महाराणा प्रताप और कुंवर मानसिंह के मध्य राणा का मानसिंह के साथ भोजन ना करने के बारे में कई कहानियां इतिहास में प्रचलित है| इन कहानियों के अनुसार जब मानसिंह महाराणा के पास उदयपुर आया तब महाराणा प्रताप ने उनके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हुये आदर किया और मानसिंह के सम्मान हेतु भोज का आयोजन किया, पर महाराणा प्रताप मानसिंह के साथ स्वयं भोजन करने नहीं आये और कुंवर अमरसिंह को मानसिंह के साथ भोजन करने हेतु भेज दिया| कहानियों के अनुसार राणा का इस तरह साथ भोजन ना करना दोनों के बीच वैम्स्य का कारण बना और मानसिंह रुष्ट होकर चला गया| इसी तरह की कहानियों को कुछ ओर आगे बढाते हुये कई लेखकों ने यहाँ तक लिख दिया कि मानसिंह को जबाब मिला कि तुर्कों को बहन-बेटियां ब्याहने वालों के साथ राणाजी भोजन नहीं करते| कई लेखकों ने इस कहानी को ओर आगे बढाया और लिखा कि मानसिंह के चले जाने के बाद राणा ने वह भोजन कुत्तों को खिलाया और उस स्थल की जगह खुदवाकर वहां गंगाजल का छिड़काव कराया|
मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा-"लौटता हुआ मानसिंह डूंगरपुर आया तो वहां के रावल सहसमल ने उसका अथिति सत्कार किया| वहां से वह सलूम्बर पहुंचा जहाँ रावत रत्न सिंह के पुत्र रावत खंगार ने मेहमानदारी की| राणाजी उस वक्त गोगुन्दे में थे| | गोगुन्दे आकर मानसिंह से मिले और भोजन दिया| जीमने के समय विरस हुआ|"
इस तरह राजस्थान के इस प्रसिद्ध और प्रथम इतिहासकार ने इस घटना पर सिर्फ इतना ही लिखा कि भोजन के समय कोई मतभेद हुये| नैणसी ने राणा व मानसिंह के बीच हुये किसी भी तरह के संवाद की चर्चा नहीं की| नैणसी के अनुसार यह घटना गोगुन्दे में घटी जबकि आधुनिक इतिहासकार यह घटना उदयपुर में होने का जिक्र करते है|
इस कहानी में आधुनिक लेखकों ने जब स्थान तक सही नहीं लिखा तो उनके द्वारा लिखी घटना में कितनी सच्चाई होगी समझा जा सकता है| हालाँकि मैं इस बात से इन्कार नहीं करता कि मानसिंह व राणा की इस मुलाकात में कोई विवाद नहीं हुआ हो| यदि विवाद ही नहीं होता तो हल्दीघाटी का युद्ध ही नहीं हुआ होता, मानसिंह के गोगुन्दा प्रवास के दौरान राणा से विवाद हुआ यह सत्य है, पर विवाद किस कारण हुआ वह शोध का विषय है, क्योंकि मानसिंह के साथ राणा द्वारा भोजन ना करने का जो कारण बताते हुए कहानियां घड़ी गई वे सब काल्पनिक है|
यदि प्रोटोकोल या राजपूत संस्कृति के अनुरूप विवाद के इस कारण पर नजर डाली जाय तो यह कारण बचकाना लगेगा और इस तरह की कहानियां अपने आप काल्पनिक साबित हो जायेगी| क्योंकि प्रोटोकोल के अनुसार राजा के साथ राजा, राजकुमार के साथ राजकुमार, प्रधानमंत्री के साथ प्रधानमंत्री, मंत्री के साथ मंत्री भोजन करते है| मानसिंह उस वक्त राजा नहीं, राजकुमार थे, अत: प्रोटोकोल के अनुरूप उसके साथ भोजन राणा प्रताप नहीं, उनके राजकुमार अमरसिंह ही करते| साथ ही हम राजपूत संस्कृति के अनुसार इस घटना पर विचार करें तब भी मानसिंह राणा प्रताप द्वारा उनके साथ भोजन करने की अपेक्षा नहीं कर सकते थे, क्योंकि राजपूत संस्कृति में वैदिक काल से ही बराबरी के आधार पर साथ बैठकर भोजन किये जाने की परम्परा रही है| मानसिंह कुंवर पद पर थे, उनके पिता भगवानदास जीवित थे, ऐसी दशा में उनके साथ राजपूत परम्परा अनुसार कुंवर अमरसिंह को ही भोजन करना था ना कि महाराणा को| हाँ यदि भगवनदास वहां होते तब उनके साथ राणा स्वयं भोजन करते| अत: राजपूत संस्कृति और परम्परा अनुसार मानसिंह राणा के साथ बैठकर भोजन करने की अपेक्षा कैसे कर सकते थे?
मुझे तो उन इतिहासकारों की बुद्धि पर तरस आता है जिन्होंने बिना राजपूत संस्कृति, परम्पराओं व प्रोटोकोल के नियम को जाने इस तरह की काल्पनिक कहानियों पर भरोसा कर अपनी कलम घिसते रहे| मुझे उन क्षत्रिय युवाओं की मानसिकता पर भी तरस आता है जिन्होंने ऐसे इतिहासकारों द्वारा लिखित, अनुमोदित कहानियों को पढ़कर उन पर विश्वास कर लिया, जबकि वे खुद आज भी उस राजपूत संस्कृति और परम्परा का स्वयं प्रत्यक्ष निर्वाह कर रहे है| राजपूत परिवारों में आज भी ठाकुर के साथ ठाकुर, कुंवर के साथ कुंवर साथ बैठकर भोजन करते है| पर जब वे मानसिंह व राणा के मध्य विवाद पर चर्चा करते है तो इन काल्पनिक कहानियों को मान लेते है|
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