रविवार, 17 जून 2018

हरखा बाई और अकबर

आदि-काल से क्षत्रियों के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्व को चुनौती देते आये है। किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलतापूर्वक करते रहे है। कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था, क्षत्रियों से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रों को रचते रहे। कुरुक्षेत्र के महाभारत में जब अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली, उसके बाद से ही क्षत्रिय इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया। इतिहास में क्षत्रिय शत्रुओं को महिमामंडित करने का भरसक प्रयास किया गया ताकि क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जा सके। किन्तु जिस प्रकार हीरे के ऊपर लाख धूल डालने पर भी उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती, ठीक वैसे ही क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा। फिर धार्मिक आडम्बरों के जरिये क्षत्रियों को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ, जिसमंे शत्रओं को आंशिक सफलता भी मिली। क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए क्षत्रिय इतिहास को कलंकित कर क्षत्रियों के गौरव पर चोट करने की दिशा में आमेर नरेशों के मुगलों से विवादित वैवाहिक सम्बन्धों (Amer-Mughal marital relationship) के बारे में इतिहास में भ्रामक बातें लिखकर क्षत्रियों को नीचा दिखाने की कोशिश की गई। इतिहास में असत्य तथ्यों पर आधारित यह प्रकरण आमजन में काफी चर्चित रहा है।

इन कथित वैवाहिक संबंधों पर आज अकबर और आमेर नरेश भारमल की तथाकथित बेटी हरखा बाई (जिसे फ़िल्मी भांडों ने जोधा बाई नाम दे रखा है) के विवाह की कई स्वयंभू विद्वान आलोचना करते हुए इस कार्य को धर्म-विरुद्ध और निंदनीय बताते नही थकते। उनकी नजर में इस तरह के विवाह हिन्दू जाति के आदर्शों की अवहेलना थी। वहीं कुछ विद्वानों सहित राजपूत समाज के लोगों का मानना है कि भारमल में अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अकबर से अपनी किसी पासवान-पुत्री के साथ विवाह किया था। चूँकि मुसलमान वैवाहिक मान्यता के लिए महिला की जाति नहीं देखते और राजपूत समाज किसी राजपूत द्वारा विजातीय महिला के साथ विवाह को मान्यता नहीं देता। इस दृष्टि से मुसलमान, राजा की विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को उसकी संतान मानते है। जबकि राजपूत समाज विजातीय महिला द्वारा उत्पन्न संतान को राजपूत नहीं मानते, ना ही ऐसी संतानों के साथ राजपूत समाज वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते है। अतः ऐसे में विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को पिता द्वारा किसी विजातीय के साथ ब्याहना और उसका कन्यादान करना धर्म सम्मत बाध्यता भी बन जाता है। क्योंकि यदि ऐसा नही किया गया जाता तो उस कन्या का जीवन चौपट हो जाता था। वह मात्र दासी या किसी राजपूत राजा की रखैल से ज्यादा अच्छा जीवन नहीं जी सकती थी।

भारमल द्वारा अकबर को ब्याही हरखा बाई का भी जन्म राजपूत समाज व लगभग सभी इतिहासकार इसी तरह किसी पासवान की कोख से मानते है। यही कारण है कि भारमल द्वारा जब अकबर से हरखा का विवाह करवा दिया तो तत्कालीन सभी धर्मगुरुओं द्वारा भारमल के इस कार्य की प्रसंशा की गयी।

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