मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

किले का विवाह

किले का विवाह

"बधाई ! बधाई ! तुर्क सेना हार कर जा रही है गढ का घेरा उठाया जा रहा है" प्रधान बीकमसी(विक्रमसिह) ने प्रसन्नातापूर्वक जाकर यह सूचना रावल मूलराज को दे दी

"घेरा क्यो उठाया जा रहा है?" रावल ने विस्मयपूर्वक कहा

कल के धावे ने शाही सेना को हताश कर दिया है मलिक, केशर और शिराजुद्दीन जैसे योग्य सेनापति तो कल ही मारे गए अब कपूर मरहठा और कमालदीन मे बनती नही है कल के धावे मे शाही सेना का जितना नाश हुआ उतना शायस पिछले एक वर्ष के सब धावो मे नही हुआ होगा अब उनकी संख्या भी कम हो गई है जिससे उनका भय हो गया है कि कही तलहटी मे पङी फौज पर ही आक्रमण न कर दे 
प्रधान बीकमसी ने कहा

"तलहटी मे कुल शाही फौज कितनी होगी"
"लगभग पच्चीस हजार"
"हमारे पास तो कुल तीन हजार रही है"
"फिर भी उनको भय हो गया है"

रावल मूलराज ने एक गहरी नि:श्वास छोङी और उसका मुँह उतर गया उसने छोटे भाई रतनसी की ओर देखा वह भी उदास हो गया था बीकमसी और दूसरे दरबारी लोग बङे असमंजस मे पङे जहाँ चेहरे पर प्रसन्नाता छा जानी चाहिए थी वहाँ उदासी क्यो? वर्षो के प्रयत्न के उपरान्त विजय मिली थी हजारो राजपूतो ने प्राण गंवाये थे

तब कही जाकर शाही सेना हताश होकर लौट जाने को विवश हुई थी बीकमसी ने समझा शायद मेरे आशय को रावजी ठिक नही समझे है इसलिए उसने फिर कहा-
"कितनी कठिनाई से अपने को जीत मिली है अब तो लौटती हुई फौज पर दिल्ली तक धावे करने का अवसर मिल गया है हारी हुई फौज मे लङऩे का साहस नही होता इसलिए खुब लूट का माल मिल सकता है"
रावल मूलराज ने बीकमसी की बात पर कोई ध्यान नही दिया और वह और भी उदास होकर बैठ गया सारे दरबार मे सन्नाटा छा गया रावलजी के इस व्यवहार को रतनसी के अतिरिक्त और कोई नही समझ रहा था बहुत देर से छा रही नि:स्तब्धता को भंग करते हुए अन्त मे एक और गहरी नि:श्वास छोङ कर रावल मूलराज ने कहा-

"बङे रावलजी(रावल जैतसी) के समय से ही हमने जो प्रयत्न करना शुरु किया था वह आज जाकर विफल हुआ है शेखजादा को मारा और लुटा सुल्तान फिरोज का इतना बिगाङ किया उसके इलाके को तबाह किया और हजारो राजपूतो को मरवाया पर फिरौज की फौज हार कर जा रही है तब दूसरा तो और कौन है जो हमारे उद्देश्य को पुरा कर सके"
इस प्रकार शाही फौज हार कर जाना बहुत बुरा है क्योकि इस आक्रमण मे सुल्ताऩ को जन धन की इतनी हानि उठानि पङी है

वह भविष्य मे यहाँ आक्रमण करने की स्वपन मे भी नही सोचेगा"रतनसी ने रावल मूलराज की बात का समर्थन करते आगे कहा-
"शाही फौज के हताश लौटने का एक कारण अपना किला भी है यह इतना सुदृढ और अजेय है कि शत्रु इसे देखते ही निराश हो जाते है वास्तव मे अति बलवार वीर व दुर्ग दोनो ही कुँआरे(अविवाहित) ही रहते है मेरे तो एक बात ध्यान मे आती है क्यो नही किले की एक दीवार तुङवा दी जाये जिससे हताश होकर जा रही शत्रु सेना धावा करने के लिए ठहर जाए।" रावल मूलराज ने प्रश्नभरी मुद्रा से सबकी और देखते हुए कहा-
"मुझे एक उपाय सूझा है यदि आज्ञा  हो तो कहुँ। " रतनसी ने अपने भाई की ओर देखते हुए कहा।
"हाँ हाँ जरुर कहो।"
कमालदीऩ आपका पगङी बदल भाई है । उसको किसी के साथ कहलाया जाए कि हम गढ के किवाङ खोलने के लिए तैयार है तुम धावा करो वह आपका आग्रह अवश्व मान लेगा । उसको आपकी प्रतिज्ञा भी बतला दी जाए और विश्वास दिलाया जाए कि किसी भी प्रकार का धोखा नही है।"
"वह नही माना तो।"
"जरुर मान जाएगा । एक तो आपका मित्र है इसलिए आप पर विश्वास भी कर लेगा और दूसरा हार कर लौटने मे उसको कौनसी लाज नही आ रही है । वह सुल्तान के पास किस मुँह से जाएगा।

इसलिए विजय का लोभ भी उसे लौटने से रोक देगा"
"उसे विश्वास कैसे दिलाया जा कि यहाँ धोखा नही होगा"
"किले पर लगे हुए झाँगर यंत्रो और किंवाङो को पहले से तोङ दिया जाय"
रावल मूलराज के रतनसिह की बताई हुई युक्ति जँच गई उसके मुँह पर प्रसन्नता दौङती हुई दिखाई दी 
उसी क्षण जैसलमेर दुर्ग पर लगे हुए झाँगर यंत्रो के तोङने की ध्वनि लोगो ने सुनी लोगो ने देखा कि किले के किवाङ खोल दिये गए थे और दूसरे ही क्षण उन्होने देखा कि वे तोङ जा रहे थे फिर उन्होने देखा एक घूङसवार जैसलमेर दुर्ग से निकला और तलहटी मे पङाव डाले हुए पङी शाही फौज की ओर जाने लगा वह दूत वेश मे नि:शस्त्र था उसके बाँये हाथ मे घोङे की लगाम और दाये हाथ मे एक पत्र था लोग इन सब घटनाओ को देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे झाँगर यंत्रो का और किवाङो को तोङा जाना और असमय मे दूत का शत्रु सेना की ओर जाना विस्मयोत्पादक घटऩाएँ थी जिनको समझने का प्रयास सब कर रहे थे पर समझ कोई नही रहा था
कमालदीन ने दूत के हाथ से पत्र लिया । वह अपने डेरे मे गया और उसे पढने लगा-
"भाई कमालदीन को भाटी मूलराज की जुहार मालूम हो। अप्रंच यहा के समाचार भले है । राज के सदा भले चाहिए ।

आगे का समाचार मालूम हो-

जैसलमेर का इतना बङा और दृढ किला होने पर भी अभी तक यह किला कुँआरा ही बना हुआ है मेरे पुरखा बङे बलवान और बहादुर थे पर उन्होने भी किल का कौमार्य नही उतारा जब तक किला कुँआरा(अविवाहित) रहेगा तब तक भाटियो की गौरवगाथा अमर नही बनेगी और हमारी सन्तानो को गौरव का ज्ञान नही होगा इसलिए मैं लम्बे समय से सुल्तान फिरोजशाह से शत्रुता करता आ रहा हुँ उसी शत्रुता के कारण उन्होने बङी फौज जैसलमेर भेजी है पर मुझे बङा दु:ख है कि वह फौज आज हार कर जाने लगी है इस फौज के चले जाने के उपरान्त मुझे तो भारत मे और कोई इतना बलवान दिखाई नही पङता जो जैसलमेर दुर्ग पर धावा करके इसमे जौहर और शाका करवाये जब तक पाँच राजपुतानियाँ की जौहर की भस्म और पाँच केसरिया वस्त्रधारी राजपूतो का रक्त इसमे नही लगेगा तब तक यह कुआँरा ही रहेगा तुम मेर पगङी बदल भाई और मित्र हो यह समय है अपने छौटे भाई की प्रतिज्ञा रखने और उसे सहायता पहुँचाने का इसलिए मेरा निवेदन है कि तुम अपनी फौज को लौटाओ मत और कल सवेरे ही किले पर आक्रमण कर दौ ताकि जौहर और शाका करके स्वर्गधाम पहुँचने का अमूल्य अवसर मिलै और किले का भी विवाह हो जाए*किले का विवाह

