तोगा जी राठौर जो शीश कटने के बाद भी लड़ते रहे.......
इतिहास गबाह है वीरता किसी कि बपौती नहीं रही। आम राजपूत से लेकर खास तक ने अपनी सरजमीं के लिए सर कटा दिया। लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि इतिहास में ज्यादातर उन्हीं वीरों की स्थान मिल पाया जो किसी न किसी रूप में खास थे | आम व्यक्ति की वीरता इतिहास के पन्नों पर बेहद कम आईं ,आई भी तो कुछ शब्दों तक सीमित| ऐसा ही एक बेहतरीन उदाहरण दिया है मारवाड़ के एक आम राजपूत तोगाजी राठौर ने, जिन्होंने सिद्ध किया कि राजपूत गर्दन कटने के बाद भी लड़ सकता है।।
वर्ष 1656 के आसपास का समय था | दिल्ली पर बादशाह शाहजहां व जोधपुर पर राजा गजसिंह का शासन था। एक दिन शाहजहां का दरबार लगा हुआ था। सभी उमराव (राजपूत)और खान अपनी अपनी जगह पर विराजित थे| उसी समय शाहजहां ने कहा कि अपने दरबार में खान 60 व उमराव 62 क्यों है? उन्होंने दरबारियों से कहा कि इसका जवाब तत्काल चाहिए | सभा में सन्नाटा पसर गया | सभी एक दूसरे को ताकने लगे। सबने अपना जवाब दिया, लेकिन बादशाह संतुष्ट नहीं हुआ । आखिरकार दक्षिण का सुबेदार मीरखां खड़ा हुआ और उसने कहा कि खानों से दो बातों में उमराव आगे है इस कारण दरबार में उनकी संख्या अधिक है।
पहला / सिर कटने के बावजूद युद्ध करना ।
दूसरा / युद्धभूमि में पति के वीरगति को प्राप्त होने पर पत्नी का सति (अग्नि में जिंदा प्रेवेश) होना।
शाहजहां जवाब सुनने के बाद कुछ समय के लिए मौन रहा | अगले ही पल उसने कहा कि ये दोनों नजारे वह अपनी आंखों से देखना चाहता है | इसके लिए उसने छह माह का समय निर्धारित किया । साथ ही उसने यह भी आदेश दिया कि दोनों बातें छह माह के भीतर साबित नहीं हुई तो मीरखां का कत्ल करवा दिया जाएगा और उमराव की संख्या कम कर दी जाएगी। इस समय दरबार में मौजूद जोधपुर के महाराजा गजसिंह जी को यह बात अखर गई| उन्होंने मीरखां को इस काम के लिए मदद करने का आश्वासन दिया |
मीरखां चार महीने तक राज रजवाड़ों में घूमते रहे लेकिन ऐसा वीर नही मिला जो कह सके कि बो सिर कटने के बाद भी लड़ लेगा। आखिरकार मीरखां जोधपुर महाराजा गजसिंह जी से आ कर मिले । महाराजा ने तत्काल उमरावों की सभा बुलाई| महाराजा ने जब शाहजहां की बात बताई तो सभा में सन्नाटा छा गया । महाराजा की इस बात पर कोई आगे नहीं आया । इस पर महाराजा गजसिंह जी की आंखें लाल हो गई और भुजाएं फड़कने लगी। उन्होंने गरजना के साथ कहा कि आज मेरे वीरों में कायरता आ गई है क्या अगर आप में से कोई तैयार नहीं है तो यह काम में स्वयं करूँगा। महाराजा इससे आगे कुछ बोलते कि उससे पहले 18 साल का एक जवान उठकर खड़ा हुआ। उसने महाराजा को खम्माघणी करते हुए कहा कि हुकुम मेरे रहते आपकी बारी कैसे आएगी| बोलता-बोलता रुका तो महाराज ने इसका कारण पूछ लिया| उस जवान युवक ने कहा कि अन्नदाता हुकुम सिर कटने के बाद लड़ तो लूँगा, लेकिन पीछे सति होने वाली कोई नहीं है अर्थात मेरी शादी नही हुई है| यह वीरता दिखाने वाला थे तोगाजी राठौर|
महाराजा इस विचार में डूब गए कि लड़ने वाला तो तैयार हो गया, लेकिन सति होने की परीक्षा कौन दे | महाराजा ने सभा में दूसरा बेड़ा घुमाया कि कोई राजपूत इस युवक से अपनी बेटी का विवाह सति होने के लिए करे| तभी एक भाटी सिरदार इसके लिए राजी हो गए ।
