या इसी खानदान में पत्ताजी की ठकुरानी सा ने अकबर के खिलाफ युद्ध में भाग ले वीरगति नहीं प्राप्त की थी ? मैं भी उसी खानदान की बहु हूँ तो मैं उनका अनुसरण करते हुए युद्ध में क्यों नहीं भाग ले सकती ?
बस फिर क्या था| प्रधान जी ने कोसीथल की सेना को तैयार कर सेना के कूच का नंगारा बजा दिया| माजी सा शरीर पर जिरह बख्तर पहने, सिर पर टोप, हाथ में तलवार और गोद में अपने बालक को बिठा घोड़े पर सवार हो युद्ध में कूच के लिए पड़े|
कोसीथल की फ़ौज के आगे आगे माजी सा जिरह वस्त्र पहने हाथ में भाला लिए कमर पर तलवार लटकाये उदयपुर पहुँच हाजिरी लगवाई कि-“कोसीथल की फ़ौज हाजिर है|
अगले दिन मेवाड़ की फ़ौज ने मराठा फ़ौज पर हमला किया| हरावल (अग्रिम पंक्ति) में चुंडावतों की फ़ौज थी जिसमें माजी सा की सैन्य टुकड़ी भी थी| चुंडावतों के पाटवी सलूम्बर के राव जी थे उन्होंने फ़ौज को हमला करने का आदेश के पहले संबोधित किया- “वीर मर्द राजपूतो ! मर जाना पर पीठ मत दिखाना| हमारी वीरता के बल पर ही हमारे चुंडावत वंश को हरावल में रहने का अधिकार मिला है जिसे हमारे पूर्वजों ने सिर कटवाकर कायम रखा है| हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती इसलिए आपको पूरी जिम्मेदारी निभानी है मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते है अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरुरत नहीं! अब खेंचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा सेना पर|”
माजी सा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दुसरे हाथ से घोड़े की लगाम खेंच घोड़े को ऐड़ लगादी| युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगी, खच्च खच्च कर सैनिक कट कट कर गिरने लगे, तोपों, बंदूकों की आवाजें गूंजने लगी| हर हर महादेव केनारों से युद्ध भूमि गूंज उठी| माजी सा भी बड़ी फुर्ती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उनकी संख्या कम कर रही थी कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया जो उनकी पसलियाँ चीरता हुआ निकल गया और तभी माजी सा के हाथ से घोड़े की लगाम छुट गयी और वे नीचे धम्म से नीचे गिर गए| साँझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठाकर वैध जी के शिविर में इलाज के लिए पहुँचाया| वैध जी घायल माजी सा की मरहम पट्टी करने ही लगे थे कि उनके सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए| वैध जी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है| बात राणा जी तक पहुंची-
“घायलों में एक औरत ! पर कौन ? कोई नहीं जानता| पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही|”
सुनकर राणा जी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे उन्होंने देखा एक औरत जिरह वस्त्र पहने खून से लथपथ पड़ी| पुछा –
“कृपया बिना कुछ छिपाये सच सच बतायें ! आप यदि दुश्मन खेमें से भी होगी तब भी मैं आपका अपनी बहन के समान आदर करूँगा| अत: बिना किसी डर और संकोच के सच सच बतायें|”
घायल माजी सा ने जबाब- “कोसीथल ठाकुर साहब की माँ हूँ अन्नदाता !”
सुनकर राणा जी आश्चर्यचकित हो गए| पुछा- “आप युद्ध में क्यों आ गई?”
“अन्नदाता का हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना है और जो नहीं होगा उसकी जागीर जब्त करली जाएगी| कोसीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र दो वर्ष का है अत: वह अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं सो अपनी फ़ौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई| यदि अपनी फ़ौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उसकी जागीर भी जब्त होती|”
माजी सा के वचन सुनकर राणा जी के मन में उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आँखों में आंसू छलक आये| ख़ुशी से गद-गद हो राणा बोले-
*“धन्य है आप जैसी मातृशक्ति! मेवाड़ की आज वर्षों से जो आन बान बची हुई है वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है|
*आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊँचा रखा हुआ है| जब तक आप जैसी देवी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेगी तब तक कोई माई का लाल मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता|
*मैं आपकी वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी और से कुछ* *पारितोषिक देना चाहता हूँ यदि आपकी इजाजत हो तो,* *सो अपनी इच्छा बतायें कि आपको ऐसा क्या दिया जाय ? जो आपकी इस वीरता के लायक हो|”
*माजी सा सोच में पड़ गयी आखिर मांगे तो भी क्या मांगे|
*आखिर वे बोली- “अन्नदाता ! यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐसा दें जिससे मेरे बेटे कहीं बैठे तो सिर ऊँचा कर बैठे|”
*राणा जी बोले- “आपको हुंकार की कलंगी बख्सी जाती है जिसे आपका बेटा ही नहीं उसकी पीढियां भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊँचा कर आपकी वीरता को याद रखेंगे|”
*भगवतसिंह बालावत रायथल

बुधवार, 3 अप्रैल 2019

म्है जीमू खरगोशियो.....