मै तुम्हे वचन देता हूँ कि यहाँ किसी प्रकार का धोखा नही हो हमने किले के झाँगर यन्त्र और किवाङ तुङवा दिये है सो तुम अपना दूत भेज कर मालूम र सकते हो
कमालदीन ने पत्र को दूसरी बार पढा उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई धीरे धीरे वह गम्भीरता और उदासी के रुप मे बदल गई एक घङी तक वह अपने स्थान पर बैठा सोचता रहा कई प्रकार के संकल्प विकल्प उसके मस्तिष्क मे उठे। अन्त मे उसने दुत से पूछा-

किले में कुल कितने सैनिक है।

;पच्चीस हजार।

पच्चीस हजार
तब तो रावलजी से जाकर कहना कि मैं मजबूर हूँ । मेरे साथी लङने के लिए तैयार नही है । 
संख्या के विषय मे मुझे मालूम नही । आप अपना दूत मेरे साथ भेज कर मालूम कर सकते है । दूत ने बात बदल कर कहा ।

एक दूत घूङसवार के साथ की ओर चल पङा । थोङी देर पश्चात ऊँटों और बैलगाङियो पर लदा हुआ सामान उतारा जाने लगा । उखङा हुआ पङाव फिर कायम होने लगा । शाही फौज के उखङे हुए पैर फिर जमने लगे ।

दशमी की रात्री का चन्द्रमा अस्त हुआ । अन्धकार अपने टिम - टिम टिमटिमाते हुए तारा रुपी दाँतो को निकाल कर हँस पङा । उसकी हँसी को चुनौती देते हूए एक गढ के कंगूरे औरउऩमे लगे हुए पत्थर तक दूर से दिखाई पङने लगे । एक प्रचण्ड अग्नि की ज्वाला ऊपर उठी जिसके साथ हजारो ललनाओं का रक्त आकाश मे चढ गया समस्त आकाश रक्त-रंजित शून्याकार मे बदल गया उन ललनाओ का यश भी आकाश की भाँति फैल कर विस्तृत और #चिरस्थायी हो गया ।

सूर्यौदय होते ही तीन हजार #केसरिया वस्त्रधारी राजपूतो ने कमालदीन की पच्चीस हजार सेना पर आक्रमण कर दिया ।
घङी भर घोर घमासान युद्ध हुआ । 
जैसलमेर दुर्ग की भुमि और दीवारे रक्त से सन गई । 
जल की प्यासी भूमि ने #रक्तपान करके अपनी तृष्णा को शान्त किया अब ।

पुरा शाका भी पुरा हुआ ।

आज कोई ऩही कह सकता कि #जैसलमेर का #दुर्ग #कुँआरा है, कोई नही कह सकता कि #भाटियो ने कोई #जौहर #शाका नही किया , कोई नही कह सकता कि वहा की #जलहीन भूमि #बलिदानहीन है और कोई नही कह सकता कि उस #पवित्र भूमि की अति #पावन #रज के स्पर्श से #अपवित्र भी #पवित्र नही हो जाते । #जैसलमेर का #दुर्ग आज भी #स्वाभिमान से अपना #मस्तक ऊपर किए हुए संदेश कह रहा है । यदि किसी #सामर्थ्य में हो सुन लो और समझ लो वहाँ जाकर ।

लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह

लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह


1986 में भारत और पाकिस्तान के नक़्शे बदल देते?
1971 की लड़ाई में लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह को महावीर चक्र मिला था और उनके जूनियर ऑफिसर अरुण खेत्रपाल को परमवीर चक्र
राजस्थान में बाड़मेर जाते वक़्त जोधपुर से लगभग 80 किलोमीटर के फ़ासले पर एक शहर है-बालोतरा. और इससे कुछ मील दूर है जसोल. विशुद्ध राजस्थानी संस्कृति वाले जसोल में आप अगर किसी बच्चे से भी पूछें कि स्वर्गवासी हुकम हनुत सिंह की ड्योढ़ी कहां है तो वह हाथ पकड़ आपको वहां छोड़ आएगा.
कौन हनुत सिंह? यह पूछने वाले यकीनन भारतीय सेना के सबसे गौरवशाली अफ़सरों में से एक लेफ्टिनेंट जनरल ‘हंटी’ उर्फ़ हनुत सिंह से परिचित नहीं हैं. वे भारतीय सेना के उस ‘भीष्म पितामह’ से वाबस्ता नहीं हैं जिसने सेना में अपना सर्वस्व झोंकने के लिए विवाह नहीं किया. वे उस अधिकारी बारे में नहीं जानते जिसे भारतीय सेना का सबसे कुशल रणनीतिकार कहा जाता है, और वे उस हनुत सिंह को नहीं जानते जो गौरवशाली टैंक रेजिमेंट 17 पूना हॉर्स के कमांडिंग ऑफ़िसर (सीओ) थे. जो नहीं जानते वे अब याद रखें कि सन 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान की सेना ने 17 पूना हॉर्स को ‘फ़क्र-ए-हिन्द’ का ख़िताब दिया था. हैरत की बात नहीं, जनता ही नहीं सरकारें भी अब हनुत सिंह को भूल चुकी हैं.

भारतीय सेना के 12 सबसे चर्चित अफ़सरों की जीवनी ‘लीडरशिप इन द आर्मी’ के लेखक रिटायर्ड मेजर जनरल वीके सिंह लिखते हैं, ‘अगरचे कोई एक लफ्ज़ है जो हनुत सिंह के बारे में समझा सके तो वह है- सैनिक’. वे आगे लिखते हैं कि हनुत सेनाध्यक्ष तो नहीं बन पाए पर लेफ्टिनेंट कर्नल रहते हुए भी वे एक किंवदंति बन गए थे.

ऐसा 1971 में हुआ था जब हनुत सिंह 17 पूना हॉर्स के सीओ थे. बैटल ऑफ़ बसंतर की उस मशहूर लड़ाई में दुश्मन से घिर जाने के बावजूद अपने हर जूनियर ऑफ़िसर को एक इंच भी पीछे हटने के लिए मना कर दिया था. इसी लड़ाई में सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को अद्मय साहस का परिचय देने पर मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला था. इसी जंग में शानदार नेतृत्व के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल हंटी को महावीर चक्र मिला था.

पर यहां ज़िक्र 1971 का नहीं, बल्कि 1986 का है जब भारतीय सेना इतिहास में सबसे बड़े युद्धाभ्यास ‘ऑपरेशन ब्रासटैक्स’ के चलते पाकिस्तान पर लगभग हमला करने से कुछ कदम ही पीछे रह गई थी और इसमें हंटी की अहम भूमिका थी.
ऑपरेशन ब्रासटैक्स

एक फ़रवरी 1986 को जनरल के सुंदरजी ने भारतीय सेना की कमान संभाली और राजस्थान से लगी हुई पाकिस्तानी सीमा पर तीनों सेनाओं का संयुक्त युद्धाभ्यास कराने की योजना बनाई. सुंदरजी बदलते दौर की युद्ध शैलियों, एयरफोर्स की एयर असाल्ट डिविज़न और रीऑर्गनाइस्ड असाल्ट प्लेन्स इन्फेंट्री डिविज़न को आज़माना चाहते थे. इस संयुक्त युद्धाभ्यास की कमांड लेफ्टिनेंट जनरल हनुत सिंह के हाथों में सौंपी गई. इससे पहले एक उच्च स्तरीय मीटिंग में हनुत सुंदरजी से किसी बात पर दो-दो हाथ कर चुके थे. तब फ़ौज में यह बात उड़ गई कि हनुत अब रिटायरमेंट ले लेंगे पर सुंदरजी नियाहत ही पेशेवर अफ़सर थे, उन्होंने हनुत का सुझाव ही नहीं माना, उन्हें प्रमोट भी किया था.