भाटी कुल री रीत, आ आजाद सूं आ वती ।
करण काज कुल कीत, भटियाणी होवे सती।
महाराजा ने अच्छा मुहूर्त दिखवा कर तोगा राठौऱ का विवाह करवाया । विवाह के बाद तोगाजी ने अपनी पत्नी के डेरे में जाने से इनकार कर दिया | वे बोले कि उनसे तो स्वर्ग में ही मिलाप करूँगा । उधर, मीरखां भी इस वीर जोड़े की वीरता के दिवाने हो गये | उन्होंने तोगा राठौर का वंश बढ़ाने की सोच शाहजहां से छह माह की मोहलत बढ़वाने का विचार किया, ज्योंहि यह बात नव दुल्हन को पता चली तो उसने अपने पति तोगोजी को सूचना भिजवाई कि जिस उद्देश्य को लेकर दोनों का विवाह हुआ है वह पूरा किये बिना वे ढंग से श्वास भी नहीं ले पाएंगी| इस कारण शीघ्र ही शाहजहाँ के सामने जाने की तैयारी की जाए| महाराजा गजसिंह व मीरखां ने शाहजहाँ को सूचना भिजवा दी|
समाचार मिलते ही शाहजहां ने अपने दो बहादूर जवाजों को तोगाजी से लड़ने के लिए तेयार किया । शाहजहां ने उनको सिखाया कि तोगा व उसके साथियों को पहले दिन भोज दिया जायेगा ,जब वे लोग भोज करने बैठें उस वक्त तोगे का सिर काट देना ताकि वह खड़ा ही नहीं हो सके। उधर, तोगाजी आगरा पहुंच गए। बादशाह ने उन्हें दावत का न्योता भिजवाया। तोगाजी अपने साथियों के साथ किले पहुँच गए। वहां उनका सम्मान किया गया। मान-मनुहारें हुई बहुत से लोग उन्हें देखने पहुंचे। बादशाह की रणनीति के तहत एक जवान तोगाजी के ईद-गीर्द चक्कर लगाने लगा । तोगाजी को धोखा होने का संदेह हो गया। उन्होंने अपने पास के एक राजपूत सरदार से कहा कि उन्हें कुछ गड़बड़ लग रही है इस कारण उनके आसपास घूम रहे व्यक्ति को आप संभाल लेना ओर उनका भी सिर काट देना। उसके बाद वह अपना काम कर देगा । दूसरी तरफ तोगोजी की पत्नी भी सती होने के लिए जमुना नदी किनारे तैयार हो बैठ गई । इतने में दरीखाने से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी कि तोगाजी ने एक व्यक्ति को मार दिया फिर पास में खड़े किसी व्यक्ति ने तोगाजी का सिर धड़ से अलग कर दिया। तोगाजी बिना सिर तलवार लिये मुस्लिम सेना पर टूट पड़े। उनके इस करतब पर ढोल-नणाड़े बजने लगे। चारणों ने वीर रस के दोहे शुरू किए। ढोली व ढाढ़ी सोरठिया दोहा बोलने लगे। तोगोजी की तलवार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बादशाह के दरीखाने में हाहाकार मच गया। बादशाह दौड़ते हुए रणक्षेत्र में पहुंचे। दरबार में खड़े राजपूत सिरदारों ने तोगाजी ओर भटियाणी जी की जयकारों से आसमान गूंजा दिया तोगाजी की वरीता देखकर बादशाह ने महाराजा गजसिंह जी से माफी मांगी और इस वीर को रोकने की तरकीब पूछी। फिर एक ब्राह्मण ने तोगोजी के शरीर पर गुली का छिंटा फेंका जिस कारण तोगोजी की तलवार शांत हुई और धड़ नीचे गिरा।
उधर भटियाणी सोलह श्रृंगार कर बैठी हुई थी। जमना नदी के किनारे चंदन कि चिता चुनवाई गई। तोगाजी का धड़ व सिर गोदी में लेकर भटियाणी जी राम का नाम लेते हुए चिता में प्रवेश कर गई| धन्य है ऐसे क्षत्रिय ओर क्षत्राणी ।
जय माँ भवानी ।
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पृथ्वी सिहं राठोड़
सोलंकिया तला
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