नाहर सिह जी जसोल साहब ने डा. राजेन्द्र बारहठ कह्यो

काचो जीमो प्याजियो
ठंडी पीवो राब ।
लूवां चाले मोकल़ी
आपे लेसी ढाब ।।

नाहर सिह सा रौ जवाब आयो

म्है जीमू खरगोशियो
ऊपर पीवूं जिन ।
आप अरोगो राबड़ी
दोरा काटो दिन ।।

साफौ सांगानेर कठै

शीश बोरलो,नासा मे नथड़ी,सौगड़ सोनो सेर कठै,
कठै पौमचो मरवण रौ, बोहतर कळियां घेर कठै!!

कठै पदमणी पूंगळ री ढोलो जैसलमैर कठै,
कठै चून्दड़ी जयपुर री साफौ सांगानेर कठै !!

गिणता गिणता रेखा घिसगी पीव मिलन की रीस कठै,
ओठिड़ा सू ठगियौड़़ी बी पणिहारी की टीस कठै!!

विरहण रातां तारा गिणती सावण आवण कौल कठै,
सपने में भी साजन दीसे सास बहू का बोल कठै!!

छैल भवंरजी ढौला मारू कुरजा़ मूमल गीत कठै,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै!!

हरी चून्दड़ी तारा जड़िया मरूधर धर की छटा कठै,
धौरां धरती रूप सौवणौ काळी कळायण घटा कठै!

राखी पूनम रेशम धागे भाई बहन को हेत कठै,
मौठ बाज़रा सू लदियौड़ा आसौजा का खैत कठै!

आधी रात तक होती हथाई माघ पौष का शीत कठै,
सुख दुःख में सब साथ रैवता बा मिनखा की प्रीत कठै!

जन्मया पैला होती सगाई बा वचना की परतीत कठै,
गाँव गौरवे गाया बैठी दूध दही नौनीत कठै!

दादा को करजौ पोतो झैले बा मिनखा की नीत कठै
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै! !

काळ पड़िया कौठार खोलता दानी साहूकार कठै
सड़का ऊपर लाडू गुड़ता गैण्डा की बै हुणकार कठै!

पतियां सागै सुरग जावती बै सतवन्ती नार कठै,
लखी बणजारो टांडौ ढाळै बाळद को वैपार कठै!

धरा धरम पर आँच आवतां मर मिटण री हौड़ कठै
फैरा सू अधबिच उठिया
बे पाबू राठौड़ कठै!!

गळियां में गिरधर ने गावै बीं मीरा का गीत कठै
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै!!

बितौड़ा वैभव याद दिरावै रणथम्बौर चितौड़ जठै
राणा कुम्भा रौ विजय स्तम्भ बलि राणा को मौड़ जठै!

हल्दीघाटी में घूमर घालै चैतक चढ्यौ राण जठै
छत्र छँवर छन्गीर झपटियौ बौ झालौ मकवाण कठै!

राणी पदमणी के सागै ही कर सोला सिणगार जठै
सजधज सतीया सुरग जावती मन्त्रा मरण त्यौहार कठै!!

जयमल पत्ता गौरा बादल रै खड़का री तान कठै,
बिन माथा धड़ लड़ता रैती बा रजपूती शान कठै!!

तैज केसरिया पिया कसमा साका सुरगा प्रीत कठै
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै!!

निरमोही चित्तौड़ बतावै तीनों सागा साज कठै,
बौहतर बन्द किवाँड़ बतावै ढाई साका आज कठै!

चित्तौड़ दुर्ग को पेलौ पैहरी रावत बागौ बता कठै
राजकँवर को बानौ पैरया पन्नाधाय को गीगो कठै!!

बरछी भाला ढाल कटारी तोप तमाशा छैल कठै,
ऊंटा लै गढ़ में बड़ता चण्डा शक्ता का खैल कठै!

जैता गौपा सुजा चूण्डा चन्द्रसेन सा वीर कठै
हड़बू पाबू रामदेव सा कळजुग में बै पीर कठै!!

कठै गयौ बौ दुरगौ बाबौ श्याम धरम सू प्रीत कठै
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै!!

हाथी रौ माथौ छाती झालै बै शक्तावत आज कठै,
दौ दौ मौतों मरबा वाळौ बल्लू चम्पावत आज कठै!!

खिलजी ने सबक सिखावण वाळौ सोनगिरौ विरमदैव कठै
हाथी का झटका करवा वाळौ कल्लो राई मलौत कठै!!

अमर कठै हमीर कठै पृथ्वीराज चौहान कठै
समदर खाण्डौ धोवण वाळौ बौ मर्दानौ मान कठै!!

मौड़ बन्धियोड़ौ सुरजन जूंझै जग जूंझण जूंझार कठै
ऊदिया राणा सू हौड़ करणियौ बौ टौडर दातार कठै!!

जयपुर शहर बसावण वाळा जयसिंह जी सी रणनीत कठै,
रूड़ा राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै !!
रूडा़ राजस्थान बता वा थारी रूड़ी रीत कठै!!