तयशुदा प्लान के तहत 29 अप्रैल, 1986 को हनुत ने भारतीय सेना की सुप्रतिष्ठित हमलावर 2 कोर की कमान संभाली और इसे लेकर राजस्थान की सीमा पर आ डटे. एक आंकड़े के मुताबिक़ लगभग डेढ़ लाख भारतीय सैनिक सीमा पर जमा हुए थे. हनुत ने अब तक जो भी सीखा था, उसे इस युद्धाभ्यास में इस्तेमाल किया. रोज़ नए अभ्यास कराये जाते, नक़्शे, सैंड-मॉडल बनाकर हमले की प्लानिंग की जाती और जवानों को गहन ट्रेनिंग दी जाती.

ब्रास टैक्स के कई चरण थे. जब यह युद्धाभ्यास चौथे चरण में पहुंचा तो उनकी कोर को उस प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ा जो अब तक नहीं हुआ था. भारत के तीखे तेवर देखकर पाकिस्तान में हडकंप मच गया. पाकिस्तानी सेना हनुत सिंह का युद्ध कौशल 1971 में देख चुकी थी जब बसंतर की लड़ाई में हनुत ने उनके 60 टैंक मार गिराए थे. इस युद्धाभ्यास को सीधे तौर पर संभावित भारतीय हमला समझा गया जिसकी वजह से पाकिस्तानी सरकार के पसीने छूट गए थे. कहते हैं कि पाकिस्तानी संसद में विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री रोज़ाना बयान देकर देश को भारतीय सैन्य ऑपरेशन की जानकारी देते थे.

इस ऑपरेशन ने अमेरिका तक की नींद उड़ा दी थी. पश्चिम के डिप्लोमेट्स भारत की पारंपरिक युद्ध की ताक़त से हैरान रह गए थे. उनके मुताबिक़ यह युद्धाभ्यास नाटो फ़ोर्सेस के अभ्यासों से किसी भी प्रकार कमतर नहीं था. बल्कि, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दक्षिण एशिया में यह तब तक का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास था. पाकिस्तान ने ट्रैक 2 डिप्लोमेसी का इस्तेमाल किया और बड़ी मुश्किल से इस युद्धाभ्यास को रुकवाया.

सुंदरजी इसे सिर्फ़ एक अभ्यास की संज्ञा दे रहे थे पर जानकारों के मुताबिक़ इस युद्धाभ्यास का असल मकसद कुछ और ही था. इसके रुकने पर हनुत और उनके अफ़सर बड़े मायूस हुए. वीके सिंह लिखते हैं कि हनुत का पिछला रिकॉर्ड देखते हुए यकीन से कहा जा सकता है कि अगर हनुत को इजाज़त मिल जाती तो वे दोनों मुल्कों का नक्शा बदल देते.
सिक्किम में वीआईपी कल्चर बंद कर दिया

यह क़िस्सा 1982 का है जब हनुत सिंह मेजर जनरल बने और सिक्किम में तैनात 17 माउंटेन डिविज़न की कमान उनके हाथों में आई. सिक्किम के तत्कालीन गवर्नर होमी तल्यारखान की इंदिरा गांधी के साथ नज़दीकी के चलते सेना के उच्चाधिकारी उनकी हाज़िरी में खड़े रहते. उन दिनों जो भी सरकारी अधिकारी सिक्किम घूमने आते, वे सेना की मेहमाननवाज़ी का लुत्फ़ उठाते. हनुत ने यह सब बंद करवा दिया. बल्कि उन्होंने आने वाले सरकारी सैलानियों से सरकारी शुल्क वसूलना शुरू कर दिया.
सिक्किम में फॉरवर्ड पोस्टों पर सेना का हाल ख़राब था. न रहने के लिए मुकम्मल इंतज़ाम था न बिजली की व्यवस्था थी. हनुत सिंह ने सेना के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखकर हालात सुधारने की बात कही तो उनके रिपोर्टिंग ऑफ़िसर ने मना कर दिया. हारकर, जब उन्हें कहीं से भी कोई सहायता नहीं मिली तो उन्होंने लकड़ियों से सैनिकों के लिए बैरक और शौचालय बनवाए. वहां पर जनरेटर लगवाए.
कुछ साल बाद जब उनका तबादला कहीं और हो गया तो विदाई के समय सैनिकों ने उन्हें एक मेमेंटो दिया जिस पर लिखा हुआ था, ‘जितना सैनिकों के लिए बाक़ी अफ़सरों ने 20 साल में किया है, आपने एक साल में कर दिखाया’. उनका मानना था कि एक सैनिक जितना अपने अफ़सर के लिए कुर्बानी देता है, उतना अफ़सर उसके लिए नहीं करते.

जूनियर अफ़सरों के मां-बाप हंटी से परेशान थे

हनुत सिंह का मानना था कि सैनिक अगर शादी कर लेता है तो परिवार सेवा देश सेवा के आड़े आती है. लिहाज़ा, वे आजीवन कुंवारे रहे. वे अपने जूनियर अफ़सरों को भी ऐसी ही सलाह देते. एक समय ऐसा भी आया कि उनकी यूनिट में काफ़ी सारे जवान और अफ़सर उनके इस फ़लसफ़े से प्रभावित होकर कुंवारे ही रहे. इस बात से जूनियर अफ़सरों के मां-बाप हनुत सिंह से परेशान रहते. कइयों ने शिकायत भी की पर उनकी सेहत पर इस तरह की शिकायतों का असर नहीं होता था.
बेबाकी

1971 की लड़ाई के बाद जब उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की तो उसमें लिख दिया कि सेना के बड़े अफसर जंग ख़त्म होने से कुछ ही घंटे पहले बॉर्डर पर आये थे. इस बात से उनके उनके कई वरिष्ठ अफ़सर उसे नाराज़ हो गए पर हनुत को अपनी काबलियत का बख़ूबी अंदाज़ा था जिसके चलते वे किसी की परवाह नहीं करते. कई बार तो बात यहां तक बढ़ जाती कि उनके अफ़सर अपनी फ़जीहत रुकवाने के लिए बैठकें ख़त्म कर देते थे.
1971 में उनके कमांडिंग ऑफ़िसर अरुण श्रीधर वैद्य (बाद में सेनाध्यक्ष) ने एक बार जंग के दौरान उनसे हालचाल मालूम करने की कोशिश की तो हनुत ने कहलवा दिया कि वे ‘पूजा’ कर रहे हैं और अभी बात नहीं कर सकते!’ दरअसल, जंग के दौरान वे किसी भी प्रकार का दख़ल बर्दाश्त नहीं करते थे. हनुत सिंह की काबिलियत का अंदाज़ा से बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत में टैंकों की लड़ाई पर उनके लिखे दस्तावेज़ आज भी इंडियन मिलिट्री अकादमी में पढ़ाये जाते हैं.

इतनी काबिलियत के बावजूद हनुत सिंह सेनाध्यक्ष नहीं बनाए गए. कहते हैं कि जब उन्हें यह बात मालूम हुई तो वे बड़े ही धीर स्वर में बोले, ‘यह मेरा नहीं देश का नुकसान है कि उन्होंने काबिलियत के बजाए किसी और चीज को प्राथमिकता दी है.’ यह तय है कि हर क़ाबिल अफ़सर सेनाध्यक्ष नहीं बनता और हर सेनाध्यक्ष क़ाबिल नहीं होता.

लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़

लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़ जिन्होंने भरी सभा मे पंडित जवाहरलाल नेहरू की चुटकी ले ली । 

     लेफ्टिनेंट जनरल नाथूसिंह राठौड़ , एक ऐसी शख्सियत जिन्हें हम सभी को अवश्य जानना चाहिए  ।  कौन हैं नाथू सिंह राठौड़ ,
 तो फिर आइये जानते हैं इनके महान व्यक्तित्व को । 

   लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर सन् 1902 में पैदा हुए थे. वो ठाकुर हामिर सिंह जी के इकलौते बेटे थे और अपने माता-पिता को बचपन में ही खो देने के बाद उन्हें #डुंगरपुर के महारावल विजय सिंह ने पाला था. उन्हें उनके दोस्त बागी कहकर पुकारते थे. एक बेहतर आर्मी अफसर बनने की तैयारी के लिए वे इंग्लैंड के प्रतिष्ठित Sandhurst मिलिट्री कॉलेज भी गए थे. वह एक उत्कृष्ट अफसर तो बने ही, लेकिन उनको इतिहास में एक ईमानदार और बेबाक सैन्‍य अफसर के रूप में याद किया जाता है. जिसने सेना की एक बेहद महत्‍वपूर्ण नीति को दिशा दी। 
  
   #ब्रिटिश अधिकारियों और उनकी मेस का अपमान -  नाथूसिंह राठौड़ जी चुकी शाही परिवार से सम्बंध रखते थे  , इसलिए वो मेस में अंग्रेजों अफसरों  के साथ भोजन ग्रहण करने से मना कर दिए थे 
इस बात पर बहुत बवाल मचा था क्योंकि अंग्रेज भारतीयों को तुच्छ समझते थे और  पहली बार किसी भारतीय ने अंग्रेजों को यह महसूस करवाया की उनकी औकात एक राजपूत रजवाड़े के सामने क्या हैं। 

    नेहरू vs नाथू सिंह राठौड़ :- 

  भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित जवाहर लाल नहरू ने एक मीटिंग बुलाई थी जिसमें डिफेंस फोर्स के उच्च अधिकारी और कांग्रेस पार्टी के सभी बड़े नेता मौजूद थे. उस मीटिंग का मकसद था कि भारतीय #आर्मी #चीफ के पद पर किसी अच्छे सिपाही को रखा जाए। 
  
  नेहरू ने उस मीटिंग में कहा था कि मुझे लगता है कि 'किसी ब्रिटिश ऑफिसर को भारतीय आर्मी का जनरल बना देना चाहिए. हमारे पास संबंधित विषय के लिए ज्यादा अनुभव नहीं है. ऐसे में भारतीय आर्मी को लीड कैसे कर पाएंगे।

     उस मीटिंग में मौजूद अधिकतर लोग इस बात के लिए मान गए, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर नहीं माने. उन्होंने भरी सभा में नेहरू को जवाब दिया ।

  पर सर, हमारे पास देश को चलाने के लिए भी कोई अनुभव नहीं है. तो क्या हमें किसी ब्रिटिश को भारत का पहला #प्रधानमंत्री नहीं चुन लेना चाहिए?' 

    नेहरू शर्मिंदा हुए और उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ ,  फिर  राठौड़ साहब को आर्मी चीफ के पद पर नियुक्ति के लिए प्रस्ताव रखा गया किन्तु उन्होंने अपने सीनियर   #के. एम. करिअप्पा का नाम आगे बढ़ा दिया । और इसी प्रकार भारत के पहले आर्मी चीफ  के. एम. करिअप्पा हुए । 

     अगर राठौड़ साहब ने दिलेरी न दिखाई होती तो , आजादी की मांग करने वाले हम भारतीयों के मुह पर यह एक करारा तमाचा साबित होता , क्योंकि हम वैश्विक पटल पर यह एक बार फिर साबित कर रहे थे कि हम भारतीय अपने देश को चलाने योग्य नहीं हैं , और हमे ब्रिटेन से  भाड़े पर अंग्रेज अधिकारी चाहिए । 

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

मरणो एकण बार

मरणो एकण बार 
राजस्थान री मध्यकालीन वीर मिनखां अर मनस्विनी महिलावां री बातां सुणां तो मन मोद ,श्रद्धा अर संवेदनावां सूं सराबोर हुयां बिनां नीं रैय सकै।
ऐड़ी ई एक कथा  है कोडमदे अर सादै(शार्दूल) भाटी री।
कोडमदे छापर-द्रोणपुर रै राणै माणकराव मोहिल री बेटी ही।

ओ द्रोणपुर उवो इज है जिणनै पांडवां-कौरवां रा गुरु द्रोणाचार्य आपरै नाम सूं बसायो।

मोहिल चहुवांण राजपूतां री चौबीस  शाखावां मांय सूं एक शाखा रो नाम जिका आपरै पूर्वज 'मोहिल' रै नाम माथै हाली।

इणी शाखा में माणकराव मोहिल हुयो।जिणरै घरै कोडमदे रो जलम हुयो।कोडमदे रूप, लावण्य अर शील रो त्रिवेणी संगम ही।मतलब अनद्य सुंदरी।
राजकुमारी ही सो हाथ रै छालै ज्यूं पल़ी अर मोटी हुई।

राजकुमारी कोडमदे मोटी हुई जणै उणरै माईतां नै इणरै जोड़ वर जोवण री चिंता हुई।उण दिनां राजपूतां में फूठरै वर नै इती वरीयता नीं दिरीजती जिती  एक वीर पुरुष नै दिरीजती।इणी कारण उणरी सगाई मंडोवर रै राजकुमार अड़कमल चूंडावत सागै करी दी गई।

कोडमदे जितरी रूप री लंझा ही अडकमल उतरो इज कठरूप।एक'र चौमासै रो बगत हो।बादल़ चहुंवल़ा गैंघूंबियोड़ा हा,बीजल़ी पल़ाका करै ही ,झिरमिर मेह वरसै हो।ऐड़ै में जोग सूं एकदिन अड़कमल सूअर री शिकार रमतो छापर रै गोरवैं पूगग्यो।उठै ई जोग सूं कोडमदे आपरी साथण्यां सागै झूलरै में हींड हींडै ही।हींड लंफणां पूगी कै उणरी नजर सूअर लारै घोड़ै चढिये डारण देहधारी बजरागिये अड़कमल माथै पूगी।नजर रै सागै ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो अर उवां थांथल़ीजगी।थांथरणै रै साथै ई धैंकीज'र पड़गी।पड़तां ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो।रंग में भंग पड़ग्यो।साथण्यां ई सैतरै-बैतरै हुयगी। उणनै ऊंचाय'र महल में लेयगी अर झड़फा-झड़फी करण  सूं उणरो सास पाछो बावड़्यो।ज्यूं सास बावड़्यो जणै साथण्यां पूछ्यो कै-
"बाईसा! इयां एकएक भंवल़ कियां आयगी?ओ तो आखड़िया जैड़ा पड़िया नीं नीतर आज जुलम हुय जावतो।म्हे मूंडो ई कठै काढती?"

जणै कोडमदे कह्यो कै-
"अरै गैलक्यां भंवल़ नीं आई।म्हैं तो उण ठालैभूलै ठिठकारिये घोड़ै सवार नै देखर धैलीजगी।"

आ सुणतां ई उणां मांय सूं एक बोली -
"अरे बाईसा!उवै घोड़ै सवार नै देख'र ई धैलीजग्या जणै पछै उण सागै रंगरल़ी कीकर करोला?उणरै सागै तो थांरो हथल़ोवो जुड़ण वाल़ो है!"

