गुरुवार, 28 जून 2018

शौर्य शेखा का

शेखाजी का आमेर रियासत को बछेर देने से मना करना।
आमेर के राजा चंद्रसेन के द्वारा शेखाजी को युद्ध के लिए ललकारना। महाराव शेखाजी और आमेर की सेना के बीच बरवाड़ा के समीप युद्ध जिसमे आपने रण कौशल से आमेर की विशाल सेना को हरा कर उनके ही बछेरों को शेखाजी द्वारा पकड़ कर ले आना।

                    
चंद्रसेन-
चढ़ बरवाड़ा लश्कर आयो,
शेखा लीज्यो जाण।
शेखा थारो माण मरस्यां,
म्हारी हुसी नाण।।

घोड़ा हाथी लश्कर माँहि,
पैदल पांच हजार।
थारी हार रो लेख लिखण न,
तरस रह्या सिरदार।।

शेखाजी -
सुण फरमाना गढ़ आमेरी ,
आंख्या होगी लाल।
सिर झुकावे मात जुम्माई,
थारी काईं मजाल।।

गढ़ अमरसर सुपणो थारो,
म्हारी माता नाण ।
निजऱ पड़ी जे थारी इण पर,
थारा जगे मसाण।।

एक कानी आमेरी लश्कर,
जब्बर जब्बर रणधीर।
दूजे पासे  हुंकारे आ
शेखा री शमसीर।।

रण माहीं रणभीरी बाजी,
चमक उठी शमसीर।
भारी पड़िया लश्कर ऊपर ,
शेखा रा चन्द बीर।।

घुड़लां सूं अबे  घुड़ला भिड़िया,
हाथी रह्या चीघाड़।
सिंघा री दहाड़ सूं देखो,
गूंज रह्यो बरवाड़।।

जद भालां रो पड़:सटाको,
साँस्याँ अटक सी जाय।
बाणा री जदों बणे बादळी,
सूरजड़ो लुख जाय।।

पांच पठाणी भारी पड़ऱ्या,
सौ सौ री ललकार ।
शेखा री तरवार भी देखो,
दिन्या शीश उतार।।

कोजो घणों घमासाण मचाऱ्या,
शेखाजी रा बाण।
एक एक दस न काट रह्या,
देखो पन्नी पठाण।।

खून रो नाळो चाल पड्यो,
लाल हुयी बरवाड़।
आधो लश्कर पड्यों मैदानां,
बचियो भग्यो ढूंढाड़।।

आमेर का सैनिक-
किण दुश्मन सूं लड़ा दियो,
राजा चंद्रसेण।
अधकटिया मैदान पड़ीया,
बंद हो रह्या नैण।।

सन्देश-
थारा बछेरया लग्यो शेखो,
थाम सके तो जाण।        
शेखा मरण रो लिख्यो लेखड़ों,
चढ़ आओ अब नाण।।

          
चंद्रसेन-
सुण संदेशो झट चंद्रजी,
आया रण र मायं।      
बीर बड़ो तूँ कहिजे शेखा,
माटी देऊँ मिलाय।।

शेखाजी-
घणा गरजता बरसण तरसे,
मत गरजो चंदराज।        
कुण तो माट्टी माय मिलेलो,
वक़्त बतासी आज।।

        
शेखाजी अब लश्कर बाट्यां,
तीन दिशा र माय।         
आज मरण रो लेखो चंद्रजी,
शेखो दियो बताय।।

         
इक कुणा सूं तीर चलांस्यां,
इक सूं घुड़ असवार।        
इक कुणा सूं  भीड़े चंद्र सूं,
शेखो ले तरवार।।
     
वीरां सूं जदों वीर भिड्या,
गूंज उठ्यो असमान।        
कटी भुजावां वीर ब देखो,
लड़ रह्या बीच मैदान।।
         
लश्कर छोटो शेखा रो पण,
लड़ रह्यो स्वाभिमान।         
पीठ दिखावण सीख्यो न शेखो,
मरस्यां रण मैदान।।
        
सूरज छिप्गो धुल गुब्बारां,
धरती होगी लाल।       
शेखा सामी चाल रही ना,
चंद्रसेन री चाल।। 
       
शेखाजी रा लश्कर देखो,
हाहाकार मचाई है।       
चन्द्रसेनजी टिक्या न सामीं,
भाग र जान बचाई है।।
             
हार गयो अबे चंद्रसेन जी,
हारी गढ़ आमेरी है।       
शेखाजी री शान म देखो,
हो री जय जयकारी है।।
       
वीरगति में पैदल छः सौ,
छः सौ घुड़ असवारी है।      
शेखोजी भी झुकग्या देखो,
धन धन मात तिहारी है।।

शेखाजी-
वीरगति रा वीरां न
देस्यां राज सम्मान।           
ऐड़ा पूत जन्मिया,
धन्य हो गयी नाण।।

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