सन 1803 में राजस्थान में जयपुर रियासत की ईस्ट इंडिया कम्पनी से मैत्रिक संधि व कुछ अन्य रियासतों द्वारा भी मराठों और पिंडारियों की लूट खसोट से तंग राजस्थान की रियासतों ने सन 1818ई में शांति की चाहत में अंग्रेजों से संधियां की| शेखावाटी के अर्ध-स्वतंत्र शासकों से भी अंग्रेजों ने जयपुर के माध्यम से संधि की कोशिशें की| लेकिन स्वतंत्र जीवन जीने के आदि शेखावाटी के शासकों पर इन संधियों की आड़ में शेखावाटी में अंग्रेजों का प्रवेश और हस्तक्षेप करने के चलते इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा| अंग्रेजों के दखल की नीति के चलते शेखावाटी के छोटे-छोटे शासकों ने अपने सामर्थ्य अनुसार अंग्रेजों का विरोध किया और अग्रेजों के साथ खूनी लड़ाईयां भी लड़ी| बिसाऊ के ठाकुर श्यामसिंह व मंडावा के ठाकुर ज्ञान सिंह अंग्रेजों की खिलाफत करने वाले शेखावाटी के प्रथम व्यक्ति थे| इन दोनों ठाकुरों ने वि.सं.1868 में पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह की सहातार्थ अंग्रेजों के खिलाफ अपनी सेनाएं भेजी थी|
चित्र प्रतीकात्मक है|
अमर सिंह शेखावत (भोजराज जी का) ने बहल पर अधिकार कर लिया था, उसकी मृत्यु के बाद कानसिंह ने वहां की गद्दी संभाली और बहल पर अपना अधिकार जमाये रखने के लिए ददरेवा के सूरजमल राठौड़, श्यामसिंह बिसाऊ, संपत सिंह शेखावत, आदि के साथ अपनी स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के साथ संघर्ष जारी रखा, प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार इनके नेतृत्व में तीन हजार भोजराज जी का शाखा के शेखावत अंग्रेजों से लड़ने पहुँच गए थे| इनके साथ ही शेखावाटी के विभिन्न शासकों अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में उतर आये थे, जो अंग्रेज व अंग्रेजों से संधि किये शासकों द्वारा शासित प्रदेशों में अक्सर धावे डालकर लूटपाट करते| ये क्रांतिकारी अक्सर अंग्रेजों की सैनिक छावनियां लूटकर अंग्रेज सत्ता को चुनौती देते| अंग्रेजों ने इनकी गतिविधियों की अंकुश लगाने के लिए राजस्थान की देशी रियासतों के माध्यम से भसक कोशिश की पर ये क्रांतिकारी जयपुर, बीकानेर, जोधपुर किसी भी रियासत के वश में नहीं थे|
आखिर अंग्रेजों ने शेखावाटी के इन क्रांतिवीरों के दमन के लिए जिन्हें अंग्रेज लूटेरे व डाकू कहते थे, शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना की| जिसका मुख्यालय झुंझनु रखा गया और मेजर फोरेस्टर को इसका नेतृत्त्व सौंपा गया| मेजर फोरेस्टर ने शेखावाटी के सीमावर्ती उन किलों को तोड़ना शुरू किया, जिनमें ये क्रांतिकारी अक्सर छुपने के लिए इस्तेमाल करते थे| मेजर की इस कार्यवाही में अक्सर शेखावाटी के क्रांतिकारियों की शेखावाटी ब्रिगेड से झड़पें हो जाया करती थी| इस ब्रिगेड में भर्ती हुये शेखावाटी के ठाकुर डूंगरसिंह व जवाहर सिंह, पटोदा ने ब्रिगेड के ऊंट-घोड़े व हथियार लेकर विद्रोह कर दिया था| गुडा के क्रांतिकारी दुल्हेसिंह शेखावत शेखावाटी ब्रिगेड के साथ एक झड़प में शहीद हो गए| मेजर फोरेस्टर ने उनका सिर कटवाकर झुंझनु में लटका दिया, ताकि अन्य क्रान्ति की चाह रखने वाले भयभीत हो सकें| लेकिन एक साहसी क्रांतिकारी खांगा मीणा रात में उनका सिर उतार लाया और मेजर फोरेस्टर की सेना देखती रह गई|
मेजर फोरेस्टर ने गुमानसिंह, शेखावत, टाई जो वि.सं. 1890 में भोड़की चले गए थे, के प्रपोत्र रामसिंह को सजा देने के लिए भोड़की गढ़ को तोड़ने के लिए तोपखाने सहित आक्रमण किया| इससे पूर्व जी रामसिंह तथा उनके भाई बेटे पकड़े जा चुके थे| अत: मेजर फोरेस्टर का मुकाबला करने के लिए रामसिंह की ठकुरानी ने तैयारी की| ठकुरानी के आव्हान पर भोड़की की सभी राजपुतानियाँ मरने के लिए तैयारी हो गई और भोड़की गढ़ में तलवारें लेकर मुकाबले को आ डटी|
राजपुतानियों के हाथों में नंगी तलवारें और युद्ध कर वीरता दिखाने के उत्साह व अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की ललक देख मेजर फोरेस्टर ने बिना गढ़ तोड़े ही अपनी सेना को वहां से हटा लिया| इस तरह राजपूत नारियों के साहस, दृढ़ता के आगे अपनी कठोरता के लिए इतिहास में प्रसिद्ध मेजर फोरेस्टर को भी युद्ध का मैदान छोड़ना पड़ा|
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