"हैं!उण सागै म्हारो हथल़ेवो!तूं आ कांई काली बात करै?अर जे आ बात सही है अर ओ इज अड़कमल है तो सुणलो इण सागै हथल़ोवो जोड़ूं तो म्हारै बाप सागै जोड़ूं।"कोडमदे रै कैतां ई आ बात उणरै माईतां तक पूगी।
कोडमदे रै मा-बाप दोनां ई कह्यो -
"बेटी !तूं आ बात जाणै नीं है कै थारो हुवण वाल़ो वींद कितरो जोरावर अर आंटीलो है।उणरै हाथ रो वार एक'र तो भलां-भलां सूं नीं झलै।पछै तूं ई बात नै  जाणै है कै नीं कै सिहां अर सल़खाणियां सूं वैर कुण मोल लेवै?आ सगाई छोड दां ला तो थारो हाथ झालण नै, ई जमराज सूं डरतो कोई त्यार नीं हुवैला।"
आ सुणतां ई कोडमदे कह्यो-
"अंकनकुंवारी रैय सकूं पण अड़कमल सूं गंठजोड़ नीं जोड़ूं।"

माणकराव मोहिल आपरी बेटी रो नारेल़ दे मिनखां नै वल़ोवल़ी मेल्या पण अड़कमल रै डर सूं किणी कान ई ऊंचो नीं कियो।
सेवट आदमी पूगल रै राव राणकदे भाटी रै बेटे सादै(शार्दूल)नै कोडमदे रै जोग वर मान टीको लेयग्या। पण राणकदेव सफा नटग्यो।उण राठौड़ां सूं भल़ै वैर बधावणो ठीक नीं समझ्यो।
मोहिलां रा आदमी मूंडो पलकार'र पाछा टुरग्या।उवै पूगल़़ सूं कोस दो-तीनेक आगीनै आया हुसी कै पूगल़ रो कुंवर सादो उणांनै आपरी घोड़ी चढ्यो मिल्यो।
असैंधा आदमी देख'र सादै पूछ्यो तो उणां पूरी बात धुरामूल़ सूं मांड'र बताई।
जद सादै नै इण बात रो ठाह लागो तो उणरो रजपूतपणो जागग्यो,मूंछां रा बाल़ ऊभा हुयग्या।भंवारा तणग्या।उण मोहिलां रै आदम्यां नै कह्यो-
 "हालो पाछा पूगल़।टीको म्हारै सारू लाया हो तो नारेल़ हूं झालसूं!
सादै आवतां रावजी नै कह्यो कै-
"हुकम!ठंठेरां री मिनड़ी जे खड़कां सूं डरै तो उणरै पार कीकर पड़ै?जूंवां रै खाधां कोई गाभा थोड़ा ई न्हाखीजै?राजपूत अर मोत रै तो चोल़ी-दामण रो साथ है।जे टीको नीं झाल्यो तो निकल़ंक भाटी कुल़ रै.जिको कल़ंक लागसी उवो जुगां तक नीं धुपैलो।आप तो जाणो कै गिरां अर नरां  रो उतर्योड़ो नीर पाछो नीं चढै--
धन गयां फिर आ मिले,
त्रिया ही मिल जाय।
भोम गई फिर से मिले,
गी पत कबुहन आय।।
आ कैय सादै, मोहिलां री कुंवरी कोडमदे रो नारेल़ झाल लियो पण एक शर्त राखी कै -
"म्हारी कांकड़ में बड़ूं जितै म्हनै राठौड़ां रो चड़ी रो ढोल नीं सुणीजणो चाहीजै तो साथै ई उणांरै रै घोड़ां रै पोड़ां री खेह ई नीं दीसणी चाहीजै।
ऐ दोनूं बातां हुयां म्है उठै सूं एक पाऊंडो ई आगै नीं दे सकूं।क्यूंकै--
झालर बाज्यां भगतजन,
बंब बज्यां रजपूत।
ऐतां बाज्यां ना उठै,
(पछै)आठूं गांठ कपूत।।
मोहिलां वचन दियो अर सावो थिर कियो।
आ बात जद अड़कमल नै ठाह लागी तो उणरै रूं-रूं में लाय लागगी।उण आपरै साथ नै कह्यो- कै -
"मांग तो मर्यां नीं जावै। हूं तो जीवतो हूं।सादै अर मोहिलां अजै म्हारी खाग रो पाणी चाख्यो नीं है।हुवो त्यार।मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई सादै नै सुरग रो वटाऊ नीं बणा दियो तो म्हनै असल राजपूत मत मानजो।"
अठीनै सादो जान ले चढ्यो अर उठीनै अड़कमल आपरा जोधार लेय खार खाय चढ्यो।
माणकराव आपरी लाडकंवर रो घणै लाडै -कोडै ब्याव कियो अर आपरै सात बेटां नै हुकम दियो कै-
"बाई नै पूगल़ पूगायर आवो।आपां सादै नै वचन दियो है पछै भलांई स्वारथ हुवै कै कुस्वारथ बात सूं पाछो नीं हटणो।
आगै मोहिल अर लारै आपरी परणेतण कोडमदे सागै सादो।
मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई अड़कमल रो मोहिलां सूं सामनो हुयो।ठालाभूलां नै मरण मतै देख एक'र तो राठौड़ काचा पड़्या पण पछै सवाल मूंछ रो हो सो राटक बजाई।बारी -बारी सूं मोहिल आपरी बैन री बात सारू कटता रैया पण पाछा नीं हट्या।जसरासर,साधासर,कुचौर,नापासर,आद जागा मोहिल वीर राठौड़ां सूं मुकाबलो करतां कटता रैया।छठो भाई बीकानेर अर नाल़ रै बिचाल़ै कट्यो तो सातमो मेघराज मोहिल आपरी बात सारूं कोडमदेसर में वीरगत वरग्यो।ऐ सातूं भाई आज ई इण भांयखै में भोमियां रै रूप में लोक री श्रद्धा रा पूरसल पात्र है।
हालांकि उण दिनां ओ कोडमदेसर नीं हो पण आ छेहली लड़ाई इणी जागा हुई। अठै इज भाटी सादै अर अड़कमल री आंख्यां च्यार हुई।उठै आदम्यां सादै नै कह्यो -
"हुकम!आप ठंभो मती।आप पूगल़ दिसा आगै बढो।"
जणै सादै कह्यो कै-
"हमैं कांकड़ म्हारी है!म्हैं अठै सूं न्हाठ'र कठै जाऊंलो?मोत तो एक'र ई  आवै ,रोजीनै नीं-
कंथा पराए गोरमे,
नह भाजिये गंवार।
लांछण लागै दोहुं कुल़ां,
मरणो एकण बार।।
 जोरदार संग्राम हुयो सेवट अड़कमल रै हाथां सादो भाटी ई वीरता बताय'र आपरी आन-बान रै सारू स्वर्गारोहण करग्यो पण धरती माथै नाम अमर करग्यो।
आपरै पति नै वीरता सागै लड़'र वीरगत वरण माथै कोडमदे नै ई अंजस हुयो।उण आपरी तरवार काढ आपरो जीवणो हाथ बाढ्यो अर  उठै ऊभै एक आदमी नै झलावतां कह्यो-
"लो !ओ म्हारो  हाथ पूगल ले जाय म्हारी सासू रै पगै लगावजो अर कैजो कै थांरै बेटे थांरो दूध नीं लजायो तो थांरी बहुआरी थांरो नाम नीं लजायो तो ओ दूजै हाथ रो गैणो है इणसूं म्हारै सुसरैजी नै कैजो कै इण तालर में तिसियां खातर एक तल़ाव खणावजो।"
इतो कैय  उण जुग री रीत मुजब कोडमदे रथी बणाय आपरै पति महावीर सादै रै साथै सुरग पूगी-
आ धर खेती ऊजल़ी,
रजपूतां कुल़ राह।
चढणो धव लारै चिता,
बढणो धारां वाह!!
उठै राव राणकदे कोडमदे री स्मृति में कोडमदेसर तल़ाब खोदायो जिको इण बात रो आज ई साखीधर है कै मरतां-मरतां ई आपरी बात री धणियाणी मनस्विनी कोडमदे किणगत लोककल्याणकारी भावनावां रो सुभग संदेश जगत नै देयगी।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

कीरत कज कुरबान किया

कीरत कज कुरबान
किया--
        
आदू कुल़ रीत रही आ अनुपम,
भू जिणरी भल साख भरै।
महि मेवाड़ मरट रा मंडण,
सौदा भूषण जात सिरै।।1

दिल सूं हार द्वारका दिसिया,
वाट हमीरै राण वरी।
माता वचन बारू मन मोटै,
केलपुरै री मदत करी।।2

चढियो ले पमंग पांचसौ चारण,
सीर सनातन भीर सही।
वीरत पाण राखिया बारू,
मेदपाट रा थाट मही।।3

दिल सनमान सिसोदै दीधो,
दूथी निजपण थाप दियो।
हाटक गयँद साथ में हैवर,
कूरब कव रो अथग कियो।।4

