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इसी तरह का एक और उदाहरण आमेर के इतिहास में मिलता है।
राजा मानसिंह द्वारा अपनी पोत्री (राजकुमार जगत सिंह की पुत्री) का जहाँगीर के साथ विवाह किया गया। जहाँगीर के साथ मानसिंह ने अपनी जिस कथित पोत्री का विवाह किया, उससे संबंधित कई चौंकाने वाली जानकारियां इतिहास में दर्ज है। जिस पर ज्यादातर इतिहासकारों ने ध्यान ही नहीं दिया कि वह लड़की एक मुस्लिम महिला बेगम मरियम की कोख से जन्मी थी। जिसका विवाह राजपूत समाज में होना असंभव था।
कौन थी मरियम बेगम
इतिहासकार छाजू सिंह के अनुसार ‘‘मरियम बेगम उड़ीसा के अफगान नबाब कुतलू खां की पुत्री थी। सन 1590 में राजा मानसिंह ने उड़ीसा में अफगान सरदारों के विद्रोहों को कुचलने के लिए अभियान चलाया था। मानसिंह ने कुंवर जगत सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजी। जगतसिंह का मुकाबला कुतलू खां की सेना से हुआ। इस युद्ध में कुंवर जगतसिंह अत्यधिक घायल होकर बेहोश हो गए थे। उनकी सेना परास्त हो गई थी। उस लड़की ने जगतसिंह को अपने पिता को न सौंपकर उसे अपने पास गुप्त रूप से रखा और घायल जगतसिंह की सेवा की। कुछ दिन ठीक होने पर उसने जगतसिंह को विष्णुपुर के राजा हमीर को सौंप दिया। कुछ समय बाद कुतलू खां की मृत्यु हो गई। कुतलू खां के पुत्र ने मानसिंह की अधीनता स्वीकार कर ली। उसकी सेवा से प्रभावित होकर कुंवर जगतसिंह ने उसे अपनी पासवान बना लिया था। प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘दुर्गेशनंदिनी’’ में कुंवर जगतसिंह के युद्ध में घायल होने व मुस्लिम लड़की द्वारा उसकी सेवा करने का विवरण दिया है। लेकिन उसने उस लड़की को रखैल रखने का उल्लेख नहीं किया। कुंवर जगतसिंह द्वारा उस मुस्लिम लड़की बेगम मरियम को रखैल (पासवान) रखने पर मानसिंह कुंवर जगतसिंह से अत्यधिक नाराज हुए और उन्होंने उस मुस्लिम लड़की को महलों में ना प्रवेश करने दिया, ना ही रहने की अनुमति दी। उसके रहने के लिए अलग से महल बनाया। यह महल आमेर के पहाड़ में चरण मंदिर के पीछे हाथियों के ठानों के पास था, जो बेगम मरियम के महल से जाना जाता था। कुंवर जगतसिंह अपने पिता के इस व्यवहार से काफी क्षुब्ध हुये, जिसकी वजह से वह शराब का अधिक सेवन करने लगे। मरियम बेगम ने एक लड़की को जन्म दिया। कुछ समय बाद कुंवर सिंह की बंगाल के किसी युद्ध में मृत्य हो गई। इस शादी पर अपनी पुस्तक ‘‘पांच युवराज’’ में लेखक छाजू सिंह लिखते है ‘‘मरियम बेगम से एक लड़की हुई जिसकी शादी राजा मानसिंह ने जहाँगीर के साथ की। क्योंकि जहाँगीर राजा का कट्टर शत्रु था, इसलिए उसको शक न हो कि वह बेगम मरियम की लड़की है, उसने केसर कँवर (जगतसिंह की पत्नी) के पीहर के हाडाओं से इस विवाह का विरोध करवाया। किसी इतिहासकार ने इस बात का जबाब नहीं दिया कि मानसिंह ने अपने कट्टर शत्रु के साथ अपनी पोती का विवाह क्यों कर दिया? जबकि मानिसंह ने चतुराई से एक तीर से दो शिकार किये- 1. मरियम बेगम की लड़की को एक बड़े मुसलमान घर में भी भेज दिया। 2. जहाँगीर को भी यह सन्देश दे दिया कि अब उसके मन में उसके प्रति कोई शत्रुता नहीं है।
जहाँगीर के साथ जगतसिंह की मुस्लिम रखैल की पुत्री के साथ मानसिंह द्वारा शादी करवाने का यह प्रसंग यह समझने के लिए पर्याप्त है कि इतिहास में मुगल-राजपूत वैवाहिक संबंध में इसी तरह की वर्णशंकर संताने होती थी, जिनका राजपूत समाज में वैवाहिक संबंध नहीं किया जा सकता था। इन वर्णशंकर संतानों के विवाहों से राजा राजनैतिक लाभ उठाते थे। जैसा कि छाजू सिंह द्वारा एक तीर से दो शिकार करना लिखा गया है। एक अपनी इन संतानों को जिन्हें राजपूत समाज मान्यता नहीं देता, और उनका जीवन चौपट होना तय था, उनका शासक घरानों में शादी कर भविष्य सुधार दिया जाता, साथ ही अपने राज्य का राजनैतिक हित साधन भी हो जाता था। इस तरह की उच्च स्तर की कूटनीति तत्कालीन क्षत्रिय समाज ने, न केवल समझी बल्कि इसे मान्यता भी दी। यही कारण है कि हल्दीघाटी के प्रसिद्द युद्ध के बाद भी आमेर एवं मेवाड़ के बीच वैवाहिक सम्बन्ध लगातार जारी रहे
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