अड़सी सुतन आंतरी अरपी,
साथै ग्यारा गांम सही।
बारू नीत ऊजल़ी वीदग,
राजावां  सम रीत रही।।5

हेतव वरत भांजवा हाडै,
कुबुद्धि लालै वाद कियो।
व्रतधारी बारू उण वेल़ा,
दूथी निज सिर काट दियो।।6

बारू तणै वंश में बेखो,
जैसो केसव मरद जयो।
पातल रै जुपिया पख जाहर,
अंजस सुणियां सरब अयो।।7

हल़दीघाट हींसिया हैवर,
रजवट पातल उठै रखी।
कट पड़िया जैसो नै केसव,
ईहग वीरत रखण अखी।।8

ज्यांरो जस जाणै सह जगती,
कवियण वरणै बात कसी।
सँभल़ी जिकां गरब सूं सांप्रत,
चित आजादी जोत चसी।।9

बारू तणी ऐल़ में बेखो,
हेक भल़ै नरपाल़ हुवो।
जुपियो पखै मरद जगदीसर,
वीरत वाल़ी वाट बुवो।।10

ओरँग चढ आयो उदियापुर,
राजड़ सूं रण रचण रसा।
हलचल़ हुई सिसोदां हिरदै,
कव वरणै वरणाव कसा।।11

राणो जदन सुरक्षित राजड़,
गढ तजनै वन भोम गयो।
अणडर वीर पोल़ रै आडो,
अनड़ लड़ण नरपाल़ अयो।।12

कट पड़ियो कुटका हुय कवियण,
निडर पोल़ सूं हट्यो नहीं।
मातभोम मानी सम माता,
मंडी नरपत मरण मही।।13

पसर्यो सुजस जैण रो पुहमी,
सकवि हरस्या सँभल़ सको।
हुइयो नाय दूसरो हेतव,
नरिये रै समरूप नको।।14

किसनो हुवो ऐण कुल़ कवियण,
मुर- सुत जिणरै शेर मनो।
केसर किशो जोरसी कहिये,
धर नित लाटण धिनो धिनो।।15

केसर हुवो केसरी समवड़,
दाकल गूंजी दिसो दसां।
धुरपण मर्द धीरत रो धारी,
कीरत पसरी कितै किसां।।16

अड़ियो नर आजादी कारण,
सँकिया गोरा जदै सको।
दूठां जद दारूण दुख दीधो,
पात हुवो दुख पाय पको।।18

त्यागी पुरस त्यागियो तन-सुख,
दिल-सुख फेरूं त्याग दियो।
त्याग दियो परिवार तिकै दिन,
कटण देश कज मतो कियो।।19

तन- मन- धन परिवार तीखपण,
दुख जन हरवा छोड दिया।
केहरिया किसनेस- तणा कव, 
कीरत कज कुरबान किया।। 20

वतन हितैषी भमियो बेखो,
भाखर थल़ियां किती भल़ै।
थिरता रखी अंकै नीं थाको,
गरल़ भूतपत जेम गल़ै।।21

जेल़ा़ं  भुगत कष्ट सह झूल्यो,
भूल्यो नाहीं गुमर भलां।
वतनपरस्ती पाल़ वडै नर,
गाढ धार इल़ थपी गलां।।22

हिवड़ै लेस लायो न हीणप
रेणव तण-तण ऊंच रखी।
पच थाका गोरा बल़ पूरै,
दाव दीनता नाय दखी।।23

मोटो मिनख हिंद रो मोभी,
निमख इये में झूठ नहीं।
किसना-तणा ताहरी कीरत,
कवियण प्रणमे गीध कही।।24
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

सोमवार, 15 जुलाई 2019

Lt Gen Sagat Singh Rathore

Lt Gen Sagat Singh Rathore , Padma bhushan, PVSM  is known as hero of Goa, Chinese killer at Nathu la & liberator of Bangla Desh .
He was born in village Kusumdesar Dist Churu Rajasthan on 14 Jul 1919& died on 26 sep 2001.
He joined  as a Naik in Bikaner Ganga risala in 1938 & was later commissioned as 2 Lt in same unit in1941& saw action in Sindh , Iran & Iraq. In 1950, he joined 3 GR &later, commanded 3/3 GR . In sep 1961 he was appointed as cdr 50 para bde .On 19 Dec 1961 , he raised Indian Tricolour at Panjim & liberated it from Portuguese occupation. He took over 17 Mtn Div& took firm action against Chinese intrusion at Nathu la in sep 1967.Later he was posted as cdr 101 com zone.ln Dec 1970 he was promoted to Lt Gen & took over 1V corps .He launched offensive from eastern side .His famous Aero bridge at Mighty Meghna river  demoralised Pak forces & forced Gen Niazi to surrender at Dacca to Gen JS Arora  Goc in C Eastern Army. He was awarded  Padma bhusan
He was a real tiger & a legend....long live Gen Sagat singh....Jai ho🇮🇳
A  beautiful memorial of Gen Sagat singh has been dedicated to nation on 13 Jul 2019  at Jaipur Mil Stn by Army cdr SWC  to commemorate his birth centenary .

बुधवार, 8 मई 2019

राव शेखाजी

*शेखावत वंश व् शेखावाटी के प्रवतक, वीरवर क्षत्रिय शिरोमणि पूजनीय महाराव शेखाजी के 531वे निर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन
राव शेखाजी
राजस्थान में शूर-वीरों की कभी कोई कमी नहीं रही।
यही कारण था कि राजस्थान के इतिहास के जनक जेम्स कर्नल टॉड को यह कहना पड़ा कि इस प्रदेश का शायद ही कोई ग्राम हो जहाँ एक भी वीर नहीं हुआ हो। बात सही भी लगती है।

इस अध्याय में जिन वीर शेखा का वृतांत ले रहे हैं वो किसी बड़े राज्य के स्वामी नहीं बल्कि उनका एक बहुत ही छोटे ठिकाने में जन्म हुआ था।
आज भले ही वह क्षेत्र एक बड़े नाम 'शेखावाटी' से जाना जाता है।
जिसमें राजस्थान को दो जिले सीकर व झुंझनु आते हैं।
यह शेखावाटी इन्ही वीर शेखा के नाम पर है।

शेखा का सम्बन्ध यूं तो जयपुर राजघराने के कछवाह वंश से है लेकिन उनके पिता राव मोकल के पास मात्र 24 गाँवों की जागीर थी।
राव मोकल के घर आंगन में शेखा का जन्म सम्वत् 1490 में हुआ था।
इनके जन्म की भी अपनी एक रोचक कहानी है जो इस प्रकार है।

राव मोकल बहुत ही धार्मिक वृति के पुरुष थे।
मोकल के वृद्धावस्था तक कोई सन्तान नहीं हुई फिर भी संतोषी प्रवृति के होने के कारण किसी से कोई शिकायत नहीं थी।
बस, साधु-संतों की सेवा-सुश्रा में लगे रहते थे।
मोकल को एक दिन किसी महात्मा ने उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी और उसी के अनुसार महाराव मोकल वृंदावन गये।
वहां उन्हें गऊ सेवा में एक विशिष्ट आनन्द की अनुभूति हुई।
यहीं उन्हें किसी ने गोपीनाथजी की भक्ति करने के लिए कहा। मोकल अपनी वृद्धावस्था में गऊ सेवा और भगवान गोपीनाथजी की सेवा-आराधना में ऐसे लीन हुए कि उन्हें दिन कहाँ बीतता, पता ही नहीं लगता।

मोकल जी की
निरबान रानी की कोख से बच्चे ने जन्म लिया। 
शेखा निश्चित ही प्रतापी पुरुष थे। इन्होंने अपने पिता की 24 गाँवों की छोटी सी जागीर को 360 गाँवों की एक महत्वपूर्ण जागीर का रूप दे दिया।
सच तो यह है कि शेखा किसी जागीर के मालिक नहीं थे बल्कि वे एक स्वतंत्र रियासत के मुखिया हो गये थे।

दूरदृष्टा-राव शेखा ने अपने जीवन काल में करीब बावन युद्ध लड़े। इनमें कुछ तो अपने ही भाइयों आम्बेर के कछवाहों के साथ भी लड़े।
शेखा की दिन दूनी-रात चौगूनी सफलता को नहीं पचा पाए, जिसके कारण उनके न चाहते हुए भी उन्हें संघर्ष को मजबूर होना पड़ा था।
सौभाग्य से उन्हें हर युद्ध में सफलता प्राप्त हुई।
एक बार आम्बेर नरेश ने नाराज होकर बरवाड़ा पर आक्रमण कर दिया तो राव शेखा ने इस क्षेत्र में रहने वाले पन्नी पठानों को अपनी तरफ करके उस आक्रमण को भी विफल कर दिया।

इस सफलता के पीछे राव शेखा की दूरदृष्टि थी।

मर्यादा पुरुष-राजपूती संस्कृति के अनुरूप शेखा एक मर्यादाशील पुरुष थे तथा अन्य से भी मर्यादोचित व्यवहार की अपेक्षा रखते थे, फिर वे चाहे कोई भी हो।
जीवन पर्यन्त उन्होंने मर्यादाओं की रक्षा की।
इतिहास गवाह है कि एक स्त्री की मान मर्यादा के पालनार्थ उन्होंने अपने ही ससुराल झूथरी के गौड़ों से झगड़ा मोल लिया जिसके परिणामस्वरूप घाटवे का युद्ध हुआ और उसमें उन्हें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़ी थी।

घटना कुछ इस प्रकार से थी। झूथरी ठिकाने का राव मोलराज गौड़ अहंकारी स्वभाव का था। उसने अपने गाँव के पास से जाने वाले रास्ते पर एक तालाब खुदवाना आरम्भ किया और यह नियम बनाया कि रास्ते से गुजरने वाले प्रत्येक राहगीर को एक तगारी मिट्टी खोदकर बाहर की ओर डालनी होगी।

एक कछवाह राजपूत अपनी पत्नी के साथ गुजर रहा था। पत्नी रथ में थी, वह स्वयं घोड़े पर था, साथ में एक आदमी और था। इन सबको भी मिट्टी डालने को विवश किया। कछवाह राजपूत व उसके साथ के आदमी ने तो मिट्टी डालदी परन्तु वहाँ के लोग स्त्री से भी मिट्टी डलवाने के लिए जबरदस्ती रथ से उतारने
लगे तो पति ने समझाया-बुझाया पर जब नहीं माने और बदसूलकी पर उतर आये तो उसने गौड़ों के एक आदमी को तलवार से काट दिया।
इस पर वहाँ एकत्रित गौड़ों ने भी स्त्री के पति को मौत के घाट उतार दिया।
पत्नी ने अपने आदमी का अन्तिम संस्कार करने के बाद वहाँ से एक मुट्ठी मिट्टी अपनी साड़ी के पलू में बांधकर लाई और सारी घटना से शेखा को अवगत कराया।
शेखा ने सारा वृतांत जानकर गौड़ों को तुरन्त दंड देने का मन बना लिया और झूथरी पर चढ़ाई करदी।
जमकर संघर्ष हुआ और गौड़ सरदार का सिर काटकर ले आये और उस विधवा महिला के पास भिजवा दिया।
बाद में शेखा ने वह सिर अपने अमरसर गढ़ के मुख्य द्वार भी टांगा ताकि कभी और कोई ऐसी हरकत नहीं करें।

न्याय तो हो गया लेकिन गौड़ों ने इसे अपना घोर अपमान समझा और पूरी शक्ति के साथ घाटवा के मैदान में शेखा को ललकारा। शेखा ने भी उनकी चुनौती को स्वीकारा।
दोनों ओर से घमासान मचा। शेखा को 16 घाव लगे लेकिन वे निरन्तर लड़ते रहे।
गौड उनके आगे नहीं ठहर सके किंतु इस युद्ध के बाद बैशाख शुक्ला 3 (आखा तीज) संवत् 1545 में वे अपनी राजपूती मान-मर्यादा की बेदी पर स्वर्ग सिधार गये।

संक्षेप में शेखा निडर एवं आत्म स्वाभिमानी थे।
शौर्य व साहस की प्रतिमूर्ति थे, धर्म-कर्म और पुण्य के मार्ग के अनुयायी थे।
सम्भवत: शेखा के इन्हीं पुण्यात्मकता के कारण उनके नाम से प्रसिद्ध शेखावटी अचंल आज विश्वस्तर पर नाम को रोशन कर रहा।
शेखा के बाद आठ पुत्रों की संतानें शेखावत कहलाई और इन्हीं में से एक खांप ने देश को उपराष्ट्रपति (भैरोसिंह शेखावत) दिया तो एक खांप की पुत्रवधु देश की राष्ट्रपति बनी।

ऐसे ही विश्व का सबसे धनी व्यक्ति भी इसी शेखावटी क्षेत्र की देन है। अत: स्वयं शेखा अपने समय में राजपूताने के एक ख्यातिनाम वीर पुरुष थे और आज भी उनका नाम सर्वत्र सम्मानीय है। इतिहासकार सर यदूनाथ सरकार ने भी लिखा है की जयपुर राजवंश में शेखावत सबसे बहादुर शाखा है।

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शनिवार, 4 मई 2019

बीकानेर-बखांण

बीकानेर-बखांण

गिरधरदान रतनू दासोड़ी

        दूहा
दे सुमती सगती दुरस,
पुनि उगती कँठ पूर।
जगती वरणां जँगल़ जस,
सती जती बड सूर।।1

जांगल़धर धिन जोगणी,
थपियो हाथां थाट।
बैठो बीको वरदधर,
पह जिकण धिन पाट।।2
कमधज बीकै वीर बड,
झूड़ किया अरि जेर।
जिण थपियो गढ जाहरां,
बंकै बीकानेर।।3

बीज शुकल़ बैसाग री,
पनरै साल पैंताल़।
सूर धरा सौभागगढ,
बीक थप्यो विरदाल़।।4
गहरा जल़ धोरा घणा,
विरछ कँटाल़ा बेख।
रतन अमोलख इण रसा,
नर-नारी धिन नेक।।5
   छंद -त्रोटक
इल़ जंगल़ मंगल़ देश अठै।
जुड़ दंगल़ जीपिय सूर जठै।
थपियो करनी कर भीर थही।
सद बीक नरेसर पाट सही।।1

जगजामण आप देसांण जठै।
उजल़ी धर थान जहान उठै।
गहरा जल़ धूंधल़ धोर घणा।
तर बोरड़ कैरड़ जाल़ तणा।।2

हरियाल़ उनाल़ नुं जोम हरै।
भुइ फाबत हूंस उरां सभरै।
चर तोरड़ रीझ पता चरणी।
धिन धिन्न हु जांगल़ री धरणी।।3

देशणोक जु राय खल़ां दरणी।
वरदायक गल्ल कथा वरणी।
हरणी हर संकट हेर हथां।
करणी नित भीर सताब कतां।।4

नागणेचिय थांन जहांन नमै।
रँज भाखर ऊपर मात रमै।
चित साकर दूध रसाल़ चढै।
पड़ पाव कवेसर छंद पढै।।5

कमलापत धांम अमांम कियो।
दत राज राजेसर नाथ दियो।
लख लोग सदा जस लाभ लहै।
कट पातक ऐम पुरांण कहै।।6

दिस कोडमदेसर भैर दिपै।
थल़ थांन रूखाल़िय आप थपै।
मगरै कपिलायत धांम मही।
सुज मोचण पाप अनाप सही।।7

कर कांधल त्यागिय वीर कहो।
उण भांजिय दोयण धीर अहो।
पसरी धर सीम असीम  पुणां।
सुज भाव लगाव उछाव सुणां।।8

हद बात धणी धर लूण हुवो।
वसु थापण वीदग बात बुवो।
धिन खाग बल़ां धिब माडधरा।
खित सौभिय भूप उदार खरा।।9

कमरू दल़ आय अटक्क कियो।
लग दोयण घेर आसेर लियो।
जद जैतल वीर सधीर जठै।
वणियो अगवाण अबीह बठै।।10

भिड़ियो रतवाह नत्रीठ भलो।
हिव मुग्गल फौज परै हमलो।
करवाल़ बल़ां जिण जेर किया।
डर काबल पाव सु छोड दिया।।11

कव सूजड़ रोहड़ क्रीत करी।
सच ऊफण सांभल़ बात सरी।
फब जीत धजा असमान फरै।
सह हिंदुस्तान कथा समरै।।12

दुनि दांनिय कर्मसी साख दखां।
उण सूंपिय आस नुं पूत अखां।
जिण होड नही धर और जुवो।
हर चक्क सिरोमण नांम हुवो।।13

दत कोड़ नरेसर राय दिया।
कव खूब करीबँध भूप किया।
सुण शंकर बारठ साख सची।
रट कायब रोहड़ जेण रची।।14

महि पातल रै हलचल्ल मची।
कछु होय अधीर  नुं ताक कची।
पिथुराज हुवो गहलोत पखै।
रजपूत चित्तौड़  अनम्म रखै।।15

भगतां पिथुराज धरा ज भलो।
पकड्यो जिण माधव हाथ पलो।
कितरा रच कायब राच किया।
दतचित्त प्रभू दिस ध्यान दिया।।16

अमरेस हुवा अजरेल इसा।
जिण भांगिय आरबखान जिसा।
हद हारण खेत सुहेत हुवो।
वरियांम रणां सुरलोक बुवो।।17

मुगलां दलपत्त नहीं मुड़ियो।
जस जांगल़ काज जुधां जुड़ियो।
वर मोत लिवी हठियाल़ वसू।
जग राख गयो नरपाल़ जसू।।18

पत जांगल़ भूप करन्न पुणां।
सज तोड़िय ओरंग नाव सुणां।
कमधेस नवांखँड नांम
कियो।
लड़ जांगल़ पात'सा व्रिद लियो।।19

सजियो हिंदवांण रि भीर सही।
घट भांगण रोद सु सार गही।
अवरंग अरोड़ सूं युं अड़ियो।
जिणरो जस कायब में जड़ियो।।20

अवनी नरपाल़ अनै इसड़ा।
जग शारद सेव करी जिसड़ा।
भुइ साख भरै ग्रँथगार भली।
चरचा धिन भारत देश चली।।21

जग सूर हुवा पदमेस जिसा।
रिम दोटण खाटण क्रीत रसा।
छल़ बांधव शेर सधीर छिड़्यो।
बल़ गंजण रोद सक्रोध बड़्यो।।22

भड़ पैंड सदा अणबीह भर्या।
डग जेण भरी तुरकांण डर्या।
करवाल़ निसांणिय लालकिले।
हव आजतकै जिण गल्ल हलै।।23

दिल एक दूहै नवलाख दिया।
लख जीभ जिकै जस लूट लिया।
अवनाड़ उदार समान अखां।
पह नीर चढाविय चार पखां।।24

वरसै थल बादल़ रीझ वल़ै।
पड़ नीर अधीर झड़ां प्रगल़ै।
भल सांमण मास सरां भरिया।
हद खेत किसांन हुवै हरिया।।25

मधुरा सुर मोर झिंगोर मही।
सदभावण धोर सिंगार सही।
वरदाल़िय बाजर ऊंच बगी।
लटियाल़िय जायर आभ लगी।।26

वसुधा सुरियंद धणी बणियो।
हथ माथ  दुकाल तणो हणियो।
मिसरी सम नीर मतीर मणा।
तिरपत्त मना थल़ देश तणा।27

धन धांन सधीणाय देख धरा।
हिव जोय जठीनुय दीख हरा।
घण गाजत आभ धुनी गहरा।
अड़डै जल धार निसि-अहरा।।28

सुरलोक समोवड भोम सही।
मनु आय गयो मघवान मही।
इण रुत्त फिरै फणियाल़ अही।
निजरां अवनी थल़ जोड़ नहीं।।
29

बसु तीजणियां बणियै -ठणियै।
उतरी अछरां मनु ऐ अणियै।
हद पैंड हस्तीय ज्यूं हलवै।
घण गीत उगीर मधु गलवै।।30

नर-नार उरां छल़ छंद नहीं।
सुधभाव लगाव रखाव सही।
कवि मन्न अनंद सु छंद कयो।
जय हो धर जंगल देश जयो।।31
       छप्पय
जय हो जांगल़ देश,
जेथ राजै जगजामण।
सांमण मास सदैव,
सको मन मांय सुहामण।
रूपनाथ जिण रसा,
मुखां रटियो माहेसर।
जेथ तप्यो जसनाथ,
जांगल़ू गुरु जंभेसर।
साह सती  सँत  सूरा सकव,
लाट सुजस सारां लियो। 
बीक री धरा धिन धिन बसू,
कवियण गिरधर जस  कियो।।
गिरधरदान रतनू दासोड़ी

बुधवार, 1 मई 2019

राव टोडरमल (उदयपुरवाटी)

"राव टोडरमल"(उदयपुरवाटी)

राजा रायसल दरबारी खंडेला के 12 पुत्रों को जागीर में अलग अलग ठिकाने मिले। और यही से शेखावतों की विभिन्न शाखाओं का जन्म हुआ। इन्ही के पुत्रों में से एक ठाकुर भोजराज जी को उदयपुरवाटी जागीर के रूप में मिली। इन्ही के वंशज 'भोजराज जी के शेखावत" कहलाते हैं। भोजराज जी के पश्चात उनके पुत्र टोडरमल उदयपुरवाटी (शेखावाटी)के स्वामी बने,टोडरमल जी दानशीलता के लिए इतिहास विख्यात है,टोडरमलजी के पुत्रों में से एक झुंझार सिंह थे,झुंझार सिंह  वीर प्रतापी निडर कुशल योद्धा थे, उस समय "केड" गाँव पर नवाब का शासन था,नवाब की बढती ताकत से टोडरमल जी चिंतित हुए| परन्तु वो काफी वृद्ध हो चुके थे। इसलिए केड पर अधिकार नहीं कर पाए|कहते हैं टोडरमल जी मृत्यु शय्या पर थे लेकिन मन्न में एक बैचेनी उन्हें हर समय खटकती थी,इसके चलते उनके पैर सीधे नहीं हो रहे थे। वीर पुत्र झुंझार सिंह ने अपने पिता से इसका कारण पुछा|टोडरमल जी ने कहा "बेटा पैर सीधे कैसे करू,इनके केड अड़ रही है"(अर्थात केड पर अधिकार किये बिना मुझे शांति नहीं मिलेगी)| पिता की अंतिम इच्छा सुनकर वीर क्षत्रिय पुत्र भला चुप कैसे बैठ सकता था?  झुंझार सिंह अपने नाम के अनुरूप वीर योद्धा,पित्रभक्त थे !उन्होंने तुरंत केड पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में उन्होंने केड को बुरी तरह तहस नहस कर दिया। जलते हुए केड की लपटों के उठते धुएं को देखकर टोडरमल जी को परमशांति का अनुभव हुआ,और उन्होंने स्वर्गलोक का रुख किया। इन्ही झुंझार सिंह ने अपनी प्रिय ठकुरानी गौड़जी के नाम पर "गुढ़ा गौड़जी का" बसाया| तत्कालीन समय में इस क्षेत्र में डाकुओं का आतंक था, झुंझार सिंह ने उनके आतंक से इस क्षेत्र को मुक्त कराया| किसी कवि का ये दोहा आज भी उस वीर पुरुष की यशोगाथा को बखूबी बयां कर रहा है

*डूंगर बांको है गुडहो,रन बांको झुंझार!*
*एक अली के कारण, मारया पंच हजार!!*

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

रिड़मल राठौड़

"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता....
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया

!कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर सेतो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...।बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बाते मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की...

"बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।"राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय हैकैसे मानेगा !अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ?आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा थाये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगालेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूररहिये।

माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों ...?यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए...?इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे औरअपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये

हिन्दू भाइयो ये सच्चीघटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन.
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट शेयर जरूर करें,,  जय  माँ